प्लेटो के साम्यवाद सिद्धान्त :
प्लेटो ने अपने आदर्श राज्य में न्याय को शासन का आधार माना है। न्याय के लिये मानव मस्तिष्क में सुधार के लिये उसने शिक्षा के सिद्धान्त का और सामाजिक वातावरण में सुधार के लिये साम्यवाद के सिद्धान्त का प्रतिपादन किया। उसने शासक और सैनिक वर्ग को स्वार्थ से मुक्त रखने के लिये सम्पत्ति तथा परिवार से वंचित रखा जिससे वह अपने कर्त्तव्य मार्ग से विचलित न हो सके। यदि संरक्षक वर्ग (शासक और सैनिक) धन लोलुपता, स्वार्थ और पारिवारिक कार्यों में संलग्न रहेंगे तो वह निष्पक्ष भाव से शासन के कार्य कर सकेंगे। प्लेटो का साम्यवाद अपने में एक साध्य नहीं, अपितु एक साधन मात्र है। उसके साम्यवाद का मुख्य उद्देश्य आदर्श राज्य की स्थापना करना है।
बार्कर के अनुसार, “सम्पूर्ण साम्यवाद का उद्देश्य है व्यक्ति को प्रत्येक ऐसी वस्तु से उन्मुक्त करना जो उसे राज्य के संगठन में अपना निर्दिष्ट स्थान प्राप्त करने में बाधा डालती है। इसका उद्देश्य उन स्थितियों को प्राप्त करना है।” दूसरे शब्दों में, उन अधिकारों की प्रत्याभूति है जो राज्य की योजना में सक्रिय रूप से भाग लेने के लिए आवश्यक है। नैटिलिशिप के अनुसार, “प्लेटो का साम्यवाद शिक्षा द्वारा उत्पन्न की गई भावना एवं उसे नव-शक्ति देने वाला पूरक यन्त्र है।”
प्लेटो की साम्यवादी विचारधारा की पृष्ठभूमि :
प्लेटो का साम्यवादी सिद्धान्त सर्वथा एक मौलिक सिद्धान्त नहीं है। यह विचारधारा उससे पूर्व भी यूनान में प्रचलित थी। स्पार्टा में स्त्रियों को राज्य-हित के लिये उधार दिया जाता था। 7 वर्ष की आयु के बाद बच्चों को राज्य-हित के लिये राज्य को सौंप दिया जाता था। राज्य ही इन बच्चों का सम्पूर्ण भार उठाता था। क्रीट नामक नगर-राज्य में सार्वजनिक अथवा सहकारी खेती की व्यवस्था थी। प्रसिद्ध दार्शनिक पाइथागोरस ने यह कहकर कि “मित्रों की सम्पत्ति पर सबका समान रूप से अधिकार होना चाहिए।”
एक प्रकार के साम्यवादी सिद्धान्त का समर्थन किया। प्लेटो की रचना से कई वर्ष पूर्व प्रसिद्ध विद्वान यूरोपाईडीज ने अपने ग्रन्थ प्रोटोसलास में स्त्रियों के साम्यवाद का प्रतिपादन किया। प्लेटो ने उपर्युक्त सब विचारों को संकलित करके अपने साम्यवाद के सिद्धान्त का प्रतिपादन किया।
प्लेटो के साम्यवाद के आधार :
प्लेटो का साम्यवाद मुख्य रूप से तीन आधारों पर स्थित है, जो निम्न प्रकार हैं-
1. मनोवैज्ञानिक आधार
प्लेटो ने मानव प्रवृत्ति के तीन गुण ज्ञान, साहस और वासना के आधार पर समाज को तीन वर्ग शासक, सैनिक और उत्पादक में विभाजित किया है। उसके न्याय के अनुसार तीन वर्गों को अपने कर्तव्यों का पालन करना चाहिये। शासक और सैनिक वर्ग को उत्पादक वर्ग की आर्थिक इच्छाओं को छोड़ देना चाहिये। यदि वे ऐसा नहीं करेंगे तो अपने पथ से भ्रष्ट हो जायेंगे। अतः शासक एवं सैनिक वर्ग को स्वार्थ से दूर रखने के लिये सम्पत्ति और परिवार से वंचित रखना अनिवार्य है।
बार्कर ने कहा है, “यदि उसके दो आदर्श राज्य के दो प्रधान वर्ग शासक तथा सैनिक कुशलतापूर्वक निःस्वार्थ भावना से कार्य करना है, तो इन्हें साम्यवादी व्यवस्था के अन्तर्गत रहना चाहिये।” प्लेटो का यह पक्का विश्वास था कि सैनिक और परिवार का साम्यवाद उन्हें (शासक और सैनिक) वास्तविक रूप से स्वार्थ एवं चिन्ता से रहित बना देगा।
2. राजनैतिक आधार
राजनैतिक दृष्टि से भी प्लेटो ने साम्यवाद का समर्थन किया है। वह राजनैतिक तथा आर्थिक शक्तियों को अलग-अलग रखना चाहता था। उसका कहना था कि राजनैतिक तथा आर्थिक शक्तियाँ एक हाथ में करने से बहुत बुरे परिणाम निकलेंगे। इसलिये उसने शासक वर्ग को आर्थिक शक्तियों से वंचित रखा। उन्हें केवल राजनैतिक सत्ता सौंपी। अतः आदर्श राज्य की स्थापना के लिये साम्यवाद राजनीतिक दृष्टि से भी अनिवार्य था।
3. दार्शनिक आधार
दार्शनिक प्लेटो ने अपने साम्यवाद को विशेष कार्य के सिद्धान्त के द्वारा पुष्ट किया है। उसके अनुसार शासक वर्ग को समस्त सांसारिक तत्त्वों से दूर रहना चाहिये। वह अपने दार्शनिक शासकों को प्राचीनकाल के कुटिया में रहने वाले संन्यासियों के निकट रखता है जो पारिवारिक जीवन तथा सम्पत्ति को छोड़कर जन-कल्याण की बात सोचते हैं। इस सम्बन्ध में वेपर कहता है, “संरक्षक तथा संन्यासी का स्थान सर्वोच्च है। संरक्षक तथा संन्यासी को सांसारिक चिन्ताओं से दूर रहना चाहिये।” साम्यवाद का दार्शनिक आधार भारतीय दृष्टिकोण के निकट है।
प्लेटो के साम्यवाद की रूपरेखा :
प्लेटो ने अपने साम्यवाद को शासक और सैनिक वर्ग तक सीमित रखा है। उत्पादक वर्ग के लिये उसने साम्यवाद की कोई रूपरेखा प्रस्तुत नहीं की। उसके साम्यवाद के दो रूप हैं-
- सम्पत्ति का साम्यवाद,
- पत्नियों का साम्यवाद।
1) सम्पत्ति का साम्यवाद
प्लेटो ने शासक तथा सैनिक वर्ग पर सम्पत्ति का साम्यवाद लागू किया है। उसके अनुसार शासक और सैनिक वर्ग किसी भी प्रकार की सम्पत्ति के स्वामी न होंगे, क्योंकि सम्पत्ति एक ऐसी वस्तु है जो व्यक्तियों को अपने मार्ग से भ्रष्ट कर देती है और इसके मोह में पड़कर शासक वर्ग जनता का शोषण करने लगता है। इस सम्बन्ध में सेबाइन का कथन उल्लेखनीय है कि, “प्लेटो की यह दृढ़ मान्यता थी कि शासक पर धन का बहुत खराब प्रभाव पड़ता । इस बुराई को दूर करने का प्लेटो को यही उपाय सूझा कि जहाँ तक सिपाहियों और शासकों का सम्बन्ध है, धन का अन्त ही कर दिया जाये। शासकों का लोभ दूर करने का एकमात्र यही उपाय है कि उनके पास कोई व्यक्तिगत सम्पत्ति न रहने दी जाये। वे किसी वस्तु को अपनी न कह सकें। शासक अपने नागरिक कर्तव्यों के प्रति निष्ठावान रहें।”
अब प्रश्न यह उठता है कि इन दोनों वर्गों को सम्पत्ति से वंचित कर दिया जायेगा तो उनकी आवश्यकता कैसे पूरी होगी। इस प्रश्न के उत्तर में प्लेटो कहता है कि राज्य अपनी नियमित आवश्यकताओं की पूर्ति करेगा। रिपब्लिक में शासकों की जीवनचर्या का वर्णन करता हुआ प्लेटो कहता है- प्रथम तो जितनी कम-से-कम सम्पत्ति नितान्त आवश्यक है उससे अधिक सम्पत्ति उनमें से किसी को नहीं रखनी चाहिये। दूसरे, किसी के पास घर अथवा भण्डार नहीं होना चाहिये जो सबके स्वेच्छापूर्ण प्रवेश के लिये नित्य खुला न रहता हो। उनको भोज्य सामग्री इतनी मात्रा में और ऐसी होनी चाहिए जोकि संयमी एवं साहसी योद्धा भटों के लिये उपयुक्त हो। यह उनको नागरिकों द्वारा सुनिश्चित एवं सुनिर्धारित ढंग से उनकी संरक्षकता वृत्ति के रूप में इतनी मात्रा में मिलनी चाहिये कि न तो वर्ष के अन्त में आवश्यकता से अधिक बचा रहे और न ही कम पड़े। युद्ध शिविर में रहने वाले योद्धाओं के समान उनका भोजन एवं रहना सामूहिक होना चाहिये रही सोना-चाँदी की बात तो उसके विषय में हम उनसे कहेंगे कि सोना और चाँदी तो उनको अपने देवताओं द्वारा नित्य ही अपनी आत्मा के भीतर ही प्राप्त है। अतः उनको मृत्युलोक की निम्न कोटि की धातु की कोई आवश्यकता नहीं।
मृत्युलोक की धातु के मिश्रणों द्वारा अपने को अपवित्र करना उन्हें सहन नहीं होना चाहिये। इस प्रकार रहते हुये वे अपनी भी रक्षा कर सकेंगे और नगर की भी। परन्तु जब कभी भी वे अपनी भूमि, घर और धन को उपार्जित कर लेंगे तब वे अपने अन्य नागरिकजनों के सहायक बने रहने की अपेक्षा उन पर द्वेषपूर्ण अत्याचार करने वाले सहायक बन जायेंगे।
सैनिक और शासक वर्ग द्वारा सम्पत्ति का त्याग केवल राज्य को ही एकता के बन्धन में ही नहीं बाँधेगा, अपितु शासक एवं शासित वर्ग के बीच भी एक बन्धन आ जायेगा। इस प्रकार से उसके सम्पत्ति के साम्यवाद की रूपरेखा निम्न प्रकार होगी-
(1) सैनिक और शासक वर्ग को व्यक्तिगत सम्पत्ति रखने का अधिकार नहीं होगा। (2) उनकी आवश्यकताओं की पूर्ति का उत्तरदायित्व राज्य का होगा। (3) शासक वर्ग और सैनिक वर्ग के निवास करने के लिये सार्वजनिक आवासगृह होंगे और वे अपना भोजन सार्वजनिक भोजनालयों में करेंगे। सेबाइन के अनुसार, “प्लेटो के साम्यवाद का मुख्य उद्देश्य राजनीतिक है। वह साम्यवाद का उपभोग धन का समाजीकरण करने के लिए नहीं करता, अपितु धन का समाजीकरण इसलिए करता है जिससे शासन को भ्रष्ट करने वाले प्रभाव नष्ट हो जायें।”
2) पत्नियों का साम्यवाद
प्लेटो के साम्यवाद के अनुसार शासक और सैनिक वर्ग को न केवल सम्पत्ति का मोह छोड़ना होगा, अपितु उन्हें पारिवारिक एवं दाम्पत्य जीवन का भी त्याग करना पड़ेगा। प्लेटो ने परिवार को सब स्वार्थी भावनाओं को उत्पन्न करने वाली संस्था माना है। परिवार के कारण ही व्यक्ति को सम्पत्ति से मोह होता है। अतः उसका यह विचार था कि शासक एवं सैनिक वर्ग को पारिवारिक बन्धनों से मुक्त रखकर निःस्वार्थ रूप से कर्त्तव्यपालन की आशा की जा सकेगी। इसी कारण शासक और सैनिक वर्ग को अलग-अलग परिवारों के बन्धन में न डालकर संयुक्त परिवार के बन्धन में डालने की योजना प्रस्तुत की। उसका विचार था कि इससे एकता में भी वृद्धि होगी और पुरुषों में अपने परिवार के लिए सम्पत्ति उत्पादन की इच्छा नहीं होगी। इसी कारण बार्कर ने कहा है, “अभिभावकों (सैनिक और शासक) में दाम्पत्य जीवन का त्याग उनके निजी सम्पत्ति त्याग का ही उपसिद्धान्त अवश्यम्भावी उपसिद्धान्त के रूप में है।”
प्लेटो के पत्नियों के साम्यवाद का सार यह है कि विवाह केवल सन्तान उत्पन्न करने के उद्देश्य से किये जायें और विवाह पर राज्य का नियन्त्रण होगा। सन्तान उत्पन्न हो जाने के पश्चात् स्त्री-पुरुष को विवाह के सम्बन्धों को तोड़ देना चाहिये जिससे वे अधिक दाम्पत्य जीवन में न फंस सकें। बच्चों के पालन-पोषण का उत्तरदायित्व राज्य का होगा। पत्नियों के साम्यवाद के अनुसार एक स्त्री एक पुरुष की पत्नी हो सकती थी, क्योंकि सन्तान उत्पन्न होने के पश्चात् वह किसी दूसरे पुरुष की पत्नी हो सकती थी। प्लेटो ने अपने इस साम्यवाद का रूप बतलाते हुये कहा है, “संरक्षक स्त्री-पुरुषों में कोई भी अपना निजी घर नहीं बनायेगा। स्त्रियाँ समान रूप से पत्नियाँ होंगी और न तो माता-पिता अपनी सन्तान को जान सकेंगे और न सन्तान माता-पिता को।”
पत्नियों के साम्यवाद को प्रतिपादित करने में प्लेटो का उद्देश्य :
- परिवार के मोह से संरक्षकों को मुक्त रखना था।
- नारी जाति की स्वतन्त्रता के उद्देश्य से भी प्लेटो ने पत्नियों के साम्यवाद का समर्थन किया है।
- उत्तम एवं योग्य सन्तानों की दृष्टि से भी प्लेटो ने पत्नियों के साम्यवाद का समर्थन किया है।
प्लेटो के साम्यवाद की विशेषताएं :
प्लेटो के साम्यवाद सिद्धान्त की प्रमुख विशेषताएँ निम्नानुसार हैं-
- प्लेटो का साम्यवाद आदर्श की पूर्ति है।
- प्लेटो का साम्यवाद केवल सैनिक तथा शासक वर्ग के लिये है। उत्पादक वर्ग साम्यवाद के प्रभावों से मुक्त है।
- प्लेटो का साम्यवाद अभिजातवर्गीय साम्यवाद था।
- प्लेटो के साम्यवाद का स्वरूप तपस्यात्मक है।
- उसके साम्यवाद का उद्देश्य सामाजिक व आर्थिक न होकर राजनीति में विद्यमान दोषों को दूर करना था।
- प्लेटो के साम्यवाद का उद्देश्य स्वस्थ एवं योग्य सन्तान की उत्पत्ति करना था। जिससे सुदृढ़ एवं आदर्श राज्य का निर्माण हो सके।
प्लेटो के साम्यवाद की सामान्य आलोचनाएं :
- प्लेटो ने अपने साम्यवाद में शासक वर्ग एवं सैनिक वर्ग को उत्पादक वर्ग के अधीन कर दिया है। आर्थिक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिये उन्हें उत्पादक वर्ग पर निर्भर रहना पड़ेगा। इस कारण शासक वर्ग उत्पादक वर्ग की गलत बातों को भी सहन करेगा। इससे भ्रष्टाचार की नीति को बढ़ावा मिलेगा।
- एक ऐसे शासक वर्ग की कल्पना नहीं की जा सकती जिसका अपना कुछ भी न हो।
- प्लेटो का साम्यवाद नकारात्मक है। बार्कर का कहना है, “प्लेटो की साम्यवादी व्यवस्था एक ऐसी धारणा है जिसका समाज की आर्थिक व्यवस्था से कोई सम्बन्ध नहीं है। वह उत्पादन की व्यक्तिवादी व्यवस्था को वैसा ही छोड़ देता है और एक भी उत्पादक वर्ग को स्पर्श नहीं करता।”
- प्लेटो ने अपने साम्यवाद में स्त्रियों के स्वाभाविक गुण मातृत्व की उपेक्षा की और कहा है कि यह गुण माता के अलावा कोई नहीं दे सकता।
- स्त्री एवं पुरुष में लिंग का अन्तर तो होता ही है गुणों का भी अन्तर होता है। स्त्री कोमल, दयालु होती है, जबकि पुरुष कठोर, शक्तिशाली होते हैं।
- प्लेटो की अस्थाई विवाह की योजना भी उचित नहीं है। स्त्री एवं पुरुष को बच्चा पैदा करने की एकमात्र मशीन मानना गलत है। इसका सम्बन्ध केवल शारीरिक ही नहीं होता है, आध्यात्मिक भी होता है।
- प्लेटो ने परिवार के महत्त्व को भुला दिया है, जबकि परिवार मनुष्य प्राथमिक पाठशाला होती है।
- स्त्री सम्बन्धी साम्यवाद केवल कल्पना की उड़ान है। वह सांसारिक अवश्य होगा।
- सेबाइन का कहना है कि, “प्लेटो का साम्यवाद स्पष्ट नहीं है। उसके साम्यवाद में दासों के लिये कोई स्थान नहीं है।”