बस्तर जिला : छत्तीसगढ़
सामान्य परिचय – काकतीय नरेशों द्वारा लिखित इतिहास के पन्ने, इस भूखंड के सामाजिक समरसता, भाईचारा तथा सशक्त संस्कृति-सभ्यता की गाथा कहती है। बस्तर दशहरा अपनी अनूठी लोक-मान्यता तथा परंपरा के लिए जानी जाती है। वहीं माता दंतेश्वरी की चमत्कारिक एवं दैवीय-लीलाएं हमें रोमांचित करती है।
कुटुम्बसर की गुफा, प्रकृति की अद्भुत, अनोखी वास्तुकारिता की मिसाल है, वहीं तीरथगढ़ जलप्रपात अपने विशालता का एहसास दिलाती है।
प्रकृति जहां न्यौछावर जान पड़ती हैं, ऐसी रहस्यमई गुफाएं, अपलक निहारती झरनों, गगनचुम्बी साल वन, अटखेलियां करते जीव जन्तु, कलरव करते खग-विहग तथा सूर-संगीत की मधुर बयार में रंग बिखेरती आदिवासी संस्कृति-सभ्यता की भूमि है।
दूधिया रोशनी में नहाती, चित्रकोट का नजारा, सुबह होते ही सूर्य की लालीमा में रंग-बदलते प्रकृति की अनोखी तस्वीर प्रस्तुत करती है। चारों दिशाओं में पहाड़ी मैनों की चहचहाहट, वन भैसों की रंभाने की आवाज प्राकृतिक रूप सूर-संगीत का बोध कराता है।
इतिहास – नलवंश (कोरापुट), छिंदकनाग वंश (बारसूर), काकतीय वंश (बस्तर, जगदलपुर) वंशों के द्वारा शासन का प्रमाण मिलता है। बस्तर जिले का गठन 1948 में हुआ था, जिसका 1998 में विभाजन कर दो नवीनतम जिला कांकेर व दंतेवाड़ा का गठन किया गया। सन् 2007 में बस्तर के पश्चिम भाग से नारायणपुर जिला और 2012 में कोंडागांव जिला का गठन किया गया।
- संभाग बना —> 1981
- जिला बना —> 1948
- जिला मुख्यालय —> जगदलपुर
- क्षेत्रफल —> 4029.98 वर्ग किमी.
- पड़ोसी सीमा —> कोंडागांव, दंतेवाड़ा, बीजापुर, सुकमा, ओडिशा।
- विशिष्ट परिचय —> स्वतंत्रता से पूर्व छत्तीसगढ़ का सबसे बड़ा रियासत और मध्य प्रदेश राज्य में सबसे बड़ा जिला।
- प्रमुख नदी —> इंद्रावती नदी, मुनगाबहार नदी, कांगेर नदी।
- पर्यटन —> कांगेर घाटी राष्ट्रीय उद्यान, चित्रकूट जलप्रपात, तीरथगढ़ जलप्रपात, कुटुम्बसर गुफा आदि।
- चुनापत्थर – देवरापाल, रायकोट
- बाक्साइड – आसना, तारापुर, कुदारवाही
- अभ्रक – दरभा घाटी
- हीरा – तोकापाल
- डोलोमाइट – कुलमी, कुम्हली, तराई पदर
- क्वार्टजाइट – डीलमिली
- डियर पार्क – कोटमसर, नागलटर।
- एग्रो पार्क – बस्तर
- हस्तशिल्प कॉम्प्लेक्स – जगदलपुर
- बस्तर के प्रमुख औद्योगिक क्षेत्र – नगरनार स्टील प्लांट
प्रमुख उद्योग –
- एस्सार इस्पात संयंत्र – हीरानार
- रेशम उद्योग (टसर) – बस्तर
- काजू शोध केंद्र – बस्तर
निवासरत प्रमुख जनजाति – गोंड, मारिया, मुड़िया, भतरा, हल्बा, परजा।
केंद्र संरक्षित स्मारक
1. महादेव मंदिर बस्तर
जगदलपुर-रायपुर राष्ट्रीय राजमार्ग क्रमांक-30 पर स्थित ग्राम बस्तर में ग्यारहवीं शताब्दी का एक प्रसिद्ध शिवालय है। यहां के शिवलिंग को स्वयंभू कहा जाता है। यह शिवालय केन्द्रीय पुरातत्व विभाग द्वारा संरक्षित है। पुरातत्व विभाग के अनुसार बस्तर ग्राम में निर्मित संभाग के दूसरे सबसे बड़े बाणसागर जलाशय और इस शिवालय का निर्माण तत्कालीन बस्तर के राजाओं ने कराया था। यह मंदिर 10वीं शताब्दी का है।
लोक मान्यता है कि यहां पहुंचने वाले निःसंतानों की मनोकामना भोलेनाथ अवश्य पूरी करते हैं। वहीं इच्छा पूरी होने पर भक्त यहां त्रिशूल व धातु निर्मित नाग अर्पित करते हैं। इस मंदिर में शिवरात्रि पर नहीं अपितु हर साल माघ महीने में गंगादई के नाम से मेला लगता है। मंदिर के आसपास बस्ती में दर्जनों पुरानी मूर्तियां बिखरी पड़ी हैं। राजधानी रायपुर से यह मंदिर 280 किमी दूर है।
2. काष्ठ निर्मित मृतक स्मृति स्तंभ डिलमिली
जगदलपुर से दंतेवाड़ा के बीच राजमार्ग पर डिलमिली के निकट “मुचकी हूंगा” नामक माड़िया का एक काष्ठ स्तंभ है। कहा जाता है कि मुचकी हुंगा एक सम्पन्न आदिवासी नायक था, जिसकी स्मृति में उक्त काष्ठ स्तंभ गाड़ा गया। यह एक मोटा घना काष्ठ स्तंभ है, जिसे अत्यधिक सावधानी के साथ चौकोर तराशा गया है। उर्ध्वभाग में मकर तथा कपोतों की आकृतियों बनी हुई है। समूचे काष्ठ स्तंभ के आधार पर एक त्रिशूल आरेखित है तथा उसके ऊपर एक पक्षी का चित्रण है। काष्ठ स्तम्भ के पश्चिमी फलक पर गँवर सींगधारी नर्तकदल का आरेखण है। उन्हीं के साथ छः कन्याओं का भी चित्रण है, उक्त नर्तकदल के नीचे चीते, सारस तथा मयूर को उकेरा गया है। काष्ठ स्तम्भ के दक्षिणी फलक पर हाथ पर सवार मृत नायक के चित्र है, जिसके एक हाथ में छतोड़ी है। हाथी की काठी पर रूपयों के थैले का भी प्रदर्शन है। काष्ठ स्तम्भ के पूर्वी फलक पर अश्वारोही व्यक्ति के साथ मछलियों, घोड़ों तथा कछुओं का चित्रण है। काष्ठ स्तम्भ के उत्तरी फलक पर बच्चों सहित पति-पत्नी को दर्शाया गया है। पास में ही सर्पों तथा पक्षियों के अनेक आरेखण हैं। इनके ठीक नीचे अनेक लोग चावल की मदिरा के पात्र को थाम कर चल रहे हैं। बस्तर अंचल में स्थित ये मृतक स्तम्भ एक प्रकार के जय स्तम्भ हैं, जिनमें आदिवासी नायकों की जीवनी को प्रतीकों के माध्यम से उकेरा गया है।
3. नारायण मंदिर, नारायणपाल
छिदक नागवंशी राजा धारावर्ष की रानी गुण्डमहादेवी द्वारा इस मंदिर को ई. सन् 1111 में बनवाया गया। गुण्डमहादेवी का पुत्र सोमेश्वर देव एक प्रतापी राजा था। मंदिर के पूर्ण होते-होते धारावर्ष एवं सोमेश्वर देव दिवंगत हो चुके थे एवं गुण्डमहादेवी के पौत्र छिंदक नागवंशी राजा कन्हर देव का शासन था। गुण्डमहादेवी और उसकी बहु सोमश्वर देव की रानी के शिलालेख यहाँ पर हैं। नारायणपाल का यह मंदिर पुरातत्व विभाग द्वारा संरक्षित स्मारक है एवं छिदक नागवंशी शासन के समय की जानकारी प्राप्त करने का मुख्य स्त्रोत भी है। नारायणपाल के विष्णु मंदिर में स्थापित गुण्डमहादेवी के शिलालेख एवं गर्भगृह में स्थापित भगवान विष्णु की प्रतिमा है।
राज्य संरक्षित स्मारक :
1. गुड़ियारी मंदिर, केशरपाल
यह स्मारक रायपुर रोड पर जगदलपुर से करीब 40 किलोमीटर की दूरी पर केशरपाल गांव में गुधियारी तालाब के तट पर स्थित है। यहां, गणेश और उमा महेश्वर की छवियों के साथ प्राचीन शिव मंदिर के अवशेष देखने लायक हैं। यह मंदिर 13 वीं शताब्दी ईस्वी में बनाया गया था। यहां पाए गए नागरी लिपि में उत्कीर्ण एक पत्थर शिलालेख को जिला पुरातात्विक संग्रहालय, जगदलपुर में स्थानांतरित किया गया था।
2. शिव मंदिर, धुमरमुंडपारा
यह स्मारक चित्रकोट के घूमरमुंड के पास स्थित है। यह ध्वस्त मंदिर शिवजी को समर्पित है। इसके गर्भगृह में बड़ी वर्गाकार जलाधारी शिवलिंग स्थापित की गई थी। यह शिव मंदिर 11वीं-12वीं शताब्दी में छिदक नागवंशीय शासकों के शासनकाल में बनाया गया था।
3. शिव मंदिर, गुमड़पाल
यह मंदिर बस्तर जिले में कटेकल्याण-जगदलपुर (तीरथगढ़ के माध्यम से) सड़क पर लगभग 15 कि.मी. के सिंघिगुड़ी में गुमदापाल के पास स्थित है। इस प्राचीन मंदिर में अंटाकार और अभ्यारण्य शामिल है। अभ्यारण्य में जलाधारी या योनी पिथा पर एक शिव लिंग स्थापित किया गया था। यह मंदिर काकतीय शासकों द्वारा 13वें 14वें शताब्दी में बनाया गया था। यह क्षेत्रीय मंदिर वास्तुकला का एक अच्छा उदाहरण है।
4. शिव मंदिर, छिंदगांव
यह स्मारक जगदलपुर-चित्रकोट रोड पर जगदलपुर से 26 कि.मी. की दूरी पर छिंदगांव में इन्द्रावती नदी के तट पर मध्य बस्तर जिले में अवस्थित है। ऊँचे चबूतरे पर निर्मित पूर्णाभिमुखी यह शिवमंदिर वर्तमान में अत्यन्त जीर्ण स्थिति में है। इस प्राचीन शिव मंदिर का निर्माण 12वीं शती ईस्वी में छिन्दक नागवंशीय राजाओं के द्वारा कराया गया होगा। इस मंदिर की नृसिंह एवं चामुण्डा की प्रतिमायें ग्रामवासियों द्वारा परिसर के समीप नवनिर्मित दन्तेश्वरी माई मंदिर में रखवा दी गई है। मंदिर का गर्भगृह मंडप की सतह से गहरा है और ऊपरी शिखर भाग अत्याधिक क्षतिग्रस्त है।
पर्यटन स्थल :
1. कांगेर घाटी राष्ट्रीय उद्यान (प्राकृतिक बायोस्फियर)
- गठन – 1982
- विशेष – छत्तीसगढ़ का सबसे छोटा राष्ट्रीय उद्यान
- क्षेत्रफल – 200 वर्ग कि.मी.
- विशेष क्षेत्र – कुटुम्बसर गुफा, तीरथगढ़ जलप्रपात, भैंसादरहा (क्रोकोडाइल पार्क), कैलाश गुफा, दण्डक गुफा, कांगेर धारा।
- यहाँ मुख्य रूप से साल वनों की प्रधानता है।
- पहाड़ी मैना इस राष्ट्रीय उद्यान की प्रमुख पक्षी है।
- प्रमुख जानवर- वनभैंसा, बाघ, बारहसिंघा, माउस डियर, उड़न गिलहरी। अन्य- गौर, सांभर, मोर
- इस उद्यान के मध्य से कांगेर नदी गुजरती है।
2. चित्रकूट (भारत का नियाग्रा)
इंद्रावती नदी पर स्थित ‘भारत का नियाग्रा’ चित्रकूट की प्राकृतिक छटा दर्शनीय है। इंद्रावती नदी पर 90 फीट ऊँचाई से गिरते हुए जलप्रपात को देखने पर रोमांचक अनुभव होता है। भारत का सबसे चौड़ा (300 फीट) जलप्रपात होने का श्रेय प्राप्त है।
3. तीरथगढ़ (कांकेर घाटी का जादूगर)
‘कांकेर घाटी का जादूगर’ तीरथगढ़ की प्राकृतिक छटा दर्शनीय है। वितनाघाटी में स्थित मुनगाबहार नदी पर तीरथगढ़ जलप्रपात को छत्तीसगढ़ का सबसे ऊँचा (500 फीट) जलप्रपात होने का गौरव प्राप्त है। कांगेर राष्ट्रीय उद्यान के गर्भ में होना पर्यटकों के लिये स्वर्ग के समान है।
4. कुटुमसर की गुफा
‘भारत का प्रथम गुफा’, कुटुमसर हैरतअंगेज प्राकृतिक भूमिगत गुफा है। स्टेलेग्माईट, सेलेक्टाईट और कैप्ट, पीलर से निर्मित है। बस्तर जिले के कांगेरघाटी राष्ट्रीय उद्यान के आंचल में स्थित है। अंधी मछलियाँ, केपिओला शंकराई झिंगुर, चूने की विविध कलाकृतियाँ प्रकृति की करिश्मा हैं। कुटुमसर गुफा को प्रकाश में लाने का श्रेय पं. शंकर तिवारी (1958 ई.) को है।
★ बस्तर (साल वनों का द्वीप)
- – छ.ग. के सांस्कृतिक राजधानी।
- – प्राचीन नाम – चक्रकोट, भ्रमरकोट, दण्डकारण्य।
- – काकतीय राजवंश की राजधानी ।
- – छ: वन वृत्त में से एक बस्तर वन वृत्त ।
- – सर्वाधिक इमारती लकड़ी।
- – एशिया का सबसे बड़ा इमली मंडी।
- – तेंदुपत्ता का प्रमुख उत्पादक जिला।
- – कोरंडम कटिंग एण्ड पालिसिंग।
- – अनुसंधान केंद्र – 1) काज. 2) कोसा. 3) लघु धान्य फसल।
★ जगदलपुर
- – जिला मुख्यालय।
- – काकतीय शासक दलपत देव ने बसाया था।
- – चौराहों का शहर (रूद्रप्रताप देव के द्वारा बनवाया गया)।
- – बगीचों का शहर।
- – हस्तशिल्प कांपलेक्स।
- – 6 आकाशवाणी केन्द्र में से एक।
- – वन रक्षक प्रशिक्षण संस्थान।
- – 8 हवाई पट्टियों में से एक।
- – वन अनुसंधान केन्द्र।
- – वन पाल प्रशिक्षण संस्थान।
- – 1972 में नृजातीय म्यूजियम स्थापित।