समाज कार्य अनुसंधान की प्रकृति :
समाज कार्य अनुसंधान का प्रमुख उद्देश्य सेवार्थियों को उनकी अपनी संस्कृति एवं पर्यावरण से अलग किये बिना उनको अपनी सामाजिक परिस्थितियों में ही समायोजित करने में सहायता प्रदान करना है। समाज कार्य अनुसंधान को कला एवं विज्ञान दोनों के रूप में स्वीकार किया जा चुका है। इसकी वैज्ञानिकता के परीक्षण क्रमबद्ध सुव्यवस्थित ढंग से किया जा सकता है और इसकी कला उत्तरदाताओं से पूछे जाने वाले प्रश्न के ढंग से स्पष्ट होती है। समाज कार्य अनुसंधान मुख्यतः इन दोनों को अपने में समाहित किए है।
किसी भी अनुसंधान के लिए वैज्ञानिक विधि का उपयोग अनुसंधान को अत्यधिक प्रभावशाली स्पष्ट एवं नवीन ज्ञान की खोज के लिए किया जाता है। समाज कार्य अनुसंधान विशेषतया मनुष्य एवं उसके सामाजिक पर्यावरण के मध्य अन्तःसम्बन्धों को विकसित करने एवं नवीन जानकारी उपलब्ध कराने का एक प्रयास है जोकि सेवार्थियों को उनकी आवश्यकताओं को पूरा करने में सहायता करता है और एक अच्छे वातावरण का निर्माण करता है, साथ ही अनुसंधान कार्यों के माध्यम से सामाजिक समस्याओं के कारण की खोज करते हुए उनका निदान करता है। इस दृष्टि से समाज कार्य के अनुसंधान का क्षेत्र हम उन सामाजिक परिस्थितिये घटनाओं एवं समस्याओं को मान सकते हैं जो कि वैयक्तिक एवं सम्पूर्ण समाज के विकास में बाधक हैं।
ग्रीनवुड ने समाज कार्य अनुसंधान को वर्गीकृत करते हुए इसे दो भागों में में विभक्त किया है जो कि निम्नलिखित हैं-
1. मौलिक समाज कार्य अनुसंधान तथा
2. परिचालनात्मक समाज कार्य अनुसंधान।
ग्रीन वुड के अनुसार, “समाज कार्य ज्ञान का ऐसा अनुसंधान जो तत्कालीन लाभ हेतु कम उपयोगी है, को मौलिक समाज कार्य अनुसंधान कह सकते हैं।” सामान्यतः समाज कार्य अनुसंधान व्यावहारिक एवं परिचालनात्मक है, इसकी सापेक्ष मौलिकता है।