बाढ़ : कारण, उत्पन्न समस्याएँ एवं नियन्त्रण के उपाय :
बाढ़ प्राकृतिक प्रकोपों में सबसे अधिक विश्वव्यापी है। यदि जल प्लावन ऐसे क्षेत्र में होता है जहाँ सामान्यतया पानी नहीं रहता है तो उसे बाढ़ कहते हैं। उदाहरणार्थ, जब वर्षा का जल अपने प्रवाह मार्ग (नदी नाला) से न बहकर आस-पास के क्षेत्रों पर फैल जाता है तो उसे बाढ़ कहा जाता है। प्रवाह मार्ग के अभाव में जब वर्षा जल किसी स्थान पर रुक जाता है तो उसे जल प्लावन (Inundation) कहा जाता है।
एक आंकलन के अनुसार, विश्व की नदियों का बाढ़ क्षेत्र केवल 3.51% है, जबकि बाढ़ लगभग 19.5% जनसंख्या को प्रभावित करती हैं। पहले ऐसे बाढ़ क्षेत्रों में बहुत कम आबादी थी, लेकिन आज अनेकानेक कारणों से बाढ़ क्षेत्रों में भी मानव रहने के लिए विवश हैं। साथ ही नहरों का विस्तार भी ऐसे क्षेत्रों में होता चला जा रहा है। भारत में ऐसे अनेक नगर हैं जिनका एक बड़ा भाग प्रतिवर्ष नदी की बाढ़ से प्रभावित होता है। ऐसी ही स्थिति प्लावन की है। प्रतिवर्ष जल प्लावन और बाढ़ से भारत में करोड़ों रुपये की सम्पत्ति, हजारों मनुष्य और करोड़ों जीव-जन्तु कालकवलित होते हैं। हाल के वर्षों में यह विनाश बढ़ता ही जा रहा है। भारत का मध्यवर्ती और पूर्वी भाग इस विनाश से इतना आक्रान्त है कि प्रगति की गति धीमी हो गयी है।
बाढ़ के कारण (Causes of Flood) :
हमारे देश में बाढ़ के प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं-
(1) वनस्पतियों का विनाश
वनस्पति विनाश से अधिक बाढ़ की अवधारणा अब पुष्ट होती जा रही है। वनस्पतिविहीन धरातल वर्षा जल को नियन्त्रित करने में असमर्थ होता है, फलतः तीव्र बहाव के कारण भूमिक्षरण भी अधिक होता है। अपनी बढ़ती आवश्यकता और पौधों के प्रति अनुदार व्यवहार के कारण विश्व के सभी विकसित और विकासशील देशों में क्योंकि तेजी से वन विनाश हुआ है। भारत आज संकट के कगार पर खड़ा है, क्योंकि कुछ क्षेत्रों में 10 प्रतिशत भू-क्षेत्र से कम भूमि पर प्राकृतिक वनस्पति का विस्तार बच पाया है।
हिमालय का वनस्पतिविहीन होना उत्तरी भाग में बाढ़ के प्रकोपों का सबसे बड़ा कारण है, क्योंकि अधिकांश नदियाँ यहीं से निकलती हैं। अधिक ढाल के कारण हिमालय क्षेत्र का वर्षा जल तेजी से नदियों में पहुंचता है जिसे प्रवाहित करना उनके लिए कठिन हो जाता है।
(2) वर्षा की अनिश्चितता
वर्षा की अनिश्चितता भी बाढ़ का कारण है। अनेक शुष्क एवं अर्द्ध-शुष्क भागों में वर्षा होने से अपवाह मार्ग अवरुद्ध हो जाते हैं और जब अधिक वर्षा हो जाती है तो उसका निकास कठिन हो जाता है। राजस्थान में आने वाली बाढ़ इसी प्रकार की है जिससे अपार क्षति होती है। पर्यावरण परिवर्तन के रूप में वर्षा की अनिश्चितता सर्वज्ञात है।
(3) नदी तल पर अधिक मलवे का जमाव
नदियों के अपरदन, परिवहन और निक्षेपण की एक प्राकृतिक व्यवस्था है। नदी अपनी सामान्य प्रक्रिया में जितना काटती है उसे ढोती जाती है। लेकिन जब धरातल बंजर हो, धारा में भूस्खलन से अधिक मलवा आ जाये या मानवीय कारणों से नदी का बोझ बढ़ जाये या ढोने की क्षमता घट जाये तो अधिक मलवा तल पर जमा हो जाता है जो नदी की अपवाह क्षमता को घटा देता है। फलतः थोड़ी भी अधिक वर्षा होने पर नदी जल फैलकर बाढ़ उत्पन्न करता है। उत्तर भारत की लगभग सभी नदियाँ इससे प्रभावित हैं।
(4) नदी की धारा में परिवर्तन
धरातल में कम ढाल और वर्षा काल में जल दबाव के कारण पहले नदी सर्पाकार बहती है और बाढ़ में धारा परिवर्तन कर लेती है। ऐसी दशा में बाढ़ की घटनाएँ बढ़ जाती हैं, क्योंकि सर्पाकार नदी की बहाव क्षमता घट जाती है, जिससे जल बाढ़ क्षेत्र में फैल जाता है और जब धारा परिवर्तन होता है तो छाड़न धारा और तालों के माध्यम से विस्तृत क्षेत्र बाढ़ की चपेट में आ जाता है। जल प्लावन में वर्षा के जल का निकास न होने के कारण विस्तृत क्षेत्र में जल भरा रहता है और फसलों को नुकसान पहुँचाता है।
(5) नदी मार्ग में मानव निर्मित व्यवधान
विविध उपयोगों के कारण नदी धारा में व्यवधान आज सभी नदियों के सन्दर्भ में देखा जा सकता है। रेल और सड़क, जलाशय, बाँध, क्रीड़ा-केन्द्र, बिजलीघर आदि के कारण नदी का स्वाभाविक अपवाह बाधित हुआ है। छोटे नालों में कृषि आदि के कारण बाधा खड़ी हो गई है। इन अवरोधों के कारण बाढ़ का प्रकोप तेजी से बढ़ा है। आज प्रतिवर्ष वर्षाकाल में सबसे बड़ी खबर यह बनती है कि अमुक क्षेत्र में हजारों हेक्टेयर फसल बरबाद हो गई, कई हजार लोग बेघर हो गये तथा लाखों मवेशियों और अन्य जीवों का विनाश हुआ।
(6) तटबन्ध और तटीय अधिवास
बाढ़ रोकने के लिए बनाये गये तटबन्ध बाढ़ के कारण बनते जा रहे हैं, क्योंकि इससे एक क्षेत्र या स्थान पर बाढ़ से राहत मिल जाती है लेकिन अन्य क्षेत्रों को इसका कष्ट भुगतना पड़ता है। वास्तव में तटबन्ध एक प्रकार से प्रवाह में अवरोध उत्पन्न करते हैं। स्पष्ट है कि बाढ़ को जितना कम किया जाना चाहिए उससे बहुत कम सफलता मिल पा रही है, क्योंकि पर्यावरण से मानवीय छेड़छाड़ बदलाव का कारण है। बाढ़ की विभीषिका के कारण भारत के कुछ क्षेत्र गरीबी से उबरने में असफल हैं। उत्तर-पूर्वी भारत इसका सबसे बड़ा उदाहरण है।
बाढ़ आने से उत्पन्न समस्याएँ :
भारत में प्रतिवर्ष लगभग 40 करोड़ हेक्टेयर भूमि एवं 30 करोड़ व्यक्ति बाढ़ से प्रभावित होते हैं तथा अरबों की सम्पत्ति नष्ट होती है। वर्ष 1976-77 में 176 लाख हेक्टेयर भूमि बाढ़ग्रस्त हुई, जिससे लगभग ₹ 25,954 लाख की क्षति हुई थी। इस क्षति को पूरा करने के लिए सरकारी खजाने और बाढ़ पीड़ितों पर दिनों-दिन दबाव बढ़ता गया। इस प्रकार लगभग एक प्रतिशत कुल राष्ट्रीय आय का नुकसान बाढ़ से होता है। बाढ़ से अधिक प्रभावित क्षेत्रों में जनजीवन में सुधार एक कठिन समस्या है। बाढ़ न केवल फसलों को नुकसान पहुँचाती है अपितु गृह, मवेशी, यातायात के साधन और भूक्षरण से प्रभावित कर जीवन को संकटमय बना देती है।
हाल के वर्षों में बाढ़ का प्रकोप बढ़ा है जिसके दो कारण हैं। पहला यह, कि बाढ़ की घटना बढ़ोत्तरी पर है, क्योंकि वर्षा के कालिक ओर स्थानिक वितरण में मौसमी व्यतिक्रम बढ़ रहा है तथा दूसरा कारण, बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में जनसंख्या प्रसार है जिससे बाढ़ के प्रकोप का मूल्यांकन बढ़ गया है। वर्ष 1953 से 1975 के मध्य बाढ़ से होने वाली क्षति का अनुमान लगाया गया है जिसके अनुसार औसतन 74 लाख हेक्टेयर भूमि प्रतिवर्ष प्रभावित होती है जिसमें से 31 लाख हेक्टेयर भूमि बोई गई होती है। औसतन 8 लाख मकान और 50 हजार पालतू पशुओं का नुकसान होता है। मरने वालों की औसत संख्या 742 आंकी गई है और फसल नुकसान ₹2 अरब से अधिक आंका गया है। कभी-कभी एक साल में यह नुकसान ₹9 अरब तक पहुँच जाता है जिससे सरकार को भारी रकम खर्च करनी पड़ती है।
बाढ़ नियन्त्रण के उपाय :
बाढ़ नियन्त्रण के लिए दो तरह के उपाय किये जाते हैं-
(अ) संरचनात्मक (Structure)
संरचनात्मक उपायों के अन्तर्गत बाँध बनाना, तटबन्ध बनाना, नदियों के मार्ग को गहरा करना तथा बाढ़ से राहत हेतु छमक (Spill over channel) नालियों का निर्माण करना आता है। बाढ़ के मैदानों को काल प्रखण्डों में बाँटकर उनका नियोजन करते हैं, जैसे-प्रतिवर्ष, प्रति पाँचवें वर्ष, प्रति बीस वर्ष वाले बाढ़ के क्षेत्र आदि। दूसरे बाढ़ क्षेत्र नियोजन (Flood plain zoning) विधि कहते हैं।
(ब) व्यवहारजन्य (Behavioural)
बाढ़ विपदा से मनुष्य को जूझना ही तथा हानि को स्वीकार करना पड़ता है, क्योंकि यह एक प्राकृतिक संकट है। यह संकट मानव-जन्य भी है। इससे निपटने के लिए आर्थिक सहायता देना, बाढ़ बीमा (Flood Insurance) करना, बाढ़ का पूर्वानुमान करना आवश्यक होता है।