प्रशासनिक संरचना को प्रभावी और सुव्यवस्थित बनाने के लिए कई विचारकों ने समय समय पर अनेक सिद्धांतों का प्रस्ताव रखा है। इनमें सबसे प्रभावशाली सिद्धांत “नौकरशाही सिद्धांत” (Bureaucracy Theory) है, जिसे प्रसिद्ध जर्मन समाजशास्त्री मैक्स वेबर (Max Weber) द्वारा प्रस्तुत किया गया था। उनका यह सिद्धांत आधुनिक प्रशासनिक व्यवस्था की नींव माना जाता है, और आज भी कई देशों में सरकारी और गैर-सरकारी संगठन इसके आधार पर संचालन करते हैं।
19वीं शताब्दी के अंतिम वर्षों में, औद्योगिक क्रांति के कारण संगठन तेज़ी से बढ़ने लगे और उनकी संरचना जटिल होती चली गई। पहले के समय में, प्रशासन के तरीके पारंपरिक और व्यक्तिगत संबंधों पर आधारित होते थे, लेकिन अब ये तरीके कारगर साबित नहीं हो रहे थे। इसी चुनौती को देखते हुए, मैक्स वेबर ने ‘नौकरशाही’ (Bureaucracy) का विचार सामने रखा। उन्होंने एक ऐसी प्रणाली की बात की जो तर्कसंगत (rational), कानूनी (legal), और पदानुक्रमित (hierarchical) हो, ताकि संगठनों को कुशलतापूर्वक चलाया जा सके। वेबर का मानना था कि ये नई प्रणाली संगठनों को आधुनिक युग की चुनौतियों का सामना करने में मदद करेगी।
आज संगठन का सबसे प्रभावी स्वरूप नौकरशाही ही है। हालाँकि, ‘नौकरशाही‘ शब्द का प्रयोग अक्सर नकारात्मक अर्थों में किया जाता है – एक ऐसा संगठन जो लालफीताशाही, अक्षमता और अप्रभावीता से ग्रस्त है। लेकिन वास्तव में, यह शब्द प्रशासनिक उद्देश्यों के लिए सामाजिक संगठन के एक विशेष रूप को दर्शाता है। जर्मन समाजशास्त्री मैक्स वेबर (1864-1920) ने नौकरशाही का सबसे व्यवस्थित अध्ययन किया।
वेबर, संगठन की उत्पत्ति और प्रकृति को शक्ति और सत्ता के संदर्भ में समझते हैं। उनके अनुसार, शक्ति उस व्यक्ति के पास होती है जो विरोध के बावजूद सामाजिक संबंधों में अपनी इच्छा को लागू कर सके। जब इस शक्ति का उपयोग मानव समूहों की संरचना के लिए किया जाता है, तो यह ‘सत्ता‘ कहलाती है। इस प्रकार, वेबर शक्ति और सत्ता (या ‘प्रभुत्व’) के बीच अंतर करते हैं। सत्ता या प्रभुत्व ही संगठन की उत्पत्ति का कारण बनता है। वेबर संगठन के नियमों को ‘प्रशासन‘ कहते हैं। प्रशासन का सबसे महत्वपूर्ण पहलू यह निर्धारित करना है कि कौन किसको आदेश देगा। इसलिए, ‘सत्ता का प्रत्येक रूप प्रशासन में प्रकट होता है और उसी रूप में कार्य करता है।’
नौकरशाही: वेबर और अन्य विद्वानों के दृष्टिकोण :
वेबर के अनुसार, नौकरशाही का अर्थ है – नियुक्त अधिकारियों का एक प्रशासनिक संगठन। वे ऐसी नौकरशाही की कल्पना करते थे जिसमें नियुक्त अधिकारी एक निश्चित और अलग समूह का हिस्सा होते हैं। उनका मानना था कि इस समूह का कार्य और प्रभाव सभी प्रकार के संगठनों में दिखाई देता है। हर्बर्ट जी. हिक्स और सी. रे गुलिट ने नौकरशाही को इस प्रकार परिभाषित किया है: ‘यह विशिष्ट पदों का एक एकीकृत पदानुक्रम है जिसे व्यवस्थित नियमों द्वारा परिभाषित किया जाता है। यह एक अवैयक्तिक, नियमित प्रक्रिया पर चलने वाली संरचना है जिसमें कानूनी अधिकार पद से जुड़े होते हैं, न कि उस व्यक्ति से जो उस पद पर कार्यरत है।’ संक्षेप में, विद्वानों का मानना है कि नौकरशाही एक ऐसी संगठित प्रणाली है जिसमें नियुक्त अधिकारी नियमों और पदानुक्रम के अनुसार काम करते हैं, और जहां पद का महत्व व्यक्ति से अधिक होता है।
नौकरशाही के उद्देश्य :
इस लेख का उद्देश्य नौकरशाही को गहराई से समझना है, खासकर भारतीय कार्मिक प्रशासन के संदर्भ में। हम निम्नलिखित पहलुओं पर ध्यान केंद्रित करेंगे:
1. भारतीय संदर्भ में नौकरशाही
नौकरशाही की भूमिका और महत्व को भारतीय कार्मिक प्रशासन के परिप्रेक्ष्य में समझना। यह जानना कि यह प्रणाली कैसे काम करती है और देश के प्रशासन में इसका क्या योगदान है।
2. विकास प्रशासन की धुरी
नौकरशाही को मुख्य रूप से विकास प्रशासन के केंद्र के रूप में देखना और उसका विश्लेषण करना। विकास को बढ़ावा देने में यह कितनी प्रभावी है और इसकी क्या कमज़ोरियाँ हैं।
3. मैक्स वेबर का योगदान
मैक्स वेबर के नौकरशाही पर दिए गए विचारों को अच्छी तरह से समझना और उनके योगदान को याद रखना। वेबर के सिद्धांत आज भी कितने प्रासंगिक हैं, इस पर विचार करना।
4. प्रशासनिक विकास यात्रा
विकसित और विकासशील, दोनों राष्ट्रों के संबंध में प्रशासनिक विकास यात्रा की विभिन्न पद्धतियों को जानना। यह समझना कि अलग-अलग देशों में प्रशासन कैसे विकसित हुआ है और इसमें क्या समानताएं और अंतर हैं।
5. कार्य संस्कृति का विश्लेषण
नौकरशाही की कार्य संस्कृति को विस्तार से समझना। यह देखना कि नौकरशाही में काम करने का माहौल कैसा है, इसके क्या सकारात्मक और नकारात्मक पहलू हैं। इस लेख का लक्ष्य नौकरशाही की जटिलताओं को उजागर करना और पाठकों को इस महत्वपूर्ण विषय पर एक व्यापक दृष्टिकोण प्रदान करना है।
नौकरशाही के उदय के कारण :
नौकरशाही का विकास 18वीं शताब्दी में सबसे पहले पश्चिमी यूरोप के देशों में और उसके उपरान्त विश्व के अन्य देशों में हुआ। 20वीं शताब्दी में यह अपनी पराकाष्ठा पर पहुंची, हालांकि कई राज्यों में मार्क्सवादी सिद्धान्त की विजय हुई जो इसको समाप्त कर देना चाहता है।
लॉस्की नौकरशाही के उदय को कई तत्वों के योगदान का परिणाम मानते हैं। प्रथम, यह कुलीनतंत्र की उपज के रूप में विकसित हुआ। इसके अपने इतिहास में कुलीनतंत्र में सक्रिय सरकार के लिए रूचि का अभाव देखा गया जिससे कई परिस्थितियों में सत्ता स्थायी अधिकारियों के हाथों में चली गई। द्वितीय, नौकरशाही का उदय सम्राट की इस इच्छा से भी माना जा सकता है, जबकि वे अपने व्यक्तिगत अधीनस्थ कर्मचारियों को रखना चाहता था जिनका प्रयोग कुलीन वर्ग में शक्ति के लिए बढ़ती हुई लालसा के विपरित किया जा सके। तृतीय, लोकतंत्र के उदय ने इसके विकास में दो तरीके से सहयोग दिया-
- उन्नीसवीं शताब्दी में पश्चिमी संसार में लोकतांत्रिक सरकार के उदय हो जाने से ऐसी व्यवस्था को बनाए रखने का संयोग समाप्त हो गया जिसमें अधिकारी पैतृक तथा स्थायी जाति बन सकते।
- लोकतंत्र के साथ-साथ जो अन्य परिस्थितियां उत्पन्न हुई, उनके कारण यह अनिवार्य हो गया कि विशिष्ट सेवा का कार्य करने के लिए विशेषज्ञों का समूह होना चाहिए। चतुर्थ, आधुनिक राज्य का विशाल आकार और इसके उपलब्ध की जाने वाली सेवा का विस्तार इस बात को अनिवार्य बना देता है कि विशेषज्ञों का प्रशासन अवश्यम्भावी हो।
18वीं शताब्दी में पश्चिमी यूरोप के देशों में नौकरशाही का विकास सबसे पहले हुआ, जिसके बाद यह दुनिया के अन्य देशों में फैल गया। 20वीं शताब्दी में यह अपने चरम पर पहुंच गई, हालांकि कई राज्यों में मार्क्सवादी सिद्धांतों की विजय हुई, जो इसे खत्म करना चाहते थे।
हेरोल्ड लॉस्की नौकरशाही के उदय को कई कारकों का परिणाम मानते हैं। पहला, यह कुलीनतंत्र (Aristocracy) की उपज के रूप में विकसित हुआ। कुलीनतंत्र में सक्रिय सरकार के लिए रुचि की कमी देखी गई, जिससे कई बार सत्ता स्थायी अधिकारियों के हाथों में चली गई। दूसरा, नौकरशाही का उदय सम्राटों की इस इच्छा से भी हुआ, जो अपने व्यक्तिगत अधीनस्थ कर्मचारियों को रखना चाहते थे ताकि कुलीन वर्ग की शक्ति के लिए बढ़ती लालसा का विरोध किया जा सके। तीसरा, लोकतंत्र के उदय ने नौकरशाही के विकास में दो तरह से योगदान दिया:
- 19वीं शताब्दी में पश्चिमी दुनिया में लोकतांत्रिक सरकारों के उदय के साथ, एक ऐसी व्यवस्था को बनाए रखने का अवसर समाप्त हो गया जिसमें अधिकारी वंशानुगत और स्थायी जाति बन सकते थे।
- लोकतंत्र के साथ-साथ जो अन्य परिस्थितियां उत्पन्न हुईं, उनके कारण विशिष्ट सेवा प्रदान करने के लिए विशेषज्ञों का एक समूह होना अनिवार्य हो गया। चौथा, आधुनिक राज्य का विशाल आकार और इसके द्वारा प्रदान की जाने वाली सेवाओं का विस्तार इस बात को अनिवार्य बना देता है कि विशेषज्ञों का प्रशासन अपरिहार्य है।
नौकरशाही के उदय पर मैक्स वेबर के विचार :
प्राचीन काल से ही नौकरशाही का अस्तित्व रहा है। प्राचीन मिस्र, रोम और चीन के प्रशासन, साथ ही तेरहवीं शताब्दी के अंत से रोमन कैथोलिक चर्च में इसके उदाहरण देखे जा सकते हैं। हालांकि, ये शुरुआती नौकरशाह आधुनिक नौकरशाही की तुलना में सीमित थे। उनकी संख्या कम थी और उनका प्रभाव क्षेत्र मुख्य रूप से राज्य और चर्च तक ही सीमित था। यूरोप में निरंकुशता के उदय और आधुनिकीकरण के साथ, नौकरशाही का विस्तार हुआ और यह अधिक जटिल होती गई। राजनीतिक दलों ने भी नौकरशाही का रूप धारण कर लिया। वेबर का मानना है कि नौकरशाही का उदय कुछ विशिष्ट कारणों से हुआ –
1. मुद्रा-अर्थव्यवस्था की स्थापना
नव्ययुग की शुरुआत यूरोप में मध्ययुग के अंत के साथ हुई। मैक्स वेबर का मानना था कि नौकरशाही का उदय अनिवार्य रूप से मौद्रिक प्रणाली पर निर्भर नहीं था। प्राचीन मिस्र, रोम और चीन में भी नौकरशाही मौजूद थी, जबकि वेतन अक्सर वस्तुओं या सेवाओं के रूप में दिया जाता था। हालांकि, इस तरह की व्यवस्था नौकरशाहों को नियमित और भरोसेमंद आय की गारंटी नहीं देती थी। भूमि अनुदान या विशेष क्षेत्रों से कर एकत्र करने का अधिकार देने की प्रथा ने अक्सर नौकरशाही को कमजोर कर दिया, जिससे सामंती या अर्ध-सामंती जागीरों का विकास हुआ।
2. पूंजीवादी अर्थव्यवस्था का उदय
पूंजीवाद का मूल, मुक्त व्यापार प्रणाली, ने नौकरशाही को जन्म दिया है। इस प्रणाली के चलते, ऐसी जरूरतें पैदा हो गईं जिन्हें केवल नौकरशाही संगठन ही पूरा कर सकते थे। पूंजीवाद को अपने लाभ के लिए मजबूत और सुव्यवस्थित सरकारों की आवश्यकता होती है, और यही कारण है कि यह उन्हें प्रोत्साहित करता है। सरल शब्दों में कहें तो, पूंजीवाद को ऐसी सरकारों की आवश्यकता और प्रोत्साहन मिलता है जो नौकरशाही संगठनों पर आधारित हों। सिर्फ सरकारें ही नहीं, बल्कि पूंजीवादी व्यवसाय भी संगठन के नौकरशाही सिद्धांतों का पालन करने लगे, क्योंकि पूंजीवाद की मुख्य विशेषताओं में विवेकपूर्ण निर्णय और दूरदर्शिता शामिल हैं। यही कारण है कि उन्होंने नौकरशाही सिद्धांतों को अपनाया।
3. पश्चिमी समाज में तर्कशक्ति की ओर अधिक परिवेष्ठित प्रवृति
आधुनिक पश्चिम समाज ने कई क्षेत्रों में बुद्धिवाद के विकास का अनुभव किया। उदाहरण के तौर पर इस प्रवृत्ति को प्रोटेस्टेन्ट नैतिक नियमों में स्पष्ट देखा जा सकता था जिसने कठिन परिश्रम और स्वअनुशासन को प्रोत्साहित किया। यही नैतिक पूंजीवाद की भावना का आधार था जिसमें समय और प्रयत्नों का विवेकपूर्ण ढंग से लगाने के लिए कहा जाता था, ताकि अधिक-से-अधिक उपलब्धियां और मुनाफा हो। इसके उपरान्त यहीं भावना बुद्धिवादी पूंजीवाद के विकास के लिए एक पूर्व शर्त बन गई। दूसरे क्षेत्रों जैसे विज्ञान के विकास और शासन में भी तर्कशक्ति की ओर यहीं सामान्य प्रवृत्ति स्पष्ट तौर पर देखी गयी।
4. यूरोप की जनसंख्या में वृद्धि
जनसंख्या में वृद्धि होने से प्रशासनिक कार्यों का बोझ बढ़ जाता है, जिसका प्रभावी ढंग से सामना केवल विशाल संगठनों द्वारा ही किया जा सकता है। परन्तु, एक चिंता यह भी है कि ये बड़े संगठन अक्सर नौकरशाही का रूप धारण कर लेते हैं, जिससे कार्यप्रणाली जटिल और धीमी हो जाती है। इसलिए, जनसंख्या वृद्धि से उत्पन्न चुनौतियों का समाधान करते समय संगठन के आकार और कार्यकुशलता के बीच संतुलन बनाए रखना अत्यंत महत्वपूर्ण है।
5. लोकतंत्र
लोकतांत्रिक संस्थानों का विकास केवल एक पहलू था; इसका दूसरा पहलू सामंतों और अभिजात वर्ग के पारंपरिक शासन का विरोध करना और उसे समाप्त करने में मदद करना था। इसके अतिरिक्त, लोकतांत्रिक विकास का उद्देश्य शिक्षा को बढ़ावा देना और ज्ञान एवं योग्यता के आधार पर पदों पर नियुक्तियों का समर्थन करना था।
6. जटिल प्रशासनिक समस्याओं की उत्पत्ति
सरकारों द्वारा किए जाने वाले कार्यों की जटिलता के कारण बड़े-बड़े नौकरशाही संगठनों का जन्म होता है। यह बात प्राचीन मिस्र में भी देखने को मिली। इतिहास में मिस्र पहला देश था जिसने नहरों के निर्माण और उनके नियंत्रण जैसे जटिल कार्यों को करने के लिए बड़े पैमाने पर नौकरशाही का गठन किया। आधुनिक युग में, यूरोप में केंद्रीकरण पर आधारित नए राज्यों को कई ऐसे प्रशासनिक कार्यों से जूझना पड़ा जो पहले कभी नहीं किए गए थे। उन्हें न केवल पहले से अधिक बड़े क्षेत्रों और आबादी पर नियंत्रण रखना था, बल्कि उन्हें ऐसी सामाजिक सेवाएं भी प्रदान करनी पड़ीं जो पहले किसी भी राज्य द्वारा नहीं दी जाती थीं। इस प्रकार, सरकारों के बढ़ते कार्यों ने नौकरशाही की आवश्यकता को जन्म दिया।
7. संचार के आधुनिक रूप
संचार के आधुनिक उपकरणों ने एक अधिक जटिल और प्रभावशाली प्रशासन की आवश्यकता को जन्म दिया है, जिसे नौकरशाही के रूप में जाना जाता है, और इसके विकास को भी सुगम बनाया है।
मैक्स वेबर का मानना था कि नौकरशाही का उदय इसलिए हुआ क्योंकि यह अपनी तार्किक क्षमता और तकनीकी श्रेष्ठता के कारण आधुनिक जटिल समाज की चुनौतियों और कार्यों से निपटने का सबसे उपयुक्त तरीका साबित हुई। इस श्रेष्ठता के कारण ही नौकरशाही का दायरा बढ़ता गया है, और भविष्य में इसके और अधिक व्यापक होने की संभावना है।
नौकरशाही के दोष :
नौकरशाही, एक जटिल प्रणाली, अपने साथ सकारात्मक और नकारात्मक दोनों पहलू लेकर आती है। जहाँ एक तरफ यह आधुनिक प्रशासन और तर्कसंगत ढाँचे का प्रतिनिधित्व करती है, वहीं दूसरी तरफ आलोचकों का मानना है कि यह संगठनों के लिए एक बीमारी की तरह है। आलोचकों का तर्क है कि नौकरशाही ऐसी प्रवृत्तियों को जन्म देती है जो इसकी उपलब्धियों को कम कर सकती हैं। उदाहरण के लिए, पद सोपान व्यवस्था, जो नौकरशाही का एक अभिन्न अंग है, कर्मचारियों को पहल करने और जोखिम लेने से हतोत्साहित करती है।
यह संगठन को विभिन्न स्तरों में विभाजित करती है, जिससे लालफीताशाही और अक्षमता को बढ़ावा मिलता है। इसके अतिरिक्त, नौकरशाही पर यह आरोप भी लगता है कि यह लोक सेवकों के व्यवहार और कार्यकुशलता पर नकारात्मक प्रभाव डालती है। यह जनता की मांगों को अनदेखा करने, अनावश्यक औपचारिकता को बढ़ावा देने, अपने प्रभाव क्षेत्र का विस्तार करने और रूढ़िवादी दृष्टिकोण को प्रोत्साहित करने के लिए भी आलोचना की जाती है। कुछ सामान्य दोषों में अहंकार, आत्म-संतुष्टि, केवल नियमों और प्रक्रियाओं का पालन, प्रशासनिक व्यवहार में मानवीय पहलू की अनदेखी और लोकतांत्रिक प्रक्रिया के प्रति उदासीनता शामिल हैं।
संक्षेप में, नौकरशाही आधुनिक प्रशासन के लिए आवश्यक है, लेकिन इसकी कमियों को दूर करना भी महत्वपूर्ण है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि यह प्रभावी और जनता के प्रति जवाबदेह बनी रहे।