टर्की के अधीनस्थ राज्य के रूप में यूनान एक छोटा-सा क्षेत्र था। वैसे तो अनेक राज्य टर्की की अधीनता में अत्याचारी और दमन का जीवन व्यतीत कर रहे थे, परन्तु यूनान में स्थिति कुछ विशेष थी। यूनानियों को यह अधिकार और सुविधाएँ प्राप्त थीं कि वे अपनी मर्जी से अपने धर्म का पालन करते रहे। उन्हें उच्च सरकारी पदों पर नियुक्ति का भी अधिकार प्राप्त था। इन सुविधाओं का ही सम्भवतः यह परिणाम हुआ कि यूनान में 18वीं शताब्दी में बौद्धिक जागरण हुआ। यूनान में इस नई चेतना ने राष्ट्रीयता की भावना को चरमसीमा पर पहुँचा दिया इस चेतना में फ्रांसीसी क्रान्ति के आदर्शों ने भी समुचित योगदान दिया।
यूनानी स्वतन्त्रता संग्राम के प्रमुख कारण :
यूनानी स्वतन्त्रता संग्राम के निम्नलिखित प्रमुख कारण थे-
1. टर्की का सुल्तान कट्टर मुसलमान था। वह घोर अत्याचारी एवं दमनकारी था। वह यूनानियों को इस्लाम विरोधी मानता था स्वाभाविक रूप में यूनानियों के साथ कठोरता और निर्दयता का व्यवहार किया जाता था। यूनानी जनता टर्की के शासन और दासता से असन्तुष्ट थी और उसे उखाड़ फेंकने के लिए कृत संकल्प थी।
2. फ्रांसीसी क्रान्ति ने राष्ट्रीयता एवं स्वतन्त्रता की भावना यूनानियों में भर दी थी। यह भावना ही टर्की के सुल्तान के विरुद्ध युद्ध का बिगुल बजाने वाली सिद्ध हुई।
3. 1814 ई. में यूनानी देशभक्तों ने एक मित्र संघ नामक राजनैतिक संस्था की स्थापना की थी। इस संस्था ने जबर्दस्त प्रचार करके यूनानियों में राष्ट्रीय भावना भर दी थी। यह संस्था टर्की के शासन के खिलाफ जनता में संगठन उत्पन्न करने में लगी हुई थी। उस संस्था के लगातार प्रचार के कारण यूनानी, टर्की के अत्याचार का विरोध करने के लिए उठकर खड़ा होने लगा।
4. यूनान की मित्र संस्था ने टर्की को पूर्वी यूरोप से ही निष्कासित करने का अभियान चला दिया। वह रूस की सहायता से टर्की साम्राज्य की स्थापना में लगी हुई थी। यह संस्था युद्ध की तैयारी में लगी हुई थी। भारी मात्रा में हथियार और सैनिक एकत्रित करना उसका उद्देश्य था। इस संस्था की सक्रियता ने ही यूनानी स्वतन्त्रता संग्राम को सैनिक रूप प्रदान कर दिया।
5. सर्बिया में हुई क्रान्ति की सफलता से यूनानियों में बहुत जोश था। वे भी सर्बिया से अपने को किसी मायने में कम अथवा पीछे नहीं मानते थे। वे भी यह मानते थे कि जिस प्रकार सर्बिया ने क्रान्ति द्वारा स्वाधीनता प्राप्त की है, उसी प्रकार उन्हें भी खुले युद्ध को पराजित करके गुलामी से मुक्ति मिल सकेगी। सर्बिया की क्रान्ति ने यूनानियों में नैतिक दल की वृद्धि की।
6. रूस का जार अपने को पूर्वी यूरोप के ईसाइयों का संरक्षक मानता था। इस क्षेत्र में वह सभी राज्यों की ईसाई जनता का शुभचिन्तक समझा जाता था। टर्की के विरुद्ध गुप्त मदद करना उसका हमेशा लक्ष्य रहता था। ईसाइयों का संरक्षक बनकर वह इस क्षेत्र में अपना स्वार्थ सिद्ध करना चाहता था इसलिए यूनानियों के टर्की विरोध के अभियान में उसका भी पूर्ण समर्थन व सहयोग उपलब्ध हो रहा था। इसके अलावा उसने टर्की के विरुद्ध यूनान को समुचित सहायता का वचन देकर यूनानियों को युद्ध के लिए नैतिक और भौतिक रूप से तैयार कर दिया था।
7. सन् 1820-21 में एक तुर्की सूबेदार अली पाशा ने टर्की के विरुद्ध विद्रोह कर दिया। इस विद्रोह के साथ ही मोल्डेविया के यूनानियों ने भी विद्रोह कर दिया। यद्यपि यह विद्रोह कुचल दिये गये, तथापि यूनानियों को युद्ध छेड़ने का एक बहाना और उचित अवसर प्राप्त हो गया।
युद्ध का प्रारम्भ :
1821 ई. में यूनानियों ने अपनी स्वाधीनता के लिए युद्ध की घोषणा कर दी। मुसलमानों ने यूनानियों का दमन शुरू कर दिया। बदले में यूनानियों ने भी ऐसा ही किया। 1824 ई. तक युद्ध चलता रहा। यूरोपीय राष्ट्र ईसाई जनता को मुस्लिम अत्याचार से बचाने के लिए युद्ध में कूदना चाहते थे, परन्तु मैटरनिख के प्रभाव के कारण ऐसा सम्भव नहीं हो सका, तभी टर्की के सुल्तान ने मिस्र के पाशा से एक सन्धि की। इस सन्धि के अनुसार सुल्तान ने अपनी सहायता के लिए सहमत अली के पुत्र इब्राहिम पाशा को आमन्त्रित किया। इब्राहिम पाशा ने यूनानियों पर भयंकर अत्याचार किये। सम्पूर्ण यूरोप टर्की की धर्मगत हिंसा के विरुद्ध हो गया जिसकी मदद से टर्की ने अनेक स्थानों पर यूनानियों को पराजित किया। 1826 ई. में यूनानियों को मित्र और टर्की के हाथों भयंकर हार का सामना करना पड़ा। 1827 ई. में यूनान राजधानी एवेन्स पर भी टर्की का अधिकार हो गया।
रूस की घोषणा एवं भूमिका :
टर्की के अत्याचार और मिस्र की यूनान की सफलता से रूस की एक संरक्षक के रूप में प्रतिष्ठा खतरे में हो गई। यूरोपीय राष्ट्रों की चुप्पी पर ईसाई जनता का मुसलमानों के हाथों दमन हैरानी की बात थी। रूस बहुत बेचैन था। उसे सारी परिस्थिति अपने हाथ से निकलती नजर आ रही थी। इसलिए रूस के जार निकोलस प्रथम ने घोषणा कर दी कि रूस यूनानियों पर होने वाले अत्याचारों को और अधिक चुपचाप नहीं देख सकता। यदि यूरोप के अन्य राष्ट्र शीघ्र ही टर्की के अत्याचारों के विरुद्ध कार्यवाही नहीं करते तो वह अकेला ही टर्की के विरुद्ध यूनानियों की सहायता करेगा और टर्की के विरुद्ध आक्रमण करेगा। यूरोप की ईसाई जनता ने रूस की इस घोषणा का स्वागत किया।
इंग्लैण्ड, फ्रांस और ऑस्ट्रिया रूस के अकेले हस्तक्षेप के विरुद्ध थे, क्योंकि उन्हें डर था कि टर्की के दमन से रूस का प्रभुत्व पूर्वी यूरोप में बढ़ जायेगा, जो उनके निहित स्वार्थों के विरुद्ध होगा यूनान पर भी एकमात्र रूस का ही अहसान होगा। इसलिए फ्रांस, ऑस्ट्रिया, रूस व इंग्लैण्ड ने संयुक्त होकर टर्की पर आक्रमण कर दिया। 1827 ई. में नेवारिनों के भयंकर युद्ध में इंग्लैण्ड तथा फ्रांस की नौसेना ने इब्राहिम पाशा की सेवा को बुरी तरह रौंद डाला, परन्तु कैनिंग की मृत्यु के कारण फ्रांस और इंग्लैण्ड युद्ध से अलग हो गये। रूस अकेला ही टर्की के खिलाफ लड़ता रहा। टर्की के सुल्तान ने पराजयों का लगातार सामना करने के कारण 1829 ई. में मजबूर होकर रूस तथा यूनान के साथ एड्रियानोपल की सन्धि कर ली।
एड्रियानोपल की सन्धि :
रूस, यूनान तथा टर्की के मध्य हुई सन्धि की कुछ प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित है-
1. यूनान को टर्की की अधीनता से स्वतन्त्र कर दिया गया। अन्तर्राष्ट्रीय अधिकार में यूनान को स्थापित कर दिया गया। बवेरिया के राजकुमार ऑटो को यूनान का नया राजा बनाया गया।
2. 1832 ई. में यूनान को पूर्णरूपेण स्वतन्त्र कर दिया गया।
3. रूस का एशिया माइनर पर नियन्त्रण मान लिया गया।
4. डार्डेनलीज तथा वसफोरस की खाड़ियों पर रूस का प्रभुत्व स्थापित हो गया।
5. इस सन्धि के अनुसार रूमानिया के लोगों को भी स्वाधीनता प्रदान कर दी गयी।
6. रूस को टर्की में अनेक व्यापारिक सुविधाएँ प्रदान की गयी।
7. मोल्डेविया व वेलेशिया के प्रदेशों को भी स्वतन्त्र कर दिया गया। इसमें मुसलमानों को रहने की आज्ञा नहीं दी गई। टर्की के सुल्तान को इन प्रान्तों के आन्तरिक मामलों में हस्तक्षेप करने पर भी रोक लगा दी गई।
यूनानी स्वतन्त्रता संग्राम का महत्व :
यूनान का स्वाधिनता युद्ध यूरोप के राजनीतिक इतिहास की एक युगान्तरकारी घटना के रूप में जाना जाता है। इस युद्ध ने यूरोप में प्रतिक्रियावादी को जड़ों से उखाड़ दिया। यूनानियों की विजय एक प्रकार से मैटरनिख की प्रतिक्रियावादी राजनीति पर विजय थी। राष्ट्रीय स्वतन्त्रता की प्राप्ति के लिए यूरोपीय राष्ट्रों ने पहली बार संयुक्त सैनिक प्रयास किया, जो मैटरनिख की योजना और सिद्धान्तों के विरुद्ध था। टर्की की दुर्बलता ने टर्की के अधीन रहने वाली जातियों को भी अपनी स्वाधीनता के लिए प्रयास करने का मनोबल प्रदान किया।
इस युद्ध में रूस ने जो अग्रणी भूमिका निभायी, उससे उसने यह सिद्ध कर दिया कि वह यूरोप के ईसाइयों का सच्चा दोस्त, हितैषी और संरक्षक है। इसके परिणामस्वरूप ही रूस का यूरोप में प्रभुत्व बढ़ गया। इस युद्ध ने पूर्वी यूरोप की राजनीति को और भी जटिल बना दिया। इस युद्ध के परिणामस्वरूप ही यूनान एक स्वतन्त्र राज्य ही नहीं बन गया, बल्कि वह अपना प्राचीन सभ्यता एवं संस्कृति का विकास भी करने लगा।