# विजय कॉटन मिल्स बनाम अजमेर राज्य वाद

श्री विजय कॉटन मिल्स बनाम अजमेर राज्य वाद मौलिक अधिकारों पर प्रतिबन्ध एवं युक्तियुक्त निर्बन्धन हेतु निदेशक तत्वों को आधार मानने के संबंध में “विजय कॉटन मिल्स बनाम अजमेर राज्य” वाद महत्वपूर्ण है। इस वाद में सरकार की उस शक्ति को चुनौती दी गयी थी जिसके द्वारा सरकार “न्यूनतम मजदूरी अधिनियम” पारित करती है एवं … Read more

# एस. नारायण पिल्लई बनाम दि स्टेट ऑफ त्रावणकोर कोचीन वाद

एस. नारायण पिल्लई बनाम दि स्टेट ऑफ त्रावणकोर कोचीन वाद मौलिक अधिकारों पर युक्ति युक्त प्रतिबन्ध आरोपित करने या मौलिक अधिकारों पर लगाए जाने वाले प्रतिबन्धों को स्पष्ट करने के लिए निदेशक तत्वों को आधार बना कर निर्णय देने में एस. नारायण पिल्लई बनाम दि स्टेट ऑफ त्रावणकोर कोचीन का वाद प्रमुख रूप से महत्वपूर्ण … Read more

# बम्बई राज्य बनाम बलसारा वाद

बम्बई राज्य बनाम एफ० एन० बलसारा वाद : बम्बई राज्य बनाम एफ० एन० बलसारा वाद में “बम्बई प्रान्त मद्य निषेध अधिनियम 1949” के कुछ उपबन्धों को असंवैधानिक घोषित कर दिया गया था जो संविधान से असंगत थे और शेष अधिनियम पर इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ा तथा यथावत् वैध बना रहा। दूसरे, ‘बम्बई राज्य बनाम … Read more

# मिनर्वा मिल्स लि० बनाम भारत संघ वाद

मिनर्वा मिल्स लि० बनाम भारत संघ वाद : मिनर्वा मिल्स लि० बनाम भारत संघ वाद भी अधिकारों एवं निदेशक सिद्धान्तों के साथ संशोधनीयता के प्रश्न से सम्बन्धित है। इस वाद में सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष 42वें संशोधन अधिनियम 1976 की धारा 4 की वैधता को याचीकर्ताओं ने चुनौती दी। इस अधिनियम की धारा 4 द्वारा … Read more

# केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य वाद : 1973

केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य वाद : 1973 केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य वाद 1973 में केरल भूमि सुधार संशोधन अधिनियम को चुनौती देने वाली याचिका के रूप में सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष आया, याचिका में उक्त अधिनियम को संविधान के अनुच्छेद 14, 19(1) (g), 25, 26 और अनुच्छेद 31 के उल्लंघन में बताया गया। … Read more

# चन्द्रभवन बोर्डिंग एण्ड लॉजिंग बंगलौर बनाम मैसूर राज्य और अन्य

चन्द्रभवन बोर्डिंग एण्ड लॉजिंग बंगलौर बनाम मैसूर राज्य और अन्य : भारत के न्यायिक इतिहास में चन्द्रभवन बोडिंग एण्ड लॉजिंग वाद से न्यायिक दृष्टिकोण में विशिष्टता के साथ परिवर्तन  परिलक्षित होता है, न्यायालय यद्यपि इस वाद में भी विशुद्ध रूप में विधिक और संवैधानिक ही रहा, परन्तु भाग-4 के प्रति उदारवादी व्याख्या प्रारम्भ हुई। चन्द्रभवन … Read more