लोकगीत का अर्थ, परिभाषाएं, विशेषताएं एवं महत्व (Lokgeet ka Arth, Paribhasha, Visheshata)

लोकगीत का अर्थ :

लोकगीत शब्द अंग्रेजी के ‘फो़क सांग’ (Folk Song) का पर्याय रूप माना गया है। वृहद भारती शब्दकोश में लोकगीत का अर्थ है, गाँव या देहातों में गाये जाने वाले जन साधारण के वे गीत जो परम्परागत रूप से किसी जन समाज में प्रचलित रहते हैं।

लोक और गीत के मेल से लोकगीत का निर्माण हुआ है। आधुनिक सन्दर्भों में ‘लोक’ शब्द का अर्थ जन सामान्य से लिया जाता है। लोकगीत में गीत शब्द की व्युत्पत्ति संस्कृत के ‘गे’ धातु में ‘क्त’ प्रत्यय लगाने से हुई है, जिसका अर्थ गाया हुआ, या आलापा हुआ।” अर्थात् वह पद्य रचना जो गेय हो। स्वर और लय तालबद्ध शब्दों की सुन्दर रचना को गीत कहते हैं। इस प्रकार लोक में प्रचलित ऐसा कोई भी गीत जो मनुष्य जाति को परम्परागत रूप से विरासत में मिला हो, लोकगीत कहलाता है।

डॉ. अनिता शुक्ला के अनुसार “लोकगीत का अर्थ है- ‘लोक के गीत’ अर्थात् जिन गीतों में लोक अथवा आम जनमानस की संवेदना प्रस्फुटित होती है, उसे लोकगीत कहते हैं।”

लोकगीत में स्वर, लय, ताल के साथ गीत के बोल या शब्द और धुन आदि होते हैं। कुछ लोग अपनी क्षेत्रीय बोली में रचना कर उसे लोकधुन में संगीतबद्ध करते हैं और कुछ लोग पहले धुन बनाकर उसमें शब्दों की रचना कर देते हैं। फिर भी उन लोकगीतों में आधुनिकता का प्रभाव स्पष्ट दिखाई देता है। किन्तु कुछ के मुख से शब्द और स्वर दोनों एक मनोभाव के साथ अनायास मुखरित होता है प्रायः पारम्परिक लोकगीतों की यही विशेषज्ञता है। लोकगायक अपने सुख-दुःख के समय अपने अनुभवों को लोकगीत के माध्यम से प्रकट करता है।

लोकगीत की परिभाषाएं :

भारतीय संस्कृति का आधार लोकजीवन है और लोकगीतों में नारी जीवन की सहज अभिव्यक्ति होती है। लोकगीतों के द्वारा प्राचीन इतिहास, संस्कृति एवं परंपराओं का परिचय प्राप्त होता है। अतीत वर्तमान की कुंजी है, जिसमें समाज बहुत कुछ सीखता है। अतीत के द्वारा ही वर्तमान और भविष्य का निर्धारण होता है। लोकगीतों में तीनों काल का इतिहास गाथा संचित रहता है, जो समाज में स्वतः ही उत्पन्न होकर पीढ़ी-दर-पीढ़ी परम्परागत रूप से अभिव्यक्त होता है।

मानव जीवन का इतिहास जितनी पुरानी है उतनी पुरानी लोकगीत भी है। कालान्तर में रचना काल, स्थान, वह किन परिस्थितियों में गढ़ा गया है सब कुछ लोक स्मृति से मिट जाता है। वस्तुतः यही लोकगीत का सार्वभौम स्वरूप और उसकी मौलिकता है। यद्यपि लोकगीतों का जन्म कहाँ, कब, कैसे, किसके द्वारा हुआ है, जैसे प्रश्नों के उत्तर प्रमाणिक रूप से नहीं है।

भारतीय और विदेशी विद्वानों द्वारा लोकगीत के परिभाषा और उत्पत्ति के सम्बन्ध में अपने-अपने मत प्रकट किये हैं-

श्री देवेन्द्र सत्यार्थी के अनुसार – “कहाँ से आते हैं इतने गीत ? स्मरण-विस्मरण की आँख मिचौली से। कुछ अट्टहास से। कुछ उदात्त हृदय से।”

जगदम्बा प्रसाद पाण्डेय के अनुसार – “लोक में प्रचलित, लोक द्वारा रचित एवं लोक के लिए लिखे गये गीतों को लोकगीत कहा जा सकता है। उसका रचनाकार अपने व्यक्तिव को लोक समर्पित कर देता है।”

डॉ. चिन्तामणि उपाध्याय के अनुसार लोकगीत की परिभाषा इस प्रकार है – “सामान्य लोकजीवन की पार्श्वभूमि में अचिन्त्य रूप से अनायास ही फूट पड़ने वाली मनोभावों की लयात्मक अभिव्यक्ति लोकगीत कहलाती है।”

डॉ. विद्या चौहान के अनुसार – “लोकभाषा के माध्यम से स्वर और लय के संगीतात्मक आवरण में लिपटी हुई सामान्य और हार्दिक रागाराग से पूर्ण भावानुभूतियाँ लोकगीत कहलाते हैं।”

डॉ. हनुमंत नायडू के अनुसार – “लोकगीत स्वर माधुर्य से युक्त, एक अधर से दूसरे अधर पर थिरकने वाली लोकहृदय की वह सहज अभिव्यक्ति है, जिसमें जीवन और संस्कृति की सम्पूर्ण व्याख्या, परम्परा एवं इतिहास का हाथ पकड़कर चलती है।”

इनसाइक्लोपीडिया ब्रिटेनिका में लिखा है – “The spontaneous music has been called folk songs” (आदिमानव के उल्लास संगीत को ही लोकगीत कहते हैं।)

डॉ. सदाशिव फड़के के मत को उद्धृत करते हुए जगदम्बा प्रसाद पाण्डेय ने उल्लेख किया हैं- “शास्त्रीय नियमों की विशेष परवाह न करके सामान्य लोक व्यवहार के उपयोग में लाने के लिए मानव अपने आनंद की तरंग में जो छन्दोबद्ध वाणी सहज उद्भूत करता है, वही लोकगीत है।”

विलियम ग्रिम– “A Folk song composes itself” (लोकगीत तो स्वतः जन्मा है।)

कुमार गन्धर्व – “लोकगीतों का निर्माण स्वाभाविक है।”

महात्मा गाँधी – “लोकगीत समूची संस्कृति के पहरेदार हैं।”

बसन्त निर्गुणे के अनुसार – “लोक गीत किसी जाति, समूह और देश की लोक संस्कृतियों के परिचायक होते हैं, उनमें जीवन की प्रत्येक धड़कनों का एहसास देखा जा सकता है।”

कृष्णदेव उपाध्याय – “भारत में लोकगीतों तथा लोकगाथाओं की परम्परा अत्यन्त प्राचीन काल से चली आ रही है। हमारे सबसे प्राचीन ग्रन्थ ऋग्वेद में लोकगीतों तथा लोकगाथाओं का उल्लेख पाया जाता है। संस्कृत साहित्य में जिन गाथाओं का उल्लेख स्थान-स्थान पर उपलब्ध होता है वे ही लोकगीतों के पूर्व प्रतिनिधि है।”

प्यारेलाल गुप्त – “लोकगीतों में हमारा जातीय वैभव, अतीत कालीन घटनाएँ, प्रकृति के साथ जीवन का लगाव, पशु-पक्षी प्रेम, मन की लालसाएँ, सभी उभार के साथ भर दी गई है।”

विभिन्न विद्वानों के द्वारा लोकगीत के संबंध में दी गई परिभाषा एवं मतों के आधार पर यह कहा जा सकता है, कि लोकगीतों की परम्परा बहुत ही प्राचीन है। जिसकी विकास यात्रा मानव जीवन के इतिहास के साथ आरम्भ हुआ होगा? लोकगीत में केवल आदिम जाति का वस्तु विशेष न होकर पूरे मानव समाज के लोक जीवन की समस्त सुख-दुःख, रूदन क्रिया एवं उसके हर्ष उल्लास की कहानी चित्रित होती है। यह जन-सामान्य की नैसर्गिक भावनाओं की उन्मुक्त संगीतात्मक अभिव्यक्ति है। लोकगीत एक सामूहिक रचना है, जिसके रचयिता अज्ञात होते हैं तथा मौखिक परम्परा से एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी संचरित होते हैं और यही सामूहिक चेतना उसे व्यापकत्व प्रदान करती है।

उक्त विद्वानों के परिभाषाओं को आधार मानते हुए निष्कर्ष स्वरूप शोधार्थी द्वारा लोकगीत को परिभाषित करने का प्रयास किया गया है, जो इस प्रकार है-

“जनसामान्य के मुख से मुखरित होने वाले लयात्मक, छन्दोंबद्ध वाणी जो श्रुति एवं वाचिक परम्परा से मानव के इतिहास काल से लेकर आज तक पीढ़ी-दर-पीढ़ी हस्तांतरित हो रहे हैं और जिनका रचयिता अज्ञात हो तथा ज्ञान का आधार शास्त्र नहीं, वही लोकगीत है।”

लोकगीतों की विशेषताएं :

लोक संस्कृति का स्वाभाविक चित्रण लोकगीतों में देखने को मिलता है। लोकजीवन में लोकगीतों का प्रचार-प्रसार व्यापक रूप से हुआ है, जिन्हें पूरे वर्ष भर ऋतुओं, उत्सवों और विभिन्न प्रसंगों में गाये जाते हैं। लोकगीतों के वर्ण्य-विषय अधिक होने के कारण इनकी संख्या अनगिनत है। इन गीतों की विविधता और उसके स्वरूप आदि के आधार पर लोकगीतों की निम्नलिखित विशेषताएं परिलक्षित होती है-

1. लोकगीत के रचनाकार अज्ञात होते हैं। वह सामूहिक रचना होती है।

2. कोई-कोई गीत की निर्मित प्रक्रिया एकल भी होती है।

3. लोकगीतों में नारी प्रधान गीतों की संख्या अधिकतम् है। उनके विविध त्यौहार, उत्सव, विवाहगीत इस दृष्टि से उल्लेखनीय है।

4. लोकगीतों में आंचलिक जीवन का चित्रण समाहित होता है।

5. लोकगीत शास्त्रों के बन्धनों से मुक्त होती है।

6. लोकगीतों की शैली सहज होती है।

7. लोकगीत गायन के लिए कोई निर्धारित समय, स्थान आदि की आवश्यकता अधिकांशतः नहीं होती है। जब मन में उमंग उठती है, लोक गीत के बोल मुँह से फूट पड़ते हैं।

8. लोकगीतों की रचना मानव के इर्द-गिर्द दैनिक जीवन से जुड़ी घटनाओं, आवश्यकताओं आदि विषयों से सम्बन्धित होती है, जो सादी एवं सरल होती है।

9. लोकगीतों की धुन में सुगम एवं स्वर सीमित होती है।

10. लोकगीत संस्कार एवं परम्परा के वाहक होते हैं।

11. लोकगीत लोक चेतना के संवाहक होते हैं।

12. लोकगीत मौखिक एवं वाचिक परम्परा से एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक हस्तगत होते रहते हैं।

13. लोकगीतों में बारहमासी सुगन्ध होती है।

14. लोकधुनों को कायम रखने के लिए लोकगीतों में निरर्थक शब्दों का प्रयोग रूचि की अनुकूलता है।

15. लोकगीतों के माध्यम से संस्कार, रीति-रिवाज, रहन-सहन एवं लोक व्यवहार की जानकारी प्राप्त होता है।

16. लोकगीत व्यक्ति विशेष की सम्पत्ति न होकर सामाजिक धरोहर होती है।

लोकगीतों का महत्त्व :

भारतीय संस्कृति का मूल स्वरूप पारम्परिक लोकगीतों में व्याप्त है। इस देश में लोकगीतों की परम्परा अत्यन्त समृद्ध है। किसी भी अंचल के संस्कृति से सम्बन्धित विभिन्न आयामों को उजागर करने में लोकगीत महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। सभी क्षेत्र के लोकगीत अपने क्षेत्रीय विशेषताओं से परिपूर्ण होता है, जिनमें स्थानीय बोली-भाषा, स्थान, ऐतिहासिक व्यक्तियों के नाम एवं उनके योगदान का वर्णन मिलता है। लोकजीवन के प्रत्येक पहलुओं का यथार्थ चित्रण लोकगीत में सहज मिलते हैं। जन्म से लेकर मृत्यु पर्यन्त तक अनेक ऐसे अवसर होते हैं, जिनमें लोकगीत गाये जाने की परम्परा है। जन्मोंत्सव के गीतों से हमारी प्रसन्नता बढ़ जाती है। विवाह गीतों में एक ओर खुशियाँ मनाई जाती है, तो दूसरी ओर बेटी की बिदाई का करूण स्वर गूंजते हैं, जो दुःख के साथ-साथ आनंद का वातावरण निर्मित करता है। बिदाई गीत वधु और उसके परिवार के दुःख हल्का करने में सहायक सिद्ध होता है। मृत्यु संस्कार के अवसर पर कहीं-कहीं लोक भजन गाते हैं, जो कि शोकाकुल परिवार के पीड़ा हरने में मदद करता है। श्रम करते समय लोक गीत गाया जाता है। इससे मन प्रफुल्लित रहता है, जिसके सहारे श्रमी लोग बड़े से बड़ा कार्य कर लेते हैं। यात्रा गीत, लम्बी दूरी तय करने पर भी थकान महसूस नहीं होने देती। ये गीत हमें नई स्फूर्ति प्रदान करते हैं। लोक गीत केवल मनोरंजन के साधन मात्र नहीं है, बल्कि सामाजिक चेतना को जागृत करने, मनोबल बढ़ाने, साहसिक कार्यों को प्रोत्साहित करने तथा समाज के नैतिक उत्थान में मुख्य भूमिका निभाते हैं।

लोक गीत, लोक संगीत का एक अभिन्न अंग है। वस्तुतः लोक गीतों का शास्त्रीय दृष्टि से भी बहुत महत्त्व है। लोक गीत से सम्बन्धित विषय-सामग्री शोध कार्य के लिए अक्षय भण्डार है। इनके अध्ययन से अतीत एवं वर्तमान के अनेक रहस्य उद्घाटित होंगे। लोकगीतों के द्वारा किसी भी क्षेत्र के सामाजिक, आर्थिक, धार्मिक, राजनैतिक एवं सांस्कृतिक स्थिति का सूक्ष्म अवलोकन किया जा सकता है। लोक जीवन के आध्यात्मिक, दार्शनिक तथा लोक व्यवहार सम्बन्धी विचार धाराओं का पर्याप्त झलक लोकगीतों में देखने को मिलता है। प्राचीन परम्परा का मूल स्वरूप ज्ञात करने में ये गीत महत्त्वपूर्ण स्थान रखते हैं। लोकगीत की सहायता से तात्कालिक स्थितियों के दर्शन किये जा सकते हैं। इन गीतों में दैनिक जीवन के विभिन्न क्रिया-कलापों का वर्णन मिलता है। इनमें हर्षोल्लास, प्रेम-ईर्ष्या, विरह-वेदना, जीवन-मरण, आशा-निराशा आदि की अभिव्यंजना रहती है। ये गीत स्वरों के मर्मस्पर्शी और स्वरों की अपूर्व व्यंजना शक्ति के कारण अत्यंत प्रभावशाली है।

लोकगीत जनसामान्य के हृदय का उद्‌गार हैं, जो मन की भावनाओं की सांगीतिक अभिव्यक्ति हैं। इनमें मानवीय मूल्यों एवं आदर्शों का संस्कार रूप में विकसित करने का क्षमता निहित होती है। लोकगीत में तात्कालीन संस्कृति और सभ्यता का प्रभाव परिलक्षित होता है। आधुनिक युग में यह कलाकारों के जीवन-यापन का साधन बन चुका है। व्यवसायिकता के कारण कहीं-कहीं आधुनिकता का प्रभाव दिखलाई देता है। लेकिन कुछ हद तक मौलिकता को बचाये रखने में पारम्परिक लोकगीतों का महत्त्वपूर्ण योगदान है। लोकगीत समाज में फैले बुराइयों को दूर करने में सहयोग प्रदान करता है। यह लोगों का मानसिक थकान मिटाकर सुख और शांति देता है। लोकगीत लोकजीवन का वह अनमोल पूँजी है, जो हमारी संस्कृति और परम्परा को संरक्षित कर आने वाले पीढ़ियों तक संचारित करता है।

The premier library of general studies, current affairs, educational news with also competitive examination related syllabus.

Related Posts

लोक (Folk) से तात्पर्य, अर्थ एवं परिभाषाएं (Folk ka Arth, Paribhasha)

आधुनिक काल में विविध सन्दर्भों में व्यवहारिक तौर पर ‘लोक‘ शब्द का प्रयोग अनेक बार होता है। बल्कि यह कहना बिल्कुल समीचीन होगा कि लोक शब्द जन-मानस…

# बस्तर का ऐतिहासिक दशहरा पर्व : छत्तीसगढ़ (Bastar Ka Dussehra Parv)

बस्तर का ऐतिहासिक दशहरा विभिन्न विधि-विधानों के संगम का पर्व है। इस पर्व के प्रत्येक विधि-विधान की अपनी ऐतिहासिकता है, जो स्वयमेव ही इस पर्व को ऐतिहासिक…

छत्तीसगढ़िया सबले बढ़िया : एक पहचान, एक अभिमान (Chhattisgarhiya Sable Badhiya)

“छत्तीसगढ़िया सबले बढ़िया” – ये सिर्फ एक नारा नहीं, बल्कि ये छत्तीसगढ़ के लोगों के दिल की आवाज़ है, उनकी पहचान है। ये वो जोश है जो…

# छत्तीसगढ़ के प्रमुख लोक गाथा, कथाएं एवं लोक नाट्य | Folk Tales And Folk Drama of Chhattisgarh

छत्तीसगढ़ के लोक संस्कृति में सृष्टि के रहस्यों से लेकर प्राचीन तत्त्वों एवं भावनाओं के दर्शन होते रहे हैं। अलौकिकता, रहस्य, रोमांच इसकी रोचकता को बढ़ाते हैं।…

# छत्तीसगढ़ के प्रमुख लोक गीत | Chhattisgarh Ke Lok Geet

छत्तीसगढ़ी लोक गीत : किसी क्षेत्र विशेष में लोक संस्कृति के विकास हेतु लोकगीत/लोकगीतों का प्रमुख योगदान होता है। इन गीतों का कोई लिपिबद्ध संग्रह नहीं होता,…

# छत्तीसगढ़ के प्रमुख लोक नृत्य | Chhattisgarh Ke Lok Nritya

छत्तीसगढ़ के प्रमुख लोक नृत्य : लोक नृत्य छत्तीसगढ़ के निवासियों की अपनी जातीय परंपरा एवं संस्कृति का परिचायक है। छत्तीसगढ़ के अनेक लोकगीतों में से कुछ…

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *