# राजनीति विज्ञान और भूगोल में अंतर/संबंध | Relations in Political Science And Geography

राजनीति विज्ञान और भूगोल :

भूगोल का संबंध भूमि, वायु, वर्षा, खनिज पदार्थ, कृषि, समुद्र, नदी तथा पहाड़ इत्यादि से होता है। भूगोल उन प्राकृतिक दशााओं का वर्णन करता है जिनका मनुष्य के जीवन पर विशेष प्रभाव पड़ता है। राज्य के निर्माणकारी तत्त्वों में भूखण्ड एक महत्वपूर्ण तत्व है और भूगोल के अध्ययन के विषय भी भूखण्ड अर्थात् पृथ्वी, जल तथा वायु होते हैं। अतः भूगोल और राजनीति विज्ञान परस्पर घनिष्ठ रूप से संबंद्ध होते हैं। इन दोनों के संबंधों को निम्नानुसार समझा जा सकता है।

राजनीति विज्ञान और भूगोल में संबंध :

अरस्तू, ने सबसे पहले इस बात का प्रतिपादन किया था कि जलवायु, भूमि, समुद्र तट, पहाड़ और नदियाँ तथा खाड़ियाँ आदि, राजनीतिक इतिहास तथा किसी देश की सभ्यता और संकृति पर अमिट छाप छोड़ देती हैं। बोदां ने राजनीति विज्ञान तथा भूमि के संबंध की घनिष्ठता पर बल दिया है। मान्टेस्क्यू का कथन था ‘‘ठण्डे देशों के लिए राजनीतिक स्वतंत्रता तथा गर्म देशों के लिए दासता स्वाभाविक है।’’ रूसो ने अठारहवीं शताब्दी में जलवायु तथा सरकार के स्वरूप में संबंध स्थापित करते हुए कहा है कि ‘‘गर्म जलवायु निरंकुश शासन के लिए, ठण्डी जलवायु बर्बरता के लिए और सम जलवायु अच्छे जनतंत्रीय शासन के लिए उपयुक्त होती है।”

’’थाॅमस बक्ल‘‘ के अनुसार, ‘‘किसी देश के लोगों के चरित्र और उनकी राजनीतिक संस्थाओं को निर्धारित करने वाला सबसे प्रमुख तत्व, उसकी भौगोलिक एवं भौतिक परिस्थिति है।’’ ब्लंटशली, रायटर और मेकाईवर आदि आधुनिक विद्वानों ने भी राजनीतिक जीवन पर भौगोलिक परिस्थितियों के प्रभाव के महत्व को स्वीकार किया है।

किसी भी देश के समाज की राजनीतिक समस्याओं तथा जीवन को समझने के लिए वहाँ के भूगोल का पर्याप्त ज्ञान होना आवश्यक है। भूगोल न केवल राष्ट्र की गृहनीति को प्रभावित करता है बल्कि उसकी विदेश नीति को भी प्रभावित करता है। अमेरिका और रूस की राष्ट्रीय शक्ति में वृद्धि का कारण उनकी प्राकृतिक सम्पदा और विभिन्न पदार्थों की बहुतायत रहा है।

अपनी भौगोलिक स्थिति खनिज पदार्थों की बहुतायत एवं पेट्रोल के विशाल भण्डार के कारण आज पश्चिमी एशिया के देश अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति के केन्द्र बन गये हैं। स्विट्जरलैण्ड में प्रत्यक्ष लोकतंत्र की सफलता का कारण वहाँ की भौगोलिक स्थिति है। भूटान और नेपाल जैसे देशों का राजनीतिक दृष्टि से पिछड़ा होना प्राकृतिक साधनों की दृष्टि से उनके असम्पन्न होने के कारण है। भूगोल के बढ़ते महत्व के कारण ‘भू-राजनीति’ (Geopolitics) नाम से एक नये विषय का निर्माण हुआ है जो भौगोलिकता के राजनीतिक प्रभावों का उल्लेख करता है।

राजनीति विज्ञान तथा भूगोल में अन्तर :

भूगोल तथा राजनीति विज्ञान में पारस्परिकता होते हुए भी दोनों में निम्नानुसार अन्तर है –

1. विषय वस्तु में अन्तर

भूगोल के अन्तर्गत विभिन्न देशों की प्राकृतिक दशा, जलवायु तथा वनस्पति आदि का अध्ययन किया जाता है जबकि राजनीति विज्ञान के अन्तर्गत राज्य, सरकार तथा विधि का अध्ययन किया जाता है।

2. प्रकृति में अन्तर

भूगोल ठोस तथ्यों से सम्बन्धित विज्ञान है जबकि राजनीतिशास्त्र तथ्यों के साथ-साथ आदर्श का चित्रण भी करता है।

3. निश्चितता में अन्तर

भूगोल एक निश्चित विज्ञान है तथा उसके नियमों में निश्चितता रहती है। जबकि राजनीति विज्ञान अनिश्चित विज्ञान की श्रेणी में आता है।

The premier library of general studies, current affairs, educational news with also competitive examination related syllabus.

Related Posts

# भारतीय संविधान में किए गए संशोधन | Bhartiya Samvidhan Sanshodhan

भारतीय संविधान में किए गए संशोधन : संविधान के भाग 20 (अनुच्छेद 368); भारतीय संविधान में बदलती परिस्थितियों एवं आवश्यकताओं के अनुसार संशोधन करने की शक्ति संसद…

# भारतीय संविधान की प्रस्तावना | Bhartiya Samvidhan ki Prastavana

भारतीय संविधान की प्रस्तावना : प्रस्तावना, भारतीय संविधान की भूमिका की भाँति है, जिसमें संविधान के आदर्शो, उद्देश्यों, सरकार के संविधान के स्त्रोत से संबधित प्रावधान और…

# अन्तर्वस्तु-विश्लेषण प्रक्रिया के प्रमुख चरण (Steps in the Content Analysis Process)

अन्तर्वस्तु-विश्लेषण संचार की प्रत्यक्ष सामग्री के विश्लेषण से सम्बन्धित अनुसंधान की एक प्रविधि है। दूसरे शब्दों में, संचार माध्यम द्वारा जो कहा जाता है उसका विश्लेषण इस…

# अन्तर्वस्तु-विश्लेषण का अर्थ, परिभाषा, विशेषताएं, उद्देश्य, उपयोगिता एवं महत्व (Content Analysis)

अन्तर्वस्तु-विश्लेषण संचार की प्रत्यक्ष सामग्री के विश्लेषण से सम्बन्धित अनुसंधान की एक प्रविधि है। दूसरे शब्दों में, संचार माध्यम द्वारा जो कहा जाता है उसका विश्लेषण इस…

# हॉब्स के सामाजिक समझौता सिद्धांत (Samajik Samjhouta Ka Siddhant)

सामाजिक समझौता सिद्धान्त : राज्य की उत्पत्ति सम्बन्धी सिद्धान्तों में सामाजिक समझौता सिद्धान्त सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है। 17 वीं और 18 वीं शताब्दी में इस सिद्धान्त…

# राज्य के कार्यक्षेत्र की सीमाएं (limits of state jurisdiction)

राज्य के कार्यक्षेत्र की सीमाएं : राज्य को उसके कार्यक्षेत्र की दृष्टि से अनेक भागों में वर्गीकृत किया गया है। राज्य के कार्य उसकी प्रकृति के अनुसार…

This Post Has 2 Comments

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

2 × 3 =