उच्चतम न्यायालय की आवश्यकता एवं महत्व :
प्रत्येक देश के अच्छे संविधान का मानदण्ड उसकी न्यायपालिका होती है। जिस देश में न्यायपालिका सशक्त नहीं होगी, वहाँ सुदृढ़ शासनतन्त्र नहीं होगा। संघीय प्रणाली में एक सुदृढ़ एवं स्वतन्त्र न्यायपालिका परमावश्यक है क्योंकि इस प्रणाली में अनेक बार ऐसे मौके आते हैं, जबकि संघ तथा राज्यों के मध्य विवाद उत्पन्न होते हैं। अतः ऐसी अवस्था में एक स्वतन्त्र एवं शक्तिशाली न्यायपालिका ही दोनों के मध्य उत्पन्न हुए विवाद को सुलझाकर विधान की रक्षा करती है।
न्यायपालिका के इसी महत्व को दृष्टिगत रखते हुए भारतीय संविधान में भी एक स्वतन्त्र उच्चतम न्यायलय की व्यवस्था की गयी है। उच्चतम न्यायालय की आवश्यकता एवं महत्व को संक्षेप में निम्न प्रकार स्पष्ट किया जा सकता है-
1. संविधान की रक्षा
लोकतन्त्र में शासन सत्ता राजनीतिक दलों के हाथ में होती है। जो राजनीतिक दल बहुमत में होता है, वह नियन्त्रण के अभाव में संविधान का प्रयोग अपने दलगत स्वार्थ के लिए भी कर सकता है। उच्चतम न्यायालय ही संविधान को हानि होने से बचा सकता है।
2. नागरिकों की स्वतन्त्रता तथा अधिकारों की रक्षा
लोकतन्त्र में सभी नागरिकों को स्वतन्त्र तथा समानता का अधिकार दिया जाता है। कुछ देशों में संविधान के व्यक्तियों को मूल अधिकार प्रदान किये जाते हैं। उदाहरण के लिए, भारत तथा अमेरिका में इन अधिकारों की रक्षा स्वतन्त्र न्यायपालिका ही कर सकती है। यदि न्यायपालिका स्वतन्त्र नहीं है, वह कार्यपालिका अथवा विधायिका के प्रभाव में है तो यह आशा नहीं की जा सकती कि व्यक्ति के अधिकारों की रक्षा हो सकेगी।
3. निष्पक्ष न्याय करना
उच्चतम न्यायालय निष्पक्ष न्याय तभी कर सकेगा, जबकि वह कार्यपालिका तथा विधायिका के नियन्त्रण से मुक्त हो। यदि किसी देश में उच्चतम न्यायालय स्वतन्त्र नहीं है तो वहाँ हम निष्पक्ष न्याय की कल्पना नहीं कर सकते। वहाँ पर न्यायाधीश दबाव में काम करेंगे। यदि किसी लोकतान्त्रिक देश में लोगों को न्याय नहीं मिलता है या उनके हथियारों का हनन होता है तो जनता में उस व्यवस्था के प्रति विद्रोह की भावना पैदा होगी। इसके परिणामस्वरूप देश में अशान्ति तथा अव्यवस्था पैदा होगी इससे लोकतन्त्र का भविष्य अन्धकारमय हो सकता है। अतः लोकतन्त्र की सफलता निष्पक्ष न्याय व्यवस्था के ऊपर है।