क्या भारत एक राष्ट्र है?
अनेक बार इस आशय के प्रश्न किये जाते हैं कि भारत को एक राष्ट्र कहा जा सकता है या नहीं? राष्ट्र एक सामाजिक अवधारणा है, एक ऐसी विचारधारा है, जो सामाजिक सम्बन्धों पर आधारित होती है। भारत की सामाजिक संरचना के आधार पर इसके दो स्वरूप स्पष्ट दिखाई देते हैं बाहरी और आन्तरिक।
भारत की बाह्य संरचना में धर्म, भाषा, जातियाँ, रहन-सहन, आर्थिक व्यवस्था और जीवन के ढंग को सम्मिलित किया जाता है। बाहरी तौर पर भारत अनेक विविधताओं से पूर्ण है, जिसमें अनेक राष्ट्रीयताएँ निवास करती हैं। उपर्युक्त विविधताओं के आधार पर ही अनेक विद्वान ऐसा मानते हैं कि भारत एक राष्ट्र न होकर उपमहाद्वीप है, जिसमें अनेक राष्ट्रीयताएँ हैं। अमेरिकन विद्वान हैरिसन (Celig Harrison) ने अपनी पुस्तक “India – The Danger Decades Ahead” में लिखा है कि उपर्युक्त विविधताओं के आधार पर भारत को एक राष्ट्र नहीं कहा जा सकता है।
वास्तव में हैरिसन का दृष्टिकोण एकांगी है तथा राष्ट्रवाद की सामाजिक व्याख्या करने में असमर्थ है। जब हम भारत की आन्तरिक संरचना की बात करते हैं, तो स्पष्ट प्रतीत होता है कि अनेक विविधताओं के बावजूद भी भारतीय जीवन में एकता है। अतः इसे राष्ट्र कहा जा सकता है। यदि भारतीय विचारधारा और संस्कृति का गम्भीरता से अध्ययन किया जाये, तो यह स्पष्ट प्रतीत होता है कि भारत एक राष्ट्र है। राष्ट्रीयता मात्र भाषा, धर्म, जाति आदि समानताओं पर आधारित नहीं होती है, अपितु यह नागरिकों के मस्तिष्क में विद्यमान उस आधारभूत एकता की भावना से है, जो नागरिकों की विविधताओं के बावजूद भी एकता के सूत्र में बाँधती है। भारतीय जीवन और संस्कृति में जो एकता विद्यमान है, उनकी चर्चा भारतीय ही नहीं अपितु विदेशी विद्वानों ने भी की है। इनमें ‘हर्बर्ट रिजले‘ का नाम प्रमुख है। रिजले के अनुसार, “भारत में धर्म, रीति-रिवाज और भाषा तथा सामाजिक और शारीरिक भिन्नताओं के होते हुए भी जीवन की एक विशेष एकरूपता कन्याकुमारी से लेकर हिमालय तक देखी जा सकती है।”