पर्यावरण के निर्माण हेतु क्रियाकलाप :-
वर्तमान समय में पर्यावरण को समझने उसे संतुलित एवं जन उपयोगी बनाने हेतु मनुष्य को अपना दृष्टिकोण बदलना होगा। इसी से हमें जीवन की गुणवत्ता प्राप्त हो सकती है। हमें निम्न दिशाओं में अपने क्रियाकलाप (उपाय) करने होंगे :-
1. पर्यावरण संरक्षण
प्रकृति में मानवकृत पर्यावरण की स्थिति जो भी मानव के दोषपूर्ण कृत्यों के बाद रह गई है उसे संरक्षण प्रदान किया जाए। अपरिवर्तनीय (non-renewal) संसाधनों को कम से कम छेड़ा जाए तथा परिवर्तनीय (renewal) संसाधनों का आवश्यकतानुसार ही उपयोग हो। मनुष्य को धार्मिक मान्यताओं, सांस्कृतिक परम्पराओं और प्राचीन प्रथाओं के माध्यम से सही कार्य करने हेतु प्रेरित किया जाना चाहिए। उन्हें यह बताना भी बहुत जरूरी है कि पर्यावरण संरक्षण हेतु हम तथा हमारी भविष्य की पीढ़ी का जीवन अत्यन्त निकट से जुड़ा है।
2. पर्यावरण सुरक्षा
संरक्षित की गई स्थिति की सुरक्षा तथा उसकी आवश्यक देखभाल इस पद के अन्तर्गत आता है। पर्यावरण को हर स्थिति में विनाश से बचाना है तथा प्रकृति के विविध क्रिया-कलापों को अबाध गति से चलते रहने हेतु प्रयत्नशील रहना है।
3. प्रदूषण की रोकथाम
वायु, जल, भूमि तथा ध्वनि प्रदूषण आदि से जनमानस अत्यन्त त्रस्त है। हमें वे उपाय करने हैं जिससे भविष्य में हर क्षेत्र के प्रदूषण को रोका जा सके। अवशिष्ट पदार्थों के निस्तारण की समस्या का हल भी खोजना अत्यन्त आवश्यक हो गया है क्योंकि अप्रत्यक्ष रूप से यह भी प्रदूषण ही फैला रहे हैं। प्रदूषण को रोकने हेतु राष्ट्रीय तथा राज्य स्तर पर बनाए गए कानूनों की सख्ती से पालन करनी और करानी चाहिए।
4. पर्यावरण सुधार
जितना भी पर्यावरण विकृत हो गया है अथवा उसका ह्रास हो रहा है उसे सुधारने हेतु भी व्यावहारिक प्रयास किए जाने की आवश्यकता है। घने जंगल लगाए जाएँ, वन्य जीवों की सुरक्षा का प्रावधान हो, जल स्त्रोतों की स्वच्छता बनाई रखी जाए माइनिंग (mining) से खराब स्थलों को मनोरंजन स्थल के रूप में विकसित किया जाए आवासीय कॉलोनियों अथवा कस्बे व गाँव के बीच बन गए गन्दगी केन्द्र (dumping pits) को बच्चों के खेलने के मैदानों में परिवर्तित किया जाए, स्वचलित वाहनों का उपयोग कम किया जाए भूमि क्षरण रोकने की व्यवस्था हो, इत्यादि ।
5. पर्यावरण के प्रति जन जागृति
साधारण जन-मानस को पर्यावरण की विभिन्न समस्याओं से अवगत कराकर उनसे हो सकने वाले दुष्परिणाम की जानकारी दी जानी चाहिए। इन समस्याओं के निराकरण हेतु उनकी भूमिका के महत्व को भी समझाना होगा। स्वयंसेवी संस्थाओं के महत्वपूर्ण योगदान को समझने और समझाने की आवश्यकता है।
6. पर्यावरण शिक्षा की आवश्यकता एवं औचित्य
पर्यावरण प्रदूषण की विश्वव्यापी समस्या का समाधान केवल योजना निर्माण और उसकी क्रियान्वयन से ही सम्भव नहीं है। इस हेतु व्यवस्थित रूप से पर्यावरण शिक्षा का प्रावधान प्रत्येक स्तर के लोगों के लिए करना चाहिए चाहे वह विद्यार्थी हो अथवा कार्यरत कर्मचारी और अधिकारी, चाहे वह शिक्षित हो अथवा अशिक्षित। सभी लोगों के लिए आवश्यक सामग्री का चयन तथा उसे प्रदान करने का तरीका अत्यन्त व्यावहारिक बनाना चाहिए।
7. विदेशों में पर्यावरण संरक्षण हेतु अपनाए गए तरीकों की नवीनतम जानकारी
पर्यावरण की समस्या विश्वव्यापी है और अनेक देशों ने जिनमें इंग्लैण्ड, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, जर्मनी, स्वीडन, फ्रान्स, जापान, कनाडा आदि शामिल है, इससे काफी सीमा तक छुटकारा पा लिया है। वे विश्व तापन (Global Warming) तेजाबी वर्षा (Acid Rains) और ओजोन परत का क्षय (Ozone Layer Depletion) आदि समस्याओं के समाधान हेतु विज्ञापन तथा तकनीकी का सहारा लेकर प्रयत्नशील हैं। इन देशों की कार्य-योजनाओं का अध्ययन हमें अपने लक्ष्य निर्धारण तथा क्रियान्वयन में बहुत सहायक हो सकते हैं।
8. सरकार की नीति व कार्यविधि
वर्तमान की आवश्यकता को वरीयता देते हुए सरकार को पर्यावरण की नीति बनानी चाहिए तथा इस प्रकार की कार्यविधि अपनाई जानी चाहिए जिससे वांछनीय परिणाम प्राप्त हो सकें। समस्त अधिकारी / कर्मचारियों को ऐसे स्पष्ट निर्देश होने चाहिए, जिससे पर्यावरण विकृति के किसी कार्य से वह समझौता न करें। केवल महत्वाकांक्षी योजना को निरुत्साहित कर व्यवहारिक कार्य पक्ष को प्रधानता देना आवश्यक है। अन्य शब्दों में “विश्व स्तर पर सोचो, लेकिन स्थानीय परिप्रेक्ष्य में काम करो।”
9. पर्यावरण आचार संहिता का विकास करना
पर्यावरण की समस्या मानव द्वारा ही उत्पन्न हुई है विशेषतः उनकी अधिक आबादी और गलत क्रियाकलापों द्वारा। अतः कटु सत्य यही है कि इनका हल भी मनुष्य द्वारा ही किया जाना चाहिए यह उनका नैतिक दायित्व है और कर्त्तव्य भी। पर्यावरणीय आचार-संहिता का निर्माण किया जाना चाहिए और उसका कठोरता से पालन करना चाहिए।
10. पर्यावरण के क्षेत्र में प्रशिक्षित व्यक्तियों की आवश्यकता
पर्यावरण के क्षेत्र में हर स्तर पर उच्च अधिकारी से लेकर निम्न कर्मचारी तक, प्रशिक्षित व्यक्तियों के उपलब्ध न हो पाने कारण पर्यावरण संबंधी योजनाओं का सफलतापूर्णक क्रियान्वयन नहीं हो पा रहा है। उचित प्रकार से क्रियान्वयन का मानीटरिंग भी आवश्यक है पर्यावरण को प्रत्येक विभाग के कार्यों से जोड़ना चाहिए तभी एक सही प्रस्तुतीकरण सम्भव है।
11. पर्यावरण दावों के लिए विशेष न्यायालय
पर्यावरण को विकृत करने वाले व्यक्ति अथवा संस्थान को तत्काल विशेष न्यायालयों के माध्यम से पर्यावरण कानून के अन्तर्गत सजा होनी चाहिए। इससे अन्य लोगों को भी अपने आप को सुधारने का अवसर मिलेगा।
12. जनहित याचिकाओं को प्रोत्साहन
पर्यावरण के संकट से सताए गए व्यक्ति अकेले कोई कदम उठाने स्वयं को असहाय पाते हैं अतः न्यायालयों द्वारा व्यक्ति, समुदाय, संस्था अथवा अन्य किसी प्रकार से उठाए गए प्रकरणों को जनहित मानकर स्वीकार कर उन्हें प्रोत्साहन देना चाहिए।
13. पर्यावरण के क्षेत्र में शोध
विज्ञान और तकनीकी की निरन्तर प्रगति ने पर्यावरण क्षेत्र को नई दिशाएँ दी हैं तथा कई समस्याओं को हल करने की पेशकश भी की है इन्हें इसलिए प्रयोग में नहीं लिया जा सका है क्योंकि वह महँगी है। शोध के माध्यम से कम व्यय वाली तकनीकों का विकास किया जाना चाहिए।
14. पर्यावरण साहित्य का निर्माण और उसका वितरण
ऐसे पर्यावरण साहित्य का निर्माण किया जाना अपेक्षित है, जो सरल, स्पष्ट, सही और लोगों को ग्राह्य हो। मूलभूत बिन्दुओं की स्पष्टता से ही पर्यावरण की आंतरिक स्थिति का ज्ञान जन-जन को दिया जा सकता है। यह व्यवस्था भी साथ में आवश्यक है कि इस साहित्य का व्यापक प्रसार हो।
15. मीडिया की प्रभावी भूमिका
समाचार पत्र-पत्रिकाएँ, आकाशवाणी और दूरदर्शन की भूमिका बहुत ही व्यापक और स्पष्ट रूप से नियत की जानी चाहिए। पर्यावरण के किसी भी क्षेत्र की जानकारी प्रस्तुत करते समय उससे पाठक, श्रोताओं और दर्शकों को भय से भी बचाना चाहिए तथा उनके मनोबल को बढ़ाना चाहिए। उल्लेखनीय है कि मीडिया द्वारा अनौपचारिक शिक्षण मनुष्य की मनोवृत्तियों में ऐसा परिवर्तन ला सकता है जिससे वह पर्यावरण की विकृति को दूर करने तथा पर्यावरण सुधार में अपनी महती भूमिका निभा सकें।
16. बढ़ती आबादी पर नियन्त्रण
पर्यावरण ही नहीं बल्कि लगभग सभी समस्याओं के मूल में कारण बढ़ती आबादी है, जिस पर नियन्त्रण करना बहुत कठिन हो रहा है। इसी वजह से प्राकृतिक संसाधनों का अधिक उपयोग, मानवोपयोगी वस्तुओं की अधिक आवश्यकता, प्रदूषण में वृद्धि और अन्ततः पर्यावरण का ह्रास हो रहा है। किसी भी प्रकार इसे नियन्त्रित करने से ही पर्यावरणीय समस्याओं की कमी हो सकती है।
स्वच्छ पर्यावरण की सुखद कल्पना :-
अब पर्यावरण की गुणवत्ता अथवा अच्छे और स्वच्छ पर्यावरण की बात करें। एक अच्छा पर्यावरण क्या है? इस पर लोगों के अनेक मत हो सकते हैं, जो इस बात पर निर्भर करता है कि उनके सोचने का, रहने का और यहाँ तक कि खाने-पीने और काम करने का तरीका क्या है ? फिर भी सभी इस बात में एकमत होंगे कि कूड़ा-करकट, धूल, रोग, प्रदूषण, शोर, कलह, गरीबी, सभी पर्यावरण की गुणवत्ता को कम करते हैं। साथ ही अधिक भीड़, तनाव, डर चिन्ताएँ और अस्वस्थता भी जीवन की सुन्दरता को क्षति पहुँचाते है।
अतः अच्छा जीवन जीने के लिए इन दोनों प्रकार की अनचाही बातों से दूर रहना आवश्यक है। हम यही स्वीकार कर सकते हैं कि जीवन की गुणवत्ता का ठोस आधार पर्यावरण की गुणवत्ता ही हो सकती है। अतः शुद्ध पानी, स्वच्छ भोजन, शुद्ध वायु, साफ-सुथरा आवास और बिना किसी प्रदूषण के वातावरण एक अच्छे पर्यावरण के आवश्यक घटक हैं. लेकिन जीवन के लिए मानसिक रूप से स्वस्थ होना और प्रकृति से विरासत में मिले विभिन्न पदार्थों का ठीक से उपभोग करना भी उतना ही आवश्यक है।