# सामाजिक नियंत्रण: अर्थ, परिभाषा, प्रमुख आधार, अनुबंध

सामाजिक नियंत्रण :

समाजशास्त्र में सामाजिक नियंत्रण के विभिन्न तरीकों का वर्णन किया गया है जहां एक ओर कानून को सामाजिक नियंत्रण का एक औपचारिक जरिया माना जाता है वहीं दूसरी ओर समाज में नियंत्रण की प्रक्रिया महज औपचारिक नियमों के आधार पर नहीं होती बल्कि इसके कई अनौपचारिक आधार भी होते हैं. समाजशास्त्रियों ने सामाजिक नियंत्रण की अवधारणा में उन अनौपचारिक तत्त्वों का भी समावेश किया है जो सामाजिक संरचना के विशिष्ट लक्षणों से जुड़े होते हैं। टॉम बोटमोर ने सामाजिक नियंत्रण के दो प्रमुख आधारभूत तत्वों का वर्णन किया है जो निम्न हैं-

  • 1. शक्ति का प्रयोग
  • 2. मूल्यों तथा प्रतिमानों के स्थापित कर उन नियमों के द्वारा सामाजिक व्यवहार का नियंत्रण

समाजशास्त्र में समाजशास्त्रियों ने ज्यादा महत्व दूसरे विधि को दिया है। इस प्रकार टॉम बोटमोर के अनुसार सामाजिक नियंत्रण में समाज में स्थापित मूल्य तथा प्रतिमाओं की एक महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। सामाजिक नियंत्रण से उनका अभिप्राय एक प्रकार के सामाजिक व्यवस्था से था जिस व्यवस्था को बनाए रखने में समाज के मूल्य तथा प्रतिमानों की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है।

मेकाइबर ने भी सामाजिक नियंत्रण की परिभाषा देते हुए यह कहा था कि सामाजिक नियंत्रण का मतलब सामाजिक व्यवस्था से है जिसके द्वारा समाज में संतुलन बनाए रखा जाता है।

विलियम जे. समनर ने भी अपनी पुस्तक ‘फोकवेज’ में (Folkways) समाजिक नियंत्रण को परिभाषित करते हुए सामाजिक प्रचलन व्यवहार, जन्म रीति तथा नैतिक मूल्यों को मनुष्य के व्यवहार को नियंत्रित करने का एक प्रमुख स्त्रोत बताया है।

फ्रांस के समाजशास्त्री ई. दुर्खिम का कहना था कि सामाजिक नियंत्रण की अवधारणा नैतिक मूल्यों को स्वीकार कर उसके अनुरूप काम करने से है। इन सामाजिक मूल्यों के आधार नैतिकता पर भी टिके होते हैं जिससे समाज में एकता बनी रहती है अर्थात् दुर्खिम ने सामाजिक एकता बनाए रखने का एक स्त्रोत समाजीकरण को ही माना है।

पारसन्स ने सामाजिक नियंत्रण की परिभाषा देते हुए इसे एक सामाजिक प्रक्रिया बताया जिसके द्वारा मनुष्य के व्यवहार को अनुमोदन (Sanction) के द्वारा नियंत्रित किया जाता है। यद्यपि सामाजिक नियंत्रण के लिए सामाजिक अनुमोदन (Sanction) का महत्त्वपूर्ण होता है, परन्तु फिर भी सामाजिक नियंत्रण में औपचारिक रूप से शक्ति के प्रदर्शन अर्थात् पुलिस के द्वारा एक समूह के द्वारा व्यवहार को नियंत्रित करने की कोशिश की जाती है। इस प्रकार सामाजिक नियंत्रण के द्वारा समूह के व्यवहार को स्थाई रूप से नियंत्रित किया जाता है।

फ्रांस के आधुनिक समाजशास्त्री फुको ने समाज में व्यक्ति को सामाजिक नियंत्रण के द्वारा अनुशासित करने का तरीका बताया है। व्यक्ति के व्यवहार को नियंत्रित करने का तरीका उन पर निगरानी रखना समाजीकरण एवं सामाजिक नियंत्रण है। उनका यह मानना था कि समाज में ज्ञान तथा सूचना के द्वारा मनुष्य पर निगरानी रखी जाती है। इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि प्राचीन काल से ही समाज में व्यक्ति के व्यवहार को नियंत्रित करने के तरीके इस्तेमाल में लाए गए थे और आज उन तरीकों में काफी बदलाव आया है।

सामाजिक नियंत्रण हेतु प्रमुख अनुबंध :

सामाजिक नियंत्रण की प्रक्रिया के कई महत्त्वपूर्ण साधन है जिसके द्वारा समाज में मनुष्य के व्यवहार को नियंत्रित किया जाता है। वास्तव में मनुष्य के व्यवहार को नियंत्रित करने के कई संस्थात्मक तत्त्व हैं जिनको आधार बनाकर मेकाइबर ने भी उनके दो स्वरूप की चर्चा की है। पहला स्वरूप है उनमें मौजूद उनके नियमों तथा प्रतिमानों के द्वारा सामाजिक प्रतिबंध बनाए रखना इन प्रतिबंधों को समाज के रीति- रिवाजों से ज्यादा जोड़कर देखा जाता है इसलिए यह व्यक्ति पर औपचारिक तरीके से दबाव नहीं बनाते। इसके दूसरे स्वरूप की चर्चा करते हुए मेकाइबर का कहना था कि सामाजिक नियंत्रण के सामाजिक तरीके के माध्यम से मनुष्य अपनी नैतिक कर्तव्य के द्वारा समाज के नियमों को स्वेच्छा से मानने के लिए बाध्य होता है। इन सामाजिक अनुबंधों के कई पहलू हैं। जिन पहलूओं पर विचार करने के लिए मेकाइबर ने चार प्रमुख अनुबन्धों की चर्चा की है जो निम्न हैं-

  • 1. सहचारी संहिता (Associational Code)
  • 2. सामुदायिक संहिता (Communal Code)
  • 3. नैतिक संहिता (Moral Code)
  • 4. वैधानिक संहिता (Legal Code)

इन्हें अनौपचारिक विधान के रूप में भी जाना जाता है। इनके अनौपचारिक स्वरूप की चर्चा कई समाजशास्त्रियों ने की है। कार्ल मनहाईन ने भी सामाजिक नियंत्रण के दो पहलूओं की चर्चा की है। एक को वह सामाजिक नियंत्रण का प्रत्यक्ष साधन मानते हैं तथा दूसरे को सामाजिक नियंत्रण का अप्रत्यक्ष साधन मानते हैं। किम्बल यंग ने इसे सकारात्मक तथा नकारात्मक अनुबंधों के रूप में इसकी चर्चा की है। इनाम देकर किसी को प्रोत्साहित करना सकारात्मक अनुबंध की श्रेणी में आता है तथा किसी व्यक्ति के व्यवहार को नियंत्रित करने का एक और तरीका उसे दंडित करना होता है।

ल्यूम्ली (Lumley) ने इन दो तरीकों को एक सांकेतिक रूप से देखा है। उनका मानना था कि इनाम प्रशंसा तथा आग्रह के द्वारा किसी व्यक्ति के व्यवहार को नियंत्रित करना सकारात्मक अनुबंध की श्रेणी में आता है जबकि व्यंग्य आलोचना तथा धिक्कार के द्वारा जब किसी व्यक्ति के व्यवहार को नियंत्रित करने की कोशिश की जाती है तो उसे नकारात्मक अनुबंध कहा जाता है। मेकाइबर द्वारा दिए गए उपर्युक्त चार संहिता को सकारात्मक तथा नकारात्मक संहिता का अंग कहा जा सकता है।

1. सहचारी संहिता

इस विधान के द्वारा कुछ समितियां अपने सदस्यों के व्यवहार को नियंत्रित करती है। इन समितियों के द्वारा कुछ नियम बनाए जाते हैं, जिससे व्यक्ति के व्यवहार नियंत्रित होते हैं। कई स्वैच्छिक बनाए जाते हैं, जिससे व्यक्ति के व्यवहार नियंत्रित होते हैं। कई स्वैच्छिक संस्थाओं (Voluntary organisation) के नियम सामान्य प्रकार के होते हैं जिसके द्वारा व्यक्ति स्वेच्छा से उन नियमों के अनुरूप व्यवहार करता है। कभी-कभी जब इन नियमों का उल्लंघन किया जाता है तब व्यक्ति को उस स्वैच्छिक संस्था की प्राथमिक सदस्यता से बहिष्कृत करने का प्रावधान भी होता है। यह नियम डॉक्टर तथा वकील के पेशे से भी जुड़े होते हैं उन नियमों के उल्लंघन करने पर डॉक्टर व वकील को उनके लाइसेन्स से हाथ धोना पड़ सकता है परन्तु यह अनुबंध तभी प्रभावी होते हैं जब इन नियमों को एक औपचारिक स्वरूप दिया गया हो।

2. सामुदायिक संहिता

यह प्राय समुदाय के व्यवहार को नियंत्रित करती है। यह विशेष प्रकार का एक सामुदायिक अनुबंध होता है जो उतने विशिष्ट नहीं होते परन्तु फिर भी एक महत्त्वपूर्ण अनुमोदन (Sanction) के रूप में इनका स्थान निर्धारित होता है। रीति- रिवाज के नियम इस अनुमोदन के तहत आते हैं जो कई परिस्थितियों में एक शक्तिशाली अनुमोदन के रूप में काम करते हैं फैशन या पोशाक से जुड़े हुए नियम अनुमोदन का एक हल्का स्वरूप है जिसका पालन न करने पर प्रतिक्रिया व्यक्त की जाती है परन्तु उस प्रतिक्रिया के परिणाम स्वरूप कोई गंभीर कदम उल्लंघन करने वाले के ऊपर नहीं लगाया जाता। इन अनुबंधों का पालन नहीं करने पर व्यक्ति को कटाक्ष या आलोचना का शिकार बनना पड़ता है परन्तु इसके अतिरिक्त और कोई प्रतिबंध पौशाक के उल्लंघन करने वाले व्यक्ति के खिलाफ नहीं लगाया जाता।

3. नैतिक संहिता

व्यक्ति विशेष या समूह के व्यवहार को नैतिक मूल्यों के अनुरूप क्या सही है, क्या गलत है, क्या उचित है. क्या अनुचित है इन बातों को बताकर व्यक्ति तथा समूह के व्यवहार को नियंत्रित किया जाता है। इस प्रकार नैतिक आधार पर बनाए गए अनुबन्ध रीति-रिवाजों से जुड़े होते हैं जिन्हें रूढ़िवादिता शब्द से संबोधित किया जाता है। नैतिक संहिता का एक सीमित अर्थ व्यक्ति विशेष के उन नियमों से जुड़ा होता है जो व्यक्ति के व्यवहार को उचित या अनुचित बताते हैं।

एक व्यक्ति अपने व्यवहार से दूसरे व्यक्ति या समुदाय के नैतिक संहिता का उल्लंघन कर सकता है, परन्तु वह व्यक्ति स्वयं अपनु समुदाय तथा समूह के नैतिक विधान से जुड़कर ऐसा करता है। इसलिए यह कहा जाता है कि एक डॉक्टर बीमार का इलाज करने के लिए चीर-फाड़ कर सकता है जो उस व्यक्ति के नैतिक अनुबंध के खिलाफ हो परन्तु उस बीमार स्त्री व पुरुष को बचाने के लिए उस डॉक्टर का एक अपना नैतिक धर्म होता है जिसके मर्यादा के अनुरूप वह चीर-फाड़ का काम करता है। इस प्रकार नैतिक संहिता एक व्यक्ति का दूसरे व्यक्ति से भिन्न हो सकता है। यह जानना महत्त्वपूर्ण है कि व्यक्ति किस प्रकार की स्थिति में मानसिक रूप से तथा व्यवहारिक स्तर पर नैतिक संहिता का पालन करता है।

4. वैधानिक संहिता

अंत में हम वैधानिक संहिता के नियम की बात करते हैं जिसे एक निर्णायक नियम कहा जा सकता है। इस निर्णायक नियम को मनवाने में न्याय पालिका का एक महत्त्वपूर्ण योगदान होता है। न्याय पालिका के द्वारा शारीरिक शक्ति के प्रदर्शन से नियमों के उल्लंघन करने वाले व्यक्ति को दंडित किया जाता है। यह नियम स्टेट या राज्य के द्वारा क्रियान्वित किए जाते हैं, अर्थात् इन नियमों का निर्धारण स्टेट करता है, इसलिए यह नियम विशेष रूप से व्यक्ति के व्यवहार को औपचारिक रूप से नियंत्रित करने का एक प्रमुख अंग बन जाता है। कई अन्य देशों में यह नियम स्टेट या प्रशासन के द्वारा मान्य होते हैं, इसलिए इन नियमों के पालन में स्टेट या प्रशासन को एक महत्त्वपूर्ण अंग माना जाता है। अधिकारी तंत्र नियमों का पालन करते हुए जहाँ कहीं समस्या आ जाती है उसका निपटारा कानून की मदद लेकर करती है। इस प्रकार वैधानिक संहिता के द्वारा औपचारिक तरीके से नियंत्रण किया जाता है। वर्तमान युग में इसका प्रचलन काफी बढ़ा है। कम्प्युटर पर आधारित औद्योगिक समाज में इस प्रकार के नियमों के द्वारा मनुष्य के व्यवहार को काफी हद तक नियंत्रित करने का काम किया है।

वैधानिक संहिता तथा अवैधानिक संहिता, दोनों के स्वरूप में कुछ विभिन्नता भी है और कुछ समानता भी है। इनके असमान स्वरूप का वर्णन अनौपचारिक नियमों की व्याख्या से ही स्पष्ट है। अनौपचारिक नियमों का स्वरूप अस्पष्ट होता है जबकि औपचारिक नियमों का स्वरूप स्पष्ट होता है। चूंकि अनौपचारिक समूह के नियम अस्पष्ट होते हैं। इसलिए इसके प्रभाव सीमित होते हैं। परन्तु इसके विपरीत जो औपचारिक नियंत्रण के स्वरूप होते हैं. वह ज्यादा स्पष्ट तथा लिखित रूप से मौजूद होते हैं, इसलिए यह अस्पष्ट नहीं होते और अधिकांश परिस्थितियों में यह ज्यादा प्रभावी होते हैं।

नियंत्रण के औपचारिक स्वरूप स्पष्ट होने के साथ-साथ मानवीय संवेगों पर आधारित नहीं होते, इसलिए यहाँ पर संवेदना या व्यक्तिगत जान-पहचान का महत्त्व नहीं होता। जबकि इसके विारीत जो अनौपचारिक हिसाब-किताब होते हैं, उनके कारण एक व्यक्ति, दूसरे व्यक्ति के संपर्क में आता है। और अनौपचारिक नियमों की मर्यादा को समझकर अपने व्यवहार को नियंत्रित करने का प्रयास करता है। उसके व्यवहार में संवेदनात्मक तत्वों का समावेश होता है जिसके कारण सामान्य व्यक्ति ही अपने व्यवहार को इन परिस्थितियों में प्रयोग में लाते हैं।

The premier library of general studies, current affairs, educational news with also competitive examination related syllabus.

Related Posts

# इतिहास शिक्षण के शिक्षण सूत्र (Itihas Shikshan ke Shikshan Sutra)

शिक्षण कला में दक्षता प्राप्त करने के लिए विषयवस्तु के विस्तृत ज्ञान के साथ-साथ शिक्षण सिद्धान्तों का ज्ञान होना आवश्यक है। शिक्षण सिद्धान्तों के समुचित उपयोग के…

# सिद्धान्त निर्माण का अर्थ, परिभाषा, विशेषताएं, महत्व | सिद्धान्त निर्माण के प्रकार | Siddhant Nirman

सिद्धान्त निर्माण : सिद्धान्त वैज्ञानिक अनुसन्धान का एक महत्वपूर्ण चरण है। गुडे तथा हॉट ने सिद्धान्त को विज्ञान का उपकरण माना है क्योंकि इससे हमें वैज्ञानिक दृष्टिकोण…

# पैरेटो की सामाजिक क्रिया की अवधारणा | Social Action Theory of Vilfred Pareto

सामाजिक क्रिया सिद्धान्त प्रमुख रूप से एक प्रकार्यात्मक सिद्धान्त है। सर्वप्रथम विल्फ्रेडो पैरेटो ने सामाजिक क्रिया सिद्धान्त की रूपरेखा प्रस्तुत की। बाद में मैक्स वेबर ने सामाजिक…

# सामाजिक एकता (सुदृढ़ता) या समैक्य का सिद्धान्त : दुर्खीम | Theory of Social Solidarity

दुर्खीम के सामाजिक एकता का सिद्धान्त : दुर्खीम ने सामाजिक एकता या समैक्य के सिद्धान्त का प्रतिपादन अपनी पुस्तक “दी डिवीजन आफ लेबर इन सोसाइटी” (The Division…

# पारसन्स के सामाजिक स्तरीकरण का सिद्धान्त | Parsons’s Theory of Social Stratification

पारसन्स का सिद्धान्त (Theory of Parsons) : सामाजिक स्तरीकरण के प्रकार्यवादी सिद्धान्तों में पारसन्स का सामाजिक स्तरीकरण का सिद्धान्त एक प्रमुख सिद्धान्त माना जाता है अतएव यहाँ…

# मैक्स वेबर के सामाजिक स्तरीकरण का सिद्धान्त | Maxweber’s Theory of Social Stratification

मैक्स वेबर के सामाजिक स्तरीकरण के सिद्धान्त : मैक्स वेबर ने अपने सामाजिक स्तरीकरण के सिद्धान्त में “कार्ल मार्क्स के सामाजिक स्तरीकरण सिद्धान्त” की कमियों को दूर…

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

twelve − eleven =