मेइजी पुनर्स्थापना :
मेइजी पुनर्स्थापना जापान के इतिहास की अति महत्वपूर्ण घटना है। पुनर्स्थापना काल से ही आधुनिक जापान का निर्माण आरम्भ हुआ। मेईजी पुनर्स्थापना के योगदान से ही जापान में सामन्त प्रथा की समाप्ति हुई जिसके परिणामस्वरूप जापान की जो प्रगति अवरुद्ध हो गयी थी, पुनः आरम्भ हो गयी। जापान को विदेशी साम्राज्य की दासता से मुक्त कराने का श्रेय भी पुनर्स्थापना को ही दिया है। इसके कारण जापान में राष्ट्रवाद की भावना विकसित हुई। जापान में औद्योगिक विकास, आन्तरिक व्यवस्था में परिवर्तन तथा सैन्य शक्ति में वृद्धि पुनर्स्थापना के योगदान से ही सम्भव हो सकी। कारण था कि जापान इतने अल्पकाल में ही इतना शक्तिशाली देश बन गया कि वह एशिया तथा यूरोप के सभी देशों को चुनौती देने में सक्षम हो गया।
मेईजी के पुनः प्रतिष्ठा :
3 फरवरी, 1867 में सम्राट कोमेई का देहावसान हो गया। नया सम्राट मुत्सुहितो बना। इस सम्राट ने मेईजी सम्राट की पदवी धारण की। अतः इनका शासनकाल (3 फरवरी, 1867 से 30 जुलाई, 1912 तक) मेईजी शासनकाल कहलाता है।
वित्त, विदेशी सम्बन्धों तथा आन्तरिक विद्रोहों से संत्रस्त तथा शाही दरबार और दाइयों पर नियन्त्रण रख पाने में असमर्थ हो जाने पर तत्कालीन शोगून ने 9 नवम्बर, 1867 को नवयुवक सम्राट मेईजी के समक्ष अपना त्यागपत्र प्रस्तुत कर दिया। शोगून के पद त्याग से सम्राट को अपने पुरातन अधिकार प्राप्त हो गये। इस घटना को मेईजी ईशीन अथवा मेईजी पुनर्स्थापना कहा जाता है।
मेईजी सुधार / जापान का आधुनिकीकरण :
मेईजी की पुनर्स्थापना के बाद जापान में आधुनिकीकरण तथा नव जागरण की लहर आयी। सम्राट मेईजी ने जापान में राजनीतिक, सामाजिक एवं आर्थिक सुधार किए तथा जापान के उत्कर्ष की आधारशिला तैयार की। अतः यह युग जापान में मेईजी सुधार युग कहलाता है। इस काल में सम्राट द्वारा किये गये मुख्य सुधार अलिखित थे-
1. सामन्तशाही की समाप्ति
सम्राट मेईजी ने 1870 ई. में जापान में सामन्तवाद को समाप्त कर नये युग की शुरुआत की। सन् 1870 में सम्राट ने पुरानी दरबारी व सामन्ती उपाधियों को भंग कर दिया तथा 29 अगस्त, 1871 को एक शाही देश के द्वारा जागीरों को समाप्त कर दिया गया। इसके साथ ही सामन्तशाही तथा कबीला व्यवस्था की समाप्ति हो गयी।
2. शोगून पद की समाप्ति
जब तोकुगावा वंश के लोगों ने राजधानी पर आक्रमण किया, तब सम्राट ने शोगून के पद को समाप्त कर दिया तथा सम्पूर्ण शासन अपने हाथ में ले लिया।
3. सैनिक सुधार
1869 ई. में एक सैनिक विभाग की स्थापना की गयी। सैन्य अधिकारियों के लिए प्रशिक्षण विद्यालय तथा पोत निर्माण स्थल खोले गये। सैन्य सेवा केवल समूराइयों तक ही सीमित नहीं रही, वरन् अन्य सभी वर्गों के लिए भी खोल दी गयी। सामन्ती सेनाओं के स्थान पर राष्ट्रीय सेना गठित की गयी। 1870 ई. में क्योटो क्षेत्र में अनिवार्य सैनिक शिक्षा की व्यवस्था की गयी 1871 ई. में फ्रांसीसी नमूने पर शाही सैन्य दल (इम्पीरियल गार्डस) का गठन किया गया। 1872 ई. में नौसेना विभाग को स्थल सेना विभाग से अलग कर दिया गया। सेना तथा नौसेना का आधुनिकीकरण किया गया। 21 वर्ष की आयु के प्रत्येक व्यक्ति के लिए सैनिक शिक्षा प्राप्त करना अनिवार्य कर दिया गया।
4. धार्मिक परिवर्तन
जापान के प्राचीन शिण्टो धर्म को राज्य का आधिकारिक धर्म बना दिया गया तथा बौद्ध धर्म पर सुनियोजित तरीके से प्रहार किया गया। ईसाई धर्म का भी प्रचार हुआ, परन्तु बाद में शिण्टो धर्म तथा बौद्ध धर्म में सामंजस्य स्थापित किया गया तथा विवाह संस्कार में शिण्टो धर्म को तथा अन्तिम संस्कार में बौद्ध धर्म को महत्ता प्रदान की गयी ।
5. नवीन संविधान तथा नवीन शासन प्रणाली
1889 ई. में जापान में नया संविधान लागू किया गया। यह संविधान डॉ. बुद्धप्रकाश के शब्दों में, “जापान के संसदीय विकास और प्रशासनिक सुधार का एक विशिष्ट दिशाबोधक था।” इस संविधान के अनुसार शासन का मुखिया सम्राट को बनाया गया तथा उसकी सहायता के लिए इस मन्त्रिमण्डल की व्यवस्था की गयी। एक द्विसदनीय व्यवस्थापिका (डाइट) की भी व्यवस्था की गयी, जिसके दो सदन थे- उच्च सदन लॉर्ड सभा तथा निम्न सदन प्रतिनिधि सभा प्रतिनिधि सभा के सदस्यों का 7 वर्ष के लिए निर्वाचन होना था। सम्राट को संसद द्वारा पारित विधेयक अस्वीकार करने का अधिकार था।
6. नौकरशाही का गठन
मेईजी पुनः प्रतिष्ठा के बाद जापान में वंश परम्परागत प्रशासनिक पद समाप्त कर दिये गये तथा एक केन्द्रीकृत नौकरशाही का गठन किया गया। इसके सदस्यों की नियुक्ति राजधानी टोकियो से होती थी। इसके सदस्य केन्द्रीय सरकार के प्रति उत्तरदायी थे । स्थानीय व राष्ट्रीय दोनों ही शासन क्षेत्रों का दायित्व इस नौकरशाही पर था। धीरे-धीरे इस नौकरशाही में प्रतियोगितात्मक परीक्षा द्वारा सभी वर्गों को शासन के उच्च पद प्राप्त करने का अवसर प्रदान किया गया।
7. रेल तथा डाक व्यवस्था
जापान में 1871 ई. में रेलवे लाइनें बिछाने का कार्य प्रारम्भ किया गया तथा 1872 ई. में टोकियो में याकोहामा के मध्य 19 मील लम्बी रेलवे लाइन बिछाई गई। 1872 ई. तक लगभग 2,000 किमी लम्बी रेलवे लाइनें बिछाई गयी। 1868 ई. में एक डाक विभाग स्थापित किया गया तथा अनेक डाकघर खोले गये।
8. बैंकिंग व्यवस्था की स्थापना
1872 ई. में मुद्रा प्रणाली के सुधार तथा राष्ट्रीय ऋण व्यवस्था के लिए बैंकिंग प्रणाली शुरू की गयी। इन बैंकों को अपरिवर्तनीय नोट जारी करने का अधिकार दे दिया गया। 1876 ई. तक केवल 4 बैंक स्थापित किये गये। 1882 ई. में जापान के सेण्ट्रल बैंक (Bank of Japan) की स्थापना की गयी तथा इसे परिवर्तनीय मुद्रा जारी करने की इजाजत दी गयी।
9. शिक्षा प्रणाली
1871 ई. में शिक्षा विभाग की स्थापना किया गया तथा 1872 ई. में अनिवार्य प्रारम्भिक शिक्षा के सिद्धान्त को स्वीकार किया गया। 16 वर्ष तक इससे अधिक की आयु के बालकों के लिए प्राथमिक शिक्षा अनिवार्य कर दी गयी। फ्रांसीसी आदर्श पर शिक्षा का केन्द्रीकरण किया गया। पूरा जापान 8 विश्वविद्यालय क्षेत्रों में, प्रत्येक विश्वविद्यालय क्षेत्र 32 माध्यमिक विद्यालय क्षेत्रों में तथा प्रत्येक माध्यमिक विद्यालय क्षेत्र 210 प्राथमिक विद्यालय क्षेत्रों में उपविभाजित कर दिया गया। विश्वविद्यालयी शिक्षा का विकास किया गया तथा 1877 ई. में टोकियो विश्वविद्यालय की स्थापना की गयी। व्यावसायिक शिक्षण संस्थाओं की भी स्थापना की गयी।
10. उद्योग एवं व्यापार
मेईजी काल में उद्योगों का पश्चिमी तरीकों पर विकास किया गया। रेशम उद्योग, सूती वस्त्र उद्योग, लोहा ढलाई उद्योग, पोत निर्माण आदि उद्योगों का विकास पाश्चात्य तरीके पर किया गया। पश्चिमी व्यपार प्रणालियों तथा तकनीकों को अपनाया गया। उत्पादन और खनिज कर्म की पश्चिमी प्रणालियों के प्रशिक्षण के लिए विदेशी विशेषज्ञों की नियुक्ति की गयी। अनेकों जापानियों को प्रशिक्षण के लिए विदेश भी भेजा गया । विदेशी व्यापार की देखरेख व प्रशिक्षण के लिए एक वाणिज्यिक ब्यूरो की भी स्थापना की गयी।
11. कृषि क्षेत्र में सुधार
कृषि में सुधार के लिए परामर्श देने के लिए विदेशी विशेषज्ञ बुलाये गये तथा राजकीय सहायता प्रदान की गयी। पट्टेदारी की प्रथा में परिवर्तन किया गया। 1872 ई. में व्यक्तिगत भू-स्वामित्व के प्रमाण-पत्र दिये जाने लगे। मुद्रा के रूप में लगान वसूली की गयी तथा लगान की नई दरें निर्धारित की गयीं। विकसित बीज, भूमि सुधार तक सिंचाई की सुविधाओं से उत्पादन में वृद्धि हुई।
12. साम्राज्यवाद का विकास
औद्योगिक विकास ने जापान को भी साम्राज्य विस्तार की प्रेरणा प्रदान की।
जापान के विकास के कारण :
इस प्रकार मेईजी शासनकाल में जो सुधार किये गये, उन्होंने जापान को आधुनिकीकरण करने की भूमिका का निर्वाह किया। आधुनिक शक्ति के रूप में जापान के विकास के अनेक कारण हैं, जिनमें से कुछ निम्नलिखित है-
1. विदेशियों का सम्पर्क
डचों को नागासाकी में रहने की अनुमति मिल गयी थी इन्हीं के द्वारा जापान का पश्चिम से सम्पर्क बना रहा। यहीं से यूरोपीय वैज्ञानिक तथा सैन्य साहित्य का जापान में प्रवेश हुआ। यद्यपि रूढ़िवादी जापानी विदेशियों के विरोधी थे, तथापि उन्होंने उनसे वही सीखा, जो उनके राष्ट्रीय चरित्र के अनुरूप था।
2. पश्चिमी विचारों का प्रभाव
डच लोगों के सम्पर्क से जापानियों ने विदेशी तकनीक तथा ज्ञान प्राप्त किया। जापान का एक वर्ग पाश्चात्य विचारों का भक्त था। रूस और इंग्लैण्ड 1813 ई. तक जापान के निकट नहीं आ पाए, फिर भी जापान में विदेशी विचारों के प्रति घृणा नहीं थी, बल्कि वे उनसे कुछ सीखने के इच्छुक थे।
3. वैज्ञानिक एवं औद्योगिक उन्नति का प्रारम्भ
यद्यपि चीन की तरह जापान ने एकान्तवास की नीति नहीं छोड़ी थी, परन्तु उसने विदेशियों से जो कुछ सीखा, उसके कारण देश में वैज्ञानिक एवं औद्योगिक क्रान्ति का मार्ग प्रशस्त हो गया। जापान ने रेल, जहाज निर्माण के कारखाने, लोहा गलाने की भट्टियाँ, बैंकिंग व्यवस्था, सूती और रेशमी वस्त्रों के क्षेत्र में जो प्रगति का मार्ग निर्मित किया, वह उसके लिए आश्चर्यजनक नहीं था, क्योंकि उसने यहाँ विदेशियों से कुछ-न-कुछ सीखा।
4. विदेशी घृणा के स्थान पर सन्धि एवं समझौते की नीति
1854 ई. में सन्धि द्वारा तोकुगावा प्रधानमन्त्री ने शिनोडा और हाकोदाते बन्दरगाहों पर अमेरिकियों को रसद-पानी देने और व्यापार करने का अधिकार दे दिया। 1858 ई. में हुई सब्धि से अमेरिका को जापान की राजधानी में अपने दूत रखने, बन्दरगाहों पर व्यापार का अधिकार, विदेशी माल पर कम चुंगी, विकास की सुविधा तथा धार्मिक स्वतन्त्रता भी दी गयी। यह भी तय हुआ कि इसमें 1892 ई. तक कोई भी परिवर्तन नहीं होगा। रूस, इंग्लैण्ड, फ्रांस, और हॉलैण्ड के साथ भी जापान ने ऐसी सब्धियों कीं। इन सन्धियों के बिना युद्ध और बिना पराजित हुए करने का कारण जापान विदेशियों के शोषण और अत्याचारों से बच गया।
5. व्यापार और उद्योग का विकास
चीन अथवा अन्य उपनिवेशक देशों के विपरीत जापान में व्यापारिक एवं औद्योगिक प्रगति होती रही, जिसका लाभ देश के आधुनिकीकरण में हुआ । नये-नये नगरों की स्थापना से देश की आन्तरिक प्रगति बराबर बढ़ती रही।
6. राष्ट्रीयता, एकता एवं अनुशासनप्रियता
राष्ट्रीय एकता एवं अनुशासनप्रियता ने जापानियों को अपनी अबाध प्रगति के लिए निरन्तर अवसर प्रदान किए। इसीलिए विदेशियों के प्रभाव का उन पर बुरा असर न पड़कर लाभदायी प्रभाव ही पड़ा।
7. ज्ञान और शस्त्र दोनों का महत्व
जापान में ज्ञान और शस्त्र दोनों को महत्व दिया गया, परिणामस्वरूप वह परम्परागत शोषण और अत्याचार से बच गया और निरन्तर आधुनिक प्रगति की ओर बढ़ता गया।