भंगाराम देवी की भादो जातरा उत्सव एवं जन-अदालत :
सदियों से अपनी हर समस्या के लिए ग्राम देवताओं की चौखट पर मत्था टेकने वाली बस्तर की जनजातियाँ जन अपेक्षाओं की कसौटी पर खरे नहीं उतरने वाले देवी-देवताओं को भी दंडित करने का जज्बा रखते हैं। यह दंड आर्थिक जुर्माने, अस्थाई रूप से निलंबन या फिर हमेशा के लिए देवलोक से बिदाई के रूप में भी हो सकती है। यह आयोजन कोण्डागाँव जिले के केशकाल कस्बे में स्थित सुरडोंगर ग्राम में भादो जातरा के अवसर पर आयोजित जन अदालत में होता हैं।
भादो जातरा उत्सव का आयोजन :
अद्य दिवसों में भादो जातरा उत्सव प्रतिवर्ष भादो (भाद्रपद) मास के अंतिम शनिवार को आयोजित किया जाता है। इस जातरा उत्सव में पधारे देवी-देवताओं का परंपरानुसार स्वागत कर पद एवं प्रतिष्ठा के अनुरूप स्थान दिया जाता। इनके साथ प्रतिनिधि के रूप में पुजारी, गायता, सिरहा, ग्राम प्रमुख, मांझी, मुखिया, पटेल आदि पँहुचते हैं। पूजा सत्कार के बाद वर्ष भर प्रत्येक गाँव में सुख-शांति, सभी के स्वस्थ रहने, अच्छी उपज और किसी भी तरह की दैवीय आपदा से रक्षा के लिए मनौती मानी जाती है। देवी-देवताओं को प्रसन्न व शांत रखने के लिए प्रथानुसार बलि और अन्य भेंट दी जाती हैं बिना मान्यता के किसी भी नए देवी-देवता को स्थान नहीं दिया जाता।
डॉक्टर खान देव :
इलाके में बीमारी का प्रकोप होने पर सबसे पहले डॉक्टर खान देव की पूजा होती है। डॉक्टर खान देव भंगाराम मंदिर के समीप मौजूद हैं, जिन पर सभी समीपस्थ परगनाओं के निवासियों को बीमारियों से बचाए रखने की जिम्मेदारी हैं। जनश्रुति अनुसार वर्षों पहले क्षेत्र में कोई डॉक्टर खान थे, जो बीमारों का इलाज पूरे सेवाभाव से किया करते थे। उनके न रहने पर उनकी सेवाभावना से प्रभावित होकर जहाँ की जनता ने उन्हे देव रूप में स्वीकार कर लिया और उनकी भी पूजा की जाने लगी।
देवी-देवताओं की जन अदालत एवं सजा :
बस्तर क्षेत्र की जनजातियाँ मूलतः अपने श्रम पर निर्भर रहती हैं, इसलिए वे आँख मूंदकर अपने पूज्यनीय देवी-देवताओं पर विश्वास करने की अपेक्षा उन्हें जाँचते-परखते हैं। समय-समय पर उनकी शक्ति का आकलन भी किया जाता है। अकर्मण्य ओर गैर जिम्मेदार देवी-देवताओं को सफाई का अवसर भी दिया जाता है एवं जन अदालत में उन्हें सजा भी सुनाई जाती है। देवी-देवताओं को दंडित करने वालों में कोई और नहीं अपितु उनके भक्त ही होते हैं। सजा पाए देवी-देवताओं को भंगाराम देवी गुड़ी परिसर में ही स्थित खुली जेल में उनके प्रतीकों सहित छोड़ दिया जाता है। जो देवी-देवता निर्दोष प्रमाणित होते हैं उन्हें जातरा उत्सवोपरांत ससम्मान बिदाई दे दी जाती है। इससे पूर्व भंगाराम देवी सभी देवी-देवताओं से भेंट करती हैं।
देवी-देवताओं की वापसी :
सजा पाने वाले देवी-देवताओं की वापसी का भी प्रावधान है। लेकिन उनके चरण तभी पखारे जा सकते हैं, जब वे अपनी गलतियों को सुधारते हुए भविष्य मे लोक-कल्याण के कार्यों को प्राथमिकता प्रदान करने का वचन देते हैं यह वचन सजा पाए देवी-देवता संबंधित पुजारी को स्वप्न में आकर देते हैं। इस प्रक्रिया के पूर्ण होने के पश्चात देवी-देवताओं को नवीन स्वरूप प्रदाय किया जाता है। अर्थात् देवी-देवताओं के प्रतीक चिन्हों को नया रूप देकर भंगाराम देवी और उनके दाहिने हाथ कुंअरपाट देव की सहमति के बाद मान्यता दी जाती है।