राजनीति विज्ञान और अर्थशास्त्र :
राजनीति विज्ञान और अर्थशास्त्र में परस्पर घनिष्ठ सम्बन्ध है। दोनों एक दूसरे पर अत्यधिक प्रभाव डालते हैं। इन दोनाें के घनिष्ठ संबंध को गेटेल ने इस प्रकार व्यक्त किया है, ‘‘आर्थिक परिस्थितियाँ राज्य के संगठन, विकास तथा क्रियाकलापों पर प्रभाव डालती हैं और प्रत्युत्तर में राज्य अपने कानूनों द्वारा आर्थिक परिस्थितियों को बदलता है।’’
इस संबंध में गार्नर का यह कथन है ’’बहुत सी आर्थिक समस्याओं का समाधान राजनीतिक संस्थाओं द्वारा किया जाना आवश्यक है, जबकि दूसरी ओर राज्य से सम्बन्धित बहुत सी समस्याओं की उत्पत्ति का कारण आर्थिक होता है।’’
गुरुमुख निहालसिंह के अनुसार, ’’प्रारम्भिक दिनों में अर्थशास्त्र को राजनीति विज्ञान की एक शाखा माना जाता था तथा उसके अध्ययन का विषय राज्य के लिए राजस्व प्राप्त करना था। इसी प्रकार इसे ‘घरेलू अर्थशास्त्र’ की अपेक्षा ’राजनीतिक अर्थशास्त्र’ कहा जाता था। राजनीतिक अर्थशास्त्र यह प्रकट करता था कि अर्थशास्त्र राजनीति विज्ञान के अधीन है।’’
राजनीति विज्ञान और अर्थशास्त्र में संबंध :
राजनीति विज्ञान और अर्थशास्त्र की पारस्परिकताओं को निम्नानुसार समझा जा सकता है –
1. अर्थशास्त्र की राजनीति विज्ञान को देन
अर्थशास्त्र ने राजनीति विज्ञान को विभिन्न रुपों में प्रभावित किया है। राज्य की उत्पत्ति व उसके विकास में आर्थिक क्रियाएँ की महत्वपूर्ण भूमिका रही है और आज भी आर्थिक क्रियाऐं राजनीतिक संस्थाओं के विकास में सहायक बन रही है। मार्क्स के अनुसार, ‘‘आदिम समाज में जब निजी सम्पत्ति की संस्था उत्पन्न हुई तो राज्य का जन्म हुआ और जब भी समाज के आर्थिक ढांचे में परिवर्तन हुआ तो राज्य के संगठन पर भी उसका प्रभाव पड़ा।’’
राज्य के क्रियाकलापों व उसकी नीतियों के पीछे आर्थिक परिस्थितियों का प्रभाव होता है। लास्की के अनुसार, ’’किसी भी राज्य में कानूनों की प्रकृति का संबंध उन प्रभावपूर्ण माँगों से होता है जिनका उन्हें सामना करना होता है और यह माँगें साधारण रूप से उस ढंग पर आधारित होती हैं जिससे उन पर शासन में आर्थिक शक्ति का वितरण किया जाता है।
राजनीतिक इतिहास के अध्ययन से ज्ञात होता है कि राजनीतिक क्रान्तियों व युद्धों का प्रमुख कारण भी आर्थिक असंतोष होता है। उदाहरण के लिए 1789 की फ्रांस की क्रान्ति तथा सन् 1917 की सोवियत संघ की साम्यवादी क्रान्ति का मूल कारण तत्कालीन आर्थिक दुरावस्था ही थी। इटली में फासिस्ट तानाशाही, जर्मनी में नाजी तानाशाही तथा स्पेन में गृहयुद्ध आदि का प्रमुख कारण आर्थिक असंतोष को बताया जा सकता है। प्रथम व द्वितीय विश्वयुद्ध का मूल कारण पूंजीवादी व्यवस्था में निहित है। इसी प्रकार पश्चिमी पाकिस्तान के आर्थिक शोषण ने पूर्वी पाकिस्तान में विद्रोह को जन्म दिया और वह बांग्लादेश के रुप में स्वतंत्र राज्य बन गया।
2. राजनीति विज्ञान की अर्थशास्त्र को देन
राजनीति विज्ञान भी अपने ढंग से अर्थशास्त्र को प्रभावित करता है। राज्य की नीतियाँ समाज के आर्थिक ढांचे व व्यवस्थित रुप को निर्धारित करती हैं। राज्य की नीति के अनुसार ही वस्तुओं के उत्पादन व वितरण की प्रणाली निश्चित की जाती है। समाज के आर्थिक विकास पर प्रशासन के स्तर का भी स्पष्ट प्रभाव पड़ता है। यदि प्रशासनिक ढांचा उच्च स्तर का है और अपने दायित्वों को कुशलतापूर्वक निभाने में समर्थ है तो आर्थिक विकास शीघ्र होगा और यदि प्रशासनिक ढांचा भ्रष्ट है तो आर्थिक विकास शीघ्र नहीं होगा। हालांकि युद्ध एक सैनिक व राजनैतिक गतिविधि है किन्तु इसका भी प्रभाव समाज के आर्थिक ढांचों पर पड़ता है। युद्ध के कारण संबंधित राज्यों का सैनिक व्यय बढ़ जाता है और आर्थिक प्रगति पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
3. विषय वस्तु की समानता
इन दोनों शास्त्रों के बीच घनिष्ठता का एक अन्य आधार दोनों की विषय वस्तु की साम्यता है। जैसे- साम्यवाद, समाजवाद, पूंजीवाद तथा सार्वजनिक वित्त आदि अर्थशास्त्र तथा राजनीति विज्ञान दोनों के ही अध्ययन की विषय वस्तु है।
राजनीति विज्ञान और अर्थशास्त्र में अंतर :
राजनीति विज्ञान तथा अर्थशास्त्र के मध्य भेद को निम्नानुसार व्यक्त किया जा सकता है:-
1. अध्ययन विषय में अन्तर
अर्थशास्त्र का सम्बन्ध मनुष्य के आर्थिक जीवन से है जबकि राजनीति विज्ञान का सम्बन्ध मनुष्य के राजनीतिक जीवन से है। आइवर ब्राउन का कथन है, ‘‘अर्थशास्त्र का संबंध मुख्यतः वस्तुओं से होता है और राजनीति शास्त्र का व्यक्तियों से’’ इसके अतिरिक्त राजनीति शास्त्र के अध्ययन क्षेत्र में वे सब विषय आते हैं जो मानव कल्याण के लिए आवश्यक हैं और इस दृष्टि से स्वयं अर्थशास्त्र भी उसके क्षेत्र में आता है किन्तु अर्थशास्त्र का क्षेत्र इतना व्यापक नहीं है।
2. प्रकृति में अन्तर
दोनों शास्त्रों की प्रकृति में भी पर्याप्त अन्तर है। राजनीति विज्ञान आदर्शात्मक विज्ञान है किन्तु अर्थशास्त्र मात्र वर्णनात्मक विज्ञान है। राजनीति शास्त्र सामाजिक व नैतिक मूल्यों की दृष्टि से विचार करता है जबकि अर्थशास्त्र मात्र भौतिक दृष्टि से विचार करता है।
3. उद्देश्य में अन्तर
अर्थशास्त्र व्यक्ति का अध्ययन धन के संदर्भ में करता है जबकि राजनीति विज्ञान व्यक्ति का व्यक्ति के रुप में ही अध्ययन करता है।
4. क्षेत्र की दृष्टि में अन्तर
इन दोनों के भेद को गिलक्राइस्ट ने इन शब्दों में व्यक्त किया है, ‘‘राजनीति शास्त्र राज्य का विज्ञान है, अर्थशास्त्र सम्पत्ति का विज्ञान है।’’ इनकी घनिष्ठता के संबंध में चार्ल्र्स बियर्ड ने कहा है, ‘‘अर्थशास्त्र के बिना राजनीति शास्त्र अवास्तविक व महत्त्वहीन रचना मात्र है।’’