शिक्षण कला में दक्षता प्राप्त करने के लिए विषयवस्तु के विस्तृत ज्ञान के साथ-साथ शिक्षण सिद्धान्तों का ज्ञान होना आवश्यक है। शिक्षण सिद्धान्तों के समुचित उपयोग के लिए मनोवैज्ञानिकों एवं शिक्षाशास्त्रियों, जैसे-कॉमेनियस (Comenious) और हरबर्ट स्पेन्सर (Herbert Spencer) आदि ने अपने अनुभवों के आधार पर शिक्षण के कुछ सामान्य नियम निर्धारित किए थे, ताकि शिक्षण को अधिक प्रभावशाली बनाया जा सके और छात्र अधिक सीख सकें। इन्हें ही बाद में शिक्षण सूत्र (Maxims of Teaching) की संज्ञा दी गई है। शिक्षण सूत्र शिक्षण में शिक्षक की सहायता करते हैं कि शिक्षण कब और किस प्रकार किया जाय, जिससे छात्र अधिक ज्ञान अर्जित कर लाभान्वित हो सकें।
रेमाण्ट के अनुसार, “शिक्षण सूत्र पथ प्रदर्शित करते हैं, जिसमें सिद्धान्त से व्यवहार में सहायता के लिए अपेक्षा की जाती है।”
इतिहास शिक्षण के शिक्षण सूत्र :
इतिहास शिक्षण में प्रयुक्त होने वाले प्रमुख शिक्षण सूत्र निम्नलिखित हैं-
- ज्ञात से अज्ञात की ओर
- सरल से जटिल की ओर
- स्थूल से सूक्ष्म की ओर
- पूर्ण से अंश की ओर
- अनिश्चित से निश्चित की ओर
- विशिष्ट से सामान्य की ओर
- अनुभव से तर्क की ओर
- विश्लेषण से संश्लेषण की ओर
- प्रकृति का अनुसरण
1. ज्ञात से अज्ञात की ओर
इस सूत्र का अभिप्राय बालक को अर्जित (ज्ञात) ऐतिहासिक ज्ञान के आधार पर नवीन (अज्ञात) ऐतिहासिक ज्ञान देने से है। इसके लिए शिक्षक को अपना पाठ प्रारम्भ करने से पूर्व यह जानना आवश्यक होता है कि वह जिस विषयवस्तु का ज्ञान बालकों को देने जा रहा है, उसके विषय में वे पहले से कितना जानते हैं ? अतः इसके आधार पर ही उन्हें नवीन ज्ञान दिया जाता है। इससे बालक सरलता से नवीन ज्ञान के साथ तादात्मय स्थापित कर लेते हैं और वे विषयवस्तु को सरलता से आत्मसात कर लेते हैं। रायबर्न एवं फोर्ज ने लिखा है- “प्रत्येक पाठ का समारम्भ बिन्दु वह होना चाहिए, जिसे बालक पहले सीख चुके हैं।”
यथा- छात्रों को स्थानीय इतिहास के आधार पर देश तथा विश्व इतिहास का ज्ञान कराया जा सकता है।
2. सरल से जटिल की ओर
इस सूत्र के अन्तर्गत बालकों को सर्वप्रथम सरल ऐतिहासिक तथ्यों या घटनाओं का ज्ञान कराया जाता है, तत्पश्चात् जटिल तथ्यों या घटनाओं का। इसके लिए विषयवस्तु को इस क्रम में विभाजित कर लिया जाता है कि पहले सरल पाठ तत्पश्चात् क्रमानुसार जटिल पाठ आवें। इस प्रकार सरल पाठों का अर्जित ज्ञान जटिल पाठों के ज्ञान के लिए आधार बन जाता है, जिससे छात्र जटिल पाठों को भी सरलता से समझ लेते हैं। इस सूत्र के अनुसार शिक्षण करने से छात्रों में आत्मविश्वास आ जाता है और छात्रों की पाठ में रुचि भी बनी रहती है।
3. स्थूल से सूक्ष्म की ओर
सीखने का एक सामान्य नियम यह है कि बालक स्थूल वस्तुओं या तथ्यों को पहले सीखता है, तत्पश्चात् सूक्ष्म वस्तुओं या तथ्यों को, यही इस सूत्र का आधार है। इस आधार पर छात्रों को प्रारम्भ में स्थूल तथ्यों या वस्तुओं का ज्ञान कराया जाता है, तत्पश्चात् सूक्ष्म वस्तुओं या तथ्यों का ज्ञान कराया जाता है। स्पेन्सर के अनुसार- “हमारे पाठ स्थूल से प्रारम्भ होकर सूक्ष्म में समाप्त होने चाहिए।”
4. पूर्ण से अंश की ओर
यह सूत्र मनोविज्ञान की अवयवीवाद (Gestalt Theory) पर आधारित है। इसके अनुसार बालक को पहले अवयवी (Whole) का ज्ञान होता है, बाद में अवयव (Part) का। अतः इस सूत्र के अनुसार छात्रों को सर्वप्रथम सम्पूर्ण तथ्य या घटना का ज्ञान कराया जाता है, तदुपरान्त उसके अंग या खण्डों का। सर्वप्रथम जब छात्र इकाई के रूप में चुने गये सम्पूर्ण पाठ को समझ लेते हैं, तो बाद में उसके खण्डों या उपभागों को समझने में उन्हें कोई कठिनाई नहीं होती है।
5. अनिश्चित से निश्चित की ओर
प्रारम्भ में बालक का ज्ञान अनिश्चित होता है। उसे किसी भी ऐतिहासिक तथ्य या घटना का निश्चित ज्ञान नहीं होता है। वह उनके विषय में स्वयं कल्पना करके अनिश्चित विचार अपने मन में बना लेता है, जिसे वह सही मान लेता है। इस सूत्र का उद्देश्य छात्रों के अनिश्चित ऐतिहासिक ज्ञान को सुनिश्चित करना है। शिक्षक ऐतिहासिक तथ्यों या घटनाओं की यथार्थ जानकारी कराकर छात्रों के अनिश्चित ज्ञान को निश्चित कर सकता है।
6. विशिष्ट से सामान्य की ओर
इस सूत्र का अभिप्राय यह है कि छात्रों को पहले ऐतिहासिक तथ्यों या घटनाओं का विशिष्ट ज्ञान कराया जाय, तत्पश्चात् उनका सामान्य ज्ञान। इसके अनुसार शिक्षक छात्रों के समक्ष पहले विभिन्न प्रकार के ऐतिहासिक तथ्यों या घटनाओं के उदाहरण प्रस्तुत करता है और स्पष्टीकरण देता है, बाद में छात्रों को सामान्य निष्कर्ष निकालने को कहता है।
7. अनुभव से तर्क की ओर
बालक प्रारम्भ में अपने अनुभवों के आधार पर सीखता है। बालक में सीखने की प्रबल जिज्ञासा होती है परन्तु अपने अपरिपक्व अनुभवों के आधार पर वह बहुत से ऐतिहासिक तथ्यों या घटनाओं को वास्तविक रूप में समझने में असफल रहता है। वह जो ज्ञान प्राप्त करता है, वह तर्क पर आधारित नहीं होता है। अतः शिक्षक उसके अनुभवों से प्राप्त ज्ञान को तर्कसंगत बनाकर स्थायी कर सकता है।
8. विश्लेषण से संश्लेषण की ओर
यह शिक्षण सूत्र इतिहास शिक्षण में विशेष उपयोगी है। इसके अनुसार ऐतिहासिक तथ्यों या घटनाओं का पहले विश्लेषण किया जाता है, फिर संश्लेषण अर्थात् किसी ऐतिहासिक तथ्य या घटना को पहले समग्र रूप में अध्ययन करते हैं तत्पश्चात् उसे खण्डों या उपभागों में विभाजित करके प्रत्येक खण्ड या उपभाग का अलग-अलग अध्ययन करते हैं। फिर अन्त में खण्डों या उपभागों को सहसम्बन्धित करके ऐतिहासिक तथ्य या घटना का समग्र रूप में अध्ययन करते हैं। इस प्रकार विश्लेषण छात्रों को किसी ऐतिहासिक तथ्य या घटना का ज्ञान प्राप्त करने में सहायता देता है और संश्लेषण उस ज्ञान को सुनिश्चित करता है।
9. प्रकृति का अनुसरण
इस सूत्र का उपयोग भी इतिहास शिक्षण के लिए उपयोगी है। बालक के स्वाभाविक विकास के लिए यह आवश्यक है कि उसे उसकी प्रकृति के अनुसार शिक्षा दी जाए। बालक को उसके शारीरिक एवं मानसिक विकास के अनुसार ही नवीन ऐतिहासिक तथ्यों या घटनाओं की शिक्षा दी जानी चाहिए। इसके विपरीत कार्य करने से बालक के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है, उसका शारीरिक एवं मानसिक विकास अवरुद्ध हो जाता है। अतः बालक की शिक्षा में प्रकृति का अनुसरण करना चाहिए।
उपर्युक्त शिक्षण सूत्रों के विवेचन से स्पष्ट है कि ये सूत्र शिक्षण को रोचक एवं प्रभावपूर्ण बनाने में शिक्षक का पथ प्रदर्शन करते हैं। शिक्षण को सुचाररूपेण आगे बढ़ाने में सहायता करते हैं। अतः प्रत्येक शिक्षक को अपने शिक्षण में इनका अधिक-से-अधिक उपयोग करना चाहिए।