जिला कांकेर : छत्तीसगढ़
सामान्य परिचय – इतिहास के पन्नों में अपनी ‘कथा और गाथा’ की लम्बी कहानी लिखने के साथ जल-जंगल-जमीन-जनजाति की एक समृद्धशाली धरोहर को समेटे कांकेर जिला बस्तर अंचल की सबसे विकसित जिला है। मराठी लोक संस्कृति से पल्लवित पश्चिमी छोर अबुझमाड़ के घने वादियों से विभूषित है। वर्तमान सभ्यता के बुनियाद लौह अयस्क, असीमित मात्रा में मौजुद है। छत्तीसगढ़ की गंगा महानदी पूर्वी अंचल को स्पर्श करती गड़िया पहाड़ अपने मनोरम प्राकृतिक उपहार जलप्रपात तथा ईश्वरीय आस्था के कारण पर्यटन का केन्द्र है।
- जिला गठन – 1998
- क्षेत्रफल – 5,285 km²
- पड़ोसी सीमा – धमतरी, बालोद, कोण्डागांव, नारायणपुर, राजनांदगांव, महाराष्ट्र।
- प्रमुख नदी – दूध नदी, महानदी, कोटरी नदी।
- पर्यटन स्थल – मलाजकुण्डम जलप्रपात, गड़िया पर्वत, शिवानी मंदिर आदि।
- लौह अयस्क – रावघाट, चारगांव, हाहालद्दी, गड़िया पहाड़, मेटाबोदली, आरीडोंगरी।
- सोना – सोनदेई, मिचगांव
- ग्रेनाइट – कन्हारपुरी, नरहरपुर
- बाक्साइट – तारांदुल, कुमकाकुरूम
- क्वार्टजाइट – परसापाली, सालेतराई।
- रावघाट – वर्तमान में भिलाई स्टील प्लांट को लौह अयस्क की आपूर्ति रावघाट क्षेत्र से की जाती है।
- अबूझमाड़ क्षेत्र – परलकोट विद्रोह (1825)
पर्यटन स्थल :
1. मलाजकुण्डम जलप्रपात (दूध नदी का उद्गम)
मलाजकुण्डम जलप्रपात, छत्तीसगढ़ के प्रमुख पर्यटन स्थल में से एक है। इसकी प्राकृतिक सौंदर्य अदभुत है, मलाजकुण्डम झरना, जब उँचाई से जमीन पर गिरता है वह बहुत दर्शनीय होता है। इसकी ऊंचाई 10 मीटर से 15 मीटर और चौड़ाई 9 मीटर की हैं। भारत में कांकेर के मलाजकुण्डम झरना दूध नदी पर कांकेर से 15 कि.मी. की दूरी पर स्थित है।
2. गड़िया पर्वत (शिवधाम)
गड़िया पर्वत कांकेर के सबसे ऊंचा पहाड़ और एक प्राकृतिक किला है। यह पहले कभी कंधरा वंश के राजा धर्मदेव की राजधानी घोषित था। पहाड़ी के ऊपर पानी की झील है जो कभी नहीं सूखती। दूध नदी पहाड़ों से उतरती है।
इस झील के साथ एक लोककथा प्रचलित है। झील के दो भाग सोनाई और रूपाई के नाम से जाने जाते हैं जो राजा की दो बेटियों के भी नाम थे। ऐसा माना जाता है कि दोनो बेटियाँ झील में गिर गई थी और इसीलिये इसका नाम सोनाई रूपाई तालाब पड़ा। गहरे पानी में एक सुनहरी तथा एक रजत मछली पाई जाती हैं जिन्हें अभी भी जीवित माना जाता है।
चूरी पगार नाम की एक गुफा इस झील के दक्षिणी हिस्से में स्थित है। इस गुफा में 500 लोग आसानी से घुस सकते हैं और इसे बाहरी आक्रमणकारियों से बचाव के लिये प्रयोग किया जाता था। जोगी गुफायें पहाड़ी के दक्षिणी-पूर्वी भाग में स्थित हैं। यह संकरी गुफा भिक्षुओं के ध्यान के लिये शरण स्थली के रूप में थी। इसी पहाड़ पर एक शीतला मन्दिर भी स्थित है। गड़िया पर्वत पर महाशिवरात्रि का पर्व मनाया जाता है और हजारों भक्त यहाँ आते हैं।
3. शिवानी मंदिर
कांकेर जिले के शिवानी मंदिर मे दो देवियों का वास है मां दुर्गा और मां काली। मंदिर की मूर्ति में आधा भाग दुर्गा मां शामिल हैं और आधा मां काली की है। शिवानी मंदिर, छत्तीसगढ़ राज्य के सबसे पुराने मंदिरों में से एक है। मंदिर की संरचना निर्माण में मंदिरों की प्राचीन शैली चित्रण और जातीय परंपरा को दर्शाता है। दुनिया भर में यह मूर्ति के केवल दो स्थान पर ही है एक छत्तीसगढ़ के कांकेर जिले में और दूसरा कोलकाता में है। भारत के छत्तीसगढ़ के कांकेर जिले में शिवानी मंदिर नवरात्रि त्यौहार के आयोजन के लिए प्रसिद्ध है और बहुत ही सुंदर है।
प्रमुख व्यक्तित्व :
1. राजा भानुप्रताप सिंह
इनका जन्म रतु (छोटा नागपुर) में हुआ था। भानुप्रताप सिंह की निविदा उम्र के कारण, तत्कालीन ब्रिटिश आयुक्त ने रघुवीर प्रसाद श्रीवास्तव को राज्य के प्रशासन के मंत्री नियुक्त किया, और वह एक अच्छा प्रशासक साबित हुआ। भानु प्रताप देव को राजकुमार कॉलेज रायपुर में औपचारिक शिक्षा के लिए भेजा गया, जहां उन्होंने खेल और अध्ययन में उत्कृष्टता हासिल की। वह एक उत्सुक और प्रतिभाशाली खिलाड़ी भी थे। बाद में वह मेयो कॉलेज अजमेर, राजस्थान में आगे के अध्ययन के लिए गए और देहरादून में आईसीएस प्रशिक्षण शिविर में भी भाग लिया।
2. ठाकुर रामप्रसाद पोटाई (बस्तर के गांधी)
इन्हें बस्तर (छत्तीसगढ़) का गांधी कहा जाता है। इनसे प्रभावित होकर पं.जवाहर लाल नेहरू ने उन्हे भारतीय संविधान सभा का सदस्य बनाया। इन्हे कांकेर जिला जनपद सभा का प्रथम अध्यक्ष बनने का गौरव प्राप्त है। सन 1950 में डॉ० रामप्रसाद पोटाई को कांकेर का प्रथम मनोनीत सांसद बनाया गया। (#Source)
कांकेर जिले के प्रमुख आंदोलन :
परलकोट विद्रोह (1825) – (शहीद भूमि)
- शासक – महिपाल देव
- क्षेत्र – अबूझमाड़
- नेतृत्व – गेंदसिंह (परलकोट के जमींदार)
- कारण – अंग्रेजों व मराठों के प्रति असंतोष
- उद्देश्य – अबूझमाड़ क्षेत्र को शोषण से मुक्ति दिलाना
- प्रतीक – घावड़ा वृक्ष की टहनियों का प्रयोग
- दमन – कैप्टन पेबे द्वारा
- परिणाम – असफल (बन्दूकों के सामने पारम्परिक शस्त्रों से नहीं लड़ा जा सकता था।)
- 20 जनवरी, 1825 को गेंदसिंह को फाँसी दे दी गयी।