# राष्ट्रीय अनुसूचित जाति तथा जन-जाति आयोग

राष्ट्रीय अनुसूचित जाति तथा जन-जाति आयोग :

65 वें संविधान संशोधन अधिनियम 1990 द्वारा अनु. 338 में संशोधन करके अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति आयोग की स्थापना की गई है। इस आयोग में राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त एक अध्यक्ष और उपाध्यक्ष के साथ पाँच सदस्यों की नियुक्ति की व्यवस्था की गई है। इस आयोग को जो कार्य सौंपे गए हैं वे निम्नलिखित हैं-

  • संविधान अथवा किसी अन्य कानून के तहत अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजातियों को जो अधिकार प्रदान किये गए हैं। उनकी सुरक्षा एवं उनके उल्लंघन के मामलों की जाँच करना एवं उन पर नजर रखना।
  • अनुसूचित जाति तथा अनुसूचित जनजातियों को जो अधिकार संविधान के द्वारा प्रदान किये गए हैं, और उसके सुरक्षा के लिए जो उपाय किए गए हैं, उन उपायों से वंचित किये जाने की विशिष्ट शिकायतों की जांच करना।
  • अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के सामाजिक और आर्थिक विकास के लिए योजनाएं बनाने में सहयोग एवं सलाह देना तथा केन्द्र तथा राज्य सरकारों द्वारा चलाई जा रही योजनाओं के कार्यान्वयन में हो रही प्रगति का मूल्यांकन करना।
  • राष्ट्रपति को वार्षिक रिपोर्ट भेजने के साथ-साथ अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के संरक्षण कल्याण और सामाजिक, आर्थिक विकास के लिए रिपोर्ट और परामर्श देना।
  • आयोग को संसद या किसी कानून या नियम के तहत राष्ट्रपति के द्वारा जो कार्य अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति के संरक्षण, कल्याण, विकास और प्रगति से संबंधित सौपे गए हैं, उनको पूरा करना।

आयोग के द्वारा जो रिपोर्ट राष्ट्रपति संसद के दोनों सदनों में प्रस्तुत करता है इन रिपोर्ट के साथ ज्ञापन भी संलग्न रहता है जिसमें केन्द्र सरकार से संबंधित कोई सिफारिश या फिर प्रस्तावित कार्यवाही का विवरण होता है, अगर किसी सिफारिश को स्वीकार नहीं किया जाता है जो उसका कारण भी ज्ञापन में देना होगा, अगर इस तरह की कोई रिपोर्ट या उसका कोई अंश राज्य सरकार से संबंधित है तो उसकी प्रति राज्यपाल को भेजी जाएगी, जो उसे राज्य विधानसभा में प्रस्तुत करने की व्यवस्था करेंगे।

आयोग को अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति की शिकायतों को जाँचने का भी अधिकार प्राप्त है, और जब वह इन वर्गों को संविधान के द्वारा या किसी अन्य कानून के द्वारा दिए गए अधिकारों या सुरक्षा के उल्लंघन से संबंधित मामलों की छानबीन या निगरानी कर रहा होता है तो उसे दीवानी अदालत के सभी अधिकार प्राप्त होते हैं, ये अधिकार निम्न प्रकार से है-

  • भारत के किसी भी हिस्से से किसी भी व्यक्ति को तलब करने एवं आयोग के समक्ष उसकी अनिवार्य उपस्थिति सुनिश्चित करने और शपथ पूर्वक उससे पूछचाछ करने का अधिकार।
  • किसी दस्तावेज की छानबीन करने और आयोग के समक्ष प्रस्तुत करने का निर्देश देना।
  • शपथ पत्र के माध्यम से गवाही लेने का अधिकार।
  • किसी भी न्यायालय अथवा कार्यालय से सार्वजनिक दस्तावेज अथवा उसकी प्रतिलिपि मंगवाने का अधिकार।
  • गवाहों अथवा दस्तावेजों की जांच-पड़ताल के लिए आदेश पत्र जारी करने का अधिकार।
  • राष्ट्रपति के द्वारा कानून के तहत सौंपे गए, किसी अन्य मामले को देखने का अधिकार।

इसके अतिरिक्त केन्द्र और राज्य सरकारें अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति से संबंधित सभी प्रमुख नीतियों का निर्धारण करने एवं क्रियान्वयन करने के मामले में आयोग से परामर्श लेगी।

अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के विकास के लिए कल्याण विभागों की स्थापना :

भारतीय संविधान के अनु. 164 के द्वारा अनुसूचित जनजातियों के कल्याण के लिए अलग से मंत्रियों की नियुक्ति का प्रावधान किया गया है। यह व्यवस्था संविधान के द्वारा बिहार, मध्यप्रदेश और उड़ीसा के लिए की गई है। इस विभाग को संभालने वाले मंत्री और विभागों को भी देख सकते हैं। राज्यों और केन्द्र शासित प्रदेशों में अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों तथा पिछड़े वर्गों के कल्याण और उनकी देखरेख के लिए अलग विभाग हैं, कुछ राज्यों ने केन्द्र की संसदीय समिति की ही तरह राज्य विधान सभा के सदस्यों की समितियाँ बनाई हैं, तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल समेत अनुसूचित क्षेत्रों वाले सभी राज्यों ने अनुसूचित जनजातियों के कल्याण और उत्थान के बारे में परामर्श के लिए संविधान की पाँचवी अनुसूची के प्रावधानों के तहत जनजातीय सलाहकार परिषद गठित की है।

यहाँ पर यह प्रश्न उत्पन्न होता है कि भारतीय संविधान में इन वर्गों के लिए विशेष उपबंधों की व्यवस्था क्यों की गई ? डी.डी. वसु का विचार है कि यदि हमारे संविधान निर्माता समाज के उन अनुभागों के लिए विशेष उपबंध नहीं करते, जो सामाजिक और आर्थिक दृष्टि से पिछड़े हैं, तो यह उनकी भूल होती है। यदि प्रारंभ में ही दलित जातियों को सहायता न दी जाय तो लोकतांत्रिक राष्ट्र की प्रगति संभव नहीं हो सकती। लोकतांत्रिक समता का सिद्धांत तभी काम कर सकता है जब पूरा राष्ट्र यथा संभव एक ही स्तर पर आ जाए। हमारे संविधान में दलित जातियों को समान स्तर पर लाने के लिए कुछ स्थायी रक्षोपाय किये गए हैं ताकि लोकतंत्र का उपयोग बहुसंख्यक के द्वारा अत्याचार के लिए न किया जाय। अनुसूचित जाति एवं जन-जाति उत्थान संवैधानिक संरक्षण के अभाव में असंभव था। निम्नलिखित तर्कों एवं तथ्यों से इन वर्णों के कल्याण के लिए संवैधानिक संरक्षण की महत्ती आवश्यकता प्रकट होती है।

  • भारतीय संविधान की प्रस्तावना में समस्त नागरिकों के लिए सामाजिक आर्थिक और राजनैतिक न्याय दिलवाले का प्रावधान रखा गया है। पिछड़े वर्गों के विकास की समीचीन व्यवस्था किये बिना उद्देश्यों का प्रस्ताव महत्वाकांक्षाओं का कोरा चिट्ठा मात्र रह जाता।
  • हमने लोकतंत्रात्मक शासन व्यवस्था अपनाने का संकल्प लिया था सच्चे लोकतंत्र की नींव डालने के लिए समाज के पद दलित एवं कुचले हुए लोगों को अन्य सामाजिक अंगों के समकक्ष लाना अनिवार्य था, अन्यथा सामाजिक विषमता के फलस्वरूप राजनैतिक समता का आदर्श महत्वहीन हो जाता।
  • हमारा ध्येय लोक कल्याणकारी राज्य की स्थापना करना है, शोषण, अस्पृश्यता, बेगार एवं सामाजिक अत्याचार के विरुद्ध कारगर संवैधानिक व्यवस्था किये बिना लोक-कल्याणकारी राज्य का सपना अधूरा ही रहता।
  • ऊँची जातियों के अहं से पीड़ित यह वर्ग इतना सामर्थ्यवान नहीं था कि वह आजादी के तुरंत बाद उच्च वर्गों के लोगों से खुली प्रतियोगिता करके अपने अधिकारों और हितों की सुरक्षा कर सके। समुचित संवैधानिक अनुच्छेदों के अभाव में यह वर्ग उच्च वर्ग की दया और कृपा पर आश्रित हो जाता, स्वाधीन राष्ट्र के किसी वर्ग का अन्य वर्ग की अनुकंपा पर जीवित रहना लोकतंत्रात्मक शासन के आधारभूत सिद्धांतों के प्रतिकूल बात होती।
  • भारतीय संविधान उदारवाद, समाजवाद और लोकतंत्र के महत्ती आदशों पर आधारित है, इन आदर्शों के क्रियान्वयन के लिए इन वर्गों के कल्याण को बढ़ावा देने वाली सामाजिक व्यवस्था का निर्माण करना आवश्यक था।
The premier library of general studies, current affairs, educational news with also competitive examination related syllabus.

Related Posts

# मौलिक अधिकारों के उल्लेख का ऐतिहासिक परिदृश्य

Home / QnA / # मौलिक अधिकारों के उल्लेख का ऐतिहासिक परिदृश्यमौलिक अधिकारों के उल्लेख का ऐतिहासिक परिदृश्य : मौलिक अधिकारों से सम्बन्धित उपबंधों का समावेश आधुनिक…

# जनांकिकी संक्रमण का क्या अर्थ है ? (Meaning of Demography Transit)

Home / QnA / # जनांकिकी संक्रमण का क्या अर्थ है ? (Meaning of Demography Transit)जनांकिकी संक्रमण का अभिप्राय : विश्व के किसी भी जनसमूह को जनांकिकी…

# एंजिल का नियम क्या है और यह नगरों पर कैसे लागू होता है? | Angel’s Rule of Consumption

Home / QnA / # एंजिल का नियम क्या है और यह नगरों पर कैसे लागू होता है? | Angel’s Rule of Consumptionएंजिल का उपभोग का नियम…

# ओजोन परत : आशय, क्षरण के कारण/क्षय प्रक्रिया, दुष्परिणाम | Ozone Layer (Ozone Depletion)

Home / QnA / # ओजोन परत : आशय, क्षरण के कारण/क्षय प्रक्रिया, दुष्परिणाम | Ozone Layer (Ozone Depletion)ओजोन परत क्या है/आशय : हमारे वायुमण्डल में 15…

# आधुनिक तकनीक सभ्यता को कैसे प्रभावित करती है?

Home / QnA / # आधुनिक तकनीक सभ्यता को कैसे प्रभावित करती है?आधुनिक तकनीक और सभ्यता : प्रौद्योगिकी ने आम आदमी को सशक्त बनाने में अहम् भूमिका…

# नई प्रौद्योगिकी मानव समाज (सभ्यता) को किस तरह प्रभावित कर रही है?

Home / QnA / # नई प्रौद्योगिकी मानव समाज (सभ्यता) को किस तरह प्रभावित कर रही है?प्रौद्योगिकी और मानव समाज (सभ्यता) : मानव समाज की जीवन शैली…

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

fourteen − 8 =