# समाज कार्य अनुसन्धान का विषय क्षेत्र (Scope of Social Work Research)

समाज कार्य अनुसन्धान का विषय क्षेत्र :

समाज कार्य अनुसन्धान को निम्नलिखित प्रमुख क्षेत्रों में विभाजित किया जाता है-

१. उन कारकों की खोज तथा परिमापन जो सामाजिक समस्याओं को उत्पन्न करते हैं तथा सामाजिक सेवाओं की आवश्यकताओं को स्पष्ट करते हैं।

२. दान देने वाली संस्थाओं के इतिहास, समाज कार्य कल्याण अधिनियमों, समाज कल्याण कार्यक्रमों तथा समाज की आवश्यकताओं का अध्ययन।

३. समाज कार्यकर्त्ताओं की भूमिका, प्रत्यक्षीकरण की तथा उनकी स्थितियों का मूल्यांकन एवं सम्बन्ध का अध्ययन।

४. समाज कार्यकर्ताओं द्वारा लक्ष्यों के निर्धारण तथा उनकी अपनी छवि का अध्ययन।

५. समाज कार्यकर्त्ताओं की आशाओं, अभिलाषाओं तथा क्रियाओं का अध्ययन।

६. समाज की विधिक प्रक्रियाओं का अध्ययन।

७. उपलब्ध समाज सेवाओं की वैयक्तिक, सामूहिक तथा सामुदायिक आवश्यकता के संदर्भ-उपयोगिता का अध्ययन।

८. समाज कार्य क्रिया के परीक्षण मापन तथा मूल्यांकन सम्बन्धी अध्ययन तथा समाज कार्य अभ्यास के लिये वांछित योग्यताओं के निर्धारण का अध्ययन।

९. समाज कार्य सेवाओं, कार्यकर्त्ताओं एवं अभिकरणों के सम्बन्ध में सेवार्थी के व्यवहार के प्रतिक्रिया का अध्ययन।

१०. सेवार्थी की आशाओं, अभिलाषाओं, अपेक्षाओं, उद्देश्यों, प्रत्यक्षीकरणों का मूल्यांकन सम्बन्ध अध्ययन।

११. सामाजिक संस्था के अन्तर्गत तथा इनके बाहर कार्यरत तथा व्यावसायिक समाज कार्यकर्त्ताओं के भूमिका की परिभाषा तथा उनके अन्तर्सम्बन्धों में सहयोग की स्थिति का अध्ययन।

१२. समुदाय के सामाजिक समूहों के मूल्यों तथा उनकी वरीयताओं का अध्ययन।

१३. सामाजिक संस्थाओं की विभिन्न इकाइयों में अन्तर्सम्बन्ध तथा उनके सेवार्थी तथा संस्था के कर्मचारियों पर प्रभाव का अध्ययन।

१४. समाज कार्य अनुसंधान की पद्धतियों की प्रभावपूर्णता का अध्ययन।

सारांश में, यह कहा जा सकता है कि समाज कार्य अनुसंधान का उद्देश्य उस नवीन ज्ञान की खोज करना है जो समाज के लिए उपयोगी कार्यक्रमों को नियोजित करने तथा लागू करने में सहायक सिद्ध हो सके।

वर्कशॉप ऑन रिसर्च इन सोशल वर्क ने 1948 में समाज कार्य अनुसंधान के क्षेत्र के निम्नलिखित वर्ग बनाये हैं-

1. प्रशासनिक उद्देश्यों की पूर्ति के लिए अनुसंधान इसमें अर्थव्यवस्था, लेखांकन कर्मचारी, सार्वजनिक सम्बन्ध, सामाजिक नीति को कार्य रूप में बदलना या उसके निष्पादन आदि के सम्बन्ध में समस्याओं के अध्ययन के लिए अनुसंधान कार्य किया जाता है।

2. नियोजन के अनुसंधान में साधारण सामग्री का विश्लेषण और अर्थ निरूपण संस्थाओं के परस्पर-सम्बन्धों, आवश्यकताओं और समस्याओं की परिभाषा, उनके मापन आदि के सम्बन्ध अनुसंधान करते हैं।

3. मौलिक अनुसंधान जो प्रमुख रूप से चार क्षेत्रों से सम्बन्धित होता है। जैसे (क) उस मान्यताओं का परीक्षण जिन पर समाज कार्य सेवाएँ आधारित होती हैं। (ख) विकासवादी प्रक्रिया की प्रकृति की जाँच (ग) अनुसंधान के ढंगों एवं प्रविधियों सम्बन्धी अनुसंधान (घ) निजी एवं सरकारी संस्थाओं के बीच कार्यों के विभाजन या वितरण सम्बन्धी अनुसंधान।

फिलिप क्लीन ने समाज कार्य अनुसंधान के निम्नलिखित वर्ग बताये हैं-

१. सेवाओं की आवश्यकता को ज्ञात करने और उन्हें मापने के लिए अध्ययन।

२. दी जा रही सेवाओं को मापने और यह देखने के लिए अध्ययन कि आवश्यकताओं से उनका कहाँ तक सम्बन्ध है।

३. समाज कार्य की क्रियाओं के परिणामों की जाँच, परीक्षण और मूल्यांकन के लिए अध्ययन।

४. विभिन्न प्रविधियों की क्षमता का परीक्षण अर्थात् समाज कार्य की विभिन्न प्रणालियों एवं विधिर की तुलनात्मक क्षमता की जाँच।

५. अनुसंधान की प्रणालियों का अध्ययन।

ग्रीनवुड ने समाज कार्य अनुसंधान के चार वर्ग बतायें हैं-

  1. नियोजन सम्बन्धी अनुसंधान
  2. प्रशासकीय अनुसंधान
  3. प्रक्रिया सम्बन्धी अनुसंधान
  4. मूल्यांकन सम्बन्धी अनुसंधान।

प्रेस्टन एवं मुड के मतानुसार समाज कार्य अनुसंधान के वर्ग है-

  • प्रशासकीय उद्देश्यों की पूर्ति के लिए अनुसंधान
  • सामुदायिक आवश्यकताओं पर अनुसंधान
  • वैधीकरण एवं मूल्यांकन सम्बन्धी अनुसंधान
  • उपकल्पना एवं नियोजन या निगमनात्मक सम्बन्धी अनुसंधान
  • समाज कार्य सेवाओं के निष्पादन में सहायता सामग्री के उत्पादन सम्बन्धी अनुसन्धान
  • समाज कार्य की शिक्षा और परीक्षण सम्बन्धी अनुसंधान।

1952 में समाज कार्य अनुसंधान ग्रुप द्वारा नियुक्त की गयी एक समिति ‘अनुसंधान कार्य एवं अभ्यास’ समाज कार्य सर्वेक्षण के निम्न वर्गों की व्याख्या की है-

  1. सेवाओं की आवश्यकता का निर्धारण।
  2. सेवाओं की प्रभावशीलता और उनकी पर्याप्तता सम्बन्धी मूल्यांकन।
  3. समाज कार्य अभ्यास की विषय-वस्तु का अन्वेषण।
  4. समाज कार्य की सेवाओं सम्बन्धी क्रियाओं के लिए क्षमता का अन्वेषण।
  5. समाज कार्य के सिद्धान्तों के प्रत्यय की वैधता।
  6. समाज कार्य के अनुसंधान के लिए प्रणालीतंत्र की विधियों और उपकरणों का विकास।
  7. समाज कार्य की सेवाओं, कार्यक्रमों व अवधारणाओं का विकास और उनमें होने वाले पतन की जाँच या अन्वेषण।
  8. दूसरे क्षेत्रों से लिए गए सिद्धान्तों या ज्ञान का अनुदान और परीक्षण।

डॉ० हसन के अनुसार समाज कार्य अनुसंधान के प्रमुख वर्ग निम्नलिखित हैं-

  • आवश्यकताओं और साधनों पर अनुसंधान।
  • प्रशासन सम्बन्धी अनुसंधान।
  • लक्ष्यों एवं प्रत्ययों पर अनुसंधान।
  • समाज कार्य अभ्यास पर अनुसंधान।
  • परिणामों पर अनुसंधान।
  • समाज कार्य अनुसंधान के प्रणालीतंत्र या कार्यविधियों पर अनुसंधान।
  • शिक्षा एवं प्रशिक्षण सम्बन्धी अनुसंधान।

फ्रीडलैंडर ने समाज कार्य अनुसंधान के निम्नलिखित वर्ग बताये हैं-

१. उन कारकों का पता लगाना और उन्हें मापने के लिए अध्ययन जो सामाजिक समस्याओं को जन्म देते हैं और सामाजिक सेवाओं को जन्म देते हैं। तथा सामाजिक सेवाओं की आवश्यकता उत्पन्न करते हैं।

२. पुण्यार्थ संस्थाओं, समाज कल्याण विधानों, समाज कल्याण कार्यक्रमों एवं समाज कार्य प्रत्यय के इतिहास का अध्ययन।

३. समाज कार्यकर्त्ताओं की आकांक्षाओं, उनके संकल्पों एवं क्रियाओं के बीच अन्तर्सम्बन्धों क अध्ययन।

४. समाज कार्यकर्त्ताओं के संकल्पों, लक्ष्यों एवं आत्मचित्र का अध्ययन।

५. समाज कार्यकर्त्ताओं की आकांक्षाओं, उसके संकल्पों के बीच कार्य कलापों और क्रियाओं बीच अध्ययन।

६. समाज कार्य प्रक्रियाओं की विषय-वस्तु का अध्ययन।

७. अध्ययन जो व्यक्ति, समूहों और समुदायों की आवश्यकताओं के लिये उपलब्ध सामाजिक सेवाओं के पर्याप्त होने की समीक्षा के लिए किये जाते हैं।

८. अध्ययन जो समाज कार्य क्रियाओं के परिणामों का परीक्षण, मापन और मूल्यांकन करते हैं और समाज कार्य अभ्यास के लिए आवश्यक निपुणताओं की जाँच करते हैं।

९. सेवार्थी के व्यवहार का समाज कार्य अभ्यास के प्रति उनमें प्रतिक्रियाओं के सम्बन्ध के लिए अध्ययन है।

१०. सेवार्थी की आकांक्षाओं लक्ष्यों के प्रत्यक्षीकरण और परिस्थितियों के मूल्यांकन के लिए अध्ययन।

११. समाज कार्यकर्त्ताओं की भूमिकाओं की औपचारिक और अनौपचारिक परिभाषाओं, उनके परस्पर सम्बन्धों एवं सामाजिक संस्थाओं के बीच सहयोग, स्वरूप का अध्ययन।

१२. सामाजिक समूहों के मूल्यों एवं प्राथमिकताओं का अध्ययन जिस पर समाज कल्याण, अभ्यास सहायता एवं विकास के लिए आधारित रहता है।

१३. समाज के विभिन्न अंगभूतों के बीच विभिन्न अन्तः क्रियाओं के स्वरूपों और सेवार्थियों और कर्मचारियों पर उनके प्रभाव का अध्ययन।

१४. समाज कार्य अनुसंधान की प्रणालियों का अध्ययन।

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