नलवंश कालीन छत्तीसगढ़ :
दक्षिण कोसल के क्षेत्र में नलवंश का शासन लगभग 5वीं से 12वीं शताब्दी तक माना जाता है। कोंडागांव के एडेंगा नामक स्थान से प्राप्त स्वर्ण मुद्राएं यह प्रमाणित करता है कि बस्तर के कोरापुट अंचल में नलवंशीय शासकों का शासन रहा है। संभवतः इस वंश के संस्थापक शिशुक था, लेकिन वास्तविक संस्थापक वराहराज को माना जाता है। वराहराज की लगभग 29 स्वर्ण मुद्राएं कोंडागाव के एडेंगा नामक स्थान से प्राप्त हुआ है।
हरिषेण कृत प्रयाग प्रशस्ति अभिलेख के अनुसार समुद्रगुप्त ने अपने दक्षिणापथ विजय अभियान के दौरान नलवंशीय राजा व्याघ्रराज को पराजित कर व्याघ्रहंता की उपाधि धारण किया था।
भवदत्तवर्मन के ऋद्धिपुर अभिलेख के अनुसार वाकाटक नरेश नरेन्द्रसेन पर भवदत्त वर्मन ने आक्रमण कर उसकी राजधानी नंदिवर्धन को तहस नहस कर दिया।
केसरी बेड़ा अभिलेख के अनुसार अर्थपति भट्टारक को वाकाटक नरेश पृथ्वीसेन ने पराजित कर राजधानी पुष्करी को तहस नहस कर दिया। जिसे (पोढ़ागढ़ अभिलेख के अनुसार) स्कंदवर्मन ने फिर से बसाया और पोढ़ागढ़ में विष्णु मंदिर का निर्माण करवाया।
इतिहासकारों की मान्यता है कि विलासतुंग नलवंश का महत्वपूर्ण शासक था, तथा पाण्डुवंशीय महाशिवगुप्त बालार्जुन का समकालीन था। उसने राजिम के राजीव लोचन मन्दिर का निर्माण करवाया। विलासतुंग के बारे में जानकारी राजिम अभिलेेख से मिलता है।
दुर्ग जिले के कुलिया नामक स्थान से प्राप्त मुद्राभांड द्वारा स्कंदवर्मन के बाद नन्दराज और स्तंभराज नामक दो नए राजाओं के विषय में जानकारी मिलती है, ये दोनों नलवंशी शासक प्रतीत होते है। जिन्होंने स्कंदवर्मन के पश्चात और पृथ्वीराज के पूर्व शासन किया होगा। पृथ्वीराज और उसके उत्तराधिकारियों ने संभवतः दक्षिण कोसल के पाण्डु वंशीय शासकों की सत्ता समाप्त की थी।
- गुप्त, प्यारेलाल – प्राचीन छत्तीसगढ़, पृ. – 53
- शुक्ल, अभिनंदन ग्रंथ – इतिहास खण्ड, – पृ. – 22
- देशबंधु, संदर्भ छत्तीसगढ़, इतिहास खण्ड, पृ. – 17