# मैकियावेली को आधुनिक राजनीतिक विचारक क्यों कहा जाता है? आलोचनात्मक व्याख्या कीजिए | Aadhunik Rajnitik Vichark

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आधुनिक राजनीतिक विचारक : मैकियावेली

राजनीतिक दर्शन में मैकियावेली को “अपने युग का शिशु” कहने के साथ-साथ “आधुनिक युग का जनक” भी कहा जाता है। मैकियावेली धार्मिक आधार पर राजनीतिक साम्राज्य का विरोधी था और दांते की भाँति उसने विश्व साम्राज्य की कल्पना नहीं की। वह तो राष्ट्रीय राज्य को ही मानव मस्तिष्क की सर्वोत्तम अभिव्यक्ति मानता था। इसलिए वह इटली को एक राष्ट्रीय राज्य के रूप में विकसित होते हुए देखना चाहता था। मध्य युग के दैवीय कानून में उसकी कोई आस्था नहीं थी तथा विधि-निर्माता या शासक द्वारा निर्मित कानूनों को ही वह सर्वश्रेष्ठ एवं सर्वोच्च मानता था। इस प्रकार मैकियावेली के विचार मध्य युग के विचारकों से अनेक विषय में भिन्न थे।

अब हम आधुनिक युग की उन विशेषताओं का अध्ययन करेंगे, जिनकी हमें सर्वप्रथम झलक मैकियावेली की विचारधारा में देखने को मिलती है और जिसके आधार पर उसे आधुनिक युग का जनक कहा जा सकता है-

1. राजनीति का धर्म और नैतिकता से पृथकत्व

मैकियावेली को आधुनिक युग का जनक कहने का सबसे प्रमुख कारण उसके द्वारा राजनीति का धर्म और नैतिकता से किया गया पृथक्करण ही है। मध्य युग के समस्त राजनीतिक दर्शन में धर्म राजनीति पर हावी रहा और नैतिकता तथा धर्म की दुहाई देते हुए राजनीतिक संस्थाओं का विकास रोके रखा गया। मध्य युग के अन्त में राजनीति को धर्म से पृथक् की आवश्यकता अनुभव की जा रही थी, लेकिन किसी ने भी इस सम्बन्ध में आवश्यक साहस का परिचय नहीं दिया। मैकियावेली ने ही सर्वप्रथम निर्भीकता और स्पष्टवादिता के साथ घोषणा की कि राजनीति का धर्म और नैतिकता से कोई सम्बन्ध नहीं है और राजनीतिक लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए आवश्यकतानुसार उचित-अनुचित सभी प्रकार के साधन अपनाये जा सकते हैं। उसने इस बात का प्रतिपादन किया कि धर्म और नैतिकता व्यक्तिगत क्षेत्र में आराम से रह सकते हैं। सार्वजनिक क्षेत्र में तो उन्हें राजनीति की चेरी बनकर रहना होगा और उनका प्रयोग राजनीतिक साधन के रूप में ही किया जायेगा। इस प्रकार मैकियावेली धर्म और नैतिकता से मुक्तराजनीति का प्रणेता है।

कोकर के शब्दों में, “मैकियावेली को प्रथम आधुनिक राजनीतिक सिद्धान्तवेत्ता कहने का सर्वप्रमुख कारण धर्म और नैतिकता के प्रति उसकी उदासीनता और उसके द्वारा केवल लौकिक अनुभव और मानवीय विवेक को की गयी अपील है।”

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2. राष्ट्रीय राज्य का सन्देशवाहक

आधुनिक युग के प्रारम्भ में एक महत्त्वपूर्ण राजनीतिक परिवर्तन हुआ। पवित्र रोमन साम्राज्य तथा पोपतन्त्र दोनों की शक्ति तथा सम्मान कम हो गया और यूरोप में शक्तिशाली राष्ट्रीय राज्यों का उदय हुआ। इन राजाओं ने निरंकुश राजनीतिक शक्ति अपने हाथ में ले ली तथा धर्म की सत्ता को समाप्त कर दिया। आधुनिक युग के प्रत्येक विचारक ने इस राष्ट्रीय राज्य की कल्पना का प्रतिपादन किया है जिसमें मैकियावेली उसमें सर्वप्रथम था।

डॉयल (Doyle) के शब्दों में, “मैकियावेली प्रथम विचारक था जिसने राष्ट्रीय राज्य के लक्षणों की विवेचना और विश्लेषण किया और इस राजनीतिक सावयव की धारणा को जन्म देने की चेष्टा की।” उसकी श्रेष्ठ कृति ‘प्रिंस‘ इस बात का सबसे बड़ा प्रमाण है। वह अपने समय के राष्ट्रीय राज्यों-जर्मनी, स्पेन, फ्रांस और इंग्लैण्ड को बड़े सम्मान की दृष्टि से देखता था और उसकी समस्त राजनीतिक कृतियों का यदि कोई उद्देश्य बताया जा सकता है, तो वह इटली को राष्ट्रीय राज्य के रूप में परिणत करना ही था।

3. राज्य की आधुनिक स्थिति का निरूपण

आधुनिक युग का एक प्रमुख लक्षण राज्य को प्राप्त अत्यन्त महत्त्वपूर्ण स्थिति है और अरस्तू के बाद मैकियावेली सबसे पहले राजनीतिक विचारक हैं, जिन्होंने राज्य की महत्त्वपूर्ण स्थिति का निरूपण किया है। मैकियावेली ने राज्य की महत्ता का इस सीमा तक प्रतिपादन किया है कि उसे एक प्रकार से साध्य ही बना दिया है। मैकियावेली ने ही सबसे पहले यह बताया कि राज्य एक ऐसी सर्वोपरि सत्ता है जिसकी अधीनता से ही अन्य सारी संस्थाएँ और संगठन फल-फूल सकते हैं। समाज की अन्य सभी छोटी-बड़ी संस्थाएँ राज्य की अधीनता में रहकर ही अपना कार्य सुरक्षित ढंग से कर सकती हैं और राज्य के हित में ही अपना हित समन्वित करके आगे बढ़ सकती हैं। वर्तमान समय में स्थिति यही है और सेबाइन मैकियावेली को इस बात का श्रेय देते हैं कि “उसने राजनीतिक विकास की दिशा में होने वाले इस परिवर्तन को पहले से ही भाँप लिया था।”

4. राज्य की प्रभुसत्ता का पोषक

सम्प्रभुता के विचार को आधुनिक युग की प्रतीक धारणा कहा जा सकता है और यद्यपि मैकियावेली ने कहीं भी बोदां, ग्रोशियस, हॉब्स या ऑस्टिन की भाँति राज्य की सम्प्रभुता पर विचार नहीं किया है और न उसकी कोई परिभाषा दी है पर राज्य को उन्होंने सर्वोपरि संस्था माना है, जिसकी अधीनता में सभी व्यक्ति और संस्थाएँ रहती हैं। सेबाइन के मतानुसार, “सर्वोच्च राजनीतिक संस्था के रूप में ‘राज्य‘ शब्द का प्रयोग आधुनिक भाषाओं में उसी की रचनाओं से शुरू हुआ। मैकियावेली के समय से ही राज्य सम्प्रभु कहा जाने लगा और बाद में सम्प्रभुता का सिद्धान्त प्रतिपादित कर दिया गया।” भले ही मैकियावेली ने ‘सम्प्रभुता’ शब्द का प्रयोग न किया हो, पर उन्होंने व्यवहार में राज्य की सम्प्रभुता को पूर्ण अर्थ प्रदान किये हैं। इस प्रकार मैकियावेली सिद्धान्त में न सही लेकिन व्यवहार ही राज्य की सम्प्रभुता के पोषक थे।

5. शक्तिवादी राजनीति के प्रणेता

आधुनिक युग की एक विशेषता शक्तिवादी राजनीति (Power Politics) है और इस शक्तिवादी राजनीति को मैकियावेली ने ही प्रारम्भ किया है। मैकियावेली ने एक केन्द्रीय सत्ता की स्थापना पर जोर दिया है और शक्ति की सर्वोच्चता की पूजा की है। उसके अनुसार शक्ति का औचित्य स्वयं शक्ति ही है। मैक्सी के अनुसार, “इस सम्बन्ध में यथार्थवादी दृष्टिकोण अपनाने वाला वह प्रथम विचारक था।”

इसी प्रकार डोनाल्ड इटबैलजोल ने लिखा है कि, “यदि एक शब्द में मैकियावेली के चिन्तन के केन्द्रीय तत्त्व को संक्षिप्त करना सम्भव हो, तो वह तत्त्व है शक्ति। उसका कैसे निर्माण किया जाय, उसे कैसे बनाये रखा जाय और उसका विस्तार कैसे किया जाय।” आधुनिक राजनीति में जिन राजनीतिक एवं कूटनीतिक दाव-पेंच तथ छल-कपट का प्रयोग किया जाता है। औपचारिक एवं स्पष्ट रूप से इन साधनों के प्रयोग का समर्थन मैकियावेली ने ही किया।

6. व्यक्तिवाद के समर्थक

आधुनिक युग की एक विशेष प्रवृत्ति व्यक्तिवादी विचारधारा है। आधुनिक युग के प्रारम्भ में व्यापार, वाणिज्य और उद्योग का प्रसार हो रहा था और यह विचारधारा बल ग्रहण कर रही थी कि राज्य के द्वारा आर्थिक क्षेत्र में हस्तक्षेप नहीं किया जाना चाहिए। मैकियावेली ने इस विचारधारा के अनुसार ही शासन को यह परामर्श दिया कि प्रजाजन के धन का किसी भी दशा में अपहरण नहीं किया जाना चाहिए तथा व्यापार और वाणिज्य के विकास के लिए सभी आवश्यक प्रयत्न किये जाने चाहिए। उसने इस प्रवृत्ति के अनुरूप ही शासक को यह परामर्श दिया कि उसे स्वयं व्यापार-वाणिज्य के चक्कर में नहीं पड़ना चाहिए। मैकियावेली इस दृष्टि से भी व्यक्तिवाद का सन्देशवाहक है कि उसने मानवीय व्यक्तित्व को रोमन चर्च के प्रभाव से मुक्तकर उसे पुनर्प्रतिष्ठित करने की चेष्टा की है।

7. भौतिकता और उपयोगिता के प्रवर्तक

आधुनिक युग में भौतिकवाद और उपयोगितावाद का भी एक विशिष्ट स्थान है और मैकियावेली इस सम्बन्ध में भी अग्रणी है। उसने इस बात का प्रतिपादन किया है कि मानव को इहलौकिक सुख की ही कामना करनी चाहिए और उसके लिए सारा प्रयत्न किया जाना चाहिए। राज्य और प्रभुता, कला और सौन्दर्य, नारी और मदिरा-ये ही भोग के योग्य वस्तुएँ हैं। मैकियावेली का यह सुखवादी सन्देश आधुनिक मानव के लिए अत्यधिक प्रीतिकर है और इस आधार पर उसे उपयोगितावाद का प्रवर्तक कहा जा सकता है।

8. संघ राज्य के प्रथम विचारक

मैकियावेली ने इटली के लिए एक ‘कामनवेल्थ’ के निर्माण का विचार भी रखा है। उसका कहना था कि एक बार प्रिंस इकाई राज्यों को विभाजित कर उन्हें अपनी अधीनता में कर लेगा, फिर एक ऐसा संघ-राज्य बनायेगा, जिसमें शासन की शक्ति कुछ सीमा तक इकाइयों में विभाजित होगी। आधुनिक युग में विशाल राज्यों के लिए संघीय व्यवस्था ही अधिक व्यावहारिक है और मैकियावेली ने चाहे संघ-राज्य के सारे तत्त्वों पर विचार न किया हो, लेकिन उसने इस कल्पना को अवश्य ही लिया था।

9. आधुनिक अध्ययन पद्धति के अनुयायी

इन सबके अतिरिक्त मैकियावेली अध्ययन पद्धति की दृष्टि से भी आधुनिक युग के जनक है। आधुनिक अध्ययन पद्धति प्रमुख लक्षण बताये जा सकते हैं-पर्यवेक्षण, यथार्थवादी दृष्टिकोण, वैज्ञानिक तटस्थता, विश्लेषण और ऐतिहासिक आधार। मैकियावेली ने अपनी अध्ययन पद्धति में मध्य युग के अति धार्मिकतावादी दृष्टिकोण का बहिष्कार किया था और बहुत कुछ सीमा तक उसकी अध्ययन पद्धति में आधुनिक युग की अध्ययन पद्धति के उपयुक्त सभी लक्षण विद्यमान हैं। उसने अपनी सूक्ष्म और स्पष्ट दृष्टि के आधार पर तत्कालीन परिस्थितियों का पर्यवेक्षण किया और ऐतिहासिक आधार पर विभिन्न परिणाम निकाले। यद्यपि मैकियावेली में दूरदर्शिता का अभाव है और उसकी अध्ययन पद्धति में कुछ त्रुटियाँ भी हैं, लेकिन उसकी अध्ययन पद्धति आधुनिक ही थी।

यद्यपि कहीं-कहीं मैकियावेली की विचारधारा में मध्य युग के विचारों का भी अप्रत्यक्ष प्रभाव दिखाई पड़ता है, किन्तु उसके राजनीतिक दर्शन में आधुनिक युग की प्रवृत्तियाँ ही प्रबल हैं और उसे बहुत कुछ सीमा तक सत्य रूप में ‘आधुनिक युग का जनक’ कहा जा सकता है। डब्ल्यू. टी. जोन्स लिखते हैं कि, “मैकियावेली किसी भी अन्य व्यक्ति की अपेक्षा और इस तथ्य के बावजूद कि वह कठिनाई से ही राजनीतिक सिद्धान्तवादी है, आधुनिक राजनीतिक दर्शन का जनक है।” इटली में राष्ट्रीयता की भावना मैकियावेली के विचारों द्वारा ही जाग्रत हुई। उसे इटली का प्रथम राष्ट्रवादी और प्रथम देशभक्त कहा जा सकता है।

मैकियावेली का महत्त्व :

राजनीतिक क्षेत्र में मैकियावेली द्वारा बताये गये नैतिकता सम्बन्धी सिद्धान्त के कारण उसकी बहुत आलोचना हुई है। उदाहरण के लिए डॉ. मुरे ने कहा है कि, “मैकियावेली की दृष्टि स्पष्ट है, लेकिन उसमें दूरदर्शिता का अभाव है। उसने वस्तुओं को केवल यथार्थ रूप में ही देखा है, उनके आदर्श रूप की कल्पना नहीं की है….। उसने छल कपट को ही राजनीति की कला समझ लिया है।”

इसी प्रकार मैकियावेली द्वारा राजनीति विज्ञान के मूल प्रश्नों पर विचार न करने के कारण गैटिल ने लिखा है कि, “मैकियावेली का राज्य सम्बन्धी सिद्धान्त, राज्य का सिद्धान्त होने की अपेक्षा मात्र राज्य की सुरक्षा का ही सिद्धान्त है।” उल्लेखनीय है कि, मैकियावेली ने राज्य के स्वरूप, उद्देश्य शासन के विभिन्न अंगों के पारस्परिक सम्बन्धों आदि के बारे में कोई प्रकाश नहीं डाला है, परन्तु मैकियावेली की आलोचना से पहले हमें यह ध्यान रखना चाहिए कि राजनीति में अनैतिकता व धूर्तता तो पहले से ही थी, उसने तो केवल उनका पर्दाफाश किया है। फिर उसने जो कुछ लिखा है, इटली की परिस्थितियों के अनुकूल था और आज भी उसके सिद्धान्तों की उपेक्षा नहीं की जा सकती है।

इसलिए जोन्स का कहना ठीक है कि, “मैकियावेली किसी भी अन्य व्यक्ति की अपेक्षा और इस तथ्य के बावजूद कि वह कठिनाई से ही राजनीतिक सिद्धान्तवादी है, आधुनिक राजनीतिक दर्शक का जनक है।”

अन्त में, मैक्सी का मत उल्लेखनीय है, “मैकियावेली ने राजनीति की नैतिकता को भ्रष्ट नहीं किया, ऐसा तो सदियों पूर्व हो चुका था, परन्तु उसने जिस निर्ममतापूर्वक उन पवित्र षड्यन्त्रों का पर्दाफाश किया, जो धार्मिक मन्त्रोचार द्वारा बड़े-बड़े स्थानों में रचे जाते थे, वह प्रशंसा के अयोग्य नहीं हैं। उसे सच्चे और पक्के देशभक्त होने और आधुनिक राष्ट्र का नेता होने का श्रेय भी दिया जाना चाहिए। सैद्धान्तिकता के विरुद्ध व्यावहारिकता की ओर उसके तीव्र सुझाव ने निःसन्देह राजनीति दर्शन को मध्य युग के पांडित्यपूर्ण अस्पष्टवाद से बचाने में बहुत योग दिया और इसलिए उसे आधुनिक युग के महान राजनीतिक चिन्तकों में सर्वश्रेष्ठ नहीं तो प्रथम चिन्तक अवश्य माना जाना चाहिए।

मैकियावेली की विचारधारा के दोष :

मैकियावेली की विचारधारा में अव्यवस्था, अस्पष्टता और जटिलता के दोष तो हैं ही, उसके कुछ विचार भी त्रुटिपूर्ण हैं और उनमें असंगतियाँ भी हैं। उसके इन दोषों का अध्ययन अग्रलिखित रूपों में किया जा सकता है-

1. अध्ययन पद्धति की त्रुटियाँ

मैकियावेली की अध्ययन पद्धति त्रुटिपूर्ण है। वह सम्पूर्ण इतिहास का अध्ययन कर उससे सही निष्कर्ष निकालने अथवा सिद्धान्तों को मुखरित करने का प्रयत्न नहीं करता। वह तो अपनी पूर्ण धारणाओं और पर्यवेक्षण के आधार पर सिद्धान्त पहले ही निश्चित कर लेता है और तब उनकी पुष्टि के लिए इतिहास से उदाहरण देता है। अतः उनके द्वारा ऐतिहासिक पद्धति को जिस रूप में अपनाया गया है, वह गलत है। उसका पर्यवेक्षण और इतिहास का अध्ययन भी सीमित है, उसने इटली की तत्कालीन दशा का ही अध्ययन किया है।

2. मानव स्वभाव सम्बन्धी दोष

मानव स्वभाव के सम्बन्ध में उसका दृष्टिकोण एकांगी और असंगतिपूर्ण है। मानव में गुण और दोष दोनों ही विद्यमान हैं किन्तु उसने मानव के दोषपूर्ण पक्ष को प्रधानता देते हुए उज्ज्वल पक्ष की अवहेलना की है। मानव स्वभाव के सम्बन्ध में उसका दृष्टिकोण असंगतिपूर्ण भी है। यह बात कितनी दिलचस्प है कि मैकियावेली एक ओर तो कहता है कि मनुष्य सदा दुष्टता की ओर प्रवृत्त रहते हैं, दूसरी ओर वह कहता है कि राष्ट्रों के रूप में संगठित होकर मनुष्य एक ऐसे अधिकार के साथ बोल सकते हैं, जिसकी तुलना ईश्वरीय वाणी से की जा सकती है।

3. राष्ट्रीयता, सम्प्रभुता और विधि सम्बन्धी विचारों में अस्पष्टता

मैकियावेली के राष्ट्रीयता, सम्प्रभुता और विधि सम्बन्धी विचारों में अस्पष्टता और अव्यवस्था है। वह राष्ट्रीयता या राष्ट्र-राज्य की कोई परिभाषा नहीं देता। वह सम्प्रभुता की भी कोई स्पष्ट व्याख्या नहीं करता। उसकी विधियों का विवेचन भी सीमित है। वह केवल नागरिक विधि को ही महत्त्व देता है। ईश्वरीय या प्राकृतिक विधियों का उसकी दृष्टि में कोई मूल्य नहीं है।

4. आदर्शवादिता का नितान्त अभाव

राजनीति में यथार्थवादिता का अपना महत्त्व है, लेकिन इसके साथ ही राजनीतिक दार्शनिक से इस बात की अपेक्षा की जाती है कि उसके द्वारा किसी-न-किसी रूप में आदर्श को प्रतिष्ठित किया जायेगा। चिन्तक का सार ही इसमें है कि उसके द्वारा भविष्य की चिन्ता न की जाय, लेकिन मैकियावेली में इसका नितान्त अभाव है। डॉ. मुरे लिखते हैं, “मैकियावेली की दृष्टि  स्पष्ट है, लेकिन उसमें दूरदर्शिता का अभाव है। उसने वस्तुओं को केवल यथार्थ रूप में ही देखा है, उनके आदर्श रूप की कल्पना नहीं की है। उसने छल-कपट को ही राजनीति की कला समझ लिया है।”

5. राजनीतिशास्त्र के मूल प्रश्नों की उपेक्षा

मैकियावेली का एक दोष राजनीतिशास्त्र के मूलभूत प्रश्नों की उपेक्षा करना है। उसने अपने सर्वाधिक प्रसिद्ध दोनों ग्रन्थों ‘प्रिंस’ और ‘डिस्कोर्सेज’ में राज्य के स्वरूप, उद्देश्य व शासक के विभिन्न अंगों के पारस्परिक सम्बन्धों पर कोई प्रकाश नहीं डाला है। राजा राज्य को किस प्रकार हस्तगत करे, अपनी सत्ता सुदृढ़ करने के लिए किन उपायों का आश्रय ले तथा अपने प्रदेश की वृद्धि और संरक्षण कैसे करे-शासन और व्यावहारिक राजनीति से सम्बन्धित इन बातों का तो उसने विस्तार से उल्लेख किया है, किन्तु राज्य से सम्बन्धित मूल प्रश्नों पर वह सर्वथा मौन है। इसी प्रकार गैटिल लिखते हैं कि, “मैकियावेली का राज्य सम्बन्धी सिद्धान्त राज्य का सिद्धान्त होने की अपेक्षा मात्र राज्य की सुरक्षा का ही सिद्धान्त है।”

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