एंजिल का उपभोग का नियम :
सन् 1857 में डॉ. एंजिल ने जर्मनी के सक्सनी प्रांत के खानों में काम करने वाले कुछ परिवारों के बजटों का अध्ययन किया। उन्होंने परिवारों को तीन वर्गों- (अ) श्रमिक, (ब) मध्यम वर्ग, तथा (स) धनी वर्ग में विभाजित किया इन विभिन्न वर्गों के पारिवारिक आय व उपभोग पर होने वाले व्यय के बीच पाये जाने वाले संबंध का अध्ययन करने पर डॉ. एंजिल निम्नलिखित निष्कर्ष पर पहुँचे-
# जैसे-जैसे किसी व्यक्ति की आय में वृद्धि होती जाती है, त्यों-त्यों-
1. भोजन पर व्यय किया जाने वाला आय का प्रतिशत भाग घटता जाता है अर्थात् व्यय का अनुपात कम होता जाता है।
2. वस्त्र, मकान-किराया तथा ईंधन एवं रोशनी आदि पर व्यय किये जाने वाले व्यय का अनुपात स्थिर रहता, और
3. शिक्षा, मनोरंजन, स्वास्थ्य आदि पर व्यय का अनुपात बढ़ता जाता है।
उपभोग के संदर्भ में पारिवारिक आय और व्यय के बीच पाये जाने वाले इन संबंधों को प्रदर्शित करने वाले वक्र को एंजेल वक्र कहते हैं।
नगरों में एंजिल का नियम एक बड़ी सीमा तक लागू होता है जहाँ एक ओर तो विकास के साथ-साथ लोगों की आय बढ़ती जाती है और दूसरी ओर भोजन पर व्यय का हिस्सा निरन्तर घटता जाता है। इससे माँग में परिवर्तन आते हैं और खाद्यान्न की अपेक्षा औद्योगिक वस्तुओं और सेवाओं की माँग बढ़ने लगती है।