# राज्य के कार्यक्षेत्र की सीमाएं (limits of state jurisdiction)

राज्य के कार्यक्षेत्र की सीमाएं :

राज्य को उसके कार्यक्षेत्र की दृष्टि से अनेक भागों में वर्गीकृत किया गया है। राज्य के कार्य उसकी प्रकृति के अनुसार निर्धारित होते हैं। पूर्व में राज्य की प्रकृति के अनुसार राज्य के कार्यों का विवेचन किया गया है। प्रत्येक राज्य को अपने वास्तविक उद्देश्य की प्राप्ति के लिए कार्यों को सम्पन्न करना चाहिए किन्तु कुछ ऐसे भी कार्य हैं जिन्हें राज्य को नहीं करना चाहिए।

राज्य की सीमाओं को निम्नलिखित रूप में इंगित किया जा सकता है –

१. लोकमत

राज्य को किसी भी स्थिति में लोकमत के विरूद्ध कार्य नहीं करने चाहिए। व्यक्तियों की सुरक्षा एवं कल्याण हेतु राज्य का निर्माण किया गया है। व्यक्ति राज्य का आधारभूत अंग है। व्यक्ति की इच्छाओं को अभिव्यक्ति देने के लिए कानूनों का निर्माण एवं क्रियान्वयन किया जाता है। अतः राज्य को सदैव इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि राज्य सत्ता का प्रयोग करते समय जनता की स्वतंत्रताओं विशेषतः विचार अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को अनावश्यक रूप से प्रतिबन्धित न करे। यदि राज्य व्यक्ति की स्वतंत्रतओं का उल्लंघन करेगा तो उसका यह आक्रोश विद्रोह का रूप धारण कर सकता है जिससे राज्य अपनी गतिविधियों का सुचारू रूप से निर्वहन नहीं कर सकेगा।

२. धर्म

धर्म व्यक्ति की वैयक्तिक धारणा है और उसके प्रति वह अत्यधिक संवेदनशील होता है राज्य द्वारा किसी व्यक्ति पर यह दबाव डालना कि वह धर्म विशेष को माने अथवा न माने, अनुचित है। राज्य द्वारा प्रत्येक व्यक्ति को धार्मिक स्वतंत्रता प्रदान की जानी चाहिए, साथ ही यह भी सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि किसी भी व्यक्ति एवं संस्था द्वारा व्यक्ति को धर्म विशेष मानने के लिए बाध्य न किया जाए।

३. नैतिकता

धर्म के समान नैतिकता भी व्यक्ति का वैयक्तिक विषय है। राज्य द्वारा इस बात का ध्यान रखा जाना चाहिए कि वह अपनी कोई नैतिक संहिता व्यक्तियों पर बलपूर्वक न थोपे। राज्य को ऐसा वातावरण अवश्य विकसित करना चाहिए जिसमें व्यक्तियों का नैतिक विकास सम्भव हो। ग्रीन के शब्दों में राज्य को केवल ऐसे कार्य करने के लिए बाध्य करना चाहिए जिसके करने या न करने से समाज के नैतिक स्तर में गिरावट का भय हो ।’ नैतिकता एक भावात्मक विषय है जिस पर राज्य नियंत्रण नहीं लगा सकता। यदि राज्य नैतिकता पर अंकुश लगाता है तो नागरिक चरित्र का हास होगा, परिणामस्वरूप समाज में भ्रष्टाचार व अपराधों में वृद्धि होगी।

४. व्यक्ति का व्यक्तिगत दैनन्दिन व्यवहार

व्यक्ति को अपनी दैनिक गतिविधियों को सम्पन्न करने में स्वतंत्र रहने देना चाहिए । यदि व्यक्ति के दैनंदिन व्यवहार राज्य हस्तक्षेप करता है तो लोगों की भावनाएं आहत होती हैं व उनके मन में राज्य के प्रति आक्रोश उत्पन्न होता है।

५. फैशन

फैशन द्वारा बातचीत के ढंग, विश्वास, वेशभूषा, संगीत कला और साहित्य को निर्धारित किया जाता है। फैशन का सम्बन्ध व्यक्तिगत रूचियों और अरूचियों से होता है। अतः राज्य को उस पर नियंत्रण लगाने में कठिनाई का सामना करना पड़ सकता है। यदि फैशन समाज में अश्लीलता को बढावा दे, समाज की मान्यताओं के विरूद्ध हो, शिष्टता और नैतिकता के विरूद्ध हो तो राज्य इन पर प्रतिबंध लगा सकता है। ये प्रतिबन्ध विवेकसम्मत होने चाहिए। अनावश्यक प्रतिबन्ध राज्य के लक्ष्य प्राप्ति में बाधक बन सकते हैं।

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