मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। समाज में उसका जन्म होता है और समाज में ही उसकी मृत्यु होती है। ऐसी दशा में उसके लिए आवश्यक है कि वह समाज में अपने को ठीक प्रकार से व्यवस्थित करे। यदि व्यक्ति अपने को समाज में ठीक प्रकार से व्यवस्थित कर लेता है तो यह उसकी सफलता है, परन्तु समाज में अपने को स्थापित करने की योग्यता प्रत्येक व्यक्ति में समान नहीं होती। इस योग्यता को उत्पन्न करने में ‘सामाजिक अध्ययन’ एक विषय के रूप में विशेष रूप से सहायक होता है।
रविन्द्रनाथ टैगोर ने शिक्षा की महत्ता को प्रतिपादित करते हुए कहा है- “शिक्षा का उच्च रूप वही है जो केवल ज्ञान प्रदान करने तक ही सीमित न रहे, वरन् सभी वस्तुओं के साथ-साथ हमारा समन्वय भी स्थापित करे।” यहाँ पर तात्पर्य यही है कि शिक्षा प्राप्त कर व्यक्ति में सामंजस्य स्थापित करने की क्षमता का विकास होना चाहिए और यह तभी सम्भव है जबकि वह शिक्षा मानव एवं समाज दोनों के लिए ही उपयोगी हो। इस दृष्टि से यदि सामाजिक अध्ययन विषय के बारे में विचार किया जाय तो स्पष्ट हो जाता है कि सामाजिक अध्ययन में भी वह क्षमता है जिसके माध्यम से विद्यार्थी आसानी से समाज में अपना सामंजस्य स्थापित कर लेता है। यही कारण है कि बीसवीं शताब्दी में सामाजिक अध्ययन का तीव्रगति से विकास हुआ और उसे विश्व के सभी राष्ट्रों में विद्यालयी पाठ्यक्रम में महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त हुआ। यही नहीं कई विद्वानों ने तो वर्तमान राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय परिवंश में सामाजिक अध्ययन के अध्ययन को अत्यावश्यक बताया और विद्यालय में सभी विद्यार्थियों हेतु सामाजिक अध्ययन शिक्षण पर बल दिया।
सामाजिक विज्ञान/अध्ययन का महत्त्व :
यद्यपि विभिन्न विद्वानों द्वारा सामाजिक अध्ययन के महत्त्व को अपने-अपने तरीकों या बयानों से स्पष्ट किया गया है परन्तु फिर भी अध्ययन की सुविधा के लिए सामाजिक अध्ययन के महत्त्व पर विस्तार से एवं क्रमबद्ध तरीके से विचार करना तर्कसंगत प्रतीत होता है। अतः यहां बिन्दुवार सामाजिक अध्ययन के महत्त्व पर विचार किया गया है। विवरण निम्नलिखित प्रकार से है –
1. जीविकोपार्जन में सहायता
सामाजिक अध्ययन विषय के अध्ययन से केवल सैद्धान्तिक ज्ञान ही प्राप्त नहीं होता है बल्कि यह व्यावहारिक ज्ञान भी देता है। उदाहरण के लिए यदि कोई व्यक्ति किसान है तो सामाजिक अध्ययन उसे बताता है कि किस स्थान पर कौन-सी फसल आसानी से उत्पन्न हो सकती है तथा अधिक फसल प्राप्ति के लिए कौन-कौन से उपाय करना आवश्यक है ? यही नहीं सामाजिक अध्ययन से उसे यह भी ज्ञान प्राप्त हो सकेगा कि वह अपनी फसल की बिक्री किस प्रकार से करके फसल से अधिक आय प्राप्त कर सकता है ? एक उद्योगपति सामाजिक अध्ययन के ज्ञान का लाभ उठाकर किसी स्थान विशेष पर उद्योग स्थापित कर अधिकतम लाभ कमा सकता है। व्यापारी को भी बाजार की विभिन्न अवस्थाओं का ज्ञान सामाजिक अध्ययन ही देता है, जिससे वह उपयुक्त स्थान पर अपना सामान बेचकर अधिकाधिक लाभ प्राप्त कर सकता है। यही कारण है कि कई बड़े व्यापारी एवं उद्योगपति सामाजिक अध्ययनवेत्ता की समय-समय पर यथोचित सेवाएं प्राप्त करते हैं।
2. प्राकृतिक संसाधनों का उचित उपयोग
सामाजिक अध्ययन नागरिकों को यह ज्ञान देता है कि देश में पाये जाने वाले प्राकृतिक संसाधनों का सदुपयोग कैसे किया जाये तथा वे संसाधन देश में कितनी मात्रा में संचित हैं एवं बुद्धिमत्तापूर्ण उपयोग से वे कब तक उपयोग में लाये जा सकते हैं ? अतः यदि लम्बे समय तक प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग करना है तो उनके उचित यथावश्यक उपयोग के साथ-साथ संरक्षण की दिशा में भी सावचेत होना आवश्यक है। उदाहरण के लिए-कोयला, पेट्रोलियम जैसे शक्ति के साधनों को देखें तो स्पष्ट है कि एक सीमा तक ही इनका दोहन सम्भव है। अत: उस सीमा के बाद क्या होगा ? कहीं विकास के चक्र पर बुरा प्रभाव तो नहीं पड़ेगा ? कोयले की खानों का कई राष्ट्रों में समाप्त हो जाना या उनका गहरा होकर कोयला निकालना अथवा अनार्थिक होना इसके स्पष्ट संकेत हैं।
3. पर्यावरणीय समस्याओं को हल करने में सहायक
इक्कीसवीं सदी में पर्यावरण प्रदूषण की समस्याएँ बीसवीं सदी से इस रूप में मिली हैं कि यदि और अधिक उदासीनता दिखायी गयी तो मानव जीवन का विषम संकट में आना अवश्यम्भावी है। इस समस्या पर सामाजिक अध्ययन के विस्तार में विचार कर उसके दोनों पक्षों को देखते हुए समस्या समाधान के उपाय भी सुलझाने का कारगर प्रयास किया गया है। अतः सामाजिक अध्ययन का ज्ञान पर्यावरण प्रदूषण की सभी समस्याओं यथा-वनस्पति का विनाश, भूमि की उर्वरता का ह्रास, विकीरण की समस्या, विश्व में बढ़ता तापमान, कीटाणुनाशक दवाइयों का बढ़ता प्रयोग, जीव-जन्तुओं को लुप्त होती प्रजातियाँ, ग्रीन हाऊस (Green House) प्रभाव आदि के समाधान में अत्यधिक सहायक हो सकता है।
4. पृथ्वी की जानकारी में सहायक
सामाजिक विज्ञान के अन्तर्गत भूगोल विषय में पृथ्वी का भी अध्ययन किया जाता है। कहाँ पर पर्वत हैं, तो कहाँ पर पठार या मैदान अथवा कहाँ पर हरे-भरे प्रदेश हैं तो किस स्थान पर मरुस्थलों का विस्तार है ? इन जिज्ञासाओं की तृप्ति सामाजिक अध्ययन के द्वारा ही आसानी से करना संभव है। सामाजिक अध्ययन में नगरों आदि का अध्ययन कर ऐसा प्रतीत होता है, मानों उन्हें वहाँ जाकर देखा हो।
5. विस्तृत दृष्टिकोण का विकास
सामाजिक अध्ययन एक ऐसा विषय है जिसका अध्ययन करने से मानव का सोचने का दायरा विस्तृत हो जाता है। वह समझ जाता है कि विश्व में विविधताएँ किन कारणों से हैं और मानवों के रहन-सहन, खान-पान एवं अन्य परम्पराओं में अन्तर क्यों है ? उक्त क्रियाओं के लिए भौगोलिक तत्त्व ही प्रमुख रूप से उत्तरदायी होते हैं।
6. विश्व बन्धुत्व की भावना का विकास
उक्त बिन्दु पाँच में स्पष्ट किया जा चुका है कि सामाजिक अध्ययन के ज्ञान से व्यक्ति के दृष्टिकोण की संकीर्णता दूर होती है यही मेरी दृष्टि में विश्वबंधुत्व की दिशा में महत्त्वपूर्ण कदम है, जिसमें विकास होते-होते आपसी वैमनस्य एवं तनाव कम होता चला जाता है एवं विश्व बन्धुत्व की भावना का विकास होना सम्भव होता है। प्रसिद्ध विद्वान गार्नेट (Garnet) महोदय ने इस सम्बन्ध में कहा है कि- “राष्ट्रीय तथा अन्तर्राष्ट्रीय एकता और मित्रता की जितनी आवश्यकता आज के युग में है उतनी पहले कभी न थी। इसके लिए संसार की वास्तविक एवं पूर्ण जानकारी आवश्यक है। इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए इस प्रकार की सुविधा प्रदान करना आवश्यक है जिससे विभिन्न मानव समुदाय एक दूसरे के विषय में ज्ञान प्राप्त कर सकें।” इस प्रकार का वांछित ज्ञान सामाजिक अध्ययन ही प्रदान करता है। अतः कहा जा सकता है कि सामाजिक अध्ययन के ज्ञान से विश्वबंधुत्व की भावना का विकास होना संभव है।
7. क्रियाशीलता की भावना का विकास
सामाजिक अध्ययन में बालक क्रियाशील रहकर अधिक सीखता है। वह स्वयं ही निरीक्षण करता है, विभिन्न प्रकार के चार्ट, मॉडल्स आदि का निर्माण करता है, स्वयं ही सर्वेक्षण कार्य एवं प्रयोगात्मक (Practical) कार्य करता है, जिससे जहाँ वह एक ओर सामाजिक अध्ययन सम्बन्धी ज्ञान प्राप्त करता है वहीं दूसरी ओर श्रम करना भी उसकी आदत में शामिल हो जाता है। अतः वह श्रम करने से मुँह नहीं छुपाता है।
8. तात्कालिक घटनाओं को समझने में सहायक
यदि विश्व के किसी भाग में कोई परिवर्तन होता है अथवा कोई घटना घटती है तो सामाजिक अध्ययन के ज्ञान से उस स्थान की स्थिति को समझने एवं घटना घटने के कारणों को जानने में बड़ी सहायता मिलती है। सामाजिक अध्ययन का जानने वाला उस स्थान से अपेक्षाकृत जल्दी अपना तादात्म्य स्थापित कर लेता है।
9. छात्र की मानसिक शक्तियों का विकास
सामाजिक अध्ययन के अध्ययन से छात्र में स्मरण शक्ति, कल्पना शक्ति, तर्कशक्ति, तुलना शक्ति, निरीक्षण करना, निर्णय लेना आदि मानसिक शक्तियों का विकास होता है। जिन प्रदेशों को प्रत्यक्ष रूप में देखना सम्भव नहीं है उन क्षेत्रों से सम्बन्धित विभिन्न प्रकार के चित्रों, मानचित्रों एवं अन्य प्राप्य जानकारियों के आधार पर वह उन क्षेत्रों के बारे में समझ जाता है। साथ ही तथ्यों का विश्लेषण एवं संश्लेषण कर अपने गृह प्रदेश से तुलना करना भी सीख जाता है, यहाँ पर सामाजिक अध्ययन अध्यापक के लिए यह आवश्यक है कि वह उक्त मानसिक शक्तियों के विकास हेतु वांछित परिवेश का निर्माण करे।
10. दूसरे विषयों से घनिष्ठ सम्बन्ध
सामाजिक अध्ययन का ज्ञान सामाजिक अध्ययन के विद्यार्थियों के लिए ही आवश्यक नहीं है बल्कि विभिन्न मानविकी एवं विज्ञान विषयों के लिए भी आवश्यक है। अर्थात् विज्ञान संकाय के विभिन्न विषयों का ज्ञान किसी न किसी प्रकार से सामाजिक अध्ययन से जुड़ा है और इतिहास, नागरिक शास्त्र, अर्थशास्त्र एवं समाजशास्त्र का ज्ञान तो स्पष्टतः सामाजिक अध्ययन के ज्ञान से जुड़ा हुआ है। सामाजिक अध्ययन से ही यह समझा जा सकता है कि अमुख ऐतिहासिक घटना कहाँ घटी, वह स्थान कहाँ हैं ? इसी प्रकार की भावना को दर्शाते हुए किसी विद्वान ने कहा है कि- “सामाजिक अध्ययन रंगमंच का वर्णन करता है, जबकि इतिहास इस रंगमंच पर होने वाले नाटक का वर्णन मात्र है।” इसी प्रकार से नागरिक शास्त्र या राजनीति विज्ञान से सम्बन्धित ज्ञान भी तभी अच्छी प्रकार से दिया जा सकता है जबकि बालक सामाजिक अध्ययन के माध्यम से उस राष्ट्र या क्षेत्र की स्थिति एवं अन्य भौगोलिक परिवेश सम्बन्धी घटकों के बारे में जानता हो। किन परिस्थितियों में किस प्रकार की आर्थिक एवं सामाजिक क्रियाएँ होंगी? यह सामाजिक अध्ययन के माध्यम से ही जाना जा सकता है अर्थात् अर्थशास्त्र एवं समाजशास्त्र सम्बन्धी कई प्रश्नों के उत्तर भी सामाजिक अध्ययन ही देता है।
इसी प्रकार वह उक्त विषयों की विषय वस्तु से भी कई प्रकार की वांछित सामग्री प्राप्त करता है। इसी प्रकार का कथन एक विद्वान ने भी दिया है जो कि इस प्रकार है- “जैसे मधुमक्खी विभिन्न प्रकार के अगणित पुष्पों से मधु संचय करती हैं, ठीक वैसे ही सामाजिक अध्ययन प्राकृतिक एवं सामाजिक विज्ञानों की मध्यस्थ कड़ी होने के नाते विभिन्न विषयों के रसों का संग्रह करता है।” इस प्रकार कहा जा सकता है कि सामाजिक अध्ययन अन्य विषयों से भली-भाँति सम्बन्धित है।
11. विभिन्न प्रकार की समस्याओं के समाधान में सहायक
सामाजिक अध्ययन के अध्ययन से जहाँ एक ओर कई प्रकार की समस्याओं के बारे में जानकारी मिलती है, वहीं दूसरी ओर उन समस्याओं के समाधान का ज्ञान भी प्राप्त होता है। यथा-भाषा, प्रान्त, जाति, धर्म, राष्ट्रीय एकता एवं अखंडता की समस्या, संसाधनों के संरक्षण की समस्या, उत्पादन में ह्रास, निर्यात बढ़ाने सम्बन्धी समस्याओं के समाधान में सामाजिक अध्ययन का ज्ञान निश्चित ही सहायक है।
12. राष्ट्रीय सुरक्षा में सहायक
सामाजिक अध्ययन के ज्ञान से राष्ट्रीय सुरक्षा करने में सहायता मिलती है, क्योंकि सामाजिक अध्ययन के द्वारा शत्रु को देश के धरातल की स्पष्ट जानकारी प्राप्त हो जाती है एवं साथ ही दुश्मन के महत्त्वपूर्ण सैन्य या अन्य संस्थानों की सही स्थिति का निर्धारण भी सामाजिक अध्ययन द्वारा करना सम्भव है, जिसके आधार पर व्यूह रचना का निर्माण कर दुश्मन को परास्त करना अधिक कारगर सिद्ध हो सकता है। यही कारण है कि सुरक्षा सेनाओं में सामाजिक अध्ययन जानने वालों की सेवाएँ ली जाती हैं, जिनका महत्त्वपूर्ण कार्य निर्देशानुसार किसी स्थान विशेष की स्थिति बताना या वांछित रेखाचित्र, मानचित्र, टॉपोग्राफी आदि बनाना है।
13. देशभक्ति का विकास
अभी पूर्व में आपने पढ़ा है कि सामाजिक अध्ययन द्वारा विश्वबन्धुत्व की भावना का विकास होता है। यहाँ मैं यह स्पष्ट करना चाहता हूँ कि सामाजिक अध्ययन विश्वबन्धुत्व की भावना के विकास के साथ देशप्रेम की भावना का भी विकास करता है। बालक सामाजिक अध्ययन में अपने देश की स्थिति, उच्चावचन, जलवायु, प्राकृतिक वनस्पति, जीव-जन्तु, आर्थिक एवं सामाजिक क्रियाकलापों के बारे में ज्ञान प्राप्त करता है और मानचित्र में उन्हें देखता है। वह अपने मस्तिष्क में भी अपने देश का एक मानचित्र अंकित कर लेता है इसी प्रकार वह गृह प्रदेश सामाजिक अध्ययन (Home Region Geography) में अपनी मातृभूमि के बारे में विभिन्न प्रकार का ज्ञान प्राप्त करता है तथा उस ज्ञान को अपनी वास्तविक जीवन की स्मृति से जोड़ लेता है। इसके बाद वह उस क्षेत्र से कितना भी दूर क्यों न चला जाय उसे वे स्मृतियां मानस पटल पर अवश्य ही आती अनुभव होती हैं और वह पुन: वहाँ आने का अवसर खोजता रहता है। ऐसा क्यों होता है ? ऐसा इसलिए होता है कि उसे अपनी मातृभूमि से अपार स्नेह होता है और यही स्नेह राष्ट्रीय भावना को मजबूत करता है।
14. भ्रमण की भावना का विकास
सामाजिक अध्ययन के अध्ययन से विश्व की विभिन्न प्रकार की स्थालाकृतियों, वनस्पति, जीव-जन्तु एवं आर्थिक सांस्कृतिक क्रियाओं का ज्ञान होता है और उनमें से जो बालक के मन को अच्छी प्रतीत होती है, उसे देखने के लिए बालक उत्सुक होता है। अतः भ्रमण करने की इच्छा का बीजारोपण हो जाता है जो कि अनुकूल परिवेश एवं समय पाकर वृक्ष का रूप धारण कर लेता है। इस प्रकार भ्रमण की इच्छा या भावना के विकास से पर्यटन (Tourism) को भी बढ़ावा मिलता है। जिससे राष्ट्र या समाज को पर्यटन के लाभ भी प्राप्त होने लगते हैं और सांस्कृतिक आदान-प्रदान भी होना सम्भव होता है।
उपर्युक्त बिन्दुओं के आधार पर इस निष्कर्ष पर पहुँचा जा सकता है कि सामाजिक अध्ययन का विभिन्न क्षेत्रों में विशेष महत्त्व है। इसके अध्ययन से बहुआयामी लाभ (Multi-dimension Benifits) प्राप्त होते हैं। यह केवल सैद्धान्तिक (Theoritical) ज्ञान ही प्रदान नहीं करता है। बल्कि जीवनोपयोगी व्यावहारिक ज्ञान भी विधिवत् प्रदान करता है। जिससे छात्र भावी जीवन में अपना जीवन निर्वाह आसानी से करने में सफल हो सकते है।
प्राचीन काल में व्यक्ति और समाज के सम्बन्ध पर्याप्त सरल और स्पष्ट थे। अतः सामाजिक विज्ञान की आवश्यकता पर शिक्षाविदों का ध्यान ही नहीं गया, परन्तु अब वर्तमान समाज पर्याप्त जटिल हो गया है। अतः व्यक्ति और समाज के सम्बन्धों में पर्याप्त जटिलता आ गयी है। इस कारण सामाजिक विज्ञान शिक्षण की आवश्यकता पर बल दिया जाने लगा है।
शिक्षा में सामाजिक विज्ञान/अध्ययन का महत्त्व :
1. यह विषय छात्रों के मानसिक विकास में विशेष रूप से सहायक होता है।
2. इसके द्वारा छात्रों को अधिकारों तथा कर्त्तव्यों का समुचित ज्ञान कराया जा सकता है।
3. यह छात्रों के सामाजिक चरित्र के विकास में योग देता है। सहयोग, प्रेम, सहकारिता जैसे गुणों का विकास इसके अध्ययन द्वारा ही होता है।
4. यह विषय छात्रों के उत्तरदायित्व को दिशा प्रदान करता है।
5. सामाजिक अध्ययन में विषयों को समन्वित करके पढ़ाया जाता है, अत: छात्र ज्ञान की अखण्डता का बोध करते हैं।
6. यह विषय छात्रों को सामाजिक वातावरण से अनुकूलन करने की शिक्षा देता है।
7. सामाजिक अध्ययन द्वारा छात्र देश की विभिन्न समस्याओं का ज्ञान प्राप्त करते हैं।
8. भारतीय संस्कृति का पूर्ण ज्ञान प्राप्त करने के लिए यह विषय परम आवश्यक है।
9. विभिन्न सामाजिक संस्थाओं, समुदायों आदि का भी ज्ञान कराने में विशेष सहायक होता है।
10. इसके अध्ययन से देश-प्रेम और विश्व-बन्धुत्व की भावनाओं का विकास होता है।
स्वतन्त्र भारत में सामाजिक अध्ययन की आवश्यकता :
स्वतन्त्रता के पश्चात् भारतीय समाज में अनेक क्रान्तिकारी परिवर्तन हो चुके हैं। इन परिवर्तनों के कारण ही सामाजिक विज्ञान को विशेष रूप से महत्त्व दिया जाने लगा है। प्रमुख परिवर्तन निम्नलिखित हैं-
(1) प्रजातन्त्रात्मक शासन व्यवस्था की स्थापना, (2) समाजवादी शासन व्यवस्था का लक्ष्य, (3) कल्याणकारी राज्य की स्थापना, (4) सामुदायिक योजनाओं को व्यावहारिक रूप देने की योजनाएँ, (5) जनतन्त्रात्मक विकेन्द्रीकरण की स्थापना, (6) कृषि क्षेत्र में उत्पन्न होने वाली समस्याएँ।
उपर्युक्त परिवर्तनों को दृष्टि में रखकर ही शिक्षाशास्त्रियों ने पाठ्यक्रम में सामाजिक अध्ययन विषय को रखने के लिए बल दिया है। स्वतन्त्रता के पश्चात् भारत में प्रजातन्त्रात्मक शासन प्रणाली को अपनाया गया है। प्रजातन्त्र की सफलता के लिए यह आवश्यक है कि शिक्षा ऐसी हो जो उत्तम नागरिकों का निर्माण कर सके। सामाजिक अध्ययन उत्तम नागरिकों के निर्माण में विशेष रूप से सहायक होता है।