जिला धमतरी : छत्तीसगढ़
सामान्य परिचय – प्रकृति की अंचल में स्थित धमतरी जिला अपने पौराणिक मान्यताओं ऐतिहासिक धरोहरों, संतो एवं ऋषि-मुनियों की जननी तथा नैसर्गिक खाद्य एवं हर्बल उत्पादों के लिए राज्य में पृथक एवं विशिष्ट स्थान रखता है।
शब्दकोश के अनुसार धमतरी धर्म और तराई शब्द से व्युत्पन्न हुई है। धम्म अर्थात धर्म और तराई अर्थात ताल या तालाब। इस कारण धमतरी को पावन तालों की भूमि का उपमान दिया जा सकता है। इस जिला का पूर्वी भाग प्रकृति के अनुपम उपहारों में श्रृंगारित है।
सीतानदी अभ्यारण के प्रांगण वन्य जीवों की चहलक़दमी, कमार आदिवासियों के लोरा गीत एवं वाद्य यंत्र की सुर संगीत में नाच उठता है। वहीं साल वनों की मनोरम वादियों के बीच सूर सलिला महानदी की कल-कल बहती ध्वनि उमंग का संचार करती है, जबकि श्रृंगी ऋषि के तपोबल का प्रकाश इस पावन क्षेत्र को आध्यात्मिक एवं अलौकिक आस्था से अलौकिक बनाता है।
इतिहास – 1920 में गांधी जी सर्वप्रथम यहीं आये थे। यह क्षेत्र कन्डेल नहर सत्याग्रह, सिहावा-नगरी, गट्टासिल्ली, रूद्री नवागांव, जंगल सत्याग्रह के लिए प्रसिद्ध है।
- गठन – 1998
- जिला मुख्यालय – धमतरी
- क्षेत्रफल – 4081 वर्ग किलोमीटर
- विशिष्ट परिचय – सर्वाधिक सिंचित जिला, हर्बल डिस्ट्रिक्ट, कम अन्तर्राज्यीय सीमा बनने वाला
- नदी – महानदी, सोन्ढुर
- पड़ोसी सीमा – रायपुर, गरियाबंद, कांकेर, बालोद, दुर्ग, कोण्डागाँव + ओडिसा राज्य
- क्ले – माघवाना, बोटलाड़ी
- अगेट – हर्राकोटी
- हल्बा
- कमार
- गोंड
प्रमुख सत्याग्रह :
1. कण्डेल नहर सत्याग्रह (1920)
- स्थान – ग्राम-कण्डेल (धमतरी)
- कारण – सिंचाई टैक्स के विरूद्ध
- नेता – पं. सुंदरलाल शर्मा, नारायाण राव मेघावाले, छोटेलाल श्रीवास्तव.
- गाँधीजी कलकत्ता अधिवेशन से पं. सुंदरलाल शर्मा के निवेदन से छत्तीसगढ़ आए।
- गाँधीजी का छ.ग. प्रथम आगमन –
- यह आंदोलन अपने उद्देश्य में सफल रहा।
- यह प्रथम सफल सत्याग्रह था।
नोट – छत्तीसगढ़ में किसान आंदोलन, असहयोग आंदोलन का हिस्सा था।
2. सिहावा जंगल सत्याग्रह
यह सत्याग्रह सरकार द्वारा बनाये गए नए वन कानून तथा बेगारी व अल्प मजदूरी में कार्य करने के लिए विवश किये जाने के विरोध में शुरू हुआ।
- स्थान – सिहावा (धमतरी)
- प्रारंभ – 21 जनवरी 1922
- नेतृत्वकर्ता – बाबू छीटेलाल श्रीवास्तव, पंडित सुंदरलाल शर्मा, नारायण राव मेघा वाले
- स्थानीय सहयोगी – शोभाराम साहू, श्यामलाल सोम, पंचम सिंह, विश्वम्भर पटेल
3. गट्टा सिल्ली जंगल सत्याग्रह
- प्रारंभ – जुलाई 1930
- स्थान – गट्टा सिल्ली (धमतरी)
- नेतृत्व – छोटलाल श्रीवास्तव, नारायण राव, नत्थुजी जगताप.
अंग्रेज अधिकारियों द्वारा 800 मवेशियों को आरक्षण वन में चरने के आरोप में कांजी हाउस में कैद किया गया था।
4. रूद्री नवागांव जंगल सत्याग्रह
- प्रारंभ – 22 अगस्त 1930
- स्थान – रूद्री नवागांव (धमतरी)
- नेतृत्व – छोटेलाल श्रीवास्तव, नत्थुजी जगताप, नारायण राव.
यह सबसे भीषण सत्याग्रह था। पुलिस द्वारा मिंटू कुम्हार एवं सिंधु नामक व्यक्ति की मृत्यु हो गई।
राज्य संरक्षित स्मारक :
1. कर्णेश्वर महादेव मंदिर, सिहावा (धमतरी)
इस मंदिर में कर्णेश्वर मंदिर सहित कुल पांच प्राचीन मंदिर हैं। ये मंदिर महानदी के पश्चिमी तट पर अवस्थित है। कर्णेश्वर मंदिर कांकेर के सोमवंशी राजा कर्णराज या कर्णदेव द्वारा बनवाया गया था। इसी कारण से यह मंदिर कर्णेश्वर मंदिर के नाम से प्रसिद्ध हो गया। इस मंदिर का निर्माण 12वीं शती ईस्वी में हुआ था। पुरातत्वीय दृष्टि से यह स्मारक स्थल अधिक महत्वपूर्ण है, यहां पर मंदिर के निकट जलकुण्ड जिसमें नीचे से जल की धार निकलती रहती है। ऐसी मान्यता है कि इसमें स्नान करने से कुष्ठ रोग निर्मूल हो जात है। ज्ञातव्य है कि श्रृंगकूट (सिहावा की चोटी) चित्रोत्पला (महानदी) का उद्गम स्थल है, जहाँ पर श्रृंगी ऋषि का आश्रम था।
औद्योगिक क्षेत्र/औद्योगिक पार्क :
1. श्यामतराई
राष्ट्रीय राजमार्ग क्र. 30 पर स्थित श्यामतराई नामक स्थान पर CSIDC द्वारा औद्योगिक विकास केंद्र स्थापित किया गया है।
2. हर्बल एंड मेडिसनल पार्क
छ.ग. प्रदेश वन एवं वनस्पति संसाधन एवं विविधता की दृष्टि से जैव मानचित्र में अद्वितिय स्थान रखता है। यहां प्राकृतिक तौर पर औषधिय वनस्पति, पाये जाते है। राज्य सरकार ने अपनी इन संसाधनों के समुचित दोहन के लिए वर्ष 2001 में राज्य को हर्बल स्टेट की उपमा दिया, साथ ही इस क्षेत्र में औद्योगिक संरचना के समुचित विकास के लिए, धमतरी जिला के बंजारी ग्राम में हर्बल एवं मेडिसनल पार्क स्थापित कर रहा है. जिससे घरेलु, राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय उद्यमिता को इस क्षेत्र में आकर्षित किया जा सके।
3. मेगाफुड पार्क
भारत में खाद्य सुरक्षा खाद्य भंडारण एवं प्रसंस्करण की यह अवधारणा 2008 में भारत सरकार के खाद्य एवं प्रसंस्करण मंत्रालय द्वारा प्रारंभ किया गया।
- स्थापित – ग्राम बगौद
- क्षेत्रफल – 68.68 हेक्टेयर
- कार्य – कॉमन, फैसिलिटी सेन्टर यथा – परीक्षण प्रयोगशाला वेयर हाऊस कोल्ड स्टोरेज, रॉ-मटेरियल व्यवस्था, पैकिंग, ग्रेडिंग आदि की सुविधाएं उपलब्ध होगी। इससे दाल, चावल, टमाटर, मिर्च, आचार, शहद, पापड़, बेकरी, डेयरी आदि उत्पादों का प्रसंस्करण होगा।
पर्यटन स्थल :
I. गंगरेल बाँध/रविशंकर जलाशय
- स्थापना – 1979
- नदी – महानदी पर निर्मित
- लम्बाई – 1830 मीटर ऊँचाई – 30.50 मीटर
- प्रदेश का सबसे बड़ा बाँध (1365 मीटर) है।
- विद्युत उत्पादन – 10 MW गंगरेल डेम, रायपुर को पेयजल एवं BSP को औद्योगिक जलापूर्ति करता है।
II. सिहावा
सिहावा छत्तीसगढ़ के प्रमुख तीर्थ स्थलों में से एक है जो नगरी तहसील के निकट स्थित है। यह चारों ओर से जंगलों एवं पहाड़ों से घिरा हुआ है। यह महानदी की उद्गम स्थल है। कर्णेश्वर मंदिर, गणेश घाट, श्रृंगी ऋषि आश्रम (यहां राम ने राक्षसों के आक्रांत से मुक्ति दिलाई), हाथी कोट, दंतेश्वरी गुफा, अमृत कुण्ड, और महामाई मंदिर सिहावा के प्रमुख पवित्र स्थल हैं।
III. माडमसिल्ली बाँध
माडमसिल्ली बाँध जिसे मुरुमसिल्ली बाँध के नाम से भी जाना जाता है। यह बांध सिलियारी नदी पर स्थित है जो की महानदी की सहायक नदी है। इस बाँध की स्थापना 1923 के मध्य हुई है। जिसे छत्तीसगढ़ का एक वास्तु चमत्कार भी माना जाता है। यह एशिया का पहला सायफन बांध है।
IV. सीतानदी अभ्यारण्य
- गठन – 1974
- क्षेत्रफल – 556 वर्ग किलोमीटर
- छत्तीसगढ़ का प्रथम अभ्यारण्य
- सीतानदी के नाम पर नामकरण
- सर्वाधिक तेंदुआ
- 2009 में प्रोजेक्ट टाईगर में शामिल
- प्रमुख जानवर – तेंदुआ, बाघ, सांभर, चीतल, भालू, जंगली सुअर।
V. बिलाई माता का मंदिर, धमतरी
बिलाई माता मंदिर, धमतरी शहर के केंद्र से थोड़ी दूरी पर स्थित है। मंदिर की दीवारों पर नक्काशीदार आर्किटेक्ट्स यहां के प्रतिभा की पहले के समय को दर्शाती है। यहां के लोग देवी दुर्गा के कई रूपों की पूजा करते हैं। प्रवेश द्वार के पास शेर की प्रतिमा और पत्थर की मूर्ति मंदिर के अंदर उल्लेखनीय आकर्षक है। बिलई माता मेला हर साल माघ मास (जनवरी-फरवरी) के अंत में देवी दुर्गा को प्रसन्न करने के लिए आयोजित किया जाता है।
VI. लीलर – पुरातात्विक एवं ऐतिहासिक स्थल
यहां वर्तमान में पुरातत्व सर्वे ऑफ इण्डिया, छत्तीसगढ़ के द्वारा उत्खन्न जारी है। अब तक उत्खन्न से कई ऐतिहासिक एवं पुरातात्विक महत्व की जानकारी प्राप्त हुई है।
प्रमुख व्यक्तित्व :
I. श्रृंगी ऋषि
श्रृंगी ऋषि अलौकिक दिव्य गुणों से युक्त पौराणिक संत थे। रामायण महाकाव्य के अनुसार महर्षि विभांटक इनके पिता थे एवं अप्सरा उर्वशी इनकी माता थीं तथा ये कश्यप ऋषि के पौत्र थे। उनके माथे पर सींग जैसा उभार होने की वजह से उनका नाम श्रृंगी ऋषि पड़ा।
छत्तीसगढ़ में प्रचलित पौराणिक मान्यता के अनुसार सिहावा पहाड़ी में इनका आश्रय था। इनके शिष्य का नाम महानंदा था जनश्रुति के अनुसार, श्रृंगी ऋषि के कमंडल से महानदी का उदय हुआ, तथा उनके शिष्य के नाम पर इस नदी का नामकरण हुआ।
II. हीरालाल काव्योपाध्यय – छ.ग. के पणनि/छ.ग. के व्याकरणाचार्य
इनका जन्म 1856 में राखी (भाटागांव) जिला धमतरी में हुआ था। जबलपुर में पोस्ट मैट्रिक की शिक्षा प्राप्त करने के पश्चात धमतरी के एंग्लो वर्नाक्यूलर स्कूल में शिक्षक के रूप में सेवाएं की। 1890 में इस महान साहित्यकार का देहांत हो गई।
उर्दू, मराठी, उड़िया, बंगाली, अंग्रेजी आदि भाषाओं के सर्वज्ञ हीरालाल काव्योपाध्याय, छत्तीसगढ़ी खड़ी बोली के पितामह कहलाते हैं। शालागीत, चंद्रिका दुर्गायन सहित 7 रचनाओं की विभिन्न भाषाओं में रचना की, परंतु 1885 में रचित ‘छत्तीसगढ़ी व्याकरण’ जो कि 1990 में प्रकाशित हुआ।
“छत्तीसगढ़ी भाषा एवं साहित्य” जगत में कालजयी रचना है। महान भाषाविद् जार्ज ग्रियर्सन ने इसका प्रकाशन किया। जनरल ऑफ एशियाटिक सोसाइटी आफ बंगाल, पंडित लोचन प्रसाद पांडेय ने इसे संशोधित करके मध्यप्रदेश शासन में प्रकाशित किया। बंगाल के राजा सुरेंद्र मोहन टैगोर के द्वारा स्वर्ण पदक से तथा बंगाल संगीत अकादमी के द्वारा काव्योपाध्याय की उपाधि से सम्मानित किया गया था। इनकी व्यक्तित्व की महानता जार्ज ग्रियर्सन के कथनों से व्यक्त होता है “हीरा लाल जी जैसे विद्वानों के कारण ही हम भिन्न-भिन्न भाषाओं के बीच सेतु बनाने के अपने प्रयास में सफल हो पाते हैं।”
III. देवदास बंजारे (पंथी कलाकार)
इन्होंने पंथी लोकनृत्य को देश-विदेश में ख्याति दिलाई। इन्हें पंथी लोककला के क्षेत्र में सम्मानित किया गया। श्याम बेनेगल की फिल्म ‘चरण दास चोर’ में भी भागीदारी की।
IV. दाउ छोटे लाल श्रीवास्तव
राष्ट्रवादी, स्वतंत्रता सेनानी, समाज सेवी, छोटे लाल श्रीवास्तव, कंडेल नहर सत्याग्रह के सूत्रधार तथा पथ प्रदर्शक थे। आज यदि कंडेल गांव राष्ट्रीय एवं प्रादेशिक मानचित्र में प्रथम स्थान रखता है, तो इसका सारा श्रेय इस माटी पुत्र, जन-नायक को जाता है। 1920 में असयोग आंदोलन के समय, इनके नेतृत्व में कंडेल गांव के ग्रामीण किसान तथा 1922 में सिहावा क्षेत्र के आदिवासी, ब्रिटिश नीतियों के उत्पीड़न के खिलाफ मुख्य प्रदर्शन कर साध्य एवं स्वालंबन का परिचय दिया।