लोकसभा और राज्यसभा में अंतर/सम्बन्ध
भारतीय संसद अन्य देशों जैसे ग्रेट ब्रिटेन, संयुक्त राज्य अमेरिका, स्विट्जरलैण्ड एवं रूस की भाँति द्विसदनात्मक है। लोकसभा भारतीय संसद का प्रथम एवं निम्न सदन है और राज्यसभा संसद का द्वितीय लेकिन उच्च सदन है। अतः लोकसभा एवं राज्यसभा का तुलनात्मक अध्ययन अथवा दोनों के पारस्परिक सम्बन्धों का अध्ययन निम्नलिखित शीर्षकों के अन्तर्गत किया जा सकता है-
(1) नामकरण के सम्बन्ध में
भारतीय संसद के दो सदन हैं- लोकसभा और राज्यसभा। लोकसभा जनता का सदन है और राज्यसभा संघ की इकाइयों एवं केन्द्र शासित प्रदेशों का वरिष्ठ सदन है।
(2) प्रतिनिधित्व के सम्बन्ध में
लोकसभा भारत की समस्त जनता का प्रतिनिधित्व करती है और राज्यसभा राज्यों तथा संघीय क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व करती है, लेकिन राज्यसभा में संघ के सभी राज्यों को समान प्रतिनिधित्व प्रदान नहीं किया गया है।
(3) सदस्य संख्या के सम्बन्ध में
लोकसभा की सदस्य संख्या अधिक-से-अधिक 552 हो सकती है। वर्तमान में यह सदस्य संख्या 545 है। राज्यसभा में अधिक-से-अधिक सदस्य 250 हो सकते हैं जिनमें से 12 सदस्य राष्ट्रपति द्वारा मनोनीत और 238 अप्रत्यक्ष रूप से निर्वाचित होंगे। वर्तमान में यह सदस्य संख्या (233 + 12) 245 है। इस प्रकार लोकसभा की सदस्य संख्या राज्यसभा की तुलना में दोगुनी से भी अधिक है।
(4) कार्यकाल के सम्बन्ध में
लोकसभा का कार्यकाल 5 वर्ष निर्धारित किया गया है लेकिन राज्यसभा एक स्थायी सदन है जो कभी भंग नहीं होता है। प्रत्येक सदस्य का कार्यकाल 6 वर्ष होता है क्योंकि इसके एक-तिहाई सदस्य प्रति दो वर्ष पश्चात् अवकाश ग्रहण कर लेते हैं और इतने ही नये सदस्य निर्वाचित कर लिये जाते हैं।
(5) साधारण विधेयक के सम्बन्ध में
साधारण विधेयक या अवित्तीय विधेयक के सम्बन्ध में दोनों सदनों की शक्तियाँ समान हैं, परन्तु लोकसभा द्वारा पारित विधेयक को यदि राज्यसभा 6 माह की अवधि में पारित करके वापस नहीं भेजती तो वह विधेयक स्वतः ही पारित मान लिया जाता है। यदि दोनों सदनों में किसी विधेयक के बारे में संयुक्त बैठक में मतभेद उत्पन्न हो जाये तो अनुच्छेद 108 के अनुसार, राष्ट्रपति द्वारा दोनों सदनों की बहुमत के आधार पर निर्णय लिया जायेगा लेकिन लोकसभा की सदस्य संख्या राज्यसभा की तुलना में दोगुनी होने के कारण लोकसभा की इच्छानुसार ही कार्य होने की सम्भावना अधिक रहती है। इसलिए व्यवहार में राज्यसभा की स्थिति निर्बल एवं लोकसभा की स्थिति सबल है।
(6) वित्तीय विधेयकों के सम्बन्ध में
वित्तीय विधेयकों के सम्बन्ध में संविधान द्वारा ही लोकसभा को राज्यसभा से अधिक शक्ति प्रदान की गई है। वित्त विधेयक केवल लोकसभा में ही प्रस्तुत किये जा सकते हैं, क्योंकि राष्ट्रीय वित्त पर लोकसभा का पूर्ण नियन्त्रण है। लोकसभा द्वारा पारित वित्त विधेयक राज्यसभा की सिफारिशों के लिए भेजा जाता है और राज्यसभा को वह वित्त विधेयक 14 दिन के अन्दर पारित करके लोकसभा को वापस भेजना पड़ता है। यदि राज्यसभा इस अवधि में विधेयक को पारित करके लोकसभा के पास नहीं भेजती है, तो उस विधेयक को स्वतः ही उसी रूप में पारित मान लिया जाता है, जिस रूप में लोकसभा ने उसे पारित किया था। इससे सिद्ध होता है कि वित्तीय क्षेत्र में राज्यसभा महत्वहीन और शक्तिहीन है।
(7) कार्यपालिका पर नियन्त्रण के सम्बन्ध में
संसदीय शासन में मन्त्रिमण्डल संसद के लोकप्रिय सदन के प्रति उत्तरदायी होता है। भारत में भी मन्त्रिमण्डल लोकसभा के प्रति सामूहिक रूप से उत्तरदायी है, राज्यसभा के प्रति नहीं। राज्यसभा के सदस्य मन्त्रियों से प्रश्न तथा पूरक प्रश्न पूछ सकते हैं और उनकी आलोचना भी कर सकते हैं, परन्तु अविश्वास प्रस्ताव के आधार पर मन्त्रिमण्डल को पदच्युत करने का अधिकार केवल लोकसभा को ही प्राप्त है। इसके अतिरिक्त लोकसभा में किसी विधेयक के पारित न होने पर सम्पूर्ण मन्त्रिपरिषद् को त्यागपत्र देना पड़ता है, परन्तु राज्यसभा द्वारा किसी विधेयक के पारित न होने पर मन्त्रिपरिषद् त्यागपत्र नहीं देती है। इस प्रकार कार्यपालिका पर नियन्त्रण के सम्बन्ध में लोकसभा राज्यसभा से अधिक शक्तिशाली है।
निष्कर्ष– इस प्रकार उपर्युक्त विश्लेषण से स्पष्ट है कि विधि निर्माण, वित्तीय एवं कार्यपालिका के क्षेत्रों में राज्यसभा की स्थिति लोकसभा से निम्नतम है। साधारण विधेयकों को प्रस्तुत करने, संवैधानिक संशोधन, संकटकालीन घोषणा, राष्ट्रपति के निर्वाचन के लिए गठित निर्वाचक मण्डल की सदस्यता आदि के सम्बन्ध में सैद्धान्तिक दृष्टि से दोनों सदनों को समान शक्तियाँ प्रदान की गई हैं, लेकिन संविधान निर्माताओं ने लोकसभा को ही शक्ति का केन्द्र बनाया है।