# राजनीतिक समाजशास्त्र का विषय-क्षेत्र | Rajnitik Samajshastra Ka Vishay Kshetra

राजनीतिक समाजशास्त्र का विषय-क्षेत्र :

विषय क्षेत्र : राजनीतिक समाजशास्त्र एक नया विषय है और यह राजनीति विज्ञान और समाजशास्त्र से सामग्री ग्रहण करता है, इसलिए इसका पृथक विषय-क्षेत्र निर्धारित करना एक कठिन समस्या है। यदि यह राजनीति विज्ञान की ओर झुकता है तो इसे राजनीति विज्ञान का पर्यायवाची मानने का खतरा है और यदि समाजशास्त्र की ओर झुकता है तो इसे समाज का पर्यायवाची बनने का खतरा है।

बैनडिक्स तथा लिपसेट ने राजनीतिक समाजशास्त्र के अन्तर्गत निम्नलिखित पहलुओं को सम्मिलित किया है –

  1. समुदायों तथा राष्ट्रों में मतदान व्यवहार,
  2. आर्थिक शक्ति का केन्द्रीकरण तथा राजनीतिक निर्णयन कार्य,
  3. राजनीतिक आन्दोलनों तथा हित समूहों की विचारधाराएं,
  4. राजनीतिक दल, ऐच्छिक समुदाय, अल्पतन्त्र की समस्याएं तथा राजनीतिक व्यवहार के मनोवैज्ञानिक सहसम्बन्ध,
  5. राजनीतिक व्यवहार से सम्बन्धित अल्पतन्त्रीय एवं मनोवैज्ञानिक सहसम्बन्धों की समस्याएं, तथा
  6. सरकार एवं नौकरशाही की समस्याएं।

बाविस्कर ने राजनीतिक समाजशास्त्र की विषय वस्तु के अन्तर्गत निम्नलिखित बातों को समाविष्ट करने पर जोर दिया है –

  • राजनीति तथा समाज राजनीति में सामाजिक संस्थाओं की भूमिका,
  • राजनीतिक समुदाय तथा राजनीतिक संरचनाएं जैसे – पंचायतें, राजनीतिक दल, हित समूह अभिजन, आदि,
  • राजनीतिक प्रक्रियाएं – राजनीतिक समाजीकरण, राजनीतिक भर्ती, राजनीतिक सहभागिता, राजनीतिक विकास, आदि तथा राजनीतिक इतिहास का समाजशास्त्रीय विश्लेषण।

मिचेल ने राजनीतिक समाजशास्त्र के अन्तर्गत संवैधानिक एवं अनौपचारिक राजनीतिक संस्थाओं, अभिजनों, संघर्ष के आविर्भात, नियमन, हित समूहों एवं औपचारिक दबाव समूहों, मतदान व्यवहार, राजनीतिक दलों जैसे विविध विषयों के अध्ययन पर बल दिया है।

ग्रीर तथा आरलियन्स – राजनीतिक समाजशास्त्र के अन्तर्गत (1) राज्य की संरचना (2) वैधता की प्रकृति एवं दशाएं (3) शक्ति पर एकाधिकार तथा राज्य द्वारा इसका प्रयोग तथा (4) उप-इकाइयों की प्रकृति एवं इनके राज्य से विवाद को सम्मिलित किया है। बाद में इन दोनों विद्वानों ने उपर्युक्त विषयों को तीन शीर्षकों के अन्तर्गत विभाजित किया जो इस प्रकार हैं (1) सहमति एवं औचित्य (Consesess and Legitimacy), (2) प्रतिनिधित्व एवं सहभागिता (Representation and Participation) तथा (3) राजनीतिक परिवर्तन एवं आर्थिक प्रगति के नीच सम्बन्ध (Relationship between political change and Economic development ) ब्रूम तथा सैल्जनिक के अनुसार राजनीतिक समाजशास्त्र मुख्यतः सरकार एवं राजनीति को प्रभावित करने वाली आधारभूत दशाओं से सम्बन्धित है।

डाउस तथा ह्यूज के अनुसार – राजनीतिक समाजशास्त्र के तात्विक सम्बन्ध के क्षेत्र हैं : सामाजिक व्यवस्था की समस्या और राजनीतिक आज्ञाकारिता।

रिचार्ड जी ब्रोगार्ट के अनुसार राजनीतिक समाजशास्त्र गत्यात्मक संघों, राजनीति के सामाजिक स्रोतों, राजनीति की संरचना, राजप्रक्रिया तथा प्रतिवेशी समाज और संस्कृति पर राजनीति के प्रभावों आदि को अपना अध्ययन विषय बनाता है।

# उक्त चर्चित विषयों के अतिरिक्त हम राजनीतिक समाजशास्त्र के व्यापक क्षेत्र में निम्नलिखित प्रकरणों को भी सम्मिलित कर सकते हैं –

  1. राजनीतिक संरचनाएं – सामाजिक वर्ग, जाति, अभिजन, राजनीतिक दल, हित समूह, नौकरशाही, आदि।
  2. राजनीतिक प्रकार्य – राजनीतिक समाजीकरण, राजनीतिक भर्ती, हित समूहीकरण. एकीकरण और अभिनव परिवर्तन आदि।
  3. राजनीतिक जीवन – चुनाव प्रक्रिया, राजनीतिक संचरण, मताचरण, आदि।
  4. राजनीतिक नेतृत्व – नेतृत्व और राजनीतिक संस्कृति, शक्ति और सत्ता की संरचना, आदि।
  5. राजनीतिक विकास – राजनीतिक विकास की अवधारणा सामाजिक परिवर्तन, आधुनिकीकरण और समाजीकरण के साथ इसके सम्बन्ध।

संक्षेप में, राजनीतिक समाजशस्त्र की विषय वस्तु के अन्तर्गत विभिन्न प्रकार की राजनीतिक व्यवस्थाओं, राजनीतिक समुदायों, राजनीतिक व्यवहार प्रभाव, शक्ति एवं सत्ता राजनीतिक आन्दोलनों एवं विभिन्न राजनीतिक प्रक्रियाओं, अभिजनों, इत्यादि विविध प्रकार के चरों को सम्मिलित किया जा सकता है।

उपर्युक्त विवेचन से राजनीतिक समाजशास्त्र (Political Sociology) की निम्नलिखित विशेषताएं स्पष्ट होती हैं –

  • राजनीतिक समाजशास्त्र राजनीतिक और सामाजिक परिवर्त्यां से समान रूप से जुड़ा है और समान रूप से प्रभावित होता है।
  • राजनीतिक समाजशास्त्र राजनीति विज्ञान नहीं है क्योंकि इसमें राजनीति विज्ञान की तरह राज्य और शासन का ही अध्ययन नहीं होता है।
  • राजनीतिक समाजशास्त्र की अभिरूचि राजनीति में है, फिर भी यह राजनीति को परम्परागत दृष्टि से नहीं देखता है।
  • राजनीतिक समाजशास्त्र समाजशास्त्रीय राजनीति भी नहीं है क्योंकि यह समाजशास्त्र और राजनीतिशास्त्र दोनों में अभिरूचि रखता है।
  • जहां राजनीति का समाजशास्त्र (Sociology of Politics) भारतीय राजनीति का विश्लेषण जातिगत समाज के परिप्रेक्ष्य में करेगा, वहां भारतीय समाजशास्त्र इसके साथ इस बात की भी छानबीन करेगा कि किस प्रकार भारतीय राजनीति ने जातियों का राजनीतिकरण किया है।

राजनीतिक समाजशास्त्र‘ की मान्यता है कि सामाजिक प्रक्रिया और राजनीतिक प्रक्रिया में अनुरूपता है। इसी सन्दर्भ में राजनीतिक समाजशास्त्री राज्य और समाज के मध्य परम्परागत विवाद का समाधान करना चाहता है। परन्तु ऐसा होने पर भी ‘राजनीतिक समाजशास्त्र‘ को ‘राजनीति का समाजशास्त्र (Sociology of Politics) नहीं कहा जा सकता है। इसका कारण है कि राजनीति का ‘समाजशास्त्र’ राजनीतिक परिवर्त्यो की स्वतन्त्र सत्ता एवं स्वायत्तता को अस्वीकार करता है, जबकि ‘राजनीतिक समाजशास्त्र‘ राजनीतिक परिवर्त्यो (चरों) को मान्यता प्रदान करता है। आज ‘राजनीति का समाजशास्त्र’ (Sociology of Politics) के बजाय राजनीतिक समाजशास्त्र पद ही अधिक प्रचलित है।

The premier library of general studies, current affairs, educational news with also competitive examination related syllabus.

Related Posts

# इतिहास शिक्षण के शिक्षण सूत्र (Itihas Shikshan ke Shikshan Sutra)

शिक्षण कला में दक्षता प्राप्त करने के लिए विषयवस्तु के विस्तृत ज्ञान के साथ-साथ शिक्षण सिद्धान्तों का ज्ञान होना आवश्यक है। शिक्षण सिद्धान्तों के समुचित उपयोग के…

# सिद्धान्त निर्माण का अर्थ, परिभाषा, विशेषताएं, महत्व | सिद्धान्त निर्माण के प्रकार | Siddhant Nirman

सिद्धान्त निर्माण : सिद्धान्त वैज्ञानिक अनुसन्धान का एक महत्वपूर्ण चरण है। गुडे तथा हॉट ने सिद्धान्त को विज्ञान का उपकरण माना है क्योंकि इससे हमें वैज्ञानिक दृष्टिकोण…

# पैरेटो की सामाजिक क्रिया की अवधारणा | Social Action Theory of Vilfred Pareto

सामाजिक क्रिया सिद्धान्त प्रमुख रूप से एक प्रकार्यात्मक सिद्धान्त है। सर्वप्रथम विल्फ्रेडो पैरेटो ने सामाजिक क्रिया सिद्धान्त की रूपरेखा प्रस्तुत की। बाद में मैक्स वेबर ने सामाजिक…

# सामाजिक एकता (सुदृढ़ता) या समैक्य का सिद्धान्त : दुर्खीम | Theory of Social Solidarity

दुर्खीम के सामाजिक एकता का सिद्धान्त : दुर्खीम ने सामाजिक एकता या समैक्य के सिद्धान्त का प्रतिपादन अपनी पुस्तक “दी डिवीजन आफ लेबर इन सोसाइटी” (The Division…

# पारसन्स के सामाजिक स्तरीकरण का सिद्धान्त | Parsons’s Theory of Social Stratification

पारसन्स का सिद्धान्त (Theory of Parsons) : सामाजिक स्तरीकरण के प्रकार्यवादी सिद्धान्तों में पारसन्स का सामाजिक स्तरीकरण का सिद्धान्त एक प्रमुख सिद्धान्त माना जाता है अतएव यहाँ…

# मैक्स वेबर के सामाजिक स्तरीकरण का सिद्धान्त | Maxweber’s Theory of Social Stratification

मैक्स वेबर के सामाजिक स्तरीकरण के सिद्धान्त : मैक्स वेबर ने अपने सामाजिक स्तरीकरण के सिद्धान्त में “कार्ल मार्क्स के सामाजिक स्तरीकरण सिद्धान्त” की कमियों को दूर…

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

19 − 15 =