उत्तर औद्योगिक समाज :
डैनियल बेल ने इस अवधारणा को 1962 में प्रयोग किया था। इस उत्तर औद्योगिक समाज की अवधारणा अमेरिकी समाजशास्त्रियों ने ज्यादा फैलाया है। विस्तार से इस अवधारणा की व्याख्या करने वाले समाजशास्त्रियों में डैनियल बेल का नाम लिया जाता है जिन्होंने यह भविष्यवाणी की थी कि विचारधारा के अंत होने के साथ ही सामाजिक संगठनों के स्थापित बनावटों में भी मौलिक परिवर्तन आने लगे हैं। प्रौद्योगिकी एवं सूचना के आधार पर मुख्यतः संगठित उत्तर-औद्योगिक तथा सूचना समाजों के उद्भव के साथ ही वर्ग संघर्ष भी लगभग समाप्ति की राह पर है। उन्होंने अपनी बहुचर्चित पुस्तक “विचारधारा का अंत” (1960) में यह भविष्योक्ति की कि औद्योगिक पूंजीवादी समाजों में भविष्यसूचक वर्गगत् विचारधाराएं लगभग समाप्त हो गई है। अपने इस विचार को उन्होंने और भी पुष्ट किया अपनी पुस्तक “द कर्मीग आफ पोस्ट इंडस्ट्रीयल सोसाइटी” (1974) नामक पुस्तक में उनका मत यह है कि आधुनिक समय में जिस समाज में हम रह रहे है वह समाज उत्तर औद्योगिक समाज है। इस उत्तर उद्योगवादी समाज ने औद्योगिक समाज का स्थान ले लिया है।
समाजशास्त्र में फ्रैंकफर्ट समूह के समर्थकों में से हर्बट मार्कुजे ऐसे समाजशास्त्री हैं जिन्होंने औद्योगिक रूप से विकसित पूंजीवादी समाज का विस्तार से वर्णन अपनी पुस्तक “वन डायमेसनल मैन” में किया है। तकनीकी दृष्टिकोण से विकसित समाज में मनुष्य एक मशीन की तरह हो गया है। इस मशीनीकरण से प्रभावित समाज में उसके जीवन को इतना प्रभावित किया है कि वह वास्तविक आवश्यकता तथा मिथ्या आवश्यकता की चीजों में फर्क नहीं बता सकता है।
जे0के0 गालब्रेथ (1967) ने कहा है कि अमेरिकी अर्थव्यवस्था तथा पूरे अमेरिकी समाज को प्रभावित करने में तकनीकी दृष्टिकोण से प्रभावी अधिकारी तंत्र का वर्चस्व तथा सत्ता पर पकड़ इतनी मजबूत हो गयी है कि ये पूरे समाज को अपने निर्णय से प्रभावित करने की क्षमता रखते है।
एलान तुइन (1969) ने ऐसे ही तकनीकी नियंत्रण का प्रभाव फ्रांस के संदर्भ में पाया। फ्रांस के आर्थिक तथा राजनीतिक जीवन को प्रभावित जिस प्रकार से तकनीकी को नियंत्रित करने वाले वर्ग कर पाते हैं उतना और कोई भी वर्ग नहीं कर पाता।
उत्तर औद्योगिक समाज की अवधारणा को समाजशास्त्र में कुछ लोग एक अन्य संदर्भ में विस्तार से उत्तर आधुनिकतावाद तथा सूचना पर आधारित समाज के रूप में भी करते हैं। उत्तर आधुनिकता की विशेषताओं का वर्णन करते हुए निम्न चार विशेषताओं का विशेष रूप से उल्लेख किया गया है. –
1. सामाजिक
औद्योगिकरण तथा पूंजीवादी आर्थिक व्यवस्था में एक सामाजिक वर्ग पाया जाता है। इसे सामाजिक संरचना तथा सामाजिक विभिन्नता का प्रमुख तत्व बताया गया।
2. सांस्कृतिक
उत्तर आधुनिकता के अध्ययन कई ऐसे विद्वान है जो सांस्कृतिक तत्वों को प्रमुख स्थान देते हैं।
3. आर्थिक
उत्तर आधुनिक समाज को फोर्डवाद के उत्पादन ने विधि से समझा जा सकता है। फोर्डवाद में बड़ी कंपनियाँ जनता के उपभोग के लिए उत्पादन करते हैं।
4. राजनीतिक
उत्तर आधुनिक समाज बड़े सरकार के रूप में सामाजिक क्षेत्र में सेवा के लिए काम करते हैं सामाजिक सेवा उनका प्रमुख उद्देश्य होता है।
उत्तर औद्योगिक समाज को एक और अन्य संदर्भ में भी आजकल काफी प्रयोग में लाया जाने लगा है। आर्थिक विकास के क्षेत्र में जानकारी तथा सूचना पर आधारित ज्ञान का अपना एक विशिष्ट महत्व है। कई समाजशास्त्रियों ने सूचना तथा इसके इस्तेमाल के द्वारा एक नये समाज का उल्लेख किया है। इन विद्वानों की यह मान्यता है कि विभिन्न तकनीकी को एकीकृत कर सूचना पर आधारित समाज तकनीकी (Information technology) ने आधुनिक पूंजीवादी व्यवस्था को नया आधार दिया है एम० कास्टेलस के अनुसार (1996) सूचना पर आधारित अर्थव्यवस्था के पाँच विशिष्ट लक्षण है-
1. सूचना अर्थव्यवस्था एक कच्चा माल है।
2. समाज तथा व्यक्ति पर इसका विस्तृत प्रभाव है।
3. सूचना पर आधारित तकनीकी का इस्तेमाल आर्थिक संगठन का प्रक्रिया के विस्तार में होता है।
4. सूचना पर आधारित तकनीकी में काफी लचीलापन होता है।
5. व्यक्तिगत तकनीकी का सम्मिश्रण एकीकृत व्यवस्था में परिचालित होता है।
इस प्रकार डैनियल बेल द्वारा प्रतिपादित उत्तर औद्योगिक समाज की अवधारणा को विभिन्न संदर्भों से जोड़कर इसकी विशेषताओं की चर्चा की गयी है। फ्रांस के एक समकालीन चिंतक जाक दरिदा ने उत्तर आधुनिकता संबंधी सिद्धान्त को ‘विखंडनवादी (Deconstructionism) अवधारणा‘ द्वारा विस्तार से चर्चा की है। उनके विचार उत्तर संरचनावादी सिद्धान्त के प्रतिपादन से जुड़ा है। विखंडवादी अवधारणा के प्रतिपादक जाक दरिदा का कहना था कि अभी तक जो भी अवधारणा विकसित किया गया है और जिसकी चर्चा की गयी है वह समाज के यथार्थ को चित्रित नहीं करता। इसलिए अगर समाज के यथार्थ को समझना हो तो पूर्व प्रतिपादित सिद्धान्तों को वे अपनी सीमाओं को समझते हुए उसे त्यागना होगा या उसके ऊपर उठकर नये ढंग से उन सिद्धांतों के बारे में पुनर्विचार करना आवश्यक है।
अवधारणाओं की सबसे बड़ी कमजोरी है यथार्थ को छिपाना और इस दृष्टिकोण से जाक दरिदा का मानना था कि बदलते संदर्भ में पूर्व प्रतिपादित अवधारणाओं के अर्थ भी बदल गये हैं जिसे समझने के लिए आवश्यक है उन अवधारणाओं की आलोचनात्मक व्याख्या करना उनकी सोच थी कि जिस किसी भी घटना का विश्लेषण अवधारणा की मदद से किया जाता है वे अल्पकालिक सोच से प्रभावित होते हैं। विखंडन शब्द को विधि के रूप में देखा गया है जिसके अनुसार शब्दों का एक प्रतिकात्मक स्वरूप होता है। इसलिए एक शब्द के अर्थ को सदैव संकेतक (Signifier) के रूप में देखा जाना चाहिए क्योंकि इस शब्द के वास्तविक अर्थ सदैव विसमित (Deferred) होते हैं। वास्तविक अर्थ के आयाम बदलते रहते हैं इसलिए विकल्प की खोज अगर करनी हो तभी उसके तात्कालिक अर्थ की पहचान की जा सकती है। उत्तर आधुनिक समाज की व्याख्या में उनका मानना था कि पुरातन और नवीन संबंधों के कारण विचारों में परिवर्तन आना स्वाभाविक है। इस प्रकार विखंडनकारी सोच में विकल्प की तलाश और उसके आधार पर सामाजिक संबंधों की व्याख्या करने की बातें सदैव मौजूद रहती है।
उत्तर औद्योगिक समाज की विशेषताएं:
उपर्युक्त सभी विचारों के विश्लेषण के बाद उत्तर औद्योगिक समाज में निम्न विशेषताओं की चर्चा की जा सकती है-
1. सैद्धांतिक ज्ञान
सैद्धांतिक ज्ञान को प्राथमिकता दी जाती है। नयी योजनाओं के क्रियान्वयन से आर्थिक क्षेत्र में जो नयी योजनाओं पर काम होते हैं उसके प्रारूप को तैयार करने में ज्ञान को ही आधार बनाया जाता है। ज्ञान की शक्तिशाली भूमिका होती है। ज्ञान के लिए आजकल कंप्यूटर का जिस प्रकार इस्तेमाल किया जा रहा है इससे ज्ञान प्राप्ति के साधन काफी आसान हुए हैं और इसके फलस्वरूप उत्तर औद्योगिक समाज की नींव क्रमश: मजबूत हुई है। इस प्रकार सूचना पर आधारित ज्ञान इस उत्तर औद्योगिक समाज का अक्षीय आधार (Axial (basis) है।
2. उपभोग के वस्तु के स्थान पर उपयोगी सेवा की प्रधानता
आर्थिक क्षेत्र में जो उपभोग की वस्तु इस्तेमाल में भी जाती थी, उसकी जगह उपयोगी सेवाओं ने ले ली है उपयोगी सेवा से जुड़ी जरूरतों ने आर्थिक व्यवस्था के पूरे आयाम को बदल दिया है क्योंकि औद्योगिक समाज में कच्चे माल को प्रोसेस कर चीजों के उत्पादन का कार्य अब उपयोगी सेवाओं ने ले लिया है।
3. वर्ग सरंचना में बदलाव
नये वर्ग के रूप में अब तकनीकी के जानकार लोगों की एक खास पहचान उभर कर आती है जो परंपरागत वर्ग सरंचना औद्योगिक समाज में दिखता था जिसमें पूंजीपति तथा मजदूर वर्ग की प्रधानता देखी जा सकती थी उसकी जगह पर अब जो वर्ग देखने को मिलते हैं वो व्यावसायिक किस्म का वर्ग है। ये अपने विशेष काम को करने के लिए आवश्यक तकनीकी जानकारी रखता है और इस आधार पर ही अपने उत्तर औद्योगिक समाज में अपनी एक विशेष पहचान बना ली है। इस प्रकार के व्यावसायिक प्रशिक्षण के द्वारा जिस वर्ग को बनाया गया है वह अपने आप में उत्तर औद्योगिक समाज की एक खास विशेषता है जिसके कारण आने वाले समय में इनकी हमारे समाज में एक खास भूमिका होगी। जी.के. गालब्रेथ ने इसे तकनीकी सरंचना (Techno-structure) की संज्ञा दी है।
4. एक खास बौद्धिक क्षमता रखने वालों की भूमिका
उत्तर औद्योगिक समाज को चलाने के लिए विशेष प्रकार की बौद्धिक क्षमता रखने वाले लोगों की जरूरत पड़ती है। सभी यंत्रों में इनकी महत्वपूर्ण भूमिका होती है। इस नवोदित वर्ग की पहचान बुद्धिजीवी वर्ग के रूप में व्यावसायिक तौर पर देखी जा सकती है। आर्थिक, राजनीतिक तथा सामाजिक क्षेत्रों में इनकी एक खास भूमिका होती है और समाज को दिशा-निर्देश व मार्गदर्शन का काम भी इनकी जिम्मेदारी का भाग बन जाता है।
इस प्रकार उत्तर औद्योगिक, उत्तर आधुनिक तथा सूचना पर आधारित समाज की व्याख्या या विशेषताओं के ऊपर ध्यान करने से यह स्पष्ट हो जाता है कि यद्यपि ये सभी अवधारणाएं एक दूसरे के पर्याय नहीं है और न ही इन अवधारणाओं को एक दूसरे का पर्याय मानकर इसका विवेचन किया गया है। परंतु इतना सच है कि इन सबके बीच एक वैचारिक स्तर पर समानता है और संभवतः इसीलिए इन अवधारणाओं की सीमाएं भी लगभग एक-दूसरे से काफी मिलती-जुलती हैं।
सबसे पहले इन सिद्धांतों की आलोचना करते हुए यह कहा जाता था कि इस प्रकार के समाज में व्यावसायिक तथा तकनीकी रूप से संपन्न वर्ग के भूमिका को बढ़ा-चढ़ाकर देखा गया है जो अपने आप में भ्रामक हैं। इस वर्ग का किस हद तक इस समाज में वर्चस्व रहता है और किस रूप में ये समाज को प्रभावित करते हैं इसके बारे में कोई बात प्रमाणिक रूप से कहीं नहीं जा सकती है किस हद तक चे राजनीतिक प्रभाव बना पाते हैं इस बात को लेकर भी मतभेद हैं और व्यापार में इनका एकाधिकार या वर्चस्व होता है इस बात का भी खुलासा नहीं किया जा सकता है।
उत्तर औद्योगिक समाज के विशेषताओं की चर्चा करते हुए यद्यपि सैद्धान्तिक ज्ञान की पूरी बीसवी सदी को महत्वपूर्ण ताकत के रूप में देखा गया जिसकी सर्वोपरि भूमिका उत्पादन के क्षेत्र में होती है। इसके बावजूद भी आर्थिक स्थिति में इसकी भूमिका में कोई परिवर्तन नहीं आया है। इसी प्रकार के तर्क प्रबंधन के क्षेत्र में दिये गये जिससे क्रांतिकारी परिवर्तन आया। व्यावसायिक रूप से इस प्रकार के प्रबंधक विशेषज्ञों की भूमिका को आधार माना गया। आधुनिक अर्थव्यवस्था में एक नये मजदूर वर्ग के प्रतिनिधि के रूप में व्यावसायिक तथा तकनीकी से जुड़े विशेषज्ञों की होती है और इस संदर्भ में डैनियल बेल के द्वारा प्रतिपादित उत्तर औद्योगिक समाज की चर्चा विस्तार से की गयी है। आधुनिक समय में इस प्रकार के समाज की जरूरतों को सभी समाजशास्त्रियों ने महसूस किया है और इस दिशा में सबसे महत्वपूर्ण उल्लेखनीय बात है कि कई समाजशास्त्रियों ने नई अवधारणाओं के द्वारा डैनियल बेल के सैद्धान्तिक विचार को और भी पुष्ट किया है।