19वीं शताब्दी के पुनर्जागरण ने भारत के लोगों में एक नई आत्म-जागृति की भावना को विकसित किया और उन्होंने विदेशी दासता के बन्धनों को तोड़ने का निश्चय किया। दूसरे शब्दों में, पुनर्जागरण एक ऐसी घटना है जिसने 19वीं शताब्दी में राष्ट्रीय चेतना को झकझोर कर जगा दिया और लोग अपने उत्थान और विकास की दिशा में गम्भीरतापूर्वक सोचने लगे।
वस्तुतः आधुनिक भारत का विकास पुनर्जागरण का ही एक भाग है। एक विद्वान् ने लिखा है, “आधुनिक सैनिक तकनीक और पाश्चात्य बौद्धिक तथा वैज्ञानिक चिन्तन धाराओं के उच्च पहलुओं से भारत का सीधा सम्पर्क 18वीं शताब्दी के अन्त और 19वीं शताब्दी के आरम्भ में हुआ।” पाश्चात्य शिक्षा और ज्ञान ने न केवल बौद्धिक अनुसन्धान की भावना को उत्पन्न किया, अपितु धार्मिक, सामाजिक, आर्थिक एवं राजनीतिक समस्याओं को हल करने में भी महत्वपूर्ण भूमिका अभिनीत की।
प्रारम्भ में भारतीय पुनर्जागरण ने हमारे साहित्य, शिक्षा और चिन्तन को प्रभावित किया। किन्तु बाद में उसने धर्म और समाज के क्षेत्र में कई महत्वपूर्ण सुधार किये और तदन्तर अर्थव्यवस्था और राजनीति के क्षेत्र में भी उसका योगदान उल्लेखनीय रहा।.
भारतीय पुनर्जागरण के प्रमुख कारण :
जागृति की लहर
19वीं शताब्दी में राष्ट्रीय चेतना और पुनर्जागरण की लहर ने सम्पूर्ण एशिया के देशों को जाग्रत कर दिया। टर्की में कमाल पाशा ने और चीन में सुनयात सेन ने देश को जगाने का दायित्व सँभाला। भारत में पहले से ही जागृति की भावना पनप रही थी परन्तु उसे उचित दिशा एवं गति अन्य देशों के आन्दोलनों से प्राप्त हुई। जागृति की इस लहर ने एशिया के समस्त देशों को किसी-न-किसी रूप में प्रभावित किया और एक दूसरे से प्रेरणा प्राप्त करके ये देश मन और आत्मा से जाग्रत हो गये।
सामाजिक एवं धार्मिक कारण
भारत के लोगों में सामाजिक, सांस्कृतिक एवं आध्यात्मिक चेतना जाग्रत करने में धार्मिक कारणों ने वैसा ही योगदान प्रदान किया, जैसा कि विश्व के अन्य देशों में हुआ था। इस समय होने वाले सामाजिक एवं धार्मिक आन्दोलनों ने तत्कालीन सामाजिक एवं धार्मिक बुराइयों एवं कुरीतियों पर खुलकर कुठाराघात किया और लोग उनसे मुक्ति पाने के लिए तत्पर हो गये। अन्धविश्वासों और धार्मिक आडम्बरों ने पुनर्जागरण का मार्ग प्रशस्त किया।
विदेशी शक्ति का दबाव
अंग्रेजों की साम्राज्यवादी प्रवृत्ति एवं उनकी राजनीतिक शोषण की इच्छा ने भी पुनर्जागरण के उद्भव में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की। भारतवासी अपने प्राचीन गौरवपूर्ण अतीत को प्राप्त करने के लिए लालायित होने लगे और उन्होंने पाश्चात्य प्रभाव से मुक्ति हेतु प्रयास करने प्रारम्भ कर दिये। डॉ. वी. पी. वर्मा ने भी लिखा है, “विदेशी राजनीतिक शक्ति के आघात के विरुद्ध बचाव की व्यवस्था के रूप में देश की प्राचीन संस्कृतियाँ पुनः सचेत और सचेष्ट हो उठीं तथा अपने अस्तित्व को पुनः आग्रहपूर्वक प्रदर्शित करने लगी।”
पाश्चात्य शिक्षा का प्रचार
भारत में अंग्रेजी शासन की स्थापना के बाद पाश्चात्य शिक्षा का प्रचार एवं प्रसार प्रारम्भ हुआ। अंग्रेजी शिक्षा का मुख्य उद्देश्य अपने लिए स्वामिभक्त लिपिक तैयार करना था, ताकि उनकी प्रशासनिक व्यवस्था भली प्रकार कार्य कर सके, लेकिन अप्रत्यक्ष रूप से शिक्षा के प्रसार ने पुनर्जागरण के उद्भव और विकास में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की। अंग्रेजी शिक्षा-संस्थाओं में अंग्रेजी भाषा ही नहीं अपितु आधुनिक ज्ञान-विज्ञान भी पढ़ाया जाता था जिसके कारण लोगों के दृष्टिकोण में पर्याप्त वृद्धि हुई। अंग्रेजी साहित्य के अध्ययन से भारतवासियों के हृदय में भी स्वतन्त्रता, समानता और लोकतन्त्र की भावना का विकास हुआ और उन्हें अंग्रेजी शासन की गुलामी असहनीय लगने लगी, जिसके कारण वे अपनी संस्कृति और राष्ट्रीयता के विकास की ओर उन्मुख हुए।
आर्थिक शोषण
अंग्रेजों के भारत में आगमन से पूर्व भारत आर्थिक दृष्टि से आत्म-स्वावलम्बी देश था परन्तु अंग्रेजों ने यहाँ आने के बाद भारत का जो आर्थिक शोषण किया उससे शिक्षित भारतवासियों में असंतोष का पनपना अनिवार्य था। वे ब्रिटिश दासता के जुए से बाहर निकलने के लिए छटपटाने लगे और अंग्रेजों के प्रभुत्व से मुक्ति पाने हेतु भारत के लोगों ने राष्ट्रीय आन्दोलन में भाग लेना प्रारम्भ कर दिया। प्रसिद्ध विद्वान गुरुमुख निहाल सिंह ने लिखा है, “इस तथ्य को अस्वीकार नहीं किया जा सकता कि देश की बिगड़ती हुई आर्थिक दशा तथा सरकार की राष्ट्र-विरोधी आर्थिक नीति ने अंग्रेज-विरोधी विचार तथा राष्ट्रीय भावना को जगाने में पर्याप्त हाथ बँटाया।”
प्रेस व समाचार-पत्रों की भूमिका
प्रेस व समाचार-पत्रों ने भी राष्ट्रीय चेतना के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका अभिनीत की। समाचार-पत्रों के साथ-साथ साहित्य ने भी राष्ट्रीय जागरण को विशेष गति प्रदान की। फलतः देश-प्रेम और राष्ट्रीयता की भावना में द्रुतगति से विकास हुआ। समाचार-पत्रों ने न केवल अंग्रेजी साम्राज्यवाद को उजागर किया, अपितु भारतवासियों की कुण्ठित भावनाओं को जाग्रत किया।
मध्यम वर्ग का उदय
मध्यम वर्ग या वणिक वर्ग के उदय ने भी पुनर्जागरण की प्रक्रिया को विशेष प्रोत्साहन प्रदान किया। सामाजिक तथा राष्ट्रीय आन्दोलन पर होने वाला समस्त आर्थिक उत्तरदायित्व इसी वर्ग ने सँभाला जिसके कारण पुनर्जागरण आन्दोलन को विशेष गति प्राप्त हुई।
ईसाई धर्म-प्रचारकों का आगमन
19वीं शताब्दी के प्रारम्भ में ईसाई पादरी बहुत बड़ी संख्या में भारत आये। अपने धर्म का प्रचार करते समय उन्होंने भारत के लोगों की धार्मिक आस्था और विश्वासों का मजाक उड़ाया और तरह-तरह के प्रलोभन देकर उन्होंने हिन्दुओं और मुसलमानों को ईसाई धर्म में दीक्षित करना प्रारम्भ किया जिसके कारण हिन्दुओं और मुसलमानों में जागृति आयी और भारत में कई सामाजिक और धार्मिक आन्दोलन हुए।
उपर्युक्त समस्त कारणों ने पुनर्जागरण आन्दोलन के उद्भव और विकास में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की। पश्चिमी सभ्यता के प्रचार और अंग्रेजी साहित्य के अध्ययन ने इस आन्दोलन को विशेष गति प्रदान की और भारत के लोग यह समझ गये कि जीवन के सभी क्षेत्रों में चाहे वह सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक, धार्मिक आदि कोई भी हो, उन्नति सम्भव है। पुनर्जागरण की इस अद्भुत लहर ने सारे भारतवर्ष को एक नई शक्ति और प्रेरणा से स्पन्दित कर दिया जिससे समस्त क्षेत्रों में परिवर्तन की एक ऐसी भावना जाग्रत हुई जिसने भारत के लोगों को समस्त क्षेत्रों में सुधार के लिए प्रेरित किया।.