राजनीति विज्ञान और मनोविज्ञान :
मनोविज्ञान व्यक्ति के मन की क्रियाओं तथा उसके बाह्य व्यवहार का अध्ययन है, यह विज्ञान विभिन्न मानसिक अवस्थाओं में मनुष्य के आचरण पर प्रभाव डालता है। बुडवर्थ के अनुसार, ‘‘मनोविज्ञान व्यक्ति से संबंधित क्रियाओं का पारस्परिक विज्ञान है।’’
स्काउट के अनुसार, ‘‘मनोविज्ञान व्यक्ति की उन आन्तरिक शक्तियों का अध्ययन करता है, जो मनुष्य को अपने जीवन में अनुभव करने, विचार करने तथा इच्छा करने की योग्यता प्रदान करती है।’’
राजनीति विज्ञान का मनोविज्ञान के साथ सम्बन्ध दिन प्रतिदिन घनिष्ठ होता जा रहा है। मनोविज्ञान विभिन्न परिस्थितियों में मनुष्य के व्यवहार का अध्ययन है और मानवीय व्यवहार और प्रकृति को समझे बिना राजनीति विज्ञान का अध्ययन ठीक प्रकार से नहीं किया जा सकता। गार्नर के अनुसार, ‘‘सरकार को स्थिर और लोकप्रिय होने के लिए अपने अधीन व्यक्तियों के मानसिक विचारों को अभिव्यक्त करना चाहिए।’’
इन दोनाें शास्त्रों की घनिष्ठता को सर्वप्रथम बैजहाॅट ने 1873 में प्रकाशित अपनी पुस्तक, ‘‘फिजिक्स एण्ड पाॅलिटिक्स’’ में स्पष्ट रूप से स्वीकार किया था। इसके बाद यह विचार निरन्तर लोकप्रिय होता गया और वर्तमान समय में इस दृष्टि से ली बोन, मेकड्यूगल, ग्राह्म वालेस, दुर्खीम आदि नाम विशेष उल्लेखनीय है, जो इन दोनों शास्त्रों की घनिष्ठता को स्वीकार करते हैं। किन्तु कुछ विद्वान इन दोनों शास्त्रों के बीच पर्याप्त अन्तर को भी स्वीकार करते हैं। इन दोनों शास्त्रों के मध्य संबंध को निम्नानुसार समझा जा सकता है –
राजनीति विज्ञान और मनोविज्ञान में संबंध :
राजनीति विज्ञान और मनोविज्ञान परस्पर अनुपूरक व सहयोगी हैं। इन दोनों की पारस्परिकता को निम्नानुसार समझा जा सकता है –
1. मनोविज्ञान की राजनीतिशास्त्र को देन
वर्तमान राजनीतिशास्त्री यह मानते हैं कि मनोविज्ञान वास्तविक अर्थों में राजनीति शास्त्र को आधार प्रदान करता है। ब्राइस का कथन है, ‘‘राजनीति शास्त्र की जड़ें मनोविज्ञाान में निहित है।’’ इसका अर्थ है कि राजनीतिक समस्याओं का अध्ययन सामाजिक मनोविज्ञान के संदर्भ में किया जाना चाहिए।
राजनीति में मनोवैज्ञानिक तथ्यों की उपयोगिता को स्वीकारते हुए वर्तमान राजनीति शास्त्री मनोवैज्ञानिक अध्ययन पद्धति के प्रयोग पर जोर देने लगे हैं। यह पद्धति किसी राष्ट्र की जनता के राजनीतिक व्यवहार का विश्लेषण करती है और इससे उपलब्ध मनोवैज्ञानिक तथ्यों का राजनीतिशास्त्र में उपयोग किया जाता है। मनोवैज्ञानिक पद्धति बताती है कि मनुष्य के राजनीतिक व्यवहार के पीछे बुद्धि, तर्क व विवेक के स्थान पर अबुद्धिवादी भावनाओं, आदतों, प्रवृत्तियों तथा अनुकरणों के संकेत आदि तत्वों का विशेष महत्व होता है।
यह विश्वास किया जाता है कि जब शासन की नीतियाँ जनता के मनोविज्ञान के अनुसार निर्धारित की जाती हैं तो जन असंतोष जन्म नहीं लेता और क्रान्ति की सम्भावना भी सीमित हो जाती है। किन्तु जब शासन जनता के मनोविज्ञान की उपेक्षा करता है तो क्रान्ति और जन आन्दोलन जन्म लेते हैं। फ्रांस की 1789 की क्रान्ति के मूल में शासकों द्वारा जनता के मनोविज्ञान की उपेक्षा निहित थी।
2. राजनीति शास्त्र की मनोविज्ञान को देन
राजनीति शास्त्र भी मनोविज्ञान को प्रभावित करता है। राजनीति शास्त्र मनोविज्ञान को राजनीतिक क्रियाकलापों से संबंधित अध्ययन सामग्री प्रदान करता है। जिससे मनोविज्ञान और भी अधिक समृद्ध हो जाता है। प्रत्येक देश की शासन व्यवस्था का वहाँ की जनता के विचारों व आचरण पर प्रभाव पड़ता है। उदाहरण के लिए द्वितीय विश्वयुद्ध से पूर्व नाजी, जर्मनी, फासिस्ट इटली तथा जापान की अधिनायकवादी व्यवस्थाओं ने इन देशों की जनता को साम्राज्यवादी व युद्धप्रिय बनाया था। किन्तु आज इन देशों में लोकतंत्र है और इनकी जनता शांतिप्रिय और मानवतावादी है।
राजनीति विज्ञान और मनोविज्ञान में अन्तर :
दोनों शास्त्रों के बीच उपरोक्त घनिष्ठ संबंध होने के बावजूद निम्नलिखित अन्तर भी है –
1. अध्ययन क्षेत्र की दृष्टि से
मनोविज्ञान व्यक्ति की समस्त मानसिक क्रियाओं का अध्ययन आर्थिक, धार्मिक, सामाजिक और राजनीतिक दृष्टि से कर सकता है। किन्तु राजनीतिशास्त्र मात्र बाह्य राजनीतिक क्रियाओं का अध्ययन करता है।
2. प्रकृति की दृष्टि से
मनोविज्ञान एक यथार्थवादी विज्ञान है जबकि राजनीति विज्ञान यथार्थवादी होने के साथ ही आदर्शवादी भी है। मनोविज्ञान, मनुष्य की मनोवृत्ति ‘क्या थी’ और ‘क्या है’ का अध्ययन करता है। किन्तु यह विचार नहीं करता है कि उसे ‘क्या होना चाहिये।’ किन्तु राजनीतिशास्त्र राजनीतिक जीवन के संदर्भ में ‘क्या था’, ‘क्या है’, तथा ‘क्या होना चाहिए’ का भी अध्ययन करता है।
3. आधारभूत धारणा की दृष्टि से
मनोविज्ञान मनुष्य को मूल रुप् में एक ऐसा मानव मानता है जो बुद्धि के स्थान पर भावनाओं के आवेग व संवेग से संचालित होता है। इसके विपरीत राजनीति शास्त्र मनुष्य को मूलतः बुद्धि सम्पन्न विवेकशील एवं सभ्य प्राणी मानकर चलता है।
4. विकास की दृष्टि से
विद्वानों का विचार है कि राजनीतिशास्त्र एक अतिप्राचीन शास्त्र है और उसका पर्याप्त विकास भी हो चुका है। किन्तु मनोविज्ञान एक नवीन शास्त्र है और मोरिस लिन्सबर्ग के अनुसार तो यह अपने विकास की अवस्थाओं में ही है। इसका विकास वैयक्तिक अनुभवों के आधार पर सामान्यीकरण तक ही हुआ है।
उपरोक्त विवरण से स्पष्ट होता है कि राजनीतिशास्त्र और मनोविज्ञान में जहाँ अत्यधिक घनिष्ठ संबंध है वहीं इनमें आधारभूत अंतर भी है। वस्तुतः राजनीति विज्ञान में मनोविज्ञान की पद्धति के प्रयोग की एक सीमा है।