शक्तिमानता का अर्थशास्त्र :
शक्ति एवं शक्तिमानता के स्रोत से आशय उन साधनों एवं परिस्थितियों से है, जिसके द्वारा उत्पादन शक्ति, राष्ट्रीय आय तथा प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि होती है। इसमें जनता के जीवन स्तर में सुधार, वितरण व्यवस्था में न्याय व मानव का सर्वांगीण विकास होता है। आर्थिक समृद्धि व भौतिक सुखों में वृद्धि होती है। शक्तिमानता की मदद से कोई समाज या राष्ट्र आर्थिक विकास एवं आर्थिक सम्पन्नता को प्राप्त करता है। यहां यह उल्लेखनीय है कि वर्तमान परिवेश में आर्थिक विकास एवं संवृद्धि सामाजिक, सांस्कृतिक, संस्थागत एवं आर्थिक परिवर्तनों का योग होती है।
शक्तिमानता के अर्थशास्त्र में संपत्तिहीन, आर्थिक शक्ति से कमजोर, भूमिहीन, वर्गभेद, रूढीवाद, जातिवाद, असमानता की मनोवृत्ति का अध्ययन किया जाता है, अर्थात् शक्तिमानता के अर्थशास्त्र से तात्पर्य आर्थिक विकास से है। विकास मनुष्य की भौतिक आवश्यकताओं से ही नहीं, बल्कि जीवन की सामाजिक दशाओं के सुधार से भी सम्बन्धित है इसलिए विकास न केवल आर्थिक वृद्धि ही है, बल्कि आर्थिक वृद्धि और सामाजिक, सांस्कृतिक, संस्थागत और आर्थिक परिवर्तनों का योग है। संयुक्त राष्ट्र संघ (यू.एन.ओ.) के विकास कार्यक्रम में यह जोर दिया गया है कि अब तो प्रति व्यक्ति आय बढ़ाना, न्यूनतम आवश्यकताओं की पूर्ति किया जाना व आर्थिक विकास को परम्परागत रूप से देखते रहना पर्याप्त नहीं है।
आर्थिक शक्तिमानता का अभिप्राय आर्थिक क्षेत्र में परिवर्तन की उस प्रक्रिया से लगाया जाता है, जिसके द्वारा उत्पादन शक्ति, राष्ट्रीय आय व प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि होती है। आर्थिक संरचना व देशवासियों के दृष्टिकोण में परिवर्तनों से जनता के जीवन-स्तर में सुधार, वितरण व्यवस्था में न्याय व मानव के सर्वांगीण विकास का मार्ग प्रशस्त होता है और अन्ततः आर्थिक समृद्धि एवं भौतिक सुखों की प्राप्ति होती है।
शक्तिमानता हेतु आवश्यक तत्व :
आर्थिक शक्तिमानता के लिये आवश्यक तत्व निम्न हैं-
- परिसम्पत्तिविहीनता को करना।
- विपणन योग्य योग्यता।
- आरक्षण भी शक्तिमानता के लिये पर्याप्त नहीं है।
- विकास का सामाजिक अंकेक्षण तथा उसमें पारदर्शिता।
- वैयक्तिक, सामूहिक, सहकारी, कल्याणकारी सरकारी एवं स्वैच्छिक संगठनों का एक साथ सहयोग।
- शक्तिमानता के लिए कुछ बलिदान करना होगा।
# निष्कर्ष के रूप में हम कह सकते हैं कि शक्तिमानता एक प्रकार से आर्थिक सम्पन्नता का पर्याय है। जिसमें समस्त प्रकार की शक्तियों में वृद्धि के साथ-साथ आर्थिक शक्तिमानता के तत्व के माध्यम से हम समस्त लोगों के भूमिहीनता, वर्गभेद, असमानता को दूर कर एक आर्थिक रूप से सम्पन्न राष्ट्र का निर्माण कर सकते हैं जिससे सभी नागरिकों के पास अपना आर्थिक सम्पत्ति व भूमि हो सकता है।