समानता और स्वतन्त्रता का सम्बन्ध :
स्वतन्त्रता व समानता के सम्बन्ध की त्रुटिपूर्ण धारणा : दोनों परस्पर विरोधी हैं-
समानता और स्वतन्त्रता के पारस्परिक सम्बन्ध के विषय में विद्वानों में मतभेद हैं। इस सम्बन्ध में एक मत है कि समानता और स्वतन्त्रता परस्पर विरोधी हैं। लार्ड एक्टन ने इस सम्बन्ध में कहा है, “समानता की भावना ने स्वतन्त्रता की आशाओं पर पानी फेर दिया है।” पर यह मत समानता और स्वतन्त्रता की भ्रामक परिभाषा पर आधारित है। यदि हम समानता का अर्थ भौतिक समानता समझें और स्वतन्त्रता का अर्थ मनमाने कार्य करने की स्वतन्त्रता समझें तो वस्तुतः दोनों परस्पर विरोधी हैं। परन्तु स्वतन्त्रता का अर्थ मर्यादा का अभाव या मनमानी करने की स्वतन्त्रता नहीं होता। वास्तव में यदि दोनों शब्दों का ठीक अर्थ लिया जाये तो स्पष्ट हो जायेगा कि वे दोनों परस्पर विरोधी नहीं, वरन् एक-दूसरे के पूरक हैं।
स्वतन्त्रता व समानता के सम्बन्ध की सही धारणा : दोनों परस्पर पूरक हैं-
स्वतन्त्रता का अर्थ वस्तुतः प्रतिबन्धों का अभाव नहीं होता है, वरन् उसका अर्थ उन परिस्थितियों पर प्रतिबन्ध का अभाव होता है, जो व्यक्ति के व्यक्तित्व के विकास के लिए आवश्यक हो। इसी प्रकार समानता का अर्थ भौतिक साधनों की समानता नहीं होता, वरन् उसका अर्थ योग्यतानुसार विकास के अवसर की समानता होता है। इस अर्थ में स्वतन्त्रता व समानता में कोई विरोध नहीं है, वरन् वे एक-दूसरे की पूरक हैं, यह हम राजनीतिक स्वतन्त्रता तथा आर्थिक समानता के सम्बन्ध के विवेचन से देख सकते हैं।
राजनीतिक स्वतन्त्रता के अन्तर्गत शासन में भाग लेने, उसके सम्बन्ध में मत व्यक्त करने, अपना मत देने, राजकीय पद ग्रहण करने तथा चुनाव लड़ने आदि की स्वतन्त्रता आती है। पर अपनी इन स्वतन्त्रताओं का प्रयोग व्यक्तियों द्वारा तभी उचित रूप से हो सकता है, जब समाज में आर्थिक समानता हो। समाज के सब लोगों को जब आर्थिक विकास के अवसर समान रूप से प्राप्त होंगे, तो समाज धनवान तथा निर्धन, पूँजीपति तथा मजदूर एवं शोषक तथा शोषित वर्गों में विभाजित नहीं होगा। आर्थिक समानता की दशा में धनवान निर्धनों से, पूँजीपति मजदूरों से तथा शोषक शोषितों से दबाव डालकर या लालच देकर उनका मत नहीं ले सकेंगे। पर यदि समाज में आर्थिक समानता होगी, तो आर्थिक लाभ के लिए लोग अपने मतों को बेचेंगे। अतः राजनीतिक स्वतन्त्रता के उपभोग के लिए यह आवश्यक है कि आर्थिक समानता अर्थात् आर्थिक विकास के अवसर की समानता तथा न्यूनतम आर्थिक सुरक्षा की व्यवस्था हो। वस्तुतः जैसा लास्की ने कहा है, “राजनीतिक समानता कभी वास्तविक नहीं हो सकती, जब तक उसके साथ वास्तविक आर्थिक समानता न हो।” यदि इस रूप में इन शब्दों का सही अर्थ समझें तो यह स्पष्ट है कि ये दोनों परस्पर पूरक और सहायक हैं। एक-दूसरे के बिना इसका अस्तित्व नहीं हो सकता। स्वतन्त्रता के बिना समानता सहायक हैं। एक-दूसरे के बिना इसका अस्तित्व नहीं हो सकता। स्वतन्त्रता के बिना समानता बेकार है और समानता के बिना स्वतन्त्रता निर्जीव। आधुनिक युग में सभी लोकतान्त्रिक देशों में व्यक्ति स्वातन्त्र्य पर जोर दिया जाता है। अतएव समानता के बिना स्वतन्त्रता और स्वतन्त्रता के बिना समानता सम्भव नहीं हो सकती।
इस प्रकार यह स्पष्ट है कि समानता के अभाव में स्वतन्त्रता स्थिर नहीं रह सकती। जैसा कि टोनी ने कहा है, “समानता की प्रचुर मात्रा स्वतन्त्रता की विरोधी नहीं, वरन् उसके लिए अत्यन्त आवश्यक है।”