मानव एक जिज्ञासु प्राणी है। वह अपने चारों तरफ दिन-प्रतिदिन घटने वाली घटनाओं के प्रति जागरूक रहता है और इन घटनाओं में सत्य को खोजने का प्रयत्न करता है। उदाहरण के रूप में चाहे ये घटनाएं चुनाव से सम्बन्धित ही सरकार के काम-काज, राष्ट्रीय व अन्तर्राष्ट्रीय विभिन्न पहलुओं पर आधारित हो या फिर उसके व्यक्तिगत जीवन की विभिन्न आवश्यकताओं की पूर्ति से सम्बन्धित हो, इन सभी को समझने तथा हल करने के लिए उसने समय-समय पर अनेक आविष्कार किए हैं। अध्ययन की अनेक विधियों का निर्माण करने के साथ-साथ मनुष्य इस निष्कर्ष पर पहुँचा कि विज्ञान तथा वैज्ञानिक पद्धति के अतिरिक्त ज्ञान-प्राप्ति, समस्याओं को समझने व हल करने के लिए कोई सरल एवं छोटा रास्ता नहीं है। इसलिए अनुसन्धान की प्रकृति का विश्लेषण करने के लिए विज्ञान की प्रकृति को समझना आवश्यक है।
वर्तमान युग विज्ञान का युग है, क्योंकि वर्तमान में यथार्थ में विभिन्न पक्षों को समझने एवं विश्लेषित करने के लिए विज्ञान का सहारा लिया जाता है। अगस्त कॉम्टे (Aguste Comte) ने ज्ञान के विकास की तीन अवस्थाओं का उल्लेख किया है। प्रथम धार्मिक, दूसरी तात्विक और तीसरी अवस्था प्रत्यक्षवादी है। अगस्त कॉम्टे का कहना है कि इस प्रत्यक्षवादी अवस्था में मानव मस्तिष्क, बुद्धि एवं प्रेषण के सुसंयोजित प्रयोग, उनके प्रभावकारी नियमों अर्थात् उनके उत्तराधिकार तथा समरूपता के अपरिवर्ती सम्बन्धों को उनके उत्तराधिकार तथा समरूपता के अपरिवर्ती सम्बन्धों के द्वारा पूर्णतया स्वयं को अनुसंधान कार्य में लगाने हेतु प्रघटना के निकटतम की असम्भाव्यता को स्वीकार करता है।
सामाजिक वैज्ञानिकों ने समाज से सम्बन्धित व्यवस्थित ज्ञान-प्राप्ति के लिए समय-समय पर विशिष्ट सामाजिक विज्ञानी एवं वैज्ञानिक पद्धतियों का निर्माण किया है। अतः समाज से सम्बन्धित ज्ञान, विज्ञान और अनुसंधान के क्षेत्र में प्रवेश करने के लिए आवश्यक है कि हमें विज्ञान तथा वैज्ञानिक पद्धतियों का स्पष्ट ज्ञान होना चाहिए। इस सम्बन्ध में स्टुआर्ट चेज (Stuart Chase) ने अपने विचारों को व्यक्त करते हुए लिखा है कि “विज्ञान का सम्बन्ध वैज्ञानिक पद्धति से है न कि अध्ययन विषय से।”
विज्ञान का अर्थ एवं परिभाषा :
विज्ञान शब्द अंग्रेजी भाषा के ‘साइंस’ (Science) शब्द का हिन्दी रूपान्तर है, जो स्वयं लैटिन (Latin) भाषा के ‘सीया’ (Scia) शब्द से बना है। जिसका आशय है ‘जानना’ (to know)। वस्तुतः सत्य, प्रमाणित और विश्वसनीय ज्ञान के लिए क्रमबद्ध एवं व्यवस्थित अध्ययन करने को ही विज्ञान कहते हैं। प्रो. सी. के. सिंह के अनुसार, “विज्ञान यथार्थ का अध्ययन, अवलोकन एवं प्रयोग करते हुए तथ्यों से आगमन तथा निगमन द्वारा सामान्यीकरण करते हुए ज्ञान की प्राप्ति का एक उपागम है।”
वैज्ञानिकों ने विज्ञान की परिभाषा अपने-अपने दृष्टिकोण से प्रस्तुत की है, जिसमें से कुछ प्रमुख परिभाषाएं इस प्रकार हैं-
गुड तथा हॉट (Goode & Hatt), “विज्ञान समस्त अनुभव सिद्ध संसार के प्रति दृष्टिकोण की एक पद्धति है।” उनका कहना है कि, “विज्ञान की लोकप्रिय परिभाषा व्यवस्थित ज्ञान का संचय है।” चर्चमैन और एकॉफ (Churchman and Ackoft) के अनुसार, “विज्ञान एक कुशल अन्वेषण है।”
वेनबर्ग तथा शेबत (Weinberg and Shabat) के अनुसार “विज्ञान संसार की ओर देखने की एक निश्चित पद्धति है।”
लेस्सी (Lastrueci) के अनुसार, “विज्ञान एक वस्तुनिष्ठ, तार्किक एवं व्यवस्थित अध्ययन पद्धति है जो किसी विश्वसनीय ज्ञान की प्रघटना के विश्लेषण में प्रयुक्त होती है। यह विश्लेषण का एक व्यवस्थित स्वरूप है एवं किसी विशिष्ट ज्ञान से सम्बन्धित नहीं हैं।”
आइंस्टीन तथा एनफील्ड (Einstein and Infield) के अनुसार, “विज्ञान सांसारिक विचारों तथा प्रघटनाओं के मध्य सम्बन्ध को स्पष्ट करने के लिए मानवीय मस्तिष्क का एक प्रयास है। विज्ञान का समस्त महत्वपूर्ण विचार यथार्थ इसे समझने के हमारे प्रयास के नाटकीय संघर्षों के कारण उत्पन्न हुआ है।”
गिलिन व गिलिन (Gillin and Gillin) के अनुसार, “जिस क्षेत्र का हम अनुसंधान करना चाहते हैं उसकी ओर एक निश्चित प्रकार की पद्धति ही विज्ञान का वास्तविक चिन्ह है।”
संक्षेप में यह कहा जा सकता है कि विज्ञान किसी ज्ञान या जानकारी का एक व्यवस्थित स्वरूप है। यह एक दृष्टिकोण की प्रणाली है, कुशल अनवेषण है। चर्चमैन तथा एकॉफ के अनुसार, “विज्ञान ज्ञान का संग्रह नहीं है, यह एक विशिष्ट प्रकार की पूछताछ है।” इस सम्बन्ध में बर्नार्ड (Bernard) के अनुसार, “विज्ञान को इसमें निहित छः मुख्य प्रक्रियाओं के संदर्भ में ही परिभाषित किया जा सकता है। ये प्रक्रियायें हैं- परीक्षण, सत्यापन, पारिभाषिक विवेचना, वर्गीकरण, संगठन तथा परिस्थितिजन्यता, जिसमें पूर्वानुमान तथा व्यावहारिक उपयोग की विशेषताओं का भी समावेश है।”
विज्ञान की विशेषताएं :
किसी भी अवधारणा के अर्थ एवं प्रकृति को समझने का सबसे सरल तरीका उसके लक्षणों का अध्ययन करना है। उपर्युक्त आधार पर विज्ञान की प्रकृति को उसकी निम्नलिखित विशेषताओं के द्वारा सरलतापूर्वक समझा जा सकता है-
1. संशयवाद
विज्ञान की प्रथम विशेषता संशय (Doubt) या सन्देह उत्पन्न होना है। प्रकृति में तथ्य या घटनाएं एक-दूसरे से पृथक् घटित नहीं होकर निश्चित व्यवस्था और क्रम के अनुसार घटित होती है अर्थात् वे कुछ नियमों द्वारा संचालित होती है। एक वैज्ञानिक इन्हीं नियमों का पता लगाने का प्रयास करता है। ये नियम, तथ्य अथवा प्रघटनाएं आदि किस प्रकार परस्पर अन्तर्सम्बन्धित है एवं किस प्रकार और किन नियमों के तहत संचालित होते हैं। विभिन्न तथ्यों के सम्बन्ध में वैज्ञानिक के मन में एक अवबोध (Understanding) विकसित होता है जो नये संशय को जन्म देता है। यह नया संशय विज्ञान के मूल आधारशिला है एवं इसी से नया अनुसंधान जन्म लेता है।
2. प्रमाणिकता
विज्ञान का एक अन्य प्रमुख लक्षण यह है कि विज्ञान को प्रमाणों की आवश्यकता पड़ती है और इन्हीं प्रमाणों के आधार पर विज्ञान निष्कर्ष निकालता है। यूरोप में लम्बे समय तक यह माना जाता रहा है कि सूर्य पृथ्वी के चारों ओर घूमता है जबकि 16वीं शताब्दी के बाद प्रसिद्ध ज्योतिषी कोपर्निकस ने इसमें सन्देह किया और उपलब्ध प्रमाणों के आधार पर यह घोषित किया कि पृथ्वी सूर्य के चारों तरफ घूमती है। इस प्रकार विज्ञान प्रमाणों के आधार न केवल नवीन सिद्धान्तों की रचना करता है वरन् वह पुराने सिद्धान्तों को संशोधित भी करता है एवं कई बार उन्हें अस्वीकृत करता है।
3. परिशुद्धता
विज्ञान की एक अन्य विशेषता परिशुद्धता है। विज्ञान में यह प्रयास किया जाता है कि जो जानकारी प्राप्त की जाए वह पूरी तरह परिशुद्ध हो। यह ज्ञान एक व्यक्ति को सत्य लगता है वहीं दूसरे के लिए असत्य हो सकता है। विभिन्न व्यक्तियों के सामान्य ज्ञान विभिन्न हो सकते हैं, परन्तु विज्ञान के लिए आवश्यक है कि जो कुछ वह एकत्रित करे वह पूरी तरह सत्य हो, परिशुद्ध हो, चाहे वह किसी के लिए सत्य हो या किसी के लिए असत्य। इसलिए परिशुद्धता किसी भी विज्ञान के लिए अति महत्वपूर्ण है।
4. व्यवस्थितता
हमारा सामान्य ज्ञान अव्यवस्थित एवं तर्क विहिन होता है। इसके विपरीत विज्ञान में एक तन्त्र एवं व्यवस्था होती है। इस व्यवस्थितता के तीन प्रमुख गुण हैं- सम्बन्ध होना, पूर्ण होना एवं तर्क-संगत होना वैज्ञानिक व्यवस्थितता में विभिन्न सिद्धान्त एक-दूसरे से सम्बन्धित होते हैं और मिलकर उस विज्ञान का कलेवर बनाते हैं। पूर्ण का अर्थ यह है कि इसमें वे सारे सिद्धान्त होते हैं जिनसे यह कलेवर बनता है। यदि कोई सिद्धान्त अज्ञात हो, उसके लिए बराबर खोज होती रहती है। तर्कसंगत होने का महत्व यह है कि विभिन्न सिद्धान्तों में कोई विरोध नहीं है। विज्ञान में इस व्यवस्थितता के कारण भविष्य की घटनाओं के विषय में ज्ञान संभव है।
5. भविष्यवाणी करने की क्षमता
विज्ञान मात्र व्याख्या करने, नियमों की रचना करने एवं उन्हें अमूर्तता के धरातल पर प्रस्तुत करने का कार्य ही नहीं करता अपितु वह अपनी खोज का आने वाले समय में उपयोग कर देखना चाहता है कि वह कहाँ तक सत्य है, विज्ञान भविष्यवाणी करता है कि नवीन स्थितियों में अमुक नियम अमुक प्रकार लागू होगा। भविष्य में अपनी खोज के परिणाम और सत्यापन करने के लिए वह भविष्यवाणी करता है और देखना चाहता है कि जो नियन्त्रण तथ्यों के घटने पर उसे प्राप्त हुआ है वह नवीन स्थितियों में उसे प्राप्त होगा या नहीं।
6. अवलोकन
एनसाइक्लोपिडिया ब्रिटानिका में विज्ञान की विशेषता पर प्रकाश डालते हुए लिखा है कि विज्ञान में व्यवस्थित और पक्षपातरहित अवलोकन किया जाता है। प्रशिक्षित व्यक्तियों द्वारा अवलोकित सामग्री की जाँच की जाती है जो आगे चलकर वर्गीकरण का रूप ग्रहण कर लेती है। वर्गीकरण की सहायता से सामान्यीकरण के नियम बनाये जाते हैं। इन नियमों को आगे अवलोकनों में लागू किया जाता है; नवीन अवलोकनों एवं मान्य नियमों में तालमेल नहीं होने पर नियमों में संशोधन किए जाते हैं और ये नवीन संशोधन आगे और अवलोकन करने की दिशा और प्रेरणा प्रदान करते हैं। इस प्रकार विज्ञान में यह प्रक्रिया अनवरत चलती रहती है। सामान्यतया यही विज्ञान की पद्धति का निर्माण करती है। विज्ञान की इसी विशेषता के गुडे एवं हॉट ने निम्नलिखित शब्दों में व्यक्त किया है “विज्ञान अवलोकन से प्रारम्भ होता है तथा उसे अन्तिम वैधता के लिए आवश्यक रूप से अवलोकन पर ही लौटकर आना पड़ता है।”
7. कारणता
विज्ञान विभिन्न कारकों के परस्पर कारण प्रभावों का अध्ययन करता है तथा परिणामों के कारणों की खोज करता है। विज्ञान घटना में विद्यमान कारकों तथा तथ्यों के परस्पर कार्य-कारण सम्बन्धों का अध्ययन वर्णन और व्याख्या करता है। इस प्रकार से कारणता की खोज करना विज्ञान की एक प्रमुख विशेषता है।
8. आनुभविकता
विज्ञान जो कुछ जानकारी, निष्कर्ष तथा ज्ञान प्रस्तुत करता है, वह प्रत्यक्ष प्रमाणों और परीक्षणों पर आधारित होता है। विज्ञान भौतिक जगत का व्यवस्थित और आनुभविक ज्ञान है जिसे अवलोकन और परीक्षण के द्वारा प्राप्त किया जाता है। यह अनुमान, अटकल, कल्पना अथवा दर्शन पर आधारित नहीं होता। आनुभविकता विज्ञान की प्रमुख विशेषता है।
9. सार्वभौमिकता
विभिन्न अनुसन्धानकर्त्ताओं का कहना है कि विज्ञान की उपर्युक्त विशेषताएं कार्य-कारण सम्बन्ध और आनुभविकता-सार्वभौमिक विशेषताएं है। अर्थात् परीक्षण तथा अनुभव के द्वारा विज्ञान द्वारा प्रस्तुत घटना से सम्बन्धित कार्य-कारण सम्बन्ध की विश्व में कही पर भी जाँच करने पर परिणाम बदलते नहीं है।
10. तार्किकता
सभी अध्ययनों की तरह विज्ञान भी तार्किक होता है। विज्ञान घटना का तर्कपूर्ण प्रस्तुतीकरण होता है। विभिन्न तथ्यों के परस्पर सम्बन्ध को वह तार्किक रूप से सिद्ध करके वर्णन और व्याख्या करता है।
इसलिए विज्ञान का सम्बन्ध वैज्ञानिक पद्धति से है। यह घटना का वस्तुनिष्ठ अध्ययन करता है। विज्ञान और वैज्ञानिक पद्धति परस्पर एक-दूसरे से घनिष्ठतया सम्बन्धित है।