गुप्त वंश कालीन छत्तीसगढ़ :
तीसरी शताब्दी के अंत तक और चौथी शताब्दी के प्रारंभ में उत्तर भारत में कोई राजनीतिक शक्ति नहीं थी। पूरा देश कई छोटे-छोटे नृपतंत्रो और प्रजातंत्र राज्यों में बंट गया था, ऐसी परिस्थिति का लाभ उठाकर साकेत प्रयाग क्षेत्र के आसपास श्री गुप्त नामक राजा ने एक राजतंत्र की स्थापना की जो गुप्त राजवंश के नाम से प्रसिद्ध हुआ।
श्री गुप्त का पुत्र घटोत्कच तथा उसका पुत्र चंद्रगुप्त प्रथम था। चन्द्रगुप्त प्रथम का उत्तराधिकारी समुद्रगुप्त ने अपने दिग्विजय द्वारा साम्राज्य की सीमा को भारत के एक बड़े भाग पर फैलाने का प्रयत्न किया। गुप्त राजवंश के सम्राट समुद्रगुप्त की प्रयाग प्रशस्ति से ज्ञात होता है कि इसने दक्षिणापथ की दिग्विजय के समय सर्वप्रथम दक्षिण कोसल के राजा महेन्द्र को पराजित किया। उसके बाद उसने राजा व्याघ्रराज (बस्तर) को पराजित किया। महानदी के तट पर लंबे समय तक समुद्रगुप्त की सेना का पड़ाव था, जिसके आधार पर वर्तमान महासमुंद जिला का नामकरण माना जाता है।
समुद्रगुप्त रीवा होते हुए महाकोसल में प्रविष्ठ हुआ। महाकोसल अर्थात आधुनिक छत्तीसगढ़ के उत्तरी क्षेत्र जिनमें बिलासपुर, रायपुर, संबलपुर तथा वर्तमान उड़ीसा के कुछ इलाके शामिल थे, अधिकार कर लिया। सन् 1972 में छत्तीसगढ़ के पानाबरस नामक गांव से 20 स्वर्ण सिक्के प्राप्त हुए है, जिनमें एक सिक्का रामगुप्त का, एक सिक्का समुद्रगुप्त और सात सिक्के चन्द्रगुप्त के हैं। आरंग से कुमारगुप्त का रत्नजड़ित “मयूर सिक्का” प्राप्त हुआ है। सिरपुर से प्राप्त कई लेखों में महाशिवगुप्त बालार्जुन का नाम आता है, उनकी माता का नाम वासटा देवी के द्वारा सिरपुर का प्रसिद्ध लक्ष्मण मंदिर बनवाया गया था।
#Sources (पुस्तक) :
- शर्मा, राजकुमार – मध्यप्रदेश के पुरातत्व का संदर्भ ग्रंथ (पृ. – 29, 30)
- गुप्त, प्यारेलाल – प्राचीन छत्तीसगढ़ (पृ. – 51)
- यदु, डॉ. हेमुलाल – दक्षिण कोसल की क्लास (पृ. – 33)