प्राकृतिक संसाधन (Natural Resources) :
वन्य जीवधारियों की भाँति मानव भी प्राकृतिक तन्त्र का एक साधारण सदस्य है और जीवन-यापन के लिए विभिन्न प्राकृतिक संसाधनों पर निर्भर रहता है। परन्तु बुद्धि के विकास ने मानव को प्राकृतिक संसाधनों का मालिक बना दिया। परिणामस्वरूप मानव ने इन संसाधनों का मनमाना अन्धाधुन्ध दोहन प्रारम्भ कर दिया। इस अविवेकपूर्ण उपयोग से भौतिक सुखों में बढ़ोत्तरी के साथ-साथ प्राकृतिक संसाधन और जीवधारियों का आपसी सन्तुलन गड़बड़ाने का खतरा भी उत्पन्न हो गया है। वास्तव में मानव ने प्राकृतिक संसाधनों की घोर उपेक्षा की है, जिसके दुष्परिणाम अब स्वयं मानव जाति के लिए गम्भीर संकट उत्पन्न कर रहे हैं। अतः मानव जाति को विनाश से बचाने के लिए प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षणपूर्ण सदुपयोग आज भी प्रमुख समस्या है।
‘संसाधन’ केवल किसी विशिष्ट उद्देश्य के सन्दर्भ में ही प्रयुक्त होता है। गिलहरियों और रोबिन पक्षियों के लिए प्रकटतः वे ही पदार्थ साधन होंगे जिनकी इन्हें आहार, आश्रय, विस्तार आदि के लिए आवश्यकता होती है। परन्तु इस शब्द को हम सामान्यतः इस अर्थ में प्रयोग नहीं करते। संसाधन साधनों के वे स्रोत होते हैं जो हमारे जीवित रहने और फलने-फूलने के लिए जरूरी होते हैं।
संसाधन एक गतिशील नामावली है क्योंकि, ज्ञान, समाज, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी में प्रगति और विकास के साथ इसके अर्थ में परिवर्तन होता रहता है। कोई भी वस्तु, जो मनुष्य के लिए उपयोगी होती है, संसाधन है। दूसरे शब्दों में, संसाधन वह वस्तु या तत्व होता है जिसका उपयोग करके मनुष्य भी अपनी आवश्यकताओं एवं महत्वाकांक्षाओं की तुष्टि करता है। वास्तव में संसाधनों से तात्पर्य तथा संकल्पनाओं में सांस्कृतिक एवं प्रौद्योगिकीय परिवर्तनों के साथ परिवर्तन होता रहता है। उदाहरण के लिए, वर्तमान समय में विचार, चिन्तन, सौन्दर्य, ज्ञान, बुद्धि आदि भी संसाधन हो गये हैं। उल्लेखनीय है कि हम लोगों का यहाँ पर मात्र प्राकृतिक संसाधनों और खासकर पारिस्थितिकी संसाधनों से ही सम्बन्ध है। अतः यहाँ पर केवल पारिस्थितिकीय संसाधनों पर ही विचार किया जायेगा।
आर. एफ. डैस्मेन (R. F. Dasmann, 1968) के अनुसार, प्रारम्भ में वे पदार्थ प्राकृतिक संसाधन थे जो मनुष्य की किसी खास संस्कृति के लिए उपयोगी एवं मूल्यवान थे। आज पृथ्वी की प्रत्येक वस्तु मनुष्य के लिए उपयोगी एवं मूल्यवान है, अतः वह प्राकृतिक संसाधन है। नॉर्टन गिन्सबर्ग (Norton Ginsburg, 1957) के अनुसार, “मनुष्य के कार्य-क्षेत्र में प्रकृति द्वारा मुक्त रूप में प्रदान किये जाने वाले भौतिक पदार्थ (physical materials) तथा मानव के परिवेश में अतिरिक्त अभौतिक गुणवत्ता (non-materialistic qualities) प्राकृतिक संसाधन हैं।”
प्राकृतिक संसाधनों का वर्गीकरण :
विभिन्न वैज्ञानिकों ने प्राकृतिक संसाधनों को विभिन्न प्रकार से वर्गीकृत किया है-
A. पुनः पूर्ति के आधार पर वर्गीकरण
डेस्मेन (1976) ने पुनः पूर्ति के आधार पर प्राकृतिक संसाधनों को 4 उप-प्रकारों में वर्गीकृत किया है-
- अक्षय संसाधन (Inexhaustible resources),
- अनवीनीकरण संसाधन (Non-renewable resources),
- नवीनीकरण योग्य संसाधन (Renewable resources),
- पुनर्चक्रणीय संसाधन (Recyclable resources)|
1. अक्षय संसाधन (Inexhaustible resources)
इनके अन्तर्गत वे नैसर्गिक संसाधन आते हैं जो उपयोग करने या न करने पर भी सदा सुलभ रहते हैं। उदाहरण के लिए, सूर्य, प्रकाश, जल, वायु आदि।
2. अनवीनीकरण संसाधन (Non-renewable resources)
इनका जनन उस गति से नहीं हो पाता है जिस गति से इनका उपभोग किया जाता है। जब एक बार ये संसाधन समाप्त हो जाते हैं तो उनका स्थानापन्न नहीं हो पाता है। उदाहरण-वन्य जीवन (wildlife)
3. नवीनीकरण योग्य संसाधन (Renewable resources)
इनके अन्तर्गत वे सभी जीवित वस्तुएँ आती हैं जिनमें पुनर्जनन एवं वृद्धि की क्षमता होती है। जब तक इनके उपयोग की दर इनके जनन एवं पुनर्जनन की दर से कम रहती है और जब तक इनका पर्यावरण अनुकूल बना रहता है तब तक इनका प्रतिस्थापन (replacement) स्वयं होता रहता है।
4. पुनर्चक्रणीय संसाधन (Recyclable resources)
ये विशिष्ट प्रकार के अनवीकरणीय संसाधन होते हैं तथा उपयोग करने के बाद से पूर्णतया नष्ट नहीं हो पाते हैं वरन् इनका बार-बार विभिन्न रूपों में उपयोग किया जा सकता है। उदाहरण- धातुएँ.
B. उपयोगिता पर आधारित वर्गीकरण
उपयोगिता के आधार पर प्राकृतिक संसाधनों को निम्नलिखित चार समूहों में वर्गीकृत किया गया है-
1. अप्रयुक्त संसाधन (Unused resources)
किसी क्षेत्र में स्थित कोई संसाधन जब तक प्रयोग नहीं किया जाता, तब तक वह अप्रयुक्त संसाधन रहता है। उदाहरणार्थ, उत्तरी अमेरिका में जब पश्चिमी यूरोपीय देशों के लोग जाकर बसे थे, उनसे पूर्व हजारों वर्षों तक आदिवासियों को कोयले की स्थिति और प्रयोग का कोई ज्ञान नहीं था। यूरोप से जाकर बसे लोगों ने उसका प्रयोग आरम्भ किया।
2. अप्रयोजनीय संसाधन (Unusable resources)
यदि कोई संसाधन वर्तमान तकनीक के अनुसार भविष्य में प्रयोग नहीं किया जा सकता है, तो वह अप्रयोजनीय संसाधन है। उदाहरणार्थ, जो खानें इतनी ज्यादा गहराई तक खोदी जा चुकी हैं कि अब वर्तमान तकनीक के द्वारा उनसे खनिज प्राप्त नहीं हो सकते हैं तो वे अति गहरी खाने अप्रयोजनीय संसाधन हैं।
3. विभव या सम्भाव्य संसाधन (Potential resources)
किसी प्रदेश या क्षेत्र के वे पदार्थ जो सम्भवतः निकट भविष्य में प्रयोग किये जा सकते हैं, सम्भाव्य संसाधन कहलाते हैं। उदाहरणार्थ, भारत की नदियों में जो जल बहता है, उसका पूरा उपयोग जल-विद्युत के लिए नहीं किया जा रहा है। बहुत से क्षेत्रों में तो जल-विद्युत उत्पादन में क्षमता के केवल 2% या 3% भाग को ही प्रयोग किया जा रहा है। परन्तु नये-नये निर्माण-उद्योगों की स्थापना और संचार साधनों के विकास के साथ-साथ बिजली की माँग बढ़ती जा रही है। अतः बहुत से क्षेत्रों में नदियों पर बाँध बनाकर जल-विद्युत उत्पादन आवश्यकतानुसार बढ़ाया जा रहा है। इस प्रकार भारतीय जल-शक्ति का बहुत-सा भाग अब सम्भाव्य बन गया है, जिसका निकट भविष्य में प्रयोग कर लिया जायेगा।
4. अज्ञात या गुप्त संसाधन (Latent resources)
ऐसे बहुत से पदार्थ हैं, जिनका पूरा-पूरा उपयोग मनुष्य को मालूम नहीं है। जब तक किसी पदार्थ का प्रयोग और गुण मालूम न हो, तब तक वह एक अज्ञात या गुप्त तत्व है। उदाहरणार्थ-
1) रबर का वृक्ष अमेजन बेसिन के निवासियों को सैकड़ों वर्षों से मालूम था परन्तु उसका प्रयोग जब तक मालूम न हुआ, तब तक वह यूरोपीय देशों के लिए अज्ञात संसाधन बना रहा। तकनीकी के विकसित होने पर, रबर के रस को गर्म करके, गन्धक के साथ मिलाकर वल्कनित (volcanise) करने की क्रिया मालूम हुई तब मोटर गाड़ियों का निर्माण आरम्भ हुआ और वायु भरे जाने वाले ट्यूब-टायर आदि बनाने की क्रिया शुरू हुई, तब रबर की माँग एकदम बढ़ गई। उस समय रबर एक मूल्यवान संसाधन बन गया।
2) पेट्रोलियम भी अट्ठारहवीं शताब्दी तक अज्ञात बना रहा। जब अन्तर्दहन इंजन (combustion engine) का आविष्कार होने के बाद लोगों को यह मालूम हुआ कि पेट्रोल का प्रयोग ईंधन की तरह किया जा सकता है और तेल-शोधन की क्रिया की खोज हो गई तथा भू-विज्ञान का इतना अधिक विकास हो गया कि पेट्रोलियम के भण्डारों का पता लगा लिया गया तब पेट्रोलियम एक संसाधन बन गया।
3) आदिमकालीन मानव अपने औजारों; जैसे—छुरी, कुल्हाड़ी आदि को बनाने के लिए पत्थरों का प्रयोग करते थे। वे धातुओं के औजार उस समय तक नहीं बना सके, जब तक कि उन्होंने कच्ची धातुओं को साधारण चट्टानों से अलग पहचानना न सीख लिया तथा कच्ची धातुओं को गलाकर उनसे ताँबा, लोहा आदि निकालने की तकनीक न खोज ली।
4) यूरेनियम का कोई मूल्य तब तक नहीं था जब तक कि परमाणु को विखण्डित न किया जा सका और परमाण्विक शक्ति का उपयोग क्रियात्मक रूप से सम्भव हो सका। अतः द्वितीय महायुद्ध के पूर्व तक तो यूरेनियम एक अज्ञात या गुप्त पदार्थ मात्र था।
(C) पारिस्थितिकीय वर्गीकरण (Ecological Classification)
ओवेन (Owen, 1971) ने प्राकृतिक संसाधनों का पारिस्थितिक सन्दर्भ में वर्गीकरण तथा विश्लेषण करते हुए संसाधनों को दो प्रमुख वर्गों में रखा है—(i) अक्षयशील (inexhaustible), तथा (ii) क्षयशील (exhaustible) | उनका वर्गीकरण संसाधनों की गुणवत्ता, परिवर्तनशीलता तथा पुनः प्रयोग पर आधारित है। उन्होंने संसाधनों के संरक्षण तथा परिरक्षण के भी उपाय सुझाये हैं।
प्राकृतिक संसाधनों का महत्व :
पृथ्वी एवं संसाधनों पर मानव का अधिकार है। प्राकृतिक संसाधनों के अभाव में स्वयं मानव का जीवित रह पाना असम्भव है। मानव के जन्म से लेकर मृत्यु तक प्राकृतिक संसाधनों के स्वरूपों में मानव उपयोग हेतु परिवर्तन किया जाता है, जिससे मानव को भोजन, वस्त्र, शरण तथा परिवहन आदि जैसी सुविधाएँ प्राप्त होती हैं। मानव की प्रत्येक सुख-सुविधा तथा सुरक्षा प्राकृतिक संसाधनों की पर्याप्त उपलब्धता पर ही निर्भर करती है।
प्राकृतिक संसाधनों की पर्याप्त उपलब्धता के बिना मानव जाति को सम्पन्नता प्राप्त नहीं हो सकती। वस्तुतः प्राकृतिक संसाधन मानव के लिए प्रकृति के अमूल्य उपहार हैं, जिनकी सहायता से मानव ने अपने वर्तमान आर्थिक विकास के स्तर को प्राप्त किया है।
प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण में व्यक्ति विशेष की भूमिका :
प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण केवल सरकारी प्रयास या कानून इत्यादि बनाकर नहीं किया जा सकता इसके लिए आवश्यक है कि हम प्रत्येक व्यक्ति-विशेष को इस पर्यावरण का संरक्षण का महत्व समझायें कि बिना प्रत्येक व्यक्ति के सहयोग के कभी भी पर्यावरण का संरक्षण नहीं हो सकता, एक-एक करके सभी प्राकृतिक संसाधन नष्ट हो जाएँगे। अतः यह आवश्यक है कि हम जन-सामान्य को पर्यावरण की शिक्षा दें, उनमें प्रकृति के प्रति प्रेम पैदा करें, उन्हें प्राकृतिक संसाधनों का महत्व बतायें इत्यादि। आइये हम इस बात पर केन्द्रित हों कि प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण में व्यक्ति-विशेष अपनी भूमिका कैसे अदा कर सकता है, जो निम्नानुसार हो सकती है-
(1) पर्यावरण शिक्षा
जन-साधारण को सबसे पहले स्वयं पर्यावरण शिक्षा प्राप्त करने की कोशिश करनी चाहिए जिससे वह स्वयं तो पर्यावरण के प्रति जागरूक होगा और अपने आस-पास के प्रत्येक व्यक्ति को संसाधनों की महत्ता समझाकर उसके संरक्षण का उपाय बतायेगा।
(2) ऊर्जा का उपयोग
प्रत्येक व्यक्ति की दिनचर्या की शुरूआत किसी न किसी प्रकार के यन्त्रों के द्वारा होती है और इन यन्त्रों के संचालन हेतु ऊर्जा की आवश्यकता होती है जिसके लिए हम विभिन्न संसाधनों का उपयोग करते हैं। जैसे हम भोजन बनाने के लिए कोयला, लकड़ी या गैस, तेल का प्रयोग करते हैं। प्रत्येक व्यक्ति को चाहिए कि वह गैस का प्रयोग करे इससे वातावरण दूषित नहीं होता, दूसरी ओर लकड़ी और कोयला जलाने से वातावरण दूषित होता है, साथ-साथ प्राकृतिक संसाधन भी नष्ट होते हैं। दूसरी ओर वाहनों के रख-रखाव एवं उचित वाहनों के प्रयोग से भी वायु प्रदूषण नहीं फैलता। सौर-ऊर्जाजनित कुकर इत्यादि का प्रयोग भी करना चाहिए। इस प्रकार व्यक्ति विशेष उचित स्थान पर उचित ऊर्जा के संसाधनों का उपयोग कर प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण में महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकता है।
(3) वृक्षारोपण
वृक्ष एक ऐसा संसाधन है जो नष्ट होने के बाद पुनः प्राप्त किया जा सकता है। साथ ही इतना अधिक महत्वपूर्ण है कि इसके बिना प्राकृतिक चक्र एवं मानव-जीवन अधूरा है। वैसे तो वृक्ष प्रकृति में स्वयं ही उग आते हैं लेकिन इनका इतना अधिक दोहन हुआ है कि इनकी संख्या कम हो गई जिससे पर्यावरण के अन्य कारकों में असन्तुलन उत्पन्न हो गया। अतः इसका एक ही उपाय है कि प्रत्येक व्यक्ति अपने घरों के, अपने कार्यालयों के, अपने आस-पास सार्वजनिक संस्थानों में, खाली पड़ी भूमि में वृक्षारोपण ही न करें बल्कि लगे हुए वृक्षों का संरक्षण भी करें। इससे धीरे-धीरे वृक्षों की संख्या बढ़ती जायेगी और पर्यावरण प्रदूषण दूर होगा। साथ ही अन्य प्राकृतिक संसाधन व्यक्ति-विशेष की कोशिश से संरक्षित रहेंगे।
(4) जल का सदुपयोग
प्राकृतिक संसाधनों में जल की उपलब्धता पर्याप्त है लेकिन इसका उपयोग एवं प्रबन्धन ठीक से नहीं होने के कारण इसकी कमी तो हो ही रही है साथ ही यह प्रदूषित भी हो रहा है। अतः प्रत्येक व्यक्ति को चाहिए कि वह इसका सही उपयोग कर इसको संरक्षित करे। इसके लिए उन्हें निम्नांकित उपाय करने चाहिए।
- तालाबों एवं पोखरों, नदियों इत्यादि जगहों पर नहाने एवं कपड़ा धोने के लिए साबुन का प्रयोग नहीं करना चाहिए। इनमें कचरा या अन्य गन्दगी नहीं फेंकनी चाहिए।
- कृषि कार्यों के लिए अत्यधिक उर्वरक एवं कीटनाशकों जैसे रसायनों का उपयोग अधिक नहीं करना चाहिए क्योंकि ये सब बहकर पानी में चले जाते हैं जिससे जल प्रदूषित हो जाता है।
- जल प्रदूषण के कारणों, उसके दुष्प्रभावों एवं उसके निराकरण की विधियों के बारे में जानकारी देनी चाहिए।
(5) ध्वनि प्रदूषण
शहरीकरण की एक प्रमुख समस्या है—ध्वनि प्रदूषण। सामान्यतः 70 डेसीबल से अधिक की आवाज मनुष्य के स्वास्थ्य के लिए नुकसानदायक होती है। दूसरी ओर इस ध्वनि प्रदूषण का जनक भी मनुष्य ही है। अतः प्रत्येक व्यक्ति को चाहिए कि वह ऐसा कार्य न करे; जैसे-खुशी के मौके पर लाउडस्पीकर का उपयोग, जुलूस या जलसे में ध्वनि विस्तारक का प्रयोग, अधिक आवाज वाले पटाखों का उपयोग जिससे ध्वनि प्रदूषण होता है। अतः ध्वनि प्रदूषण व्यक्ति-विशेष के प्रयासों से ही रुक सकता है।
(6) पर्यावरण मित्र
प्रत्येक व्यक्ति-विशेष को चाहिए कि वह पर्यावरण से अपना नाता जोड़े और दैनिक क्रिया-कलापों में हर स्तर पर पर्यावरण संरक्षण की सोचे यानि पर्यावरण को अपना मित्र बनाये और उसकी सहायता एवं रक्षा करे। यहाँ हम उन छोटी-छोटी बातों पर उल्लेख कर रहे हैं जिससे प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण सम्भव है ये निम्नानुसार है-
- कागज फाड़ें या जलायें नहीं बल्कि उसे एकत्र कर रद्दी में बेच दें ताकि उसका पुनः उपयोग हो सके।
- गिलास में उतना ही पानी लें, जितना पीना हो ताकि उसे फेंकना न पड़े।
- एक ही कमरे में जहाँ तक सम्भव हो, घर के सभी सदस्य भोजन इत्यादि ग्रहण करें जिससे विद्युत की बचत होगी, साथ ही पूर्ण अन्धकार के पश्चात् ही रोशनी करें।
- भोजन इत्यादि के लिए आवश्यक सौर उपकरणों का प्रयोग करें।
- धीरे बात करें, ध्वनि-विस्तारकों का प्रयोग न करें, टेप, टी.वी. इत्यादि धीरे सुनें।
- खाना बनाते समय एल्यूमिनियम के बर्तनों का उपयोग करें, प्रेशर कुकर का उपयोग करें, जिससे ईंधन बचता है।
- बगीचों में पानी सूर्योदय के पहले या सूर्यास्त के बाद दें जिससे पानी व्यर्थ वाष्पित होकर नष्ट नहीं होगा पौधे के लिए अधिक उपयोगी होगा।
- वाहन का उपयोग नियमानुसार कम गति से करें, पास में जाने के लिए वाहन का प्रयोग न करें, यदि सार्वजनिक वाहन उपलब्ध हो तो व्यक्तिगत वाहन का उपयोग कम करें।
- फ्रिज का उपयोग नियमानुसार करें जिसमें बहुत अधिक ऊर्जा की खपत होती है।
- पॉलीथिन थैलों का प्रयोग केवल आवश्यकतानुसार ही करें।
- बर्तन साफ करने के लिए डिटर्जेण्ट के बजाय राख या मिट्टी का प्रयोग करें क्योंकि दोनों से ही बर्तन समान साफ होते हैं।
- अपने मित्रों और पारिवारिक सदस्यों के बीच पर्यावरण संरक्षण की चर्चा करते रहें। साथ ही स्थानीय समाचार-पत्रों के सम्पादकों को पर्यावरणीय समस्याओं से अवगत कराते रहें।
इसके अलावा भी ऐसे बहुत से कार्य हैं जिनको प्रत्येक व्यक्ति-विशेष थोड़ा ध्यान देकर करे तो अपने-आप हमारे प्राकृतिक संसाधन सुरक्षित तो रहेंगे ही साथ ही हमारा पर्यावरण स्वच्छ रहेगा और हम अपने ही नहीं बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए भी ‘शुद्ध पर्यावरण’ उपलब्ध करा सकते हैं।