छात्रों को जितना कम सम्भव हो बताया जाये और उनको जितना अधिक सम्भव हो खोजने (अन्वेषण करने) को प्रोत्साहित किया जाये, यह कार्य करने तथा प्रयोग एवं व्यवहार में लाने की प्रक्रिया ही अन्वेषण विधि की द्योतक है।
अतः स्पष्ट है कि छात्रों के शिक्षण में अन्वेषण विशेष उपयोगी होता है। इस विधि का प्रमुख उद्देश्य छात्रों में अन्वेषण की प्रवृत्ति को उदय करना है। छात्रों के समक्ष ऐसी परिस्थितियाँ प्रस्तुत की जाती हैं कि वे स्वयं अन्वेषण के लिए उत्सुक हो जाते हैं।
अन्वेषण विधि का अर्थ :
इसे ह्यूरिस्टिक विधि भी कहते हैं। Heuristic शब्द की उत्पत्ति यूनानी भाषा के Heuristic शब्द से मानी जाती है। इसका अर्थ है – “मैं स्वयं खोज करता हूँ” (I find out myself)। इस प्रकार अन्वेषण विधि स्वयं अन्वेषण करने या अपने आप सीखने की विधि है। इस विधि में छात्र पर ज्ञान बाहर से नहीं थोपा जाता वरन् उसे स्वयं सत्य की खोज करने के लिए प्रेरित किया जाता है। इस प्रकार छात्र अधिक आनन्द अनुभव करते हैं।
अन्वेषण (ह्यूरिस्टिक) विधि की परिभाषाएं :
ह्यूरिस्टिक (अन्वेषण) विधि की परिभाषाएं इस प्रकार हैं-
1. “ह्यूरिस्टिक विधि शिक्षण आगमन विधि के अतिरिक्त और कुछ नहीं है।” – डमविल
2. “इस विधि में छात्र को अपनी समस्याओं का उत्तर बिना शिक्षक की सहायता से अपने स्वयं के प्रयासों से प्राप्त करना पड़ता है।” – स्मिथ एवं हैरीसन
अन्वेषण (ह्यूरिस्टिक) विधि के उद्देश्य :
इस विधि के कुछ उद्देश्य निम्नलिखित प्रकार से हैं-
1. इस विधि का उद्देश्य छात्र को तर्क और व्यक्तिगत अनुभव के आधार पर सीखने के लिए प्रेरित करना है।
2. इस विधि का उद्देश्य छात्र में स्व-शिक्षा की आदत डालना है।
3. इस विधि का उद्देश्य छात्र में वैज्ञानिक भावना का विकास करना है।
4. इस विधि का प्रमुख उद्देश्य यह है कि छात्र स्वयं सत्य की खोज के लिए अग्रसर हों।
5. इस विधि का उद्देश्य यह है कि छात्रों में परिश्रम, चिन्तन, निर्णय और आत्म-विश्वास की भावना उत्पन्न हो। जिससे स्वतन्त्र रूप से निर्णय ले सकें।
6. छात्र को मौलिक अनुसन्धानकर्त्ता बनाना। इसका अर्थ है कि छात्र एक वैज्ञानिक की भाँति कार्य करना सीख सकें।
अन्वेषण (ह्यूरिस्टिक) विधि का सिद्धान्त :
ह्यूरिस्टिक विधि के प्रमुख सिद्धान्त निम्नलिखित प्रकार से हैं-
1. इस विधि का आधार ‘वैज्ञानिक विधि’ (Scientific method) है। छात्र स्वयं प्रयोग, निरीक्षण तथा परीक्षण करता है।
2. इस विधि का आधार ‘क्रियाशीलता का सिद्धान्त’ है। यह विधि छात्र को अनुसन्धानकर्त्ता बनाने के लिए क्रियाशील बनाती है।
3. इस विधि का आधार ‘करके सीखना’ है । इस विधि में छात्र स्वयं कार्य करता है। इस प्रकार वह सत्य की खोज करता है।
4. वास्तविक और स्थायी ज्ञान वही होता है जिसे छात्र अपने परिश्रम से अर्जित करता है, इस विधि का यही आधार है।
5. इस विधि का एक सिद्धान्त यह है कि शिक्षक को छात्र की मानसिक विकास की प्रक्रिया में अपनी सहायता देनी चाहिए।
6. इस विधि का आधार ‘ज्ञात से अज्ञात की ओर’ बढ़ना है।
7. इस विधि का एक यह भी आधार है कि छात्र को ज्ञान प्रदान करने के लिए उसमें ‘रुचि और जिज्ञासा’ पैदा की जाये।
अन्वेषण (ह्यूरिस्टिक) विधि के पद :
ह्यूरिस्टिक विधि में अनेक पदों का प्रयोग किया जाता है। हैमल (Hamley) के अनुसार ये पद पाँच निम्नलिखित हैं-
1. समस्या का कथन,
2. तथ्यों का निरीक्षण और उनका सारणीयन,
3. परिकल्पना का कथन,
4. परिकल्पना का परीक्षण और निष्कर्ष,
5. नियम का निर्धारण।
अन्वेषण (ह्यूरिस्टिक) विधि की कार्य-प्रणाली :
सर्वप्रथम छात्र के समक्ष कोई समस्या प्रस्तुत की जाती है। छात्र उस समस्या को हल करने के लिए चिन्तन करता है। शिक्षक उसे इस कार्य के लिए प्रोत्साहित करता है। प्रत्येक छात्र को स्वतन्त्रता होती है कि वह चाहे किसी भी प्रकार से कार्य करे, छात्र समस्या पर कार्य केवल छात्र के रूप से नहीं करते वरन् एक अन्वेषक के रूप में करते हैं। छात्र के द्वारा समस्या का विश्लेषण किया जाता है। छात्र वाद-विवाद करते हैं, प्रश्नों की सहायता से अपनी शंका का समाधान करते हैं और पुस्तकालय में जाकर पुस्तकें पढ़ते हैं। इस विधि में यह प्रयास किया जाता है कि छात्र स्वयं सत्य की खोज करें, वे अपने आप में अन्वेषण की प्रवृत्ति का विकास करें।
अन्वेषण (ह्यूरिस्टिक) प्रणाली के गुण :
इस प्रणाली के गुण निम्नलिखित हैं-
1. यह विधि छात्र में वैज्ञानिक दृष्टिकोण को विकसित करती है।
2. यह विधि छात्रों को यह अवसर देती है, कि वे स्वयं प्रयोग करके सीखें।
3. यह विधि छात्र में निरीक्षण करने की आदत का विकास करती है।
4. यह विधि छात्र को शिक्षण के अधिक निकट लाने का प्रयत्न करती है।
5. इस विधि से छात्र उस परिस्थिति में पहुँच जाता है, जहां वह स्वयं खोज करके ज्ञान अर्जित कर सके।
6. यह विधि छात्र को ज्ञान अर्जित करने के लिए क्रियाशील बनाती है।
7. यह विधि आगमन विधि के अनुसार छात्र को कार्य करने को प्रेरित करती है।
8. यह विधि छात्रों को स्वयं करना सिखाती है।
9. यह विधि छात्रों में स्वाध्याय की आदत का निर्माण करती है।
10. यह विधि छात्रों को इस तथ्य से अवगत कराती है, कि रटना गलत है।
11. यह विधि निरीक्षण और चिन्तन के गुणों का विकास करती है।
12. इस विधि में अनेक सूत्रों का प्रयोग किया जाता है, जैसे— (क) ज्ञात से अज्ञात की ओर, (ख) स्थूल से सूक्ष्म ओर, (ग) सरल से जटिल की ओर, (घ) प्रेरणा का सिद्धान्त, (ङ) रुचि का सिद्धान्त।
अन्वेषण (ह्यूरिस्टिक) विधि के दोष :
इस विधि में अनेक गुण हैं, किन्तु यह दोष रहित भी नहीं है। इसके प्रमुख दोष इस प्रकार हैं-
1. छोटी कक्षाओं के छात्रों को इस विधि से शिक्षण नहीं दिया जा सकता।
2. मन्द बुद्धि व सामान्य बुद्धि के छात्र इस विधि से ज्ञानार्जन नहीं कर सकते। इस विधि का प्रयोग केवल असाधारण बुद्धि वाले ही कर सकते हैं।
3. अपरिपक्व छात्र इस विधि के द्वारा गलत सामान्यीकरण कर सकते हैं।
4. यह विधि इस बात पर बल देती है कि छात्र ही अन्वेषण करें किन्तु क्या छात्रों में असाधारण मानसिक योग्यता होती है।
5. सभी समस्याओं के समाधान के लिए इस विधि का प्रयोग नहीं किया जा सकता।
6. क्या छात्रों से मौलिक खोज की आशा की जा सकती है? यह विधि इस तथ्य पर बल देती है।
7. इस विधि में केवल आगमन विधि का ही प्रयोग किया जा सकता है, किन्तु शिक्षण की अन्य महत्त्वपुर्ण विधियाँ भी हैं।
8. इस विधि से शिक्षण करने में बहुत अधिक समय की आवश्यकता होती है, किन्तु क्या शिक्षण के लिए असीमित समय उपलब्ध रहता है ?
9. यह विधि शिक्षक के कार्य को बढ़ा देती है। भारत में वैसे ही शिक्षक पर अपेक्षाकृत अत्यन्त कार्य भार है।
10. इस विधि के अनुसार पाठ्य-पुस्तकों का अभाव है। इस विधि को ध्यान में रखते हुए पाठ्य-पुस्तकें नहीं लिखी जाती है।
11. इस विधि का प्रयोग प्रत्येक प्रकार के पाठ के लिए नहीं किया जा सकता।
12. इसी विधि में ज्ञान प्रदान करने की विधि अत्यन्त धीमी है, अतः छात्र के शिक्षण में बहुत अधिक समय लगता है। प्रत्येक विषय को इस विधि से पढ़ाने के लिए इतना समय नहीं दिया जा सकता।