नेपोलियन के पतन के कारण :
सन् 1807 में टिलसिट की सन्धि के समय यूरोप में नेपोलियन की शक्ति अपनी चरम सीमा पर थी। केवल इंग्लैण्ड को छोड़कर सम्पूर्ण यूरोप उसके सामने नतमस्तक था। इतना सब कुछ उसने केवल सात वर्षों में ही अर्जित किया था किन्तु जितनी तेजी से उसका उत्थान हुआ, उतनी ही तेजी से उसका पतन भी हो गया, उसके पतन के प्रमुख कारण निम्नलिखित है –
1. साम्राज्य की विभिन्नता
नेपोलियन सैनिक और समानता, स्वाधीनता आदि के प्रलोभनों के आधार पर यूरोप में विशाल भू-भाग का स्वामी बना था, परन्तु उसके भीतर भाषा, रीति-रिवाज आदि की दृष्टि से बड़ी विषमता थी। इतने बड़े भू-भाग पर स्थानीय जनता और उसके सहयोग के बिना शासन करना सम्भव न था। अतः कोई भी राष्ट्र अधिक समय तक उसके अधीन नहीं रहा।
2. महाद्वीपीय व्यवस्था
महाद्वीपीय व्यवस्था नेपोलियन की सबसे बड़ी भूल थी। उसने इस व्यवस्था को बलपूर्वक यूरोप के देशों पर लादने का प्रयास किया। इससे यूरोप का व्यापार चौपट हो गया परिणामस्वरूप यूरोप की अनेक देशों की जनता व शासक नेपोलियन से असन्तुष्ट हो गए। स्पेन, पोप, रूस व इंग्लैण्ड नेपोलियन के शत्रु हो गये और अन्त में यहीं उसके पतन का एक कारण बना।
3. राष्ट्रीयता की भावना का प्रसार
फ्रांस की राज्य क्रान्ति ने ही राष्ट्रीयता का बीड़ा उठाया था। यहीं भावना अन्य देशों में फैलकर नेपोलियन के पतन का कारण बनी। स्पेन के राष्ट्रीय विद्रोह के सामने उसे झुकना पड़ा। स्पेन से प्रभावित होकर प्रशा, ऑस्ट्रिया आदि में भी राष्ट्रीय जागरण की भावना का प्रचार-प्रसार हुआ। स्पेन पर आक्रमण कर उसने एक बुनियादी गलती की।
4. उसकी भयंकर भूले
नेपोलियन ने निम्नलिखित भूलें की जिनके कारण उसका पतन अवश्यम्भावी हो गया था।
i. व्यापार बहिष्कार नियम
उसकी महाद्वीपीय व्यापार बहिष्कार नीति ने तटस्थ देशों को अपना शत्रु बना लिया। इससे यूरोपीय देशों का व्यापार चौपट हो गया। एक इतिहासकार के शब्दों में, “नेपोलियन को वाटरलू के युद्ध में परास्त नहीं किया गया, उसकी वास्तविक पराजय मानचेस्टर के कपड़ों के कारखानों एवं बर्मिंघम के लोहे की भट्टियों में हुई।”
ii. स्पेनिश नीति
नेपोलियन ने स्पेन के सम्राट को व्यापार बहिष्कार नियम का विरोध करने पर ही गद्दी से उतार दिया था तथा अपने भाई को वहाँ का शासक बना दिया। उसके इस कृत्य ने स्पेन की जनता के हृदय में उसके प्रति घृणा भर दी। उन्होंने नेपोलियन के विरुद्ध युद्ध छेड़ दिया जो उसके मरते दम तक समाप्त नहीं हुआ। नेपोलियन ने स्वयं कहा था, “The Spanishujaer ruined me.” हेजन के शब्दों में, “स्पेन की लड़ाई नेपोलियन की भयंकर भूलों में से एक है।”
iii. पोप के साथ कठोर व्यवहार
नेपोलियन ने कैथोलिक धर्म को मानने से इन्कार कर दिया परिणामस्वरूप नेपोलियन को पोप ने धर्मद्रोही कही। इससे समस्त कैथोलिक जनता उसकी विरोधी हो गयी।
iv. रूस पर चढ़ाई
रूस पर चढ़ाई नेपोलियन की सबसे बड़ी भूल थी। इसने उसकी सैनिक शक्ति का विनाश कर दिया। प्रशा, ऑस्ट्रिया को उसके विरुद्ध मोर्चा तैयार करने का समय दे दिया। टालस्टाय ने लिखा है, “मास्को पर आक्रमण नेपोलियन के पतन की महान् ट्रेजडी का पहला संकट था।”
5. ऑस्ट्रिया से युद्ध
उसने मैटरनिख पर यह दोष लगाया कि वह महाद्वीपीय व्यवस्था का सही ढंग से पालन नहीं कर रहा है। उसने मैटरनिख को दण्ड देने का निश्चय करके ऑस्ट्रिया पर आक्रमण कर दिया, परन्तु आक्रमण का वास्तविक कारण कुछ और ही था।
6. अत्यधिक महत्वाकांक्षी
नेपोलियन की महत्वाकांक्षा ही उसके पतन का कारण थी। बिना सोचे-समझे वह अपने साम्राज्य का विस्तार करता चला गया, किन्तु जब उसे असफलता हाथ लगने लगी तब भी उसने शान्ति का सहारा नहीं लिया। अन्त में उसे पराजय का मुँह देखना पड़ा।
7. इंग्लैण्ड की सामुद्रिक शक्ति
नेपोलियन की पराजय का एक कारण इंग्लैण्ड की अजेय सामुद्रिक शक्ति थी। वह संसार भर के समुद्रों का स्वामी था। इसीलिए निरन्तर युद्धों में लगे रहने के बावजूद इंग्लैण्ड का व्यापार संसार भर में चलता रहता और उसका खजाना भरता रहता। नेपोलियन स्थल युद्धों में तो विजय प्राप्त करता रहा किन्तु समुद्र पर उसकी पराजय होती रही। महाद्वीपीय योजना उसकी सामुद्रिक कमजोरी के कारण ही असफल रही।
8. विजित देशों में राष्ट्रीयता का विकास
जिन देशों को नेपोलियन ने जीत लिया था उनमें प्रायः अपने सम्बन्धियों को ही शासकों के रूप में नियुक्त किया था, किन्तु धीरे-धीरे उन देशों की राष्ट्रीय भावना नेपोलियन के पतन का कारण बनी।
9. व्यक्तिगत साम्राज्यवादी भावना
नेपोलियन का साम्राज्यवाद व्यक्तिवाद पर टिका हुआ था। उसका आधार फ्रांस का हित करना नहीं था वरन् विश्व सम्राट बनने की इच्छा थी। प्रो. हेजन के शब्दों में, “यह केवल पराक्रम तथा निरंकुशता के आधार पर टिका हुआ था। उसका निर्माण युद्ध तथा विजय के द्वारा हुआ था। विजित लोग उसके अधीन अवश्य थे, परन्तु वे उससे घृणा करते थे और उसके चंगुल से छुटकारा पाने के लिये अवसर की ताक में रहते ये। ऐसे साम्राज्य को केवल शक्ति के बल पर ही बनाये रखा जा सकता था।” नेपोलियन जिन देशों को विजित करता था वहाँ की जनभावनाओं को अपने पक्ष में करने का प्रयास नहीं करता था।
10. क्रान्ति की उत्साह भावना का समाप्त होना
1793 ई. में फ्रांस की जनता ने विदेशी आक्रमण का सामना करने में जो उत्साह दिखलाया था वह अब समाप्त हो गया था। फ्रांस की जनता शान्ति चाहती थी परन्तु नेपोलियन युद्धों और संघर्षों में रुचि दिखा रहा था अतः फ्रांस की जनता में भी नेपोलियन के विरुद्ध भावना उत्पन्न होने लगी। सन् 1814 में जब मित्र राष्ट्रों ने पेरिस पर आक्रमण किया तो फ्रांस की जनता ने हृदय से नेपोलियन का साथ नहीं दिया।
11. क्रान्ति विरोधी आचरण
यद्यपि नेपोलियन अपने को क्रान्ति का पुत्र कहता था परन्तु आचरण में वह क्रान्ति विरोधी था। एक इतिहासकार के शब्दों में, “क्रान्ति का सबसे मुख्य आदर्श स्वतन्त्रता थी—व्यक्ति की स्वतन्त्रता, राज्य और समाज द्वारा उस पर थोपे अनुचित बन्धनों से मुक्ति।” परन्तु नेपोलियन स्वतन्त्रता के आदर्श में तनिक भी विश्वास नहीं करता था। उसने यह कहना भी शुरू कर दिया था कि “फ्रांस की जनता स्वतन्त्रता नहीं चाहती।“
नेपोलियन ने फ्रांस की जनता को स्वतन्त्रता नहीं दी तथा अपने साम्राज्य में उसने निरंकुश स्वेच्छाचारी शासन की स्थापना की। उसकी निरंकुशता स्वेच्छाचारिता ही उसके पतन का कारण बनी।
12. मित्रों के साथ विश्वासघात
पुर्तगाल पर आक्रमण करने से पूर्व नेपोलियन ने स्पेन को यह आश्वासन दिया था कि पुर्तगाल में यदि वह अपने प्रदेश से होकर सेना ले जाने देगा तो वह उस पुर्तगाल का कुछ भाग दे देगा, परन्तु उसने अपना वायदा पूरा नहीं किया वरन् वायदे के खिलाफ स्पेन पर ही अधिकार करने का प्रयास किया। इससे नेपोलियन की प्रतिष्ठा धूल में मिल गयी।
13. नेपोलियन का अहंकार
नेपोलियन स्वभाव से अहंकारी था, वह अपने ऊपर आवश्यकता से अधिक विश्वास करता था। उसका कथन था, “असम्भव शब्द मेरे शब्दकोष में है ही नहीं।” वह दम्भ में आकर अपने सेनापतियों की उचित सलाह को भी टाल देता था।