भारत में औद्योगिक क्रान्ति के कारण :
इंग्लैण्ड की नीतियों के कारण भारत के कुटीर उद्योगों का पतन के साथ ही यूरोप के औद्योगिक क्रान्ति का प्रभाव भारत में हुआ। 1833 ई. में जब ईस्ट इण्डिया कम्पनी का भारत में एकाधिकार समाप्त हो गया तो ब्रिटेन की अनेक कम्पनियों एवं पूँजीपतियों ने भारत में उद्योगों की स्थापना की जिससे यहाँ पर नई तकनीक एवं पूँजी का आगमन हुआ। भारत में औद्योगिक क्रान्ति के अन्य कारण निम्नलिखित थे-
1. यातायात के साधनों का विकास
उन्नीसवीं शताब्दी के मध्य में जब रेलवे का प्रारम्भ भारत में हुआ तो देश में रेल लाइनों का विस्तार होने लगा जिन पर रेलगाड़ियाँ एवं मालगाड़ियाँ चलने लगीं। इस प्रकार वैज्ञानिक ढंग से सड़कों का निर्माण किया गया और इन मार्गों को बन्दरगाहों से जोड़ा गया जिससे विदेशों से आयातित एवं निर्यातित मालों में आसानी हुई। इस प्रकार देश के आन्तरिक भागों में उद्योगों की स्थापना का विकास हुआ।
2. स्वेज नहर से लाभ
स्वेज नहर के निर्माण से भारत एवं यूरोप की दूरियाँ बहुत कम हो गईं जिससे भारत को यूरोप से मशीनों एवं उपकरणों को आयात करना सस्ता एवं आसान हो गया जिससे कम पूँजी पर ही भारत में उद्योगों का विकास होने लगा।
3. सस्ता श्रम एवं पर्याप्त कच्चा माल का होना
भारत में सस्ता श्रम था क्योंकि यहाँ पर जनसंख्या अधिक और बेरोजगारी थी। यहाँ पर कच्चा माल भी पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध था। अतः महत्वाकांक्षी भारतीयों एवं उद्योगपतियों ने भारत में उद्योग का विकास किया जिससे भारत में औद्योगिक क्रान्ति का प्रसार हुआ।
4. इंग्लैण्ड की तकनीक और कम्पनी के अवकाश प्राप्त अधिकारियों से क्रान्ति का प्रसार
ईस्ट इण्डिया कम्पनी का भारत के व्यापार में एकाधिकार था। इसी के कारण भारत में इंग्लैण्ड की सत्ता स्थापित हुई थी। अतः कम्पनी के जो अधिकारी रिटायर्ड हो गये थे उन्होंने अपने अनुभव के आधार पर यहाँ पर उद्योगों की स्थापना की। इंग्लैण्ड और भारत का सम्पर्क बहुत दिनों से था और भारत इंग्लैण्ड का उपनिवेश भी था। अतः दोनों देशों के व्यक्तियों का एक-दूसरे देशों में आवागमन था। जब इंग्लैण्ड में औद्योगिक क्रान्ति हुई तो उसका प्रभाव भारत पर पड़ना स्वाभाविक था। ब्रिटेन के पूँजीपतियों और उद्यमी भारतीयों ने ब्रिटेन की तकनीक का प्रयोग भारत के उद्योगों के लिए किया जिससे भारत में औद्योगिक क्रान्ति हुई।
5. विदेशी घटनाएँ और राष्ट्रीय भावना का प्रसार
इंग्लैण्ड में जब औद्योगिक क्रान्ति हुई थी उस समय यूरोप के अन्य देशों में गृहयुद्ध एवं राजनैतिक अस्थिरता थी। यूरोप के देशों में राष्ट्रीयता का प्रसार हुआ और वे अपने उद्योगों के विकास के लिए साम्राज्यवाद का भी विस्तार कर रहे थे जिससे वहाँ के देशों में आपस में संघर्ष भी हो रहा था। इस कारण भारत में ब्रिटिश एवं भारतीय उद्योगपतियों को सूती वस्त्र एवं जूट उद्योग का विकास करने का अवसर मिला। 1885 ई. में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना से स्वदेशी का प्रचलन भी राष्ट्रीय भावना को जाग्रत करने के लिए किया गया जिससे भारतीयों ने बड़े पैमाने पर छोटे एवं बड़े उद्योगों की स्थापना की। धीरे-धीरे भारत भी उद्योगों का एक निर्यातक देश बन गया।
इस प्रकार भारत में औद्योगिक क्रान्ति का प्रसार हुआ और आज तक इसके प्रसार में वृद्धि ही हो रही है। आज भारत के कोने-कोने में उद्योगों का विकास हो गया है।
भारत में औद्योगिक क्रान्ति का प्रभाव :
भारत एक कृषि प्रधान देश था जो प्राचीन आध्यात्मिक सभ्यता एवं संस्कृति पर आधारित था। भारत पर सैकड़ों वर्षों तक मुसलमानों एवं ब्रिटेन का शासन रहा है। मुसलमानों के शासन में भारतीय सम्पत्ति का पलायन नहीं हुआ यद्यपि भारतीयों में पारम्परिक संकीर्णता का और विकास हुआ। अंग्रेजों के शासन काल में भारत का आर्थिक विदोहन हुआ और यहाँ की सम्पत्ति का पलायन ब्रिटेन में हुआ लेकिन ब्रिटेन की औद्योगिक क्रान्ति एवं नवजागरण का प्रभाव भारतीयों पर हुआ जिसे निम्नलिखित दृष्टि से अनुभव किया जा सकता है-
1. परम्पराओं में परिवर्तन
भारत में जब औद्योगिक क्रान्ति का प्रसार हुआ और नवीन उत्पादन पद्धति का संचार हुआ तो पारम्परिक रीति-रिवाज, खान-पान, रहन-सहन, लोक-विचार, फैशन एवं सामाजिक संस्थाओं में नई पद्धति का प्रारम्भ हुआ। इस समय वैज्ञानिक दृष्टिकोण एवं पद्धति को स्वीकार किया जाने लगा था अतः भारत में अन्धविश्वासों, आधार रहित आस्था, मिथ्या सामाजिक बन्धनों में कमी आयी। धर्म, नैतिकता, सामाजिक नियन्त्रण, जाति व्यवस्था, विवाह, परिवार, सामाजिक स्तरीकरण, मनोरंजन, व्यवसाय एवं विचारों में नवीन उत्पादन व्यवस्था का प्रभाव हुआ जिससे समाज में अत्यन्त तीव्रता के साथ परिवर्तन हुआ और प्रत्येक क्षेत्र में वैज्ञानिक आधारों पर विचार होने लगा।
2. सामाजिक परिवर्तन
औद्योगिक क्रान्ति के पूर्व भारत के समाजों का क्षेत्र अत्यन्त सीमित एवं संकीर्ण हुआ करता था। एक समाज से दूसरे समाज एवं एक राज्य से दूसरे राज्य का सम्पर्क बहुत कम हुआ करता था लेकिन जब यातायात का विस्तार हुआ और प्रत्येक समाज के व्यक्तियों का सम्पर्क कल-कारखानों में होने लगा तो देश के समाज में एक मिश्रित संस्कृति का प्रसार हुआ जिससे सामाजिक परिवर्तन में अत्यन्त तीव्रता आयी और समाज की संकीर्णता समाप्त होने लगी। आज के वैज्ञानिक युग में गाँवों में भी इतना परिवर्तन हो गया है कि प्राचीन सामाजिक संकीर्णता पूर्णतया समाप्त हो गई है और मानवीय सामाजिकता का संचार हो गया है। परिवर्तित समाज में मनुष्यों की महत्वाकांक्षाओं एवं प्रवृत्तियों में इतना विकास हुआ है कि वह उस सब कुछ प्राप्त करना चाहता था।
3. पारिवारिक कार्यों एवं आदर्शों में परिवर्तन
औद्योगिक क्रान्ति के पूर्व परिवार में एक आदर्श होता था और सभी व्यक्तियों के अलग-अलग कार्य हुआ करते थे लेकिन औद्योगीकरण में इसमें शिथिलता आयी। आज भारत में धार्मिकता एवं नैतिकता का हास हो गया है। अब लोगों का झुकाव भौतिकवादी हो गया है, ईश्वर की उपेक्षा हो गई है। माता-पिता, पति एवं पत्नी के प्रति सम्मान एवं आदर्श की भावना समाप्त हो गई है।
आज माता-पिता की उपेक्षा हो रही है, धीरे-धीरे परिवार में मुखिया व्यवस्था समाप्त हो गई जिससे आदेश के स्थान पर परामर्श का प्रचलन प्रारम्भ हो गया। परम्परागत पारिवारिक कार्यों में औद्योगिक क्रान्ति के कारण कमी आयी। भारतीय पुश्तैनी व्यवसाय समाप्त होता गया। पारिवारिक जिम्मेदारियों एवं कर्तव्यों में शिथिलता आयी। अधिकतर मनुष्यों ने अपने वृद्ध माता-पिता की सेवा और बच्चों के देखभाल एवं शिक्षा व्यवस्था तक की उपेक्षा की। इस क्रान्ति के कारण पति एवं पत्नी दोनों रोजगार करने लगे थे अतः समयाभाव के कारण पारिवारिक कार्यों में विमुखता आयी। बच्चों का जन्म घर में न होकर अस्पतालों में होने लगा और दाई उनकी देखभाल करने लगी और बड़े होने पर उनकी शिक्षा बोर्डिंग स्कूलों में होने लगी। कुछ परिवार वाले अपना भोजन घर में न बनाकर होटलों में करने लगे। इन सब परिवर्तनों का कारण औद्योगिक वातावरण था जिससे जीवन अत्यन्त जटिल एवं व्यस्त हो गया। इस क्रान्ति से पारिवारिक विघटन हो गया जिससे तनावों में भी वृद्धि हो गई और परिवार के सदस्यों में व्यक्तिवादिता एवं स्वच्छन्दता का विकास हुआ।
4. संयुक्त परिवारों का विघटन
औद्योगिक क्रान्ति के पूर्व भारत में संयुक्त परिवार की परम्परा थी लेकिन उद्योगों के विकास के कारण संयुक्त परिवार की परम्परा का हास हो गया। इसके अनेक कारण थे, जैसे-कारखानों के आस-पास छोटे-छोटे मकानों का निर्माण कराया गया था जिनमें संयुक्त परिवार नहीं रह सकता था। इसी प्रकार जब वहाँ पर शहर बना तो उसके मकान भी छोटे-छोटे थे। इसके अलावा औतिकवादी एवं उपभोक्तावादी संस्कृति के प्रसार से व्यक्ति सभी सुख-सुविधाओं को अपने पत्नी एवं बच्चों तक ही सीमित रखना चाहता था इसीलिए अन्य परिवार के सदस्यों की उपेक्षा की। संयुक्त परिवार में स्वतन्त्रता एवं स्वच्छन्दता का अभाव हो जाता था इसीलिए नौकरीपेशा व्यक्ति ऐसा परिवार पसन्द नहीं करते थे।
5. सीमित परिवार में वृद्धि
औद्योगिक क्रान्ति के कारण जब उपभोक्तावादी संस्कृति का विकास हुआ तो परिवार में कम बच्चों को पैदा करने की प्रवृत्ति का विकास हुआ जिससे वे अपने बच्चों की सही परवरिश एवं शिक्षा-दीक्षा दे सके। अधिक बच्चे प्रगति, मनोरंजन एवं सुख-भोग में बाधक होते थे क्योंकि मनुष्य की आवश्यकताओं में इतना विकास हो गया या कि अधिक बच्चों को प्रत्येक क्षेत्र में बाधक मानते थे।
6. स्त्रियों की स्थिति में परिवर्तन
औद्योगिक क्रान्ति के पूर्व स्त्रियाँ भारत में घरों के अन्दर ही रहा करती थीं लेकिन क्रान्ति के बाद औरतों की स्थितियों में परिवर्तन हुआ वे पराधीनता को तोड़कर आर्थिक आत्मनिर्भर होने लगी । स्त्रियाँ पुरुषों के समान विद्यालयों में शिक्षा ग्रहण करने लगी, कार्यालयों, मिलों एवं कारखानों में कार्य करने लगी। धीरे-धीरे स्त्रियों को निजी एवं सामाजिक सम्मान मिलने लगा और रोजगार युक्त औरतों को लोग स्वीकार करने लगे। अनेक औरतें स्वच्छन्द जीवन व्यतीत करने लगी और वैवाहिक सम्बन्धों को अस्वीकार कर दिया। आज तो अनेक शासनाध्यक्ष औरतें हैं।
7. विवाह पर प्रभाव
औद्योगिक क्रान्ति के पूर्व विवाह को धार्मिक, आध्यात्मिक एवं पवित्र बन्धन माना जाता था जो सात जन्मों का पति-पत्नी का पवित्र सम्बन्ध होता था लेकिन वैज्ञानिक एवं औद्योगिक क्रान्ति के कारण इसमें बदलाव हुआ और पति-पत्नी का सम्बन्ध एक सामाजिक समझौता हुआ। यदि दोनों में ताल-मेल का अभाव है तो वैवाहिक सम्बन्ध विच्छेद हो जाता है। इस क्रान्ति के कारण विवाह करना स्त्री-पुरुष का सामाजिक, जैवकीय एवं आर्थिक उद्देश्य हो गया है। आजकल लड़के भी योग्य-सुशिक्षित लड़कियों को पसन्द करने लगे हैं जो उनके साथ मिलकर आर्थिक स्थिति मजबूत करें।
औद्योगिक क्रान्ति के कारण बाल विवाह प्रथा समाप्त हो गयी है, विधवा विवाह एवं पुनर्विवाह का प्रचलन प्रारम्भ हो गया है। आज के समय में उच्च शिक्षा प्राप्त करने एवं शिक्षा के अनुसार नौकरी प्राप्त करने के बाद विवाह करने का प्रचलन हो चला है जिससे लड़के एवं लड़कियों के विवाह की आयु 25 से 40 वर्ष तक होती जा रही है। औद्योगिक क्रान्ति के कारण प्रेम विवाह का प्रचलन भी बढ़ता जा रहा है क्योंकि जगह-जगह पर शिक्षा से लेकर कार्यालयों एवं कारखानों में लड़के-लड़कियाँ साथ-साथ कार्य करते हैं जिससे उनके बीच आकर्षण बढ़ता गया जो बाद में प्रेम-विवाह के रूप में परिवर्तित हो जाता है। इसके अलावा बहुत से लड़के-लड़कियाँ बिना विवाह के भी साथ-साथ रहने लगे हैं क्योंकि वे वैवाहिक बन्धन को पसन्द ही नहीं करते हैं। इन लोगों के अनुसार बिना विवाह के भी वैवाहिक सम्बन्ध वाला व्यवहार स्थापित किया जा सकता है। आजकल तो सरकार भी इसकी मान्यता प्रदान कर रही है।
इस प्रकार भारत में औद्योगिक क्रान्ति के कारण आर्थिक परिवर्तन के साथ ही तीव्रता के साथ सामाजिक परिवर्तन भी हुआ। प्राचीन परम्पराओं को त्याग कर आधुनिक विचारधाराओं को स्वीकार किया गया जिससे व्यक्ति की महत्वाकांक्षाओं का विकास हुआ और वह सब कुछ प्राप्त करने की लालसा रखने लगा। उसमें स्वच्छन्दता एवं स्वतन्त्रता का विकास हुआ जिससे स्वार्थवाद का भी संचार हुआ। इस क्रान्ति से व्यक्ति इतना स्वार्थी हो गया कि वह किसी भी क्षेत्र में तब तक कोई कार्य नहीं करता है जब तक उसमें उसका स्वार्थ निहित न हो। आज स्त्री-पुरुष समान स्वतन्त्र, महत्वाकांक्षी, स्वार्थी एवं उपभोक्तावादी हैं।
इन्हीं सबके कारण आज भ्रष्टाचार, अपराध, व्यभिचार, पाप, संघर्ष, वर्गवाद एवं अमानवीयता का विकास हो रहा है जिसका भयंकर परिणाम आने वाले समय में हो सकता है।