“छत्तीसगढ़िया सबले बढ़िया” – ये सिर्फ एक नारा नहीं, बल्कि ये छत्तीसगढ़ के लोगों के दिल की आवाज़ है, उनकी पहचान है। ये वो जोश है जो इस प्रदेश की मिट्टी से जुड़ा है, इसकी संस्कृति में डूबा हुआ है, और हर छत्तीसगढ़िया के दिल में गर्व बनकर धड़कता है।
कभी शांत घने जंगलों और खनिज संपदा के लिए पहचाना जाने वाला छत्तीसगढ़, आज अपनी अनोखी संस्कृति, मीठी बोली, स्वादिष्ट खानपान और अपनेपन के लिए पूरे देश में एक मिसाल बन गया है। जब भी हम भारत की विविधता की बात करते हैं, तो छत्तीसगढ़ अपनी सादगी, समृद्ध परंपराओं और दिल से जुड़े लोगों के कारण सबसे अलग और अनूठा नज़र आता है।
‘छत्तीसगढ़िया सबले बढ़िया’ सिर्फ वाक्य नहीं, बल्कि एक एहसास है – ये नारा सिर्फ़ एक क्षेत्रीय गर्व की बात नहीं है, बल्कि एक सामाजिक जागरूकता भी है – एक ऐसा स्वाभिमान जो हर छत्तीसगढ़िया को उसकी जड़ों से जोड़ता है। छत्तीसगढ़ के हरे-भरे जंगल, कलकल बहती नदियाँ, लहलहाते खेत, रंगीन पर्व, मिलनसार लोग, प्यारी बोलियाँ, स्वादिष्ट भोजन, पारंपरिक रीति-रिवाज, और सबकी विचारधारा – ये सब मिलकर इस नारे को सच बनाते हैं, इसे जीवन देते हैं। इस लेख के ज़रिए, हम छत्तीसगढ़ के उसी पूरे रूप को गहराई से समझेंगे, जो इसे “सबले बढ़िया” बनाता है।
1. छत्तीसगढ़: इतिहास और पृष्ठभूमि
छत्तीसगढ़ की पहचान कोई आज की नई नहीं है। इतिहास में इसे ‘दक्षिण कोसल‘ के नाम से जाना जाता था, और रामायण काल में यह भगवान श्रीराम के ननिहाल के रूप में प्रसिद्ध हुआ। यह इलाका प्राचीन काल से ही संस्कृति, कला और आध्यात्मिकता का गढ़ रहा है। इसकी विशेषता यह है कि यह कभी भी पूरी तरह से किसी एक बड़े साम्राज्य के अधीन नहीं रहा। यहाँ छोटे-छोटे रजवाड़ों और जनजातीय राजाओं का शासन रहा, जिसने इसकी संस्कृति को स्वतंत्र और आत्मनिर्भर बनाए रखने में मदद की। कहा जाता है कि “छत्तीसगढ़” नाम इसलिए पड़ा क्योंकि यहाँ कभी 36 किले (गढ़) थे। 1 नवंबर 2000 को, जब यह मध्य प्रदेश से अलग होकर एक नया राज्य बना, तब इसने अपनी अलग पहचान को और भी सशक्त रूप से स्थापित किया।
2. “छत्तीसगढ़िया सबले बढ़िया” – एक भाव, एक आत्मा
“छत्तीसगढ़िया सबले बढ़िया” – ये सिर्फ तीन शब्द नहीं हैं, बल्कि छत्तीसगढ़ की आत्मा हैं। ये एक ऐसा नारा है जो हर उस व्यक्ति के दिल में धड़कता है जो छत्तीसगढ़ में पला-बढ़ा है, जिसने यहां की मिट्टी में सांस ली है और यहां की संस्कृति को जिया है। भले ही इस नारे की शुरुआत राजनीतिक मंचों से हुई हो, लेकिन आज ये एक जनभावना का रूप ले चुका है। ये नारा छत्तीसगढ़ के हर उस व्यक्ति के आत्मगौरव का प्रतीक है जो खुद को अपनी संस्कृति से जोड़कर देखता है। ये नारा एक गर्व है, एक पहचान है, और एक एकजुटता का प्रतीक है।
“छत्तीसगढ़िया सबले बढ़िया” कहने का मतलब सिर्फ ये नहीं है कि हम बेहतर हैं, बल्कि इसका गहरा अर्थ है। इसका अर्थ है – हम अपनी जड़ों से जुड़े हुए हैं, हम अपनी संस्कृति, अपनी परंपराओं और अपनी विरासत को कभी नहीं भूलते। हमें अपनेपन पर गर्व है। हमारी सादगी ही हमारी असली ताकत है। छत्तीसगढ़ के लोग सादे जीवन और उच्च विचार के धनी हैं। हम दिखावे में विश्वास नहीं करते, बल्कि हम सच्चाई और ईमानदारी में विश्वास करते हैं। हमारी यही सादगी हमें औरों से अलग बनाती है और हमें ताकत देती है। ये नारा हमें याद दिलाता है कि हमें अपनी संस्कृति और अपनी परंपराओं को बचाए रखना है। हमें अपनी भाषा, अपने गीत, अपने नृत्य और अपनी कला को जीवित रखना है। हमें अपनी अगली पीढ़ी को अपनी जड़ों से जोड़ना है ताकि वे भी अपनी पहचान को कभी न भूलें। ये नारा हमें एकजुट होने और एक साथ मिलकर काम करने के लिए प्रेरित करता है।
3. छत्तीसगढ़ी भाषा: अपनी बोली, अपनी पहचान
जैसे ही हम छत्तीसगढ़ी भाषा सुनते हैं, एक अपनापन सा महसूस होता है। यह सिर्फ एक भाषा नहीं, बल्कि हमारी संस्कृति और पहचान का एक अटूट हिस्सा है। “कइसना हव?”, “का करथस?”, “अरे वाह रे मोर दाई!” – इन जैसे शब्दों में जो मिठास और प्रेम छिपा है, वो शायद ही किसी और भाषा में मिले। छत्तीसगढ़ी में एक अलग ही अपनापन है जो दिलों को जोड़ता है।
“कइसे हस?” बोलते ही मानो रिश्ते और गहरे हो जाते हैं। यह भाषा दिल से निकली बात को सीधे दूसरे के दिल तक पहुंचाने की क्षमता रखती है। छत्तीसगढ़ी भाषा केवल बातचीत का माध्यम नहीं है; यह हमारी लोकगीतों, नाच-गानों और कहावतों में भी बसी हुई है। जब यह भाषा सुआ नृत्य में गूंजती है या करमा गीत में बहती है, तो पूरा वातावरण जीवंत हो उठता है। इन गीतों में हमारे जीवन के सुख-दुख, रीति-रिवाज और परंपराएं समाहित हैं। इस भाषा में एक ऐसी सरलता है जो हर किसी को अपनी ओर आकर्षित करती है। यह भाषा हमारे दिलों की धड़कन है और हमारी पहचान का प्रतीक है।
4. लोककलाएँ और त्योहार: माटी से जुड़ी आत्मा
छत्तीसगढ़ की संस्कृति अपनी जीवंतता और समृद्धि के लिए जानी जाती है। यहाँ के पर्व-त्योहार रीति-रिवाजों का पालन करने के साथ ही सामाजिक सौहार्द और सामूहिक भावना को भी दर्शाते हैं। हरेली, जो कि कृषि की शुरुआत का उत्सव है, में बैलों की श्रद्धापूर्वक पूजा की जाती है और बच्चों को नीम की टहनियों से आशीर्वाद दिया जाता है। छेरछेरा त्योहार एकता का प्रतीक है, जहाँ हर उम्र के लोग गांव-गांव जाकर अनाज मांगते हैं। तीजा-पोला, गोवर्धन पूजा और गेंड़ी जैसे पर्व लोक जीवन, प्रकृति और परंपरा के अद्भुत संगम को प्रस्तुत करते हैं। छत्तीसगढ़ के नाचा, पंथी नृत्य, राऊत नाचा, सुआ और करमा जैसे लोकनृत्य मात्र मनोरंजन नहीं हैं, बल्कि ये आत्मा की गहराई से जुड़े हुए हैं और छत्तीसगढ़ की पहचान हैं।
5. खानपान: स्वाद में सादगी और सेहत दोनों
छत्तीसगढ़ का खानपान भी यहाँ की संस्कृति की तरह ही सरल, पौष्टिक और मिट्टी से जुड़ा हुआ है। चीला, फरा, एरसा, ठेठरी, खुरमी – ये केवल स्वादिष्ट व्यंजन नहीं हैं, बल्कि पीढ़ी दर पीढ़ी बनाए जाने वाली पारंपरिक विरासतें हैं। देसी चावल, कोदो-कुटकी, हरी सब्जियां (भाजी), महुआ, तेंदू और जंगलों के फल – ये सभी मिलकर छत्तीसगढ़ी थाली को एक खास पहचान देते हैं। यहाँ का भोजन न केवल आपके स्वाद को तृप्त करता है, बल्कि आपके शरीर और मन को भी शांति और सुकून पहुंचाता है। यह अनुभव अतुलनीय है!
6. छत्तीसगढ़ का ग्रामीण जीवन: आत्मनिर्भरता की मिसाल
छत्तीसगढ़ का हृदय गांवों में धड़कता है। यहाँ जीवन की धारा कृषि, वन उत्पादों का संग्रहण, मछली पालन और हस्तकला के माध्यम से बहती है। बांस से बनी कलाकृतियाँ, बेल मेटल की मूर्तियाँ और लकड़ी पर उकेरी गई खूबसूरत नक्काशी – ये सभी इस प्रदेश की अनूठी प्रतिभा के जीवंत उदाहरण हैं। गोंड, बैगा, उरांव जैसे वनवासी समुदाय न केवल जंगलों से गहराई से जुड़े हुए हैं, बल्कि वे प्रकृति के सच्चे रखवाले भी हैं। वे पीढ़ी दर पीढ़ी से प्रकृति का संरक्षण कर रहे हैं और इसके महत्व को समझते हैं।
7. छत्तीसगढ़ और शिक्षा: नई दिशा की ओर
बीते वर्षों में छत्तीसगढ़ ने शिक्षा के क्षेत्र में अद्भुत प्रगति की है। अब दूर-दराज के गांवों में भी स्कूल खुल गए हैं, जिससे हर बच्चे को शिक्षा प्राप्त करने का अवसर मिल रहा है। उच्च शिक्षा के संस्थानों, जैसे कि आईआईएम (IIM), एम्स (AIIMS), एनआईटी (NIT), आदि ने राज्य को शिक्षा का एक नया केंद्र बना दिया है। छत्तीसगढ़ का युवा अब न केवल पारंपरिक क्षेत्रों, जैसे कि आईएएस (IAS), इंजीनियरिंग और डॉक्टरी में अपना नाम कमा रहा है, बल्कि खेल और स्टार्टअप की दुनिया में भी आगे बढ़ रहा है। वे अपनी प्रतिभा और मेहनत से देश-दुनिया में छत्तीसगढ़ का नाम रोशन कर रहे हैं।
राज्य सरकार शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए कई योजनाएं चला रही है, जिससे छात्रों को बेहतर शिक्षा और सुविधाएं मिल सकें। छत्तीसगढ़ शिक्षा के क्षेत्र में तेजी से आगे बढ़ रहा है, और यह निश्चित रूप से भविष्य में देश के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा।
8. छत्तीसगढ़ की महिलाएँ: सशक्त और संवेदनशील
छत्तीसगढ़ की नारियां सदियों से अपने पारंपरिक जीवन में सशक्त रही हैं, और अब आधुनिक युग में भी अपनी विशिष्ट पहचान बना रही हैं। वे खेती-बाड़ी में पुरुषों के कंधे से कंधा मिलाकर काम करती हैं, सुंदर हस्तशिल्प का निर्माण करती हैं, बाजारों का संचालन करती हैं, और अब शिक्षा, राजनीति और व्यवसाय में भी सक्रिय रूप से भाग ले रही हैं।
महिला स्व-सहायता समूहों ने गांव-गांव में एक नई क्रांति का सूत्रपात किया है, जिससे महिलाओं को आत्मनिर्भर बनने और अपने परिवारों के जीवन स्तर को सुधारने में मदद मिल रही है। छत्तीसगढ़ की महिलाएं आत्मविश्वास और दृढ़ संकल्प के साथ आगे बढ़ रही हैं, और प्रदेश के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दे रही हैं।
9. “छत्तीसगढ़िया सबले बढ़िया” का आज का संदर्भ
आज के इस आधुनिक और वैश्वीकृत दुनिया में, जहाँ हर कोई आगे बढ़ने की होड़ में लगा है, एक छत्तीसगढ़िया होने के नाते अपनी संस्कृति और परंपराओं से जुड़े रहना गर्व की बात है। छत्तीसगढ़ के लोग भले ही सरल स्वभाव के हों, पर उन्हें कमजोर समझना भूल होगी। जब अपने अधिकारों, अपनी जमीन और अपनी पहचान की बात आती है, तो वे सीना ठोककर खड़े हो जाते हैं। चाहे खेती-किसानी हो या देश की सेना, छत्तीसगढ़िया लोगों ने हर क्षेत्र में अपनी मेहनत और लगन से अपनी पहचान बनाई है। उन्होंने साबित कर दिया है कि वे किसी से कम नहीं हैं।
यह नारा हमें याद दिलाता है कि:
* हमारी सरल बोली हमें दुनिया में सबसे अलग पहचान देती है।
* हमारी सादगी ही हमारी सबसे बड़ी ताकत है।
* और हमारा आपसी भाईचारा हमें सबसे महान बनाता है।
यह नारा हर छत्तीसगढ़िया के लिए गौरव का प्रतीक है, और हर गैर-छत्तीसगढ़िया के लिए एक प्रेरणा – अपनी जड़ों से जुड़े रहने में ही असली विकास निहित है। अपनी संस्कृति को संजोकर रखें और अपनी पहचान को कभी न भूलें। यही हमारी सबसे बड़ी पूंजी है।
10. निष्कर्ष: गर्व से कहो – हम छत्तीसगढ़िया हैं!
‘छत्तीसगढ़िया सबले बढ़िया’ सिर्फ़ एक नारा नहीं, यह छत्तीसगढ़ की जीवनशैली है। यह गर्व है जो यहाँ की मिट्टी में पैदा होता है, संस्कृति में पोषित होता है और हर हृदय में निवास करता है। यदि आपने अब तक छत्तीसगढ़ को केवल एक राज्य के रूप में देखा है, तो आइए इसे अनुभव करें! इसकी सुंदरता, सरलता और संस्कृति आपको मंत्रमुग्ध कर देगी। यहाँ के लोग अपनी परंपराओं को संजोकर रखते हैं और मेहमानों का दिल से स्वागत करते हैं। अगर आप छत्तीसगढ़ को करीब से जानना चाहते हैं, तो यहाँ आइये और इस अनुभव को जीएं। यहाँ की हरी-भरी धरती, यहाँ के सरल लोग और यहाँ की संस्कृति आपको निश्चित रूप से प्रभावित करेगी। तब आप भी कह उठेंगे:
“हाँ, सचमुच — छत्तीसगढ़िया सबले बढ़िया!”