स्रोत भाषा और लक्ष्य भाषा :
स्रोत भाषा और लक्ष्य भाषा का प्रयोग अनुवाद के सन्दर्भ में किया जाता है। एक भाषा का दूसरी भाषा में कथन अर्थात् एक भाषा के कथन को दूसरी भाषा के कथन में परिवर्तित करना अनुवाद कहलाता है।
अनुवाद से तात्पर्य है कि एक भाषा में कही गयी बात को दूसरी भाषा में इस प्रकार कहा जाये कि पहली भाषा का भाव स्पष्ट हो जाये। अनुवाद के प्रसंग में कम से कम दो भाषाओं का होना अनिवार्य है। इस अनुवादित प्रक्रिया में ‘जिस भाषा से अनुवाद किया जाता है उसे स्त्रोत भाषा कहते है’ तथा जिस भाषा में अनुवाद किया जाता है उसे लक्ष्य भाषा कहते हैं।’
जैसे– अंग्रेजी भाषा में कही गयी बात को हिन्दी में इस प्रकार प्रस्तुत किया जाये कि दोनों का अर्थ एक ही हो, दोनों का भाव व उद्देश्य एक ही हो। जैसे- Tulsidas is a great poet. को हिन्दी में ‘तुलसीदास एक महान् कवि है’ कहा जायेगा।
स्रोत भाषा को मूल भाषा या मूल पाट और लक्ष्य भाषा को अन्य भाषा या अनुवादित पाट भी कहा जाता है।
स्रोत भाषा, वह भाषा है जिसमें कथित बात को दूसरी भाषा में अनूदित किया जाता है। इसके विपरीत, लक्ष्य भाषा वह भाषा है, जिसमें अनुवाद किया जाता है। दूसरे शब्दों में, जिस भाषा के कथन का अनुवाद करना है, उसे ‘स्रोत भाषा‘ कहते हैं और जिस भाषा में अनुवाद करना है, उसे ‘लक्ष्य भाषा‘ कहते हैं। मान लीजिए, हिन्दी भाषा में लिखी हुई किसी कविता या कहानी का अंग्रेजी भाषा में अनुवाद किया गया है तो इस प्रसंग में हिन्दी स्रोत भाषा और अंग्रेजी लक्ष्य भाषा कहलायेगी।
इसी प्रकार कालिदास की रचनाओं का हिन्दी में अनुवाद लीजिए। इसमें संस्कृत स्रोत भाषा कहलाएगी और हिन्दी लक्ष्य भाषा कहलाएगी। कोई भी अनुवाद स्रोत भाषा की सामग्री को लक्ष्य भाषा में सावधानी से पुनः प्रस्तुत करता है। इसी दृष्टि से एक अनुवादक के लिए स्रोत भाषा और लक्ष्य भाषा दोनों का अच्छा ज्ञान होना अति आवश्यक है।.