# जिला कोण्डागांव : छत्तीसगढ़ | Kondagaon District of Chhattisgarh

जिला कोण्डागांव : छत्तीसगढ़

सामान्य परिचय – शिल्पकला का संग्रहालय कोण्डागांव आदिवासी सांस्कृतिक धरोहर के लिए पहचाना जाता है। इस जिले को शासन द्वारा शिल्पग्राम के विभूषण से अलंकृत किया गया है। इस जिले के मध्य से नारंगी नदी बहती है। गढ़धनौरा के पाषाणकालीन टिले आदिम संस्कृति को बयां करती है, वहीं भोंगापाल बौद्ध धरोहरों को, वहीं पर मड़ई महोत्सव की गाथा कहती फरसगांव ऐतिहासिक गाथा, लोक जीवन, पौराणिक आख्यान की फेहरिस्त है।

बस्तर का प्रवेशद्वार केशकाल घाटी इस जिले की तोरण द्वार है, जहां पर तेलीन माई हस्त फैलाये आगंतुकों को आशीर्वाद देती हैं।

रक्त रंजित बस्तर माओवादियों के बन्दूक की धमाकों और सुरक्षाबलों के वर्दियों के धाक और जुतों की आहट के ताल से हर पल भय के साये में ठिठुरता-सिसकता जन जीवन गतिमान है।

राज्य शासन के विकास-सुरक्षा एवं समानता की नीति और पहल के कारण शिक्षा, स्वास्थ्य, सड़क, सिंचाई की वयार में बसंत बहार की नई कोपल झांकती प्रतीत हो रहा है।

इतिहास – इसका प्राचीन नाम कोण्डानार था। बताया जाता है कि मरार लोग गोलेड गाड़ी में जा रहे थे, तब कोण्डागांव के वर्तमान गांधी चौक के पास पुराने नारायणपुर रोड से आते हुए कंद की लताओं में गाड़ी फंस गयी। उन्हें मजबूरी में रात को वहीं विश्राम करना पड़ा। बताया जाता है कि तब उनके प्रमुख को स्वप्न आया। स्वप्न में देवी ने उन्हें यही बसने का निर्देश दिया। उन्होंने उस स्थान की भूमि को अत्यंत उपजाऊ देखकर देवी के निर्देशानुसार यहीं बसना उचित समझा। उस समय इसे कान्दानार (कंद की लता आधार पर) प्रचलित किया गया, जो कालान्तर कोण्डानार बन गया।

इसी बीच बस्तर रियासत के एक अधिकारी ने हनुमान मंदिर में वरिष्ठ जनों की एक बैठक में इसे कोण्डानार के स्थान पर कोण्डागांव रखना ज्यादा उचित बताया।

सामान्य जानकारी

  • जिला गठन —> 2012
  • जिला मुख्यालय —> कोंडागांव
  • क्षेत्रफल —> 605 हेक्टेयर
  • सीमावर्ती क्षेत्र —> धमतरी, कांकेर, नारायणपुर, बीजापुर, बस्तर, ओडिशा।
  • प्रमुख नदी —> बोर्डिंग, नारंगी।
  • पर्यटन स्थल —> केशकाल घाटी, गढ़धनौरा, कोपाबेड़ा, मुलमुला, भोंगापाल, जटायु शिला आदि।

प्रमुख खनिज

  • बॉक्साइड – केशकाल, कुदारवाही।
  • ग्रेनाइड – फरसगांव-कोण्डागांव क्षेत्र।

निवासरत प्रमुख जनजाति – गोंड, हल्बा, मुड़िया, माड़िया।

राज्य संरक्षित स्मारक :

1. प्राचीन भग्न ईटों के मंदिर, गढ़धनौरा (कर्ण की राजधानी)

ईंट निर्मित टूटे हुए अनेक मंदिरों के अवशेष गढ़धनोरा गांव के पास विद्यमान है। इस मंदिर का निर्माण 5वीं-7वीं शताब्दी में नलवंशी शासकों द्वारा किया गया था। इस मंदिर समूह में 10 मंदिर शामिल हैं जिनमें विष्णु, शिव व नरसिंह आदि प्रमुख हैं। धनोरा को कर्ण की राजधानी कहा जाता है। गढ़ धनोरा में 5-6वीं शदी के प्राचीन मंदिर, विष्णु एंव अन्य मूर्तियां व बावड़ी प्राप्त हुई है। यहां केशकाल टीलों की खुदाई पर अनेक शिव मंदिर मिले हैं। यहां स्थित एक टीले पर कई शिवलिंग है, यह गोबरहीन के नाम से प्रसिद्ध है। यहां महाशिवरात्रि के अवसर पर विशाल मेला लगता है। इसी तरह केशकाल की पवित्र पुरातात्विक भूमि में अनेक स्थल ऐसे हैं जो न केवल प्राचीन इतिहास के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है बल्कि श्रद्धा एवं आस्था के अद्भुत केंद्र है। जिनमें नारना में अद्भुत शिवलिंग तथा पिपरा के जोड़ा शिवलिंग की बड़ी मान्यता है।

2. बुध्द चैत्य गृह, भोंगापाल (बौद्ध धाम)

यह स्मारक कोण्डागांव से 70 किमी. दूर भोंगापाल के घने जंगल में स्थित है। इसका निर्माण 6वीं शताब्दी में नलवंशी शासकों द्वारा किया गया था। इसमें निर्मित बौद्ध छवि स्थानीय रूप में‌ डोकरा बाबा के रूप में जाना जाता है। भोंगापाल, बंडापाल, मिसरी तथा बड़गई ग्रामों के मध्य बौद्धकालीन ऐतिहासिक टीले एवं अवशेष मौजुद हैं। ये ऐतिहासिक टीले एवं अवशेष मौर्य युगीन तथा गुप्तकालीन हैं। इतिहासकारों का अनुमान है कि यह स्थल प्राचीन काल में दक्षिणी राज्यों को जोड़ने वाले मार्ग पर स्थित है।

भोंगापाल में ईंटों से निर्मित विशाल चौत्य मंदिर है, यह चौत्य बौद्ध भिक्षुओं के धर्म प्रचार-प्रसार एवं निवास का प्रमुख केन्द्र था। इसके समीप एक ध्वंस मंदिर के पास सप्तमातृकाओं की प्रतिमा है, जिसमें एक ही शिला पर वैष्णवी, कौमारी, इंद्राणी माहेश्वरी, वाराही. चामुण्डा तथा नरसिंही की प्रतिमा निर्मित है।

पर्यटन स्थल :

1. केशकाल घाटी (बस्तर का तोरणद्वार, प्रवेशद्वार)

कोण्डागांव जिले की केशकाल तहसील में सुरस्य एवं मनोहरी केशकाल घाटी राष्ट्रीय राजमार्ग 30 पर कोण्डागांव – कांकेर मध्य स्थित है। केशकाल घाटी घने वन क्षेत्र, पहाड़ियों तथा खूबसूरत घुमावदार मोड़ों के लिए प्रसिद्ध है। इसे तेलिन घाटी के नाम से भी जाना जाता है। इस घाटी‌ के मध्य से गुजरने वाला 4 कि.मी. का राजमार्ग तथा इस पर स्थित 12 घुमावदार मोड़ पथिकों के मन में उत्साह एवं रोमांच भर देते है। मार्ग के किनारे तेलिन माता का मंदिर स्थित है एवं कुछ दूर भंगाराम माई जो न्याय की देवी मानी जाती है उनका पवित्र स्थल स्थित है। तेलिन सती मां मंदिर में यात्री रूककर माता का दर्शन तथा क्षणिक विश्राम कर अपने गंतव्य की ओर प्रस्थान करते है।

2. कोपाबेड़ा स्थित शिव मंदिर

कोपाबेड़ा स्थित शिव मंदिर का विलक्षण मंदिर, कोण्डागांव से 4.5 कि.मी. दूर नारंगी नदी के पास स्थित है। यहां पहुंचने के लिए साल के घने वृक्षों के मध्य से होकर गुरजना पड़ता है। प्राचीन दण्डाकारण्य का यह क्षेत्र रामायणकालीन बाणसुर का इलाका माना जाता है। सामान्य तौर पर अब पूरे क्षेत्र में शाक्य व शैव है। शैव से संबंधित जितने भी इस अंचल में मंदिर है, उन मंदिरों में स्थापित शिवलिंगों के संदर्भ मे रोचक तथ्य देखने का मिलता है, यह रोचक तथ्य है शिवलिंगों का स्वप्नमिथक से जुड़ा होना। कोपाबेड़ा का मंदिर भी इससे अछुता नहीं है। जनश्रुति है कि भक्त जन को स्वप्न में इस शिवलिंग के दर्शन हुए। स्वप्न के आधार पर ही उन्होंने पास के जंगल में इसे स्थापित किया। यह घटना 1950-51 ई. के आसपास की मानी जाती है।

प्रत्येक शिवरात्रि को यहां मेला लगता है। पूजन की परंपरा में सर्वप्रथम पूजा गांव के देवस्थल जो कि नदी के किनारे राजाराव के नाम से जाना जाता है, की जाती है। कहा जाता है कि इस शिवलिंग के संदर्भ में एक महत्वपूर्ण तथ्य यह भी है कि जब यह प्राप्त हुआ था, तब यह काफी छोटा था किन्तु वर्तमान में इसका आकार काफी बड़ा हो गया है। सावन के महीने में नागसर्प के जोड़े की यहां मौजूदगी भी आश्चर्य कर देने वाली घटना है ऐसी मान्यता है।

3. मुलमुला

तहसील कोण्डागांव, शामपुर माकड़ी को जाने वाले मार्ग पर चिपावण्ड ग्राम से लगभग 5 कि.मी. की दूरी पर ग्राम मुलमुला स्थित है। इस गांव से लगभग 3-4 कि.मी. अंदर सुरक्षित वन क्षेत्र में मुलमुला एवं काकराबेड़ा जंगल में मूसर देव नामक स्थल है। वर्तमान में यहां कई प्राचीन टीले है इन टीलों के पास ही एक शिवलिंग है। चूंकि यह शिवलिंग लम्बाई में मूसर की आकृति का है जिसके कारण स्थानीय लोग इसे मूसर देव के नाम से जानते है।

4. बड़े डोंगर

फरसगांव से मात्र 16 किमी. दूरी पर बसा चारों ओर पहाड़ियों से घिरा यह क्षेत्र बड़ेडोंगर अपने इतिहास का बखान कर रहा है। आज इस क्षेत्र की चर्चा सम्पूर्ण छत्तीसगढ़ राज्य में है। कहावत है, कि बस्तर की आराध्य देवी मां दंतेश्वरी का निवास स्थान प्रमुख रूप से मंदिर दंतेवाड़ा है। पहले कभी बस्तर की राजधानी बडेडोंगर में माई जी का प्रमुख पर्व दशहरे का संचालन इसी मंदिर से होता था। कथा प्रचलित है कि महिशासुर नामक दैत्य का संग्राम मां दंतेश्वरी से इसी स्थल पर हुआ था।

महिशासुर उस रणभूमि में कोटि-कोटि सहस्त्र रथ हाथियों एवं घोड़ों से घिरा हुआ था। देवी ने अस्त्र शस्त्रों की वर्षा कर उनके सारे उपाय विफल किए। बड़े डोंगर में पुराने समय में 147 तालाब पाये गये थे जो इसे विषेश तौर पर तालाबों की पवित्र नगरी के नाम से विख्यात करते है।

5. आलोर

ग्राम पंचायत आलोर, जनपद पंचायत फरसगांव के अंतर्गत है। पंचायत की दांयी दिशा में अत्यंत ही मनोरम पर्वत श्रृंखला है। इस पर्वत श्रृंखला के बीचों-बीच धरातल से 100 मी. की ऊंचाई पर प्राचीनकाल की मां लिंगेश्वरी देवी की प्रतिमा विद्यमान है। जनश्रुति अनुसार मंदिर सातवीं शताब्दी का होना बताया जा रहा है। इस मंदिर के प्रांगण में प्राचीन गुफाएं स्थित है। प्राचीन मान्यता के अनुसार वर्ष में एक बार पितृमोक्ष अमावस्या माह के प्रथम बुधवार को श्रद्धालुओं के दर्शन हेतु पाषाण कपाट खोला जाता है। सूर्योदय के साथ ही दर्शन प्रारंभ होकर सूर्यास्त तक मां की प्रतिमा का दर्शन कर श्रद्धालुगण हर्ष विभोर होते है।

6. टाटामारी

धन-धान्य की अधिष्ठात्री शक्ति-स्वरूपा माता महालक्ष्मी शक्तिपीठ छत्तीसगढ़ टाटामारी सुरडोंगर केशकाल में आदिमकाल से पौराणिक मान्यताओं पर अखण्ड ऋषि के तपोवन पर स्थापित है। बारह भंवर केशकाल घाटी के ऊपरी पठार पर पिछले कई वर्षों से दीपावली लक्ष्मी पूजा के दिन विधि-विधान से श्रद्धालुजन पूजा अर्चना सम्पन्न करते आ रहे है। सुरडोंगर तालाब भंगाराम माई मंदिर होते टाटामारी ऊपरी पहाड़ी पठार पर महालक्ष्मी शक्ति पीठ स्थल तक लोग श्रद्धाभक्ति से पहुंचते हैं। प्राकृतिक सौंदर्य से आच्छादित स्थल मनोरम छटा, सौंदर्यमयी अनुपम स्थल का दर्शन करते हैं। ऐतिहासिक धरोहर स्थल टाटामारी के पठार कही डेढ़ सौ एकड़ जमीन पर अनुपम ऊंची चोटियों का विहंगम दृश्य देखते बनता है। यह स्थल नैसर्गिक रूप से मनोहरी है।

7. जटायु शिला

जटायु शिला फरसगांव के समीप कोण्डगांव फरसगांव मुख्य मार्ग से पश्चिम दिशा में 3 किमी. की दूरी पर स्थित है। यहां पहाड़ी के ऊपर बड़ी-बड़ी शिलाएं है। शिलाओं तथा वाच टावर से दूर-दूर तक मनोहारी प्राकृतिक दृश्य दिखायी देते हैं। कहा जाता है कि इसी स्थान पर रामायण काल में सीता जी के हरण के दौरान रावण एवं जटायु के मध्य संघर्ष हुआ था।

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