# प्लेटो के ‘आदर्श राज्य’ की अवधारणा/सिद्धांत, विशेषताएं, आलोचनाएं | Plato Ke Aadarsh Rajya Avadharana

प्लेटो के ‘आदर्श राज्य’ की अवधारणा/सिद्धांत :

जिस समय एथेन्स में प्लेटो का जन्म हुआ, उस समय एथेन्स में अराजकता एवं अव्यवस्था फैली हुई थी। वह तत्कालीन एथेन्स की शासन-व्यवस्था के समस्त दोषों को दूर करना चाहता था और उसके स्थान पर आदर्श राज्य की स्थापना करना चाहता था। उसका आदर्श राज्य सद्गुणों के विचारों पर आधारित है। उसके आदर्श राज्य का आधार-स्तम्भ उसके श्रम-विभाजन का सिद्धान्त है। राज्य के वर्ग-विभाजन के पश्चात् संरक्षक वर्ग में सैनिक और शासक दोनों उसके सम्मुख आते हैं, परन्तु इनमें से वह केवल शासकों को ही शासन के लिये चुनता है। इसके शासक वर्ग में वह लोग होंगे जिन्हें ‘अच्छे’ या ‘शुभ’ का विस्तृत ज्ञान है। इन शासकों को उसने दार्शनिक शासकों की संज्ञा दी है।

प्लेटो के आदर्श राज्य की विशेषताएं :

(1) राज्य व्यक्ति का ही वृहद् रूप है

प्लेटो के अनुसार राज्य व्यक्ति का ही वृहद् रूप है। जो गुण एवं विशेषताएँ व्यक्ति में थोड़ी मात्रा में पाई जाती हैं, वे ही गुण एवं विशेषताएँ राज्य में व्यापक रूप में पाई जाती हैं। राज्य मानव आत्मा का वृहद् रूप है। जब आत्मा अपने विस्तृत रूप में बाहर प्रकट होती है तब वह राज्य का रूप धारण कर लेती है। व्यक्ति के आत्मा रूपी गुण राज्य का निर्माण करते हैं। प्लेटो के अनुसार मानव आत्मा के तीन गुण हैं- बुद्धि, साहस और लालसा। प्लेटो का कहना है कि आत्मा के ये तीनों गुण राज्य का निर्माण करते है। प्लेटो के शब्दों में, “राज्य किसी ओक वृक्ष या चट्टान से नहीं बल्कि उनमें निवास करने वाले व्यक्तियों के चरित्र से बनते हैं।” आत्मा के इन तीनों गुणों के आधार पर राज्य तथा समाज में शासक, सैनिक तथा उत्पादक वर्ग हैं, इन तीनों में सम्बन्ध कराने वाला राज्य आदर्श राज्य होता है।

(2) विशेष कार्य अथवा श्रम-विभाजन का सिद्धान्त

प्लेटो ने श्रम-विभाजन के महत्त्व को ध्यान में रखते हुए आत्मा के तीन गुणों के आधार पर राज्य को तीन वर्गों में विभाजित किया है। प्लेटो के मत में यह विभाजन समाज की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिये अनिवार्य था। कार्य के इस विभाजन द्वारा प्लेटो ने बतलाया है कि प्रत्येक से सदा वही काम लेना चाहिए जिसके लिये प्रकृति ने उसे बनाया है और उसके अनुकूल है। राज्य में उसका वर्ग-विभाजन इस प्रकार था- (i) उत्पादक वर्ग, (ii) सैनिक वर्ग, तथा (iii) शासक वर्ग।,
राज्य को इन तीनों वर्गों में विभाजित कर प्लेटो ने विशेष कार्य के सिद्धान्त का प्रतिपादन किया है। उसके अनुसार विशेषता सब जगह एकता की कुन्जी है।

(3) दार्शनिक राजाओं का शासन

उसका विचार था कि राज्य तभी आदर्श स्वरूप को प्राप्त कर सकता है जब उसका शासन दार्शनिक शासकों द्वारा होगा। प्लेटो एक स्थान पर लिखता है कि, “जब तक दार्शनिक राजा और राजा दार्शनिक न होंगे, उस समय तक नागरिकों को बुराइयों से छुटकारा नहीं मिलेगा।” दार्शनिक शासक ही राज्य की दुर्बलताओं का अन्त कर सकते हैं। उसका मत था कि मनुष्य की चिन्ताओं और दुःखों का कारण यह है कि उनको रास्ता दिखाने वाले ‘अज्ञानी’ होते हैं। दार्शनिक शासक राज्य की आत्मा को विवेक गुण से संचालित करेगा। ऐसे दार्शनिक शासक को राज्य की बागडोर सौंपकर प्लेटो आदर्श राज्य की स्थापना करता है।

(4) न्याय पर आधारित आदर्श राज्य

उसके आदर्श राज्य का आधार न्याय होगा। उचित न्याय के अभाव में आदर्श राज्य की कल्पना नहीं की जा सकती। उसने न्याय का प्रयोग नैतिक दृष्टि से किया है। सबको उचित न्याय मिले यही सच्चा न्याय है। आदर्श राज्य में न्याय की व्यवस्था केवल दार्शनिक ही कर सकते हैं और एकता के सूत्र में बँध सकते हैं। अतः न्याय प्लेटो के आदर्श राज्य का प्राण है।

(5) कानून रहित राज्य

प्लेटो का आदर्श राज्य कानून रहित होगा। उसमें कानूनों को कोई मान्यता नहीं दी जायेगी। दण्ड की व्यवस्था राज्य में न्याय द्वारा की जायेगी। राज्य के सब वर्ग ईमानदारी से अपने कार्यों का सम्पादन करेंगे।

(6) साम्यवाद पर आधारित राज्य

तत्कालीन समाज से दोषों को दूर करने के लिये और आदर्श समाज की स्थापना के लिये प्लेटो ने अपने आदर्श राज्य में साम्यवाद की स्थापना की है। उनके इस सिद्धान्त के अनुसार शासक और सैनिक वर्ग को अपनी निजी सम्पत्ति एवं निजी परिवार रखने का अधिकार नहीं होगा। उसके इस सिद्धान्त से आशय यह था कि दार्शनिक शासक निःस्वार्थ भावना से प्रेरित होकर सम्पत्ति और परिवार के मोह के बिना जनता की सेवा कर सकते हैं। उसके राज्य में दार्शनिक शासक सांसारिक सुखों एवं इच्छाओं से वंचित होंगे।

(7) शिक्षा प्रणाली पर आधारित राज्य

प्लेटो ने अपने आदर्श राज्य में न्याय की स्थापना के लिये एक सुनियोजित शिक्षा प्रणाली की व्यवस्था की। राज्य के विभिन्न वर्ग शिक्षा के माध्यम से ही अपने-अपने कर्तव्यों को पूरा कर पायेंगे और अपने-अपने अधिकारों का अनुचित प्रयोग न करेंगे। प्लेटो की शिक्षा प्रणाली में प्रारम्भिक शिक्षा अनिवार्य होगी। स्त्री-पुरुषों को समान शिक्षा पाने का अधिकार होगा। उसने माध्यमिक शिक्षा को पूर्ण रूप से राज्य के अधीन कर दिया है। उसने अपने राज्य में आदर्श शिक्षा व्यवस्था को पूरा महत्त्व दिया है।

(8) स्त्री-पुरुष को समान अधिकार

प्लेटो ने स्त्री-पुरुष को समान अधिकार दिये हैं। दोनों को समान अधिकार देकर ही आदर्श राज्य की स्थापना हो सकती है।

(9) कला एवं साहित्य पर प्रतिबन्ध

उसने अश्लील साहित्य एवं कला पर राज्य का कठोर नियन्त्रण स्वीकार किया है। इससे नवयुवकों का नैतिक पतन नहीं हो सकता।

(10) सत्य पर आधारित राज्य

प्लेटो के आदर्श राज्य की नींव का आधार है कि सद्गुण ही ज्ञान है। उसके अनुसार बाह्य जगत् सत्य नहीं है, अपितु विचार ही सत्य और वास्तविक है। इसके द्वारा वह आदर्श राज्य की स्थापना करना चाहता है जिसमें वर्ग बुद्धि एवं विवेक पर आधारित हो।
उपर्युक्त विशेषताओं द्वारा प्लेटो ने ऐसे आदर्श राज्य का चित्रण किया जो काल्पनिक है। व्यावहारिकता की ओर से उसका ध्यान हट गया। उसके आदर्श राज्य की विशेषताएँ संसार में कहीं भी उपलब्ध नहीं हैं।

प्लेटो के आदर्श राज्य की आलोचना :

प्लेटो ने आदर्श राज्य की कल्पना की है। उसके आदर्श राज्य की आलोचना निम्नलिखित आधार पर की जा सकती है-
  1. आदर्श राज्य की अवधारणा काल्पनिक है।
  2. उसका वर्ग-विभाजन त्रुटिपूर्ण है।
  3. उसने व्यक्ति की स्वतन्त्रता की उपेक्षा की है।
  4. उत्पादक वर्ग की उपेक्षा की है।
  5. दास प्रथा की उपेक्षा की है।
  6. साम्यवाद का सिद्धान्त अव्यावहारिक है।
  7. न्याय सिद्धान्त दोषपूर्ण है।
  8. कानून का स्थान नहीं है।
  9. अधिनायकतन्त्र का समर्थन किया है।
  10. बुद्धि को बहुत अधिक महत्त्व दिया है।
  11. प्रजातन्त्र की अवहेलना की है।
  12. शिक्षा प्रणाली दोषपूर्ण है।
उपर्युक्त आलोचनाओं के आधार पर कहा जा सकता है कि प्लेटो ने आदर्श राज्य का चित्रण करने में कल्पना का सहारा लिया है। उसका राज्य स्वप्नलोक का राज्य बनकर ही रह गया है, परन्तु उसने अपनी इस कमी को बहुत जल्दी पहचान लिया।

क्या प्लेटो का राज्य काल्पनिक है :

प्लेटो के आदर्श राज्य में उपर्युक्त अव्यावहारिक तत्त्वों के आधार पर आलोचकों ने उसके राज्य को काल्पनिक बादलों में बना शहर मनः प्रसूत मात्र कहा है, परन्तु इसका अर्थ यह नहीं है कि उसकी कल्पना में कोई वास्तविक जीवन से कोई सम्बन्ध नहीं है। इस सम्बन्ध में निम्नलिखित तर्क दिये गये हैं-
  1. प्लेटो की रिपब्लिक परिस्थितियों का वास्तविक स्पर्श करती है। उसको काल्पनिक कहना उचित न होगा।
  2. उसके रिपब्लिक के अध्ययन से यह प्रतीत होता है कि वह तत्कालीन राजनीति में क्रियात्मक सुधार चाहता था।
  3. प्लेटो का आदर्श राज्य यद्यपि एक शब्द चित्र था फिर भी इसमें आदर्शत्व के उन सिद्धान्तों का प्रतिपादन किया गया, जो शाश्वत् एवं स्थाई है। इसी कारण प्लेटो के आदर्श राज्य का प्रभाव मानव-जीवन की गतिविधियों पर बहुत गहरा पड़ा।
  4. साम्यवाद के प्रतिपादन द्वारा प्लेटो शासक वर्ग को आर्थिक स्वार्थों से दूर रखना चाहता था।
  5. बट्टैण्ड रसेल के द्वारा प्लेटो के आदर्श राज्य की स्थापना असम्भव नहीं परन्तु कठिन अवश्य है।
  6. प्लेटो के राज्य का शासन योग्य एवं बुद्धिमान दार्शनिकों द्वारा ही होना तय हुआ है। अयोग्य व्यक्तियों का उसके आदर्श राज्य में स्थान नहीं है।
  7. यह सत्य है कि प्लेटो आदर्शवादी था, किन्तु उसने आदर्श के पथ-प्रदर्शन के लिए व्यवहार को अनिवार्य माना है।
उपर्युक्त विवरण से स्पष्ट है कि प्लेटो का आदर्श राज्य काल्पनिक होते हुए भी पूर्ण रूप से अव्यावहारिक नहीं है। बार्कर के अनुसार, “रिपब्लिक में राज्यों के रोग का निदान और इलाज दोनों के ही केवल किन्हीं पहले से माने हुए दार्शनिक के सिद्धान्त के आधार पर निश्चित किये गये, अपितु यूनानी तथ्यों के आधार पर निर्धारित किये।” अतः उसका आदर्श राज्य कुछ व्यावहारिक भी है। उसके आदर्श राज्य का निर्माण तभी सम्भव है जब दार्शनिक राजा बन सके और राजा दार्शनिक बन सके।

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