एस. नारायण पिल्लई बनाम दि स्टेट ऑफ त्रावणकोर कोचीन वाद
मौलिक अधिकारों पर युक्ति युक्त प्रतिबन्ध आरोपित करने या मौलिक अधिकारों पर लगाए जाने वाले प्रतिबन्धों को स्पष्ट करने के लिए निदेशक तत्वों को आधार बना कर निर्णय देने में एस. नारायण पिल्लई बनाम दि स्टेट ऑफ त्रावणकोर कोचीन का वाद प्रमुख रूप से महत्वपूर्ण है। इस वाद में नागरिकों को अनु० 19 (1)(g) के अन्तर्गत प्राप्त किसी वृत्ति उपजीविका व्यापार या कारोबार के अधिकार प्राप्त है जिन पर प्रतिबन्धों की वैधता का प्रश्न, इस वाद में संदर्भित था।
त्रावणकोर कोचीन का आबकारी अधिनियम जिसके द्वारा निदेशक सिद्धान्तों के अनु० 47 के अनुरूप प्रतिषेध आरोपित किया गया था, इस वाद में, न्यायालय के समक्ष लाया गया। संविधान के अनु० 47 के अनुसार –
“राज्य अपने लोगों के पोषाहार स्तर और जीवन स्तर ऊँचा करने और लोक स्वास्थ्य के सुधार को अपने प्राथमिक कर्तव्यों में मानेगा और राज्य, मादक पेयों और स्वास्थ्य के लिए हानिकारक औषधियों के उपभोग का प्रतिषेध करने का प्रयास करेगा।”
इस वाद में न्यायालय ने मौलिक अधिकारों की व्याख्या करते हुए निदेशक तत्वों का स्पष्टतः सहारा लिया एवं अपने निर्णय में स्वीकार किया कि – “मद्य निषेध यद्यपि एक निदेशक सिद्धान्त है जो अनु० 19 (1) (g) पर उल्लिखित कारोबार या व्यापार की समानता पर युक्तियुक्त प्रतिबन्ध लगाता है।”
इस हेतु न्यायाधीश शंकरन के शब्द उद्धत करना प्रासंगिक होगा, जिसके अन्तर्गत उन्होनें निदेशक तत्वों को ही आधार मानकर निर्णय दिया, उनके ही शब्दों में –
“निर्बंन्धन की वैधता के विषय में राज्य के निदेशक सिद्धान्तों में निहित मद्य निषेध के तथ्य को ध्यान में रखना होगा। संविधान में लोक स्वास्थ्य, नैतिकता, सुरक्षा एवं लोक व्यवस्था को स्थान दिया गया है। मद्य निषेध को भी इन्ही उद्देश्यों के सन्दर्भ में देखना होगा। यदि मादक पेयों पर प्रतिबन्ध उसके कमी किए जाने के उद्देश्य से लगाया गया है तो यह उचित दिशा में उठाया गया सही कदम है। मद्य निषेध के लिए यह वैध एवं आवश्यक है।”
इस प्रकार इस वाद में उच्च न्यायालय ने निदेशक तत्वों को महत्वपूर्ण मानते हुए, आरोपित प्रतिबन्धो (प्रतिषेध) को वैध ठहरा दिया, तथा निर्णीत किया कि ये प्रतिबन्ध संविधान के अनुच्छेद 19 (1) (g) के विरूद्ध नहीं हैं।