शिक्षण संस्थाओं में आरक्षण :
प्रो० हाब्स कहते हैं, ज्ञान ही शक्ति है, (नालेज इन पावर) शिक्षा के माध्यम से ही मनुष्य अपनी दैहिक, भौतिक, आध्यात्मिक शक्तियों का विकास करते हुए आत्म विश्वास को प्राप्त करता है, मनुस्मृति में भी कहा गया है कि शिक्षा का अभाव ही शुद्रत्व का लक्षण है, शूद्र कोई जाति नहीं है। अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति की सामाजिक और आर्थिक निर्योग्यताएँ शिक्षा के अभाव के कारण ही है। अनुसूचित जाति के लिए शिक्षा के महत्व पर प्रकाश डालते हुए पिम्पली कहते हैं कि शिक्षा वह माध्यम है, जिससे अनुसूचित जातियों की हैसियत में परिवर्तन हो सकता है।
एक विद्वान का विचार है कि शिक्षा ही अनुसूचित जाति में सामाजिक एवं आर्थिक उत्पीड़न के विरुद्ध चेतना जागृत करता है। डॉ. अंबेडकर भी इस विचार से सहमत थे कि अनुसूचित जातियों में सामाजिक एवं राजनैतिक परिवर्तन लाने के लिए शिक्षा का प्रसार अत्यंत आवश्यक है, उन्होंने इसके लिए त्रि-सिद्धांत दिया (शिक्षित बनो, संगठित हो, संघर्ष करो) अपने इस सिद्धांत में उन्होंने शिक्षित बनो को पहला स्थान दिया है, क्योंकि शिक्षा ही संगठित होने को प्रेरित करती है हित और अनहित के बोध के साथ जब कोई संगठन बनता है तो, सामाजिक प्रगति में साझेदारी प्राप्त करने के संघर्ष में सफल हो सकता है। शोषण, उत्पीड़न, भय, आतंक जैसे दलितों को निगल जाने वाले अजगर का विनाश शिक्षा से ही किया जा सकता है।
संविधान प्रवर्तन के बाद अनुसूचित जाति को उनके अधम जाति होने के कारण शिक्षण संस्थाओं में प्रवेश देने से अब वंचित नहीं किया जा सकता, क्योंकि संविधान द्वारा जहाँ धर्म, मूलवंश, जाति के आधार पर विभेद का निषेध कर दिया गया है, वहीं पर यह भी व्यवस्था कर दी गई है कि राज्य द्वारा पोषित या राज्य निधि से सहायता पाने वाले किसी शिक्षण संस्थाओं में प्रवेश से किसी भी नागरिक को केवल धर्म, मूलवंश जाति भाषा या इनमें से किसी भी आधार पर वंचित नहीं किया जा सकता, इसके अतिरिक्त संविधान के लिए भाग चार में भी राज्य को यह निर्देश दिया गया है कि राज्य जनता के दुर्बलतर वर्गों के विशिष्ट तथा अनुसूचित जातियों एवं अनुसूचित जनजातियों की शिक्षा और अर्थ संबंधी हितों की विशेष सावधानी से अभिवृद्धि करेगा, और सामाजिक अन्याय और सभी प्रकार के शोषण से उसकी रक्षा करेगा।
इन दिशा निर्देशों को ध्यान में रखकर मद्रास राज्य ने शिक्षण संस्थाओं में प्रथम बार अनुसूचित जातियों के लिए स्थान को आरक्षित किया था किंतु मद्रास राज्य बनाम चम्पक दोइराजन के वाद में अनु. 29 (2) के आधार पर शिक्षण संस्थाओं में आरक्षण को उच्चतम न्यायालय ने अवैध घोषित कर दिया इसके उपरांत प्रथम संवैधानिक संशोधन के द्वारा संविधान में एक नया अनु. 15 (4) को जोड़ा गया, इस नये अनु. के कारण अब यदि अनुसूचित जाति के लिए शैक्षिक संस्थाओं में आरक्षण की व्यवस्था की जाती है, तो इसे अनु. 15 (1) या अनु. 29 (2) के आधार पर चुनौती नहीं दी जा सकती। इसका प्रत्यक्ष परिणाम यह हुआ है कि शिक्षण संस्थाओं में अनुसूचित जातियों के आरक्षण को अब असंवैधानिक घोषित नहीं किया जा सकता।
अब प्रश्न यह उठता है कि शैक्षणिक संस्थाओं में अनुसूचित जातियों को आरक्षण देने के पीछे क्या तार्किक आधार पर? शिक्षण संस्थाओं में अनुसूचित जाति के आरक्षण के पीछे जो तार्किक आधार है उसे स्पष्ट करते हुए एक विद्वान डॉ. एस. के. कौल कहते हैं कि ऐतिहासिक काल से ही अनुसूचित जातियों को शिक्षा से वंचित कर दिया गया था, जिसके कारण अब वे सामान्य वर्ग की भाँति शिक्षण संस्थाओं में प्रवेश पाने की शर्तों और अर्हताओं को पूरा करने में असमर्थ हैं, यही कारण है कि केन्द्र और राज्य सरकारों ने शैक्षणिक एवं तकनीकी संस्थाओं में अनुसूचित जातियों के प्रवेश के लिए स्थान आरक्षित करने की व्यवस्था की है।
उच्चतम न्यायालय ने भी यह स्वीकार किया है कि अनु. 15 (4) के अंतर्गत अनुसूचित जातियों के लिए शिक्षण संस्थाओं में आरक्षण की व्यवस्था केन्द्र या राज्य सरकार कर सकती है, किंतु यह अनु. राज्य पर कोई ‘दायित्व’ आरोपित नहीं करता। यदि राज्य अनुसूचित जातियों के लिए कोई उपबंध बनाता है, तो निर्धारित मापदंडों की जाँच करने का पूर्ण अधिकार न्यायालय को प्राप्त होगा। आंध्रप्रदेश बनाम पी. सागर के वाद में उच्चतम न्यायालय ने यह अभिनिर्धारित किया था कि अनु. 15 (4) एक अपवाद है, अतः यह तथ्य स्थापित करने का भार राज्य पर है, कि जो आरक्षण राज्य ने शिक्षण संस्थाओं में किया है वे युक्ति-युक्त हैं तथा अनु. 15 (4) में संरक्षण पाने के योग्य हैं। इस संदर्भ में यह उल्लेखनीय है कि इन्द्रा साहनी वाद में उच्चतम न्यायालय ने इस निर्वचन को बदल दिया है और अब यह निर्धारित किया है कि अनु. 15 (4) अनु. 15 (1) का अपवाद नहीं है ।
अनु. 15 (4) के अंतर्गत अनुसूचित जातियों के लिए जो आरक्षण का प्रावधान रखा गया है उसकी सीमा कहाँ तक होगी। इस प्रश्न का उत्तर उच्चतम न्यायालय ने एम. आर. बालाजी बनाम मैसूर राज्य के वाद में दिया। न्यायालय ने अभिनिर्धारित किया कि इस प्रकार के विशेष प्रावधान राज्य की कुल जनसंख्या के 50 प्रतिशत से अधिक लोगों के लिए नहीं होना चाहिए, न्यायालय ने कहा कि अनु. 15 (4) का ऐसा परिवर्तन नहीं किया जाना चाहिए, जिससे संपूर्ण समाज के हितों को हानि पहुँचती हो। इस प्रकार इस वाद में आरक्षण को न्यायालय ने 50 प्रतिशत तक सीमित कर दिया।
क्या 50 प्रतिशत आरक्षण का नियम हर स्थिति में लागू होगा इस प्रश्न का उत्तर उच्चतम न्यायालय ने इन्द्रा साहनी बनाम भारत संघ के वाद में दिया। न्यायालय ने यह अभिनिर्धारित किया कि कुछ विशिष्ट परिस्थितियों में आरक्षण 50 प्रतिशत से अधिक हो सकता है। विशेष तौर पर दूर के राज्यों में, जैसे कि मणिपुर, नागालैण्ड आदि जहाँ कोई विशेष परिस्थिति हो किंतु न्यायालय ने सावधान किया है कि ऐसा करते समय विशेष सावधानी बरतनी होगी।
अनु. 15 (4) के अधीन राज्य का यह संवैधानिक दायित्व है कि अनुसूचित जातियों की उन्नति के लिए हर संभव प्रयास करे व मेडिकल कालेजों तथा तकनीकी शिक्षा संस्थाओं में प्रवेश के लिए स्थानों का आरक्षण करे, तथा आरक्षण को प्रभावी बनाने के लिए राज्य अगर चाहे तो शर्त लगा सकता है, विशेष परिस्थितियों में यदि आरक्षण को प्रभावी बनाने के लिए आवश्यक हुआ तो राज्य सरकार या केन्द्र सरकार प्रवेश संबंधी अर्हता और शर्तों में यथोचित परिवर्तन कर सकती है। अनु. 15 (4) के अंतर्गत इन शक्तियों का प्रयोग करते हुए मध्यप्रदेश राज्य ने विनिमय 20 के अधीन मेडिकल कालेजों में अनुसूचित जातियों के प्रवेश के लिए न्यूनतम अर्हता अंक में पूरी तरह से छूट प्रदान कर दी। राज्य के उच्च न्यायालय ने अनु. 15 (4) के अतिक्रमण के आधार पर इसे असंवैधानिक घोषित कर दिया किंतु अपील में उच्चतम न्यायालय ने उच्च न्यायालय के निर्णय को पलट दिया और न्यूनतम अर्हता अंक प्राप्त करने की शर्त को हटाने या समाप्त करने के आदेश को संवैधानिक घोषित कर दिया। न्यायालय ने अभिनिर्धारित किया कि अनुसूचित जाति एवं जनजाति के प्रत्याशियों के लिए न्यूनतम अर्हता अंक भी शर्त से पूर्ण छूट देना अयुक्ति-युक्त नहीं है और इससे अनु. 15 (4) उल्लंघन नहीं होता है।
प्रधानाचार्य गुन्टूर मेडिकल कालेज बनाम बाईमोहन राव के वाद में उच्चतम न्यायालय के विचारार्थ यह प्रश्न आए थे, तो क्या वह अनु. 15 (4) के अधीन आरक्षण का दावा कर सकते हैं, यहाँ उच्चतम न्यायालय ने यह अभिनिर्धारित किया कि, जब किसी जाति के सदस्य, जिस जाति उस व्यक्ति के माता पिता ईसाई धर्म में परिवर्तित हुए थे उस व्यक्ति को पुनः उस जाति के सदस्य के रूप में स्वीकार कर लेते हैं तो वह पुनः उस जाति का सदस्य बन जाता है और उस जाति का सदस्य होने के नाते जो कि अनुसूचित है, वह मेडिकल कालेज में प्रवेश के लिए आरक्षण का दावा कर सकता है। इस बात का भी निश्चय करना उस जाति के सदस्यों का कार्य है कि अपने जाति के अंतर्गत उस व्यक्ति को स्वीकारते हैं या नहीं ।
छत्तर सिंह बनाम राजस्थान राज्य के वाद में उच्चतम न्यायालय ने यह अभिनिर्धारित किया कि अनुसूचित जातियों को आरक्षण देने का उद्देश्य उनको राष्ट्र की मुख्य धारा में शामिल करना है उनकी तुलना पिछड़े वर्गों से नहीं की जा सकती क्योंकि ऐतिहासिक और सामाजिक निर्योग्यताओं के कारण वे सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े हैं, अतः राज्य अनुसूचित जातियों के शैक्षणिक या आर्थिक विकास के लिए यदि कोई विशेष छूट का प्रावधान करता तो यह छूट अन्य पिछड़े वर्गों को प्राप्त नहीं होगी।
एक अन्य वाद में उच्चतम न्यायालय ने यह अभिनिर्धारित किया है कि शैक्षणिक संस्थाओं में अगर केवल एक ही स्थान उपलब्ध हो तो उस स्थान का आरक्षण नहीं किया जा सकता। अगर कोई व्यक्ति अपने मूल राज्य में अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति समझा जाता है तो क्या दूसरे राज्य में भी उसे अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति का व्यक्ति समझा जाएगा और उसे वहाँ शैक्षणिक संस्थाओं में आरक्षण का लाभ प्राप्त होगा, इस प्रश्न का उत्तर उच्चतम न्यायालय ने मावरी चन्द्र शेखर राव बनाम डीन सेठ जी. एस. मेडिकल कालेज के वाद में प्रदान किया। न्यायालय ने यह अभिनिर्धारित किया कि दूसरे राज्य में यदि वह अनुसूचित जाति या जनजाति का सदस्य नहीं समझा जाता है तो उसे वहाँ आरक्षण का लाभ नहीं मिलेगा।
विशेष संवैधानिक प्रावधानों की सुविधा के साथ ही सामान्य संवैधानिक सुविधाएँ भी अनुसूचित जाति को शिक्षा के क्षेत्र में प्राप्त होगा, जैसा कि संविधान द्वारा 14 वर्ष तक के सभी बच्चों को निःशुल्क शिक्षा प्रदान करने का निर्देश दिया गया है।
अनुसूचित जाति के लोगों के लिए केन्द्र और राज्य सरकार ने शिक्षा उपलब्ध कराने हेतु आपरेशन ब्लैकबोर्ड, अनौपचारिक शिक्षा, प्रौढ़ शिक्षा के अंतर्गत उन क्षेत्रों को प्राथमिकता दी है जिसमें अनुसूचित जाति के लोग बड़ी संख्या में रहते हैं। अनुसूचित जाति के छात्रों को न्यूनतम उत्तीर्ण अंकों में छूट, मैट्रिक से पूर्व छात्रवृत्ति, आरक्षण की सुविधा, केंद्रीय विद्यालयों में निःशुल्क शिक्षा, विश्वविद्यालय स्तर पर शोध छात्रवृत्ति और शैक्षणिक छात्रवृत्ति में आरक्षण आदि की व्यवस्था की है।