भाषा का महत्व एवं आवश्यकता :
सामान्य रूप से भाषा एवं व्यक्ति के सम्बन्ध को महत्वपूर्ण रूप में नहीं देखा जाता। किसी व्यक्ति से मिलने के पश्चात् हम कहते हैं कि इस व्यक्ति का व्यक्तित्व प्रभावशाली है। लेकिन जब इस कथन का विश्लेषण किया जाय तथा यह पता लगाने का प्रयास किया जाय कि इस व्यक्ति का व्यक्तित्व इतना अधिक प्रभावशाली क्यों है? तो उसमें एक पक्ष भाषा का भी है। कबीरदास जी ने स्पष्ट कहा है कि “ऐसी वाणी बोलिये मन का आपा खोय औरन को शीतल करें आपहु शीतल होय ।” अर्थात् भाषा का प्रभाव मानव को स्वयं को ही प्रभावित नहीं करता वरन् दूसरों को भी प्रभावित करता है। अतः भाषा व्यक्ति को प्रभावित करने वाला एवं व्यक्तित्व विकास का प्रमुख पक्ष है । भाषा व्यक्ति के लिये क्यों आवश्यक है? इसको निम्नलिखित रूप में स्पष्ट किया जा सकता है-
1. प्रभावी प्रस्तुतीकरण
जब हम किसी बिन्दु विशेष पर या प्रकरण विशेष पर अपने विचारों का प्रस्तुतीकरण प्रभावी रूप में करते हैं तो उसका प्रभाव हमारे व्यक्तित्व पर पड़ता है। आज जिन बिन्दुओं पर कालिदास एवं विलियम शेक्सपियर ने अपने विचार प्रस्तुत किये हैं उन बिन्दुओं पर पहले भी विचार प्रस्तुत किये गये हैं। परन्तु इन विद्वानों के विचारों को ही प्रभावी रूप में क्यों स्वीकार किया गया तथा इनके व्यक्तित्व की ही क्यों सराहना की गयी? इसके मूल में भाषा का ही प्रभाव है। इन विद्वानों की भाषा में पूर्ण ओजस्विता एवं प्रभावशीलता का समावेश पाया जाता है।
2. साहित्यिक भाषा का प्रयोग
जब हम अपने प्रस्तुतीकरण में प्रभावी एवं साहित्यिक भाषा का प्रयोग करते हैं तो उसका प्रभाव सामान्य व्यक्तियों पर अधिक होता है क्योंकि साहित्यिक भाषा का प्रभाव सदैव हृदय तक प्रवेश करता है। सामान्य भाषा का प्रभाव हृदय तक नहीं जाता। इससे व्यक्ति का व्यक्तित्व प्रभावी रूप में स्वीकार किया जाता है। जयशंकर प्रसाद की प्रस्तुत पंक्तियाँ उनकी साहित्यिक भाषा के कारण ही चर्चा का विषय हैं; जैसे- “नारी तुम केवल श्रद्धा हो, विश्वास रजत नभ पग तल में, पीयूष स्रोत सी बहा करो, जीवन के सुन्दर समतल में।” इस कविता में भाषा सौन्दर्य एवं भाव सौन्दर्य का खजाना भरा पड़ा है।
3. शब्दों का चयन
जब किसी व्यक्ति द्वारा किसी विचार या पक्ष को प्रस्तुत करने के लिये उचित शब्दों को प्रयोग किया जाता है तो उसके व्यक्तित्व में और निखार आता है। प्रत्येक व्यक्ति उसके व्यक्तित्व से प्रभावित होता है । श्रीमती इन्दिरा गाँधी द्वारा जब देश के नाम सम्बोधित किया जाता था तो उसमें इन शब्दों का प्रयोग किया जाता था जो कि युद्ध के समय देशवासियों में देशभक्ति की भावना का संचार कर दे। इससे यह स्पष्ट होता है कि शब्दों का सही चयन व्यक्ति के व्यक्तित्व को प्रभावी बनाता है। इसलिये आज भी इन्दिरा गाँधी को एक सफल एवं कुशल व्यक्तित्व सम्पन्न महिला के रूप में स्वीकार किया जाता है।
4. आलंकारिक भाषा का प्रयोग
भाषायी परम्परा में अनेक विद्वानों द्वारा आलंकारिक भाषा का प्रयोग किया जाता है, जिसके कारण उनके व्यक्तित्व की प्रशंसा की जाती है। अनेक हिन्दी साहित्य के विद्वानों को उनकी आलंकारिक भाषा के लिये जाना जाता है। गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरितमानस में विभिन्न अलंकारों का प्रयोग करके हिन्दी भाषा साहित्य को अनुपम काव्यकृति प्रदान की तथा एक प्रभावशाली व्यक्तित्व के रूप में अपने आपको प्रस्तुत किया। इसी प्रकार अनेक विद्वानों के कृतित्व एवं व्यक्तित्व को उनकी भाषा शैली के आधार पर ही पहचाना जाता है। ये विद्वान् अंग्रेजी भाषा के शेक्सपियर या संस्कृत के कालिदास भी हो सकते हैं।
5. रसात्मक भाषा का प्रयोग
विद्वानों द्वारा अपनी भाषा में विभिन्न प्रकार के रसों का प्रयोग किया जाता है। इस रसात्मक प्रयोग के आधार पर ही विद्वानों की छवि को जाना जाता है; जैसे-सूरदास को वात्सल्य रस का प्रमुख कवि माना जाता है क्योंकि उन्होंने बाल मनोभावों की झाँकी प्रस्तुत करने का प्रयास किया है। इसी प्रकार बिहारी को श्रृंगार रस का कवि माना जाता है क्योंकि बिहारी ने शृंगार की सभी स्थितियों का वर्णन किया है। इसी प्रकार विद्वानों द्वारा प्रयोग की जाने वाली भाषा विद्वानों को विभिन्न क्षेत्रों का विद्वान् बनाती है तथा व्यक्तित्व का विकास करती है।
6. सार्थक भाषा का प्रयोग
जब छात्रों द्वारा किसी प्रकरण या बिन्दु पर विचार करने के लिये सार्थक भाषा का प्रयोग किया जाता है तो सामान्य रूप से शिक्षक एवं समुदाय के सभी व्यक्ति उसकी भाषा शैली से प्रभावित होते हैं क्योंकि सार्थक भाषा शैली एक निश्चित क्रम में विचारों के प्रस्तुतीकरण में योगदान देती है तथा विचारों को सरल रूप में प्रकट करने में भी इसकी प्रभावी भूमिका होती है। इसलिये सार्थक भाषा का प्रयोग करने वाले छात्रों का व्यक्तित्व प्रभावी रूप में विकसित होता है।
7. भावानुकूल भाषा का प्रयोग
जब हम किसी भाव विशेष के सन्दर्भ में तथ्यों को प्रकट करते हैं तो शब्दों का चयन भाव के अनुरूप ही करना चाहिये । अनेक अवसरों पर छात्रों द्वारा भावानुकूल शब्दों का प्रयोग नहीं किया जाता, जिससे कि छात्रों के द्वारा प्रेषित विचार अन्य छात्रों के समझ में नहीं आते हैं। इसके विपरीत जब छात्र द्वारा भावानुकूल शब्दों का प्रयोग किया जाता है तो भाषा में प्रभावशीलता उत्पन्न होती है तथा छात्रों के व्यक्तित्व का भी विकास होता है।
8. स्तरानुकूल भाषा का प्रयोग
सामान्य रूप से छात्रों द्वारा प्रयुक्त भाषा एक समान होती है, जबकि प्राथमिक स्तर से ही छात्रों को भाषा में विभेद – करना सिखाया जाता है, जैसे- एक छात्र अपने अभिनय में संवाद करता है तो उसकी भाषा का स्वरूप पृथक होता है तथा जब वही छात्र विद्यालय में शिक्षक से संवाद स्थापित करता है तब उसकी भाषा शुद्ध एवं साहित्यिक रूप में होती है। इसी प्रकार बालकों में यह योग्यता विकसित करनी चाहिये कि वह जब भी किसी से भी वार्तालाप करें तब अपनी भाषा का स्परूप उसके स्तर के अनुसार करने का प्रयास करें। इससे छात्रों के व्यक्तित्व में निखार एवं सौन्दर्य आता है।
9. बहुभाषायी ज्ञान
विभिन्न प्रकार की भाषाओं का ज्ञान भी छात्रों के व्यक्तित्व को प्रभावशाली बनाता है। अनेक भाषाओं के ज्ञान से छात्र उनका प्रयोग आवश्यक स्थितियों में कर सकता है; जैसे-एक छात्र अंग्रेजी भाषा का ज्ञान रखता है तो वह जब भी उन छात्रों से बात करता है जो अंग्रेजी जानते हैं तो अंग्रेजी भाषा के माध्यम से विचारों का आदान-प्रदान सरल एवं सहज रूप से हो जाता है। इस प्रकार उसका व्यक्तित्व प्रभावी रूप में विकसित होता है क्योंकि वह छात्र प्रत्येक कार्य को उचित रूप में सम्पन्न करने में भाषा का सफलतम् प्रयोग करता है। इस प्रकार बहुभाषायी ज्ञान भी छात्रों के व्यक्तित्व के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन करता है।
10. व्याकरणिक भाषा का प्रयोग
जब छात्र द्वारा उचित विराम चिन्हों एवं आरोह-अवरोह का ध्यान करते हुए भाषा का प्रयोग किया जाता है तो वह भाषा प्रत्येक व्यक्ति के मन में उस भाव का संचार करती है, जिसके लिये उस भाषा का निर्माण होता है। इस प्रकार की भाषा का प्रयोग छात्र उस स्थिति में ही कर सकता है जब ओ व्याकरण का ज्ञान हो। इस प्रकार व्याकरण के ज्ञान के आधार पर भाषा का प्रयोग छात्र के व्यक्ति को प्रभावशाली बनाता है।