छत्तीसगढ़ में धर्मनिरपेक्ष स्थापत्य कला का विकास :
सामान्यतः स्थापत्य कला को ही वास्तुकला या वास्तुशिल्प कहा जाता है। भारतीय स्थापत्य कला के दो रूप प्रमुख है – (1) धार्मिक स्थापत्य (2) लौकिक स्थापत्य या धर्मनिरपेक्ष स्थापत्य कला। लौकिक स्थापत्य में प्रसाद, हवेली, भवन, दुर्ग, कीर्ति स्तम्भ, लाट, मीनार आते हैं, ऐसे शिल्प का संबंध मुख्यतः सामाजिक तथा राजनीतिक निर्माणों से होता है, जबकि धार्मिक स्थापत्य में मंदिर, स्तूप, चैत्य, विहार आते है।
छत्तीसगढ़ में धर्मनिरपेक्ष स्थापत्य कला के चरणबद्ध विकास देखने को मिलते हैं। पूर्व कल्चुरिकालीन धर्मनिरपेक्ष स्थापत्य कला में हमें मल्हार का पुरावशेष प्राप्त होता है यह मौर्यकाल के समकालीन था। यहां पर राजप्रसाद के अवशेष प्राप्त हुए है। सातवाहन, वाकाटक एवं गुप्तकालीन स्थापत्य कला के पुरावशेष छत्तीसगढ़ में कोणारगढ़, अड़भार, कोटमीसुनारगढ़, धुरकोटगढ़ तथा रामगढ़ से राजप्रासाद प्राप्त हुए हैं। रामगढ़ में सिंहद्वार के स्तम्भ, अर्धवृत्ताकार छत, द्वार रक्षक कक्ष, निरीक्षक बुर्ज गुप्तकालीन वास्तुकला का प्रमाण हैं। इसके अतिरिक्त सिरपुर के राजप्रासाद, प्राचीन छत्तीसगढ़ की स्थापत्य कला का अनुपम प्रमाण हैं।
कल्चुरिकालीन स्थापत्य कला में हमें राजप्रासाद, सभाभवन, अश्वशाला, कूप, देवस्थान, वातानुकूल कक्ष, रंगशाला, राजमार्ग, जलभवन के अवशेष प्राप्त होते हैं। केंदा, पेंड्रा, फिंगेश्वर में भवन तथा द्वार अट्टालक निर्माण में पाषाण शिलाओं व पकी हुई ईटों तथा काष्ठ का प्रयोग हुआ है। स्थापत्य कला में भवन विकास की भारतीय मौलिक धाराओं में देवभवन, जनभवन समाहित थे। रतनपुर के किले में मंत्रशाला, यज्ञशाला, अश्वशाला, पाकशाला का द्विभौतिक-त्रिभौमिक विन्यास था।
कल्चुरिकाल के किलों में भवनों का वास्तु-विन्यास, चतुःशाला, विशाल प्रांगण्य की चतुर्दिक संस्थाओं से निष्पन्न है। राजधानी रत्नपुर में पिरामिड आकार में सतखंड महल (सप्तभौमिक) की स्थापत्य कला अनुपम थी, जिसका भग्नावशेष आज भी विद्यमान है।
17वीं शताब्दी से 19वीं शताब्दी के मध्य तक (1853 ई.) भोसलें राजाओं का विशेष प्रभाव छत्तीसगढ़ में दिखाई देता है। भोंसले राजाओं द्वारा रतनपुर, रायपुर में किलों का जीर्णोद्धार किया गया जो कि मराठाकालीन स्थापत्य कला का एक उदाहरण है। छत्तीसगढ़ में मराठाकाल की स्थापत्य कला के कुछ महत्वपूर्ण उदाहरण रतनपुर का किला एवं वहाँ निर्मित गणेश दरवाजा, रायपुर का किला तथा उसमें निर्मित दरवाजे, रायपुर के मराठा पदाधिकारियों के भवन एवं कार्यालय भवन प्रमुख है।
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