जीववाद :
उद्भववादी सिद्धान्त से जुड़े जीववाद की अवधारणा का वर्णन टायलर तथा हर्बट स्पेंसर ने किया है। इस सिद्धान्त के अनुसार आत्मा व स्पीरीट का एक महत्वपूर्ण स्थान है। यह आत्मा शरीर से जुड़ा होते हुए भी स्वतंत्र इकाई के रूप में होता है। सभी व्यक्ति के दो स्तित्व को माना जाता है शरीर और आत्मा। आत्मा शरीर को छोड़कर बाहरी दुनिया में भ्रमण करता रहता है।
इस प्रकार इस आत्मा ने दैवी शक्ति को आदिम मानव ने स्वीकार कर इसकी पूजा व आराधना शुरू की। जो पहला धार्मिक उपासना देखने को मिला उसमें अंत्येष्टि संस्कार (Funeral Rites) को प्रधानता दी गयी। शरीर के बाहर भटकने वाले इस आत्मा की उपासना उसे भोजन देकर संपन्न किया गया। इस प्रकार आदिम मानव ने आत्मा के अस्तित्व को मानकर उसकी पूजा आराधना शुरू कर दी। आत्मा ने मनुष्य के जीवन को प्रभावित किया और बाहरी दुनिया को प्रभावित करने वाले अर्थात् ब्रह्माण्ड (Cosmos) को प्रभावित करने वाले इस स्पीरीट के कारण नदी, तारों, पेड़-पौधों को भी महत्व दिया गया। विशेषकर हर्बट स्पेंसर ने आत्मा के महत्व को अस्वीकार करते हुए आत्मा के दूसरे रूप को अर्थात् उन तत्वों को जिसका मानवीय गुण था – उसके पूजा करने की बात को स्वीकार किया।