# वैज्ञानिक पद्धति/अनुसन्धान/शोध : अर्थ, परिभाषा, विशेषताएं, प्रमुख चरण (Vaigyanik Paddhati)

वैज्ञानिक पद्धति/अनुसन्धान/शोध का अर्थ : वैज्ञानिक अनुसन्धान से तात्पर्य अनुसन्धानकारी के पक्षपात रहित ऐसे अध्ययन से है जो भावना, दर्शन या तत्व ज्ञान से सम्बन्धित न होकर वस्तुनिष्ठ, अवलोकन, परीक्षण, प्रयोग और वर्गीकरण की एक व्यवस्थित कार्य-प्रणाली पर आधारित होता है। वैज्ञानिक पद्धति/शोध की परिभाषा : श्री लुण्डबर्ग के मतानुसार, “समाज विज्ञानियों में यह विश्वास … Read more

# सामाजिक अनुसंधान की क्रियाविधि (Samajik Anusandhan ki KriyaVidhi)

सामाजिक अनुसंधान की क्रियाविधि : सामाजिक अनुसंधान की क्रियाविधि को हम शोध प्रारूप या अनुसंधान प्रारूप के रूप में विश्लेषित करते है जिसमें शोध के सभी महत्वपूर्ण क्रियाविधि का वर्णन होता है। शोध प्रारूप तथ्य संकलन तथा विश्लेषण की एक व्यवस्था है जो शोध के उद्देश्यों को कम पैसे की लागत में पूरा कर लेता … Read more

# सामाजिक गतिशीलता के प्रमुख स्रोत (Samajik Gatishilta Ke Pramukh Strot)

सामाजिक गतिशीलता के स्रोत : पीटर के शब्दों में, “समाज के सदस्यों के सामाजिक जीवन में होने वाली स्थिति, पद, पेशा और निवास स्थान संबंधी परिवर्तनों को सामाजिक गतिशीलता कहते हैं।” सोरोकिन के शब्दों में, “एक व्यक्ति या सामाजिक वस्तु अथवा मूल्य अर्थात् मानव क्रियाकलाप द्वारा बनायी या रूपान्तरित किसी भी चीज में एक सामाजिक … Read more

# मूल्यों का समाजशास्त्र (मूल्यों की अवधारणा) : डॉ. राधाकमल मुकर्जी | Mulyon Ka Samajshastra

मूल्यों का समाजशास्त्र : डॉ. राधाकमल मुकर्जी अपने मूल्य सिद्धान्त के कारण भारत में ही नहीं अपितु संसार के समाजशास्त्रियों में अपना महत्वपूर्ण स्थान बनाये हुए हैं। बोगार्ड्स ने इसीलिए डॉ. राधाकमल मुकर्जी को पूर्वी देशों का समाजशास्त्री और सामाजिक-दार्शनिक कहकर सम्बोधित किया है। डॉ. राधाकमल मुकर्जी ने अपनी विचारधारा में पौरवात्य और पाश्चात्य विचारधारा … Read more

# सामाजिक उद्विकास (डार्विनवाद) का सिद्धान्त | Theory of Social Evolution (Darwinism)

सन् 1850 में हरबर्ट स्पेन्सर की प्रथम पुस्तक ‘सोशल स्टेटिक्स‘ (Social Statics) प्रकाशित हुई जिसमें सामाजिक उद्विकास के विचारों का प्रतिपादन किया गया। इसके पश्चात् सन् 1858 में स्पेन्सर ने ‘सिन्थेटिक फिलोसफी‘ (Synthetic Philosophy) नामक एक योजना प्रकाशित की, इसमें उन्होंने उद्विकास की सार्वभौमिकता को महत्व प्रदान किया। सर्वप्रथम चार्ल्स डार्विन (Charles Darwin) ने अपनी … Read more

# कार्ल मार्क्स के अतिरिक्त मूल्य सिद्धान्त | Karl Marx’s Theory of Surplus Value

कार्ल मार्क्स के अतिरिक्त मूल्य के सिद्धान्त : कार्ल मार्क्स के सामान्य दर्शन पर उसके विचारों को चार वर्गों में विभक्त किया जा सकता है- द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद, इतिहास की भौतिकवादी व्याख्या, वर्ग-संघर्ष का सिद्धान्त और अतिरिक्त मूल्य का सिद्धान्त। अतिरिक्त मूल्य के सिद्धान्त की अवधारणा मार्क्स के प्रसिद्ध पुस्तक ‘दास कैपिटल‘ में प्रमुख रूप से … Read more