समिति एवं समुदाय में अन्तर :
समिति एवं समुदाय दो भिन्न अवधारणाएं हैं। यद्यपि दोनों ही व्यक्तियों के मूर्त समूह हैं तथापि दोनों में पर्याप्त अन्तर है।
समिति व्यक्तियों का एक ऐसा समूह है जोकि किसी विशेष हित या हितों की पूर्ति के लिए बनाया जाता है। समुदाय, इसके विपरीत, व्यक्तियों का एक ऐसा समूह है जोकि एक निश्चित भू-भाग पर रहता है तथा जिसके सदस्यों में सामुदायिक भावना पाई जाती है।
समिति एवं समुदाय में पाए जाने वाले प्रमुख अन्तर निम्नांकित हैं-
#समिति/समुदाय :
1. समिति के लिए निश्चित भू-भाग की आवश्यकता नहीं है। समुदाय के लिए निश्चित भू-भाग का होना आवश्यक है।
2. समिति की स्थापना विचारपूर्वक की जाती है। समुदाय का जन्म स्वतः होता है।
3. उद्देश्य सीमित होने के कारण समिति एक छोटी इकाई है। समुदाय सामान्य जीवन से सम्बन्धित होने के कारण एक बड़ी इकाई है।
4. समिति के उद्देश्य पूर्व-निश्चित होते हैं। समुदाय सामान्य उद्देश्यों की पूर्ति के लिए होता है।
5. समिति की सदस्यता अनिवार्य नहीं है। समुदाय की सदस्यता अनिवार्य है।
6. व्यक्ति एक ही समय में कई समितियों का सदस्य बन सकता है। समुदाय में ऐसा होना सम्भव नहीं है।
7. इसकी प्रकृति अस्थायी होती है। उद्देश्य विशेष पर आधारित होने के कारण उसकी पूर्ति के पश्चात् समिति समाप्त हो जाती है। समुदाय में उद्देश्य सामान्य होने के कारण इसकी प्रकृति स्थायी है।
8. समिति के लिए सामुदायिक भावना आवश्यक नहीं है। समुदाय के लिए सामुदायिक भावना का होना आवश्यक तत्व है।
9. समितियाँ साधन होती हैं। समुदाय स्वयं साध्य होते हैं।
10. समिति में संगठन आवश्यक है। समुदाय संगठित एवं विघटित दोनों रूपों में कार्य करता है।
समिति एवं समुदाय के उपर्युक्त अन्तर से स्पष्ट हो जाता है कि समिति व्यक्तियों का विशेष उद्देश्यों की पूर्ति के लिए बनाया गया समूह है। समुदाय में, समिति के विपरीत, हमारे सामान्य उद्देश्यों की पूर्ति होती है।
समुदाय में हमारा सम्पूर्ण जीवन व्यतीत होता है। समिति हमारे किसी एक उद्देश्य से सम्बन्धित होती है अर्थात् इसका सम्बन्ध जीवन के किसी एक पक्ष से होता है। समिति एक संकुचित अवधारणा है, जबकि समुदाय एक वृहत् अवधारणा है। एक समुदाय के अन्तर्गत अनेक समितियाँ पाई जा सकती हैं। इस सन्दर्भ में मैकाइवर एवं पेज ने उचित ही लिखा है कि, “एक समिति एक समुदाय नहीं है, बल्कि समुदाय के अन्तर्गत एक संगठन है।”